अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशनः अंतरिक्ष में 25 बरस का सफर
जुल्फिकार अबानी
२१ नवम्बर २०२३
25 बरसों में धरती के 1,40,000 चक्कर लगा चुका अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन यानी आइएसएस, अब भी विज्ञान की दुनिया में शांतिपूर्ण वैश्विक सहयोग की मिसाल है.
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हमें खबर भी नहीं कि आईएसएस 24 घंटे में 16 बार हमारे सिर के ऊपर से गुजरता है. यही नहीं 439 किलोमीटर की ऊंचाई पर 16 सूर्योदय और सूर्यास्त देखना भी उसकी दिनचर्या का हिस्सा है. इसे धरती से देखना और दिन में किसी भी वक्त उसकी स्थिति का पता लगाना मुमकिन है. लेकिन आइएसएस और उस पर सवार वैज्ञानिक क्या करते हैं, उस पर किसी की नजर नहीं जाती. इस स्टेशन की मदद से ऐसी बहुत सारी खोजेंहुई हैं जो धरती पर जीवन को सीधे तौर पर प्रभावित करती हैं.
यह अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, शांति और सहयोग के लिए दुनिया के सबसे सफल स्थानों में से एक है, युद्ध के माहौल में भी. यह वाकई में पिछले 25 सालों में सबसे सुरक्षित जगह साबित हुई है. जानिए आईएसएस की कुछ खास बातें.
कब हुई आइएसएस की शुरुआत
इस स्पेस स्टेशन का पहला सेगमेंट, जरया कंट्रोल मॉड्यूल रूसी था जो 20 नवंबर, 1998 को लॉंच किया गया. जरया ने ईंधन स्टोरेज और बैटरी पावर पहुंचाई और आइएसएस पहुंचने वाले दूसरे अंतरिक्ष यानों के लिए डॉकिंग जोन की भूमिका निभाई. इसके एक महीने बाद, 4 दिसंबर, 1998 को अमेरिका ने यूनिटी नोड 1 मॉड्यूल लॉंच किया. इन दोनों मॉड्यूल के जरिए ही स्पेस लैबोरेट्री ने काम करना शुरु किया. इसके बाद स्टेशन खड़ा करने के लिए 42 असेंबली फ्लाइट की मदद से, आइएसएस वह बन पाया जैसा वह आज है.
इस पर रहने वाले शुरुआती अंतरिक्षयात्रियों में नासा के बिल शेपर्ड और रॉसमॉस के यूरी गिडजेंको व सर्गेइ क्रिकालेव शामिल हैं. उस वक्त से आइएसएस पर हमेशा अंतरिक्षयात्री रहे हैं.
क्यों कमजोर हो जाता है अंतरिक्षयात्रियों का इम्यून सिस्टम
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कितना बड़ा है आइएसएस
आइएसएस रहने और काम करने के लिए कई हिस्सों में बंटा हुआ है. इसमें सोने के लिए छह क्वाटर, दो बाथरूम, एक जिम और एक 360 डिग्री का दृश्य दिखाने वाली खिड़की है. नासा के मुताबिक, इसका माप करीब 109 मीटर है यानी 357 फीट, जो एक अमेरिकी फुटबॉल फील्ड के बराबर है. अगर आप तैराकी का शौक रखते हैं तो समझिए कि यह एक ओलिंपिक स्विमिंग पूल की लंबाई का दोगुना है.
इसका सोलर एरे विंगस्पैन भी 109 मीटर का है. अगर इसकी तुलना कमर्शियल एयरक्राफ्ट से की जाए तो एअरबस ए380 का विंगस्पैन 79.8 मीटर है. यही नहीं इस स्पेस स्टेशन के भीतर करीब 13 किलोमीटर लंबी इलेक्ट्रिकल तारों का जाल है.
आइएसएस एक दिन की अवधि में धरती के कई चक्कर लगाता है. बिल्कुल सटीक शब्दों में कहें तो हर 90 मिनट पर यह, 8 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से चक्कर काटता है.
