2008 में एक बर्फीले तूफान से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की जान बचाने वाला अनुवादक आखिरकार अफगानिस्तान से बच निकला है. अमेरिका ने इसकी पुष्टि की है.
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अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के साथ अनुवादक के तौर पर काम करने वाले अमान खलीली अफगानिस्तान से बच निकले हैं. विदेश मंत्रालय ने बताया कि कई दिन तक अपने परिवार के साथ छिपे रहने के बाद खलीली अब सुरक्षित हैं.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि जमीन के रास्ते सीमा पार कर पाकिस्तान पहुंचे खलीली और उनके परिवार को अमेरिकी विमान से कतर के दोहा ले जाया गया है, जहां हजारों अन्य शरणार्थी वीजा मिलने का इंतजार कर रहे हैं.
देखिए, अब अफगानिस्तान में जिंदगी
तालिबान राज में कुछ ऐसी है आम जिंदगी
अफगानिस्तान में तालिबान सरकार की स्थापना के बाद लोगों को कट्टरपंथी मिलिशिया के तहत जीवन में वापस लौटना पड़ा है. लोगों के लिए बहुत कुछ बदल गया है, खासकर महिलाओं के लिए.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP Photo/picture alliance
बुर्के में जिंदगी
अभी तक महिलाओं के लिए बुर्का पहनना अनिवार्य नहीं है, लेकिन कई महिलाएं कार्रवाई के डर से ऐसा करती हैं. इस तस्वीर में दो महिलाएं अपने बच्चों के साथ बाजार में पुराने कपड़े खरीद रही हैं. देश छोड़कर भागे हजारों लोग अपने पुराने कपड़े पीछे छोड़ गए हैं, जो अब ऐसे बाजारों में बिक रहे हैं.
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गलियों और बाजारों में तालिबानी लड़ाके
पुराने शहर के बाजारों में चहल-पहल है, लेकिन सड़कों पर तालिबान लड़ाकों का भी दबदबा है. वे गलियों में सब कुछ नियंत्रित करते हैं और उनके विचारों या नियमों के खिलाफ कुछ होने पर तुरंत दखल देते हैं.
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दाढ़ी बनाने पर रोक
तालिबान ने नाइयों को दाढ़ी काटने और शेव करने से मना किया है. यह आदेश अभी हाल ही में हेलमंद प्रांत में लागू किया गया है. यह अभी साफ नहीं है कि इसे देश भर में लागू किया जाएगा या नहीं. 1996 से 2001 तक पिछले तालिबान शासन के दौरान पुरुषों की दाढ़ी काटने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था.
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महिलाओं के चेहरे मिटाए जा रहे
ब्यूटी पार्लर के बाहर तस्वीरें हों या विज्ञापन तालिबान महिलाओं की ऐसी तस्वीरों को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करता है. ऐसी तस्वीरें हटा दी गईं या फिर उन्हें छुपा दिया गया.
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लड़कियों को अपनी शिक्षा का डर
तालिबान ने लड़कियों को प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने की इजाजत दी है, लेकिन लड़कियों ने अभी तक माध्यमिक विद्यालयों में जाना शुरू नहीं किया है. यूनिवर्सिटी में लड़के और लड़कियों को अलग-अलग बैठने को कहा गया है.
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क्रिकेट का खेल
क्रिकेट खेलने के लिए काबुल के चमन-ए-होजरी पार्क में युवकों का एक समूह इकट्ठा हुआ है. जबकि महिलाओं को अब कोई खेल खेलने की इजाजत नहीं है. क्रिकेट अफगानिस्तान में सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक है.
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बढ़ती बेरोजगारी
अफगानिस्तान गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. विदेशी सहायता रुकने से वित्त संकट खड़ा हो गया है. इस तस्वीर में ये दिहाड़ी मजदूर बेकार बैठे हैं.
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नमाज भी जरूरी
जुमे की नमाज के लिए लोग इकट्ठा हुए हैं. मुसलमानों के लिए शुक्रवार का दिन अहम होता है और जुमे की नमाज का भी खास महत्व होता है. इस तस्वीर में एक लड़की भी दिख रही है जो जूते पॉलिश कर रोजी-रोटी कमाती है.
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आम नागरिक परेशान, तालिबान खुश
अफगान नागरिक एक अजीब संघर्ष में जिंदगी बिता रहे हैं, लेकिन तालिबान अक्सर इसका आनंद लेते दिखते हैं. इस तस्वीर में तालिबान के लड़ाके स्पीडबोट की सवारी का मजा ले रहे हैं.
