जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने एक साल पहले शरणार्थी संकट पर कहा था, हम चुनौती का सामना कर लेंगे. लेकिन जनमत शरणार्थियों के समेकन के सवाल पर विभाजित है. वेरिचा स्पास्कोवा का कहना है कि बहुत से सवाल अनुत्तरित हैं.
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अंगेला मैर्केल पिछले साल के अपने बयान पर अडिग हैं. लेकिन उस बयान के बाद उभरी जनभावना इस बीच फुस्स हो गई है. जर्मनों की उम्मीद अब संयमित हो गई है. और डॉयचे वेले के एक सर्वे में दो महत्वपूर्ण नतीजे निकले हैं. सर्वे में भाग लेने वालों का बहुमत मानता है कि जर्मन बहुसांस्कृतिक हो रहा है. लेकिन दूसरी ओर इस बात की चिंता भी है कि आतंकी हमलों में वृद्धि होगी. हाल के इस्लाम प्रेरित हमलों और हमलों की कोशिशों के साथ नए साल के मौके पर कोलोन और अन्य शहरों में मुख्यतः शरणार्थियों द्वारा किए गए यौन हमलों ने बहुत से जर्मनों को सावधान कर दिया है.
अच्छी खबर यह है कि ज्यादातर जर्मनों का शरणार्थियों के प्रति सकारात्मक रवैया है. वे उनकी उपस्थिति को समाज के लिए फायदेमंद मानते हैं. ये शरणार्थियों के समाज में समेकन के प्रयासों की दीर्घकालीन सफलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण आधार है. ये 40 साल पहले के विचारों के भी विपरीत है जब लाखों मेहमान कामगार जर्मनी आए थे. उस समय कोई भी बहुसंस्कृतिवाद की बात नहीं कर रहा था.
सर्वे के दूसरे नतीजे को भी गंभीरता से लिया जाना चाहिए. डर की भावना बढ़ रही है जिसे स्वाभाविक रूप से न तो बढ़ाया जाना चाहिए और न ही उसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए जैसा कि दक्षिणपंथी एएफडी पार्टी कर रही है. लेकिन इन चिंताओं को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता.
हम चुनौती का सामना कर लेंगे, यह बात तब ज्यादा विश्वसनीय होती जब यह साफ होता कि वह असल में होगा कैसे. आर्थिक समेकन अच्छी मिसाल है. क्या सरकार को कामयाब होने के लिए अधिक निवेश करने और उसमें पारदर्शिता की जरूरत नहीं है? इस बीच कोई 40,000 शरणार्थियों को जर्मनी में काम मिला है, लेकिन तीन चौथाई शरणार्थियों के पास जरूरी पेशेवर कौशल की कमी है. इसका मतलब है कि सरकार और प्राइवेट सेक्टर को पहले शरणार्थियों को काम करने योग्य बनाना होगा. ट्रेनिंग खर्चीला मामला है और उसके लिए धीरज चाहिए. दोनों का निवेश अंत में फायदेमंद रहेगा, लेकिन जल्द नतीजों की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए.
यूरोपीय भी प्रवासी हैं, जानिए कहां कितने हैं
कितने यूरोपीय रहते हैं अपने देश से बाहर
दूसरे देशों से यूरोपीय देशों में आ रहे लोगों की बढ़ती संख्या को लेकर विवाद और बहसें जारी हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि कितने यूरोपीय विदेशों में रहते हैं. संयुक्त राष्ट्र का यह आंकड़ा देखिए.
तस्वीर: Reuters/F. Bensch
इटली
टॉप पांच देशों में पांचवें नंबर पर है इटली. उसके 29 लाख लोग विदेशों में रहते हैं.
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रोमानिया
पहले साम्यवादी रहे पूर्वी यूरोपीय देश रोमानिया के 34 लाख लोग विदेशों में रहते हैं.
तस्वीर: Sean Gallup/Getty Images
जर्मनी
जहां 10 लाख विदेशियों के आने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, उसके 40 लाख लोग प्रवासी हैं.
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पौलैंड
प्रवासियों वाली लिस्ट में दूसरे नंबर पर पोलैंड है. उसके 44 लाख लोग विदेशों में बसे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/M. Wlodarczyk
युनाइटेड किंगडम
प्रवासियों के मुद्दे पर यूरोपीय संघ छोड़ देने वाले ब्रिटेन के 49 लाख लोग विदेशों में रहते हैं.
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क्या ज्यादा सुरक्षा कदमों की जरूरत नहीं है? संघीय पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ रही है जो सही कदम है, लेकिन इसमें खर्च होता है. और अंत में अपराधी विदेशियों को इस समय के मुकाबले और तेजी से वापस भेजा जा सकता है. यह अपराध को रोकने का सख्त संदेश होगा, खासकर नए साल के मौके पर हुए यौन हमलों के बाद. स्वाभाविक रूप के बदलाव रातोरात संभव नहीं है और अपराधी विदेशियों को वापस भेजना भी कानून के मुताबिक होना चाहिए. एक-एक मामले में शायद पूरी प्रक्रिया पूरी करने में वक्त लगेगा.