क्या पाया यूरोप की नई अंतरिक्ष टेलिस्कोप ने
यूरोप के खगोल वैज्ञानिकों ने हाल ही में लॉन्च की गई अंतरिक्ष टेलिस्कोप यूक्लिड द्वारा ली गई तस्वीरें जारी की हैं. देखिए डार्क मैटर और डार्क ऊर्जा के रहस्यों पर से पर्दा हटाने के लिए बनाई गई इस टेलिस्कोप ने क्या पाया.
तस्वीर: ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA, image processing by J.-C. Cuillandre
डार्क मैटर की पड़ताल
यह यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) की हाल ही में लॉन्च की गई अंतरिक्ष टेलिस्कोप 'यूक्लिड' द्वारा ली गई पहली तस्वीरें हैं. इस टेलिस्कोप को डार्क मैटर और डार्क ऊर्जा के बारे में और पता करने के लिए बनाया गया है. माना जाता है कि ब्रह्मांड का 95 प्रतिशत इन्हीं शक्तियों से बना है. इस मिशन में नासा भी साझेदार है.
तस्वीर: Patrice Lapoirie/dpa/picture alliance
विशाल आकाशगंगाएं
इन तस्वीरों में सिर्फ 24 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर पर्सियस क्लस्टर की 1,000 आकाशगंगाएं और उसके पीछे फैलीं 1,00,000 से ज्यादा आकाशगंगाएं शामिल हैं. यह पर्सियस की तस्वीर है. वैज्ञानिक मानते हैं कि संगठित ढांचे जैसे लगने वाले पर्सियस जैसे विशाल क्लस्टरों का बनना ही डार्क मैटर के होने का प्रमाण है.
तस्वीर: ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA, image processing by J.-C. Cuillandre
हमारी आकाशगंगा की हमशक्ल
ईएसए के मुताबिक यह तस्वीरें इस टेलिस्कोप की 10 अरब प्रकाश वर्ष तक दूर, अरबों आकाशगंगाओं को देख सकने की क्षमता को दिखाती हैं. "हिडेन गैलक्सी" नाम की आकाशगंगा की तस्वीरें भी हैं जिसे हमारी आकाशगंगा की हमशक्ल माना जा रहा है.
तस्वीर: ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA, image processing by J.-C. Cuillandre
ब्रह्मांड के बिल्डिंग ब्लॉक
दूसरी तस्वीरों में एक अनियमित आकाशगंगा शामिल है. माना जा रहा है कि यह ब्रह्मांड के बिल्डिंग ब्लॉक जैसी दिखाई देती है. यूक्लिड इन सभी आकाशगंगाओं के प्रकाश का अध्ययन कर ब्रह्मांड का एक थ्रीडी मैप बनाएगी.
तस्वीर: ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA, image processing by J.-C. Cuillandre
ग्रैविटी से चिपके सितारे
यह करीब 7,800 प्रकाश वर्ष दूर स्थित एनजीसी 6397 नाम के ग्लोब्यूलर क्लस्टर की तस्वीर है. गुरुत्वाकर्षण द्वारा एक साथ थामे हुए लाखों सितारों के समूह को ग्लोब्यूलर क्लस्टर कहते हैं. कोई भी और टेलिस्कोप एक साथ एक पूरे ग्लोब्यूलर क्लस्टर की तस्वीर नहीं ले सकती.
तस्वीर: ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA, image processing by J.-C. Cuillandre
घोड़े के सिर वाली नेब्युला
यह घोड़े के सिर वाली नेब्युला का विस्तृत दृश्य है. इसे बर्नार्ड 33 के नाम से भी जाना जाता है और यह ओरियन तारामंडल का हिस्सा है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यूक्लिड की मदद से वो इस नेब्युला में वृहस्पति के घनत्व के कई ग्रहों को उनकी बाल्यवास्था में खोज पाएंगे. (रॉयटर्स)
तस्वीर: ESA/Euclid/Euclid Consortium/NASA, image processing by J.-C. Cuillandre
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स्टेशन पर क्या करते हैं एस्ट्रॉनॉट
जब अंतरिक्षयात्री किसी एक्सपेरीमेंट में नहीं लगे होते तब वह सामान्य स्पेसवॉक यानी अंतरिक्ष की सैर पर निकलते हैं ताकि स्टेशन में नई चीजें जोड़ी जा सकें जैसे रोबोटिक हाथ या फिर रख-रखाव. कई बार ऐसा भी हुआ है कि उन्हें अंतरिक्ष में पड़े मलबे की वजह से हुए छेदों का परीक्षण करके उन्हें ठीक करना पड़ा.
अंतरिक्षयात्री, सेहत से जुड़ी कड़ी दिनचर्या का पालन करते हैं. उन्हें अपनी मांसपेशियों और हड्डियों को कमजोर होने से बचाना होता है, जिसकी वजह माइक्रोग्रैविटी या गुरुत्वाकर्षण की कमी है. इसका मतलब है कि उन्हें हर दिन कम से कम दो घंटे तक विशेष मशीनों पर कसरत करनी होती है जिसमें ट्रेडमिल पर दौड़ना भी शामिल है. लेकिन जैसे-जैसे रिसर्चर अंतरिक्ष में इंसानों के रहने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, जैसे चंद्रमा या मंगल पर, उससे अंतरिक्षयात्रियों की रोजाना कसरत के जरिए अंतरिक्ष में मानव शरीर पर पड़ने वाले असर के बारे में भी नई समझ बन रही है. क्या होगा अगर इंसान बिना गुरुत्वाकर्षण के लंबे वक्त तक अंतरिक्ष में रहें? क्या हमारे शरीर में ताकत बनी रहेगी या वह धरती पर लौटने के लिए बेहद कमजोर हो जाएगा?
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आइएसएस पर खोज से धरती का क्या फायदा
अंतरिक्षयात्रियों ने स्टेशन पर हजारों प्रयोग किए हैं. कई बार तो वह खुद पर ही एक्सपेरीमेंट करते हैं, जैसे अपनी सेहत मॉनीटर करना, खान-पान या फिर सोलर रेडिएशन के असर की पड़ताल. इसके अलावा, वह धरती पर मौजूद वैज्ञानिकों के लिए भी प्रयोग करते हैं. इनकी वजह से बहुत सारी वैज्ञानिक सफलताएं हासिल हुई हैं.
अल्जाइमर से लेकर पार्किंसन, कैंसर, अस्थमा या दिल की बीमारियां हों, इन सभी पर स्पेस में शोध हुआ है. वैज्ञानिक कहते हैं कि कुछ प्रयोग तो केवल अंतरिक्ष में ही बेहतर किए जा सकते हैं क्योंकि माइक्रोग्रैविटी में कोशिकाएं उसी तरह काम करती हैं जैसे इंसानी शरीर के अंदर, लेकिन धरती की दशाएं पैदा करना मुश्किल होता है.
ऐसी कईं खोजें हुई हैं जिनसे दवाएं बनाने, पानी साफ करने के सिस्टम, मांसपेशियों और हड्डियों की कमजोरियां दूर करने के तरीके और खाना उगाने की तकनीक में भी मदद मिली है.
पहली बार उल्कापिंड की धूल लेकर लौटा रेक्स
सात साल की यात्रा के बाद नासा का अंतरिक्ष यान उल्कापिंडों के नमूनों का सबसे बड़ा जखीरा लेकर धरती पर लौट आया.
तस्वीर: Rick Bowmer/AP/dpa/picture alliance
सात साल बाद लौटा रेक्स
सात साल तक चले एक अभियान का 24 सितंबर 2023 को सफल पटाक्षेप हुआ जब नासा का अंतरिक्ष यान उल्कापिंडों के नमूनों का सबसे बड़ा जखीरा लेकर धरती पर लौट आया. 24 सितंबर को अमेरिका के यूटा राज्य के रेगिस्तान में यह यान सुरक्षित उतर गया.
तस्वीर: Keegan Barber/AFP
बेनू की धूल
रेक्स ने बेनू की सतह से 250 ग्राम धूल जमा की. नासा का कहना है कि यह थोड़ी सी धूल भी जानकारियों से भरपूर होगी. वे यह भी पता लगा सकेंगे कि किस तरह के उल्कापिंड भविष्य में पृथ्वी के लिए खतरनाक हो सकते हैं.
