विज्ञापनों का मकसद सामान बेचना होता है. इसके लिए खरीदार को टार्गेट किया जाता है. कभी महिलाएं खुद टार्गेट होती हैं, तो कभी उनकी वजह से पुरुष कोई खास सामान खरीदने को प्रेरित होते हैं.
विज्ञापनों में महिलाएं
विज्ञापनों का मकसद सामान बेचना होता है. इसके लिए खरीदार को टार्गेट किया जाता है. कभी महिलाएं खुद टार्गेट होती हैं, तो कभी उनकी वजह से पुरुष कोई खास सामान खरीदने को प्रेरित होते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Sen
अधिकतम असर
विज्ञापन तैयार करने वालों का काम होता है अधिकतम असर पैदा करना. इसके लिए हर तरीका जायज माना जाता है. अधिकतम असर का मतलब है असर की गहराई और गहनता.
तस्वीर: Colourbox
हाउसवाइफ की छवि
विज्ञापनों में महिलाओं की छवि जर्मनी सहित पूरी दुनिया में पिछले दशकों में काफी बदली है. जर्मनी में पहले महिलाओं को घर गृहस्थी चलाने वाली पोशाक में दिखाया जाता था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कामयाबी के सबूत
बाजार में कामयाबी सेक्स से संबंधित प्रचार के जरिए मिलती है, अब इसके सबूत हैं. इसलिए विज्ञापनों में उसका इस्तेमाल पहले से कहीं ज्यादा हो रहा है.
तस्वीर: picture alliance/dpa
सेक्स सिंबल
समाज में महिलाओं की भूमिका बदलने के साथ विज्ञापनों में उनकी छवि भी बदली है. आधुनिक विज्ञापनों में महिलाओं को सेक्स सिंबल के रूप में दिखाया जाता है.
तस्वीर: Getty Images/A. Burton
बदली भूमिका
दुनिया भर में समाज में महिलाओं की भूमिका बदलने के साथ विज्ञापनों में उनको दिखाए जाने का तरीका भी बदला है. लेकिन पूरी दुनिया में विज्ञापनों में उनका इस्तेमाल जारी है.
तस्वीर: DW/N. Velickovic
कामकाजी महिलाएं
अभी भी करियर बनाने वाली महिलाएं ज्यादातर जगहों पर एक छोटा सा वर्ग है. इसलिए पश्चिमी देशों में भी उन्हें विज्ञापनों में कम ही दिखाया जाता है. विज्ञापनों में भेदभाव बड़ी समस्या है.
तस्वीर: picture-alliance / dpa
आम महिलाएं
मीडिया में दिखने वाली तस्वीरें समाज का प्रतिबिंब नहीं होती. फिल्मों या टेलिविजन पर दिखाई जाने वाली महिलाएं आम जिंदगी में दिखने वाली महिलाओं से अलग दिखती हैं.
तस्वीर: DW
सेक्सिज्म के आरोप
विज्ञापनों में अक्सर महिलाओं के शरीर के इस्तेमाल के आरोप लगते रहे हैं. और दुनिया में हर कहीं इनका अलग अलग तरीके से विरोध भी हो रहा है.