चांसलर के 'हम चुनौती का सामना कर सकते हैं' के नारे ने जर्मनों के बीच मदद करने की अद्भुत तैयारी दिखाई थी. उसका असर अभी भी महसूस किया जा सकता है. लेकिन अगर इसकी गति को लंबे समय तक जारी रखना है तो हमें गहरी सांस लेनी होगी. साथ ही जर्मनी के सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों पर खुलकर बात करनी होगी.
देखिए, जर्मनी के समाज की उथल-पुथल को
पेगीडा: जर्मन समाज की उथल पुथल
जर्मनी में अक्टूबर 2014 से चले आ रहे पेगीडा के नियमित विरोध प्रदर्शन अब एक बड़े इस्लामीकरण विरोधी अभियान की पहचान बन गए हैं. लाखों शरणार्थी भी निशाने पर हैं. 'पेगीडा' के उभार से जुड़े हैं जर्मनी के कई सामाजिक मुद्दे.
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5 जनवरी 2015 यानि नए साल के पहले ही सोमवार की शुरुआत जर्मनी के कई शहरों में विरोध प्रदर्शनों के साथ हुई. जर्मनी के कई राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे इस्लाम विरोधी प्रदर्शन दिखाते है कि बड़ी संख्या में आप्रवासियों के मुद्दे पर देश बंटा हुआ है. आप्रवासन का समर्थन करने वाले लोग अनेकता में एकता की भावना को बढ़ाने के लिए एक राष्ट्रीय आयोग के गठन की मांग कर रहे हैं.
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जर्मनी के पूर्व में स्थित ड्रेसडेन शहर में हर हफ्ते रैलियां निकाली जा रही हैं. 22 दिसंबर 2014 की रैली में तो 17 हजार से भी ज्यादा लोग शामिल हुए. पेगीडा रैलियों का विरोध करने वाले कई गुट हैं. दिसंबर में पेगीडा ने अपना घोषणापत्र जारी कर "आपराधिक किस्म के शरणार्थियों और आप्रवासियों को बिल्कुल बर्दाश्त ना किए जाने" की मांग की.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Endig
जर्मनी के पूर्व में स्थित ड्रेसडेन शहर में हर हफ्ते रैलियां निकाली जा रही हैं. 22 दिसंबर 2014 की रैली में तो 17 हजार से भी ज्यादा लोग शामिल हुए. पेगीडा रैलियों का विरोध करने वाले कई गुट हैं. दिसंबर में पेगीडा ने अपना घोषणापत्र जारी कर "आपराधिक किस्म के शरणार्थियों और आप्रवासियों को बिल्कुल बर्दाश्त ना किए जाने" की मांग की.
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'पश्चिम के इस्लामीकरण के खिलाफ यूरोप के राष्ट्रवादी' यानि पेगीडा के समर्थकों का मानना है कि इस्लामीकरण से ईसाई धर्म की संस्कृति और परंपराओं को खतरा है. वहीं हाल ही में उभरा यूरोप विरोधी दल 'अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी' (एएफडी) खुद को जर्मन समाज के सच्चे प्रतिनिधियों के तौर पर पेश कर रहा है.
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जर्मनी में आम लोगों के बीच इस मत को बढ़ावा देने की कोशिश हो रही है कि रिफ्यूजी आबादी की मदद करने में खर्च होने वाले धन के कारण जर्मन नागरिकों की पेंशन कम हो जाएगी और गरीबी फैलेगी.
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हुम्बोल्ट यूनिवर्सिटी की सोशल साइंटिस्ट नाइका फोरुटान ने हाल ही के एक सर्वे का हवाला देते हुए बताया कि आधे से ज्यादा जर्मन अपने पड़ोस में मस्जिद बनाए जाने के खिलाफ हैं. वहीं 40 फीसदी का मानना है कि केवल जर्मन माता-पिता के बच्चों को ही जर्मन माना जाना चाहिए. वे बताती हैं कि जो लोग विदेशियों और प्रवासियों के बिल्कुल संपर्क में नहीं हैं वे उनका ज्यादा विरोध करते हैं.
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जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने नए साल के अपने संदेश में देश के नागरिकों से शरणार्थियों की मदद का आह्वान किया. उन्होंने जनता से शरणार्थियों और इस्लामीकरण का विरोध करने वाली पेगीडा रैलियों का विरोध करने की अपील की. केवल 2014 में ही जर्मनी में दो लाख से ज्यादा शरणार्थी अर्जियां आईं.