तस्वीर: Keegan Barber/AFP
बड़ी उम्मीदें
वैज्ञानिकों को बड़ी उम्मीदें हैं कि ये नमूने हमारे सौर मंडल की रचना-संरचना के बारे में समझ में नये अध्याय जोड़ेंगे. साथ ही इस सवाल के जवाब मिलने की भी उम्मीद है कि पृथ्वी का वातावरण कब और कैसे इंसान के रहने लायक बना.
तस्वीर: George Frey/AFP
भावुक पल
ऑसिरिस-रेक्स मिशन की मुख्य वैज्ञानिक दांते लॉरेटा ने मीडिया से बातचीत में कहा कि जब वैज्ञानिकों को पता चला कि कैपसुल का मुख्य पैराशूट खुल चुका है तो बहुत से लोग भावुक हो गये. लॉरेटो ने कहा, “मेरी आंखों से सच में आंसू बहने लगे थे. यह वो पल था जब हमें यकीन हो गया था कि हम घर लौट आए हैं. मेरे लिए असली साइंस तो अभी शुरू हो रही है.”
तस्वीर: George Frey/AFP
6.21 अरब किलोमीटर की यात्रा
नासा ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा कि 6.21 अरब किलोमीटर की यह यात्रा अपनी तरह का पहला अभियान है. नासा प्रमुख बिल नेल्सन ने अभियान की जमकर तारीफ की और कहा कि उल्कापिंडों की धूल के नमूने “वैज्ञानिकों को हमारे सौर मंडल के शुरुआती दिनों के बारे में अभूतपूर्व जानकारी देंगे.”
तस्वीर: George Frey/AFP
बेनू की यात्रा
ऑसिरिस-रेक्स अभियान का अंतिम चरण बेहद जटिल था लेकिन अमेरिका के स्थानीय समय के मुताबिक सुबह 8.52 बजे यूटा के रेगिस्तान में सेना के ट्रेनिंग रेंज पर उसकी आरामदायक लैंडिंग हुई. इसे 2016 में भेजा गया था और वह बेनू उल्कापिंड पर उतरा था.
तस्वीर: NASA/Goddard/University of Arizona/Handout via REUTERS
भविष्य के लिए
अब इन नमूनों को ह्यूस्टन के जॉनसन स्पेस सेंटर को भेजा जाएगा. करीब एक चौथाई नमूनों का तो फौरन परीक्षण के लिए इस्तेमाल कर लिया जाएगा जबकि कुछ हिस्से को जापान और कनाडा भी भेजा जाएगा. एक हिस्से को भविष्य की पीढ़ियों के लिए संभाल कर रख दिया जाएगा.
तस्वीर: Rick Bowmer/AP/dpa/picture alliance
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कब तक काम करेगा स्टेशन
आइएसएस के भविष्य को लेकर अनिश्चितताएं तब पैदा हुईं जब रूस ने साल 2022 की शुरुआत में यूक्रेन पर चढ़ाई कर दी. यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने रूस के साथ अंतरराष्ट्रीय सहयोग से कदम पीछे खींच लिए और रूस ने कहा कि वह आइएसएस छोड़कर अपना स्पेस स्टेशन बनाएगा. हालांकि सिर्फ युद्ध ही एक मसला नहीं है, अंतरिक्ष में कदम रख चुके देश चाहते हैं कि वह स्पेस में अपनी अलग पहचान स्थापित करें. इसमें जापान, चीन, भारत और यूएई समेत दूसरे देश भी हैं.
अमेरिका और यूरोप ने कहा है कि वह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को 2030 तक चलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं लेकिन आइएसएस के बाद की दुनिया के लिए भी तैयारी चल रही है. नासा लगभग पूरी तरह से अपने आर्टेमिस प्रोग्राम पर ध्यान लगाए हुए है और चांद पर इंसान बसाने का इरादा रखती है. दूसरी ओर, यूरोपीय स्पेस एजेंसी अपना नया स्टेशन बनाने की तैयारियों में लगी है, जिसका नाम स्टारलैब बताया जा रहा है.