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अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने खबर छापी थी कि खलीली, उनकी पत्नी और पांच बच्चे अगस्त में अफगानिस्तान पर तालिबान द्वारा कब्जा किए जाने के वक्त वहीं रह गए थे. बाद में पूर्व सैनिकों की मदद से उन्होंने सीमा पार की.
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खलीली की कहानी
अमन खलीली की कहानी किसी फिल्म सरीखी है. वह 2008 में अमेरिकी फौजों के लिए अफगानिस्तान में बतौर अनुवादक काम करते थे. उन दिनों सेनेटर रहे जो बाइडेन ने अपने दो अन्य सांसद साथियों चक हेगल और जॉन केरी के साथ अफगानिस्तान का दौरा किया था.
बाइडेन और उनके साथी जब एक हेलिकॉप्टर से यात्रा कर रहे थे तो बर्फ के तूफान में फंस गए. इस कारण उनके हेलिकॉप्टर को एक दूर-दराज इलाके में उतरना पड़ा. तब खलीली उस टीम का हिस्सा थे, जो बगराम से सांसदों को बचाने के लिए भेजी गई थी.
13 साल बाद जब अमेरिका ने अफगानिस्तान में अपने अभियान की समाप्ति का ऐलान किया तो अपनी सेना के साथ काम करने वाले हजारों लोगों को साथ ले जाने की भी बात कही. तब हजारों लोगों ने वीजा के लिए अप्लाई किया, जिनमें खलीली और उनका परिवार भी था. लेकिन उन्हें वीजा नहीं मिला.
तस्वीरेंः जेल जहां कैदी बन गए जेलर
काबुल की जेल में अब कैदी बन गए जेलर
काबुल की यह पुल ए चरखी जेल अब खाली बियाबान पड़ी है. कभी यहां हजारों तालिबान कैद थे, जिन्हें रिहा कर दिया गया है.
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कैदी बन गए जेलर
जो तालिबान इस जेल में कभी कैदी थे, आज वही इसके प्रशासक हैं. 15 अगस्त को काबुल में घुसने के बाद तालिबान ने इन कैदियों को रिहा कर दिया था.
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उनका कुछ सामान
जेल के खाली कमरों में कैदियों का सामान अब भी पड़ा दिखाई देता है. कहीं पुराने जूते पड़े हैं तो कहीं कपड़े.
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उकेरा गया इतिहास
दीवारों पर बनीं ये तस्वीरें उस वक्त की गवाह हैं जब तालिबान कैदी के रूप में यहां बंद थे और आजादी उनके लिए सपना हुआ करती थी.
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यातनाओं के निशान
पुल ए चरखी का लंबा और काफी हिंसक इतिहास रहा है. कभी यहां बड़े पैमाने पर कत्ल हुए और यातनाएं दी गईं.
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बुरी हालत
जेल में 1970 और 1980 के दशक के समय की कई सामूहिक कब्रें भी मिली थीं. जब देश में अमेरिका समर्थित सरकार थी तो जेल की हालत काफी खराब थी और इसमें भारी भीड़ थी.
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हमेशा भीड़ रही
जेल के 11 विशाल कमरों में 5,000 कैदियों के लिए जगह बनाई गई थी लेकिन अक्सर यहां 10 हजार से ज्यादा कैदी रहते थे.
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दंगे भी हुए
उन्हीं कैदियों में तालिबान भी शामिल थे जो यातनाएं दिये जाने की शिकायत करते थे. जेल में अक्सर दंगे हो जाते थे.
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तालिबान का संघर्ष
तालिबान कैदियों ने मिलकर सामूहिक संघर्ष भी किया और अपने लिए कई सहूलियतें हासिल कीं जैसे मोबाइल फोन की सुविधा या फिर कमरों से बाहर ज्यादा समय बिताना.
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पलट गया पासा
अब इस जेल की सुरक्षा तालिबान बंदूकधारी करते हैं और प्रशासन का जिम्मा पूर्व कैदियों के हाथ में दे दिया गया है.
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फिर आने लगे हैं कैदी
जेल में अब भी एक हिस्सा है जहां पिछले कुछ हफ्तों में गिरफ्तार किए गए करीब 60 लोगों को रखा गया है. इनमें से ज्यादातर कैदी नशे के आदि हैं.
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15 अगस्त को तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया. उसके बाद दो हफ्तों में अमेरिकी सेना ने 1,20,000 लोगों को बचाया. लेकिन तब भी खलीली एयरपोर्ट नहीं पहुंच सके. अगस्त के आखरी हफ्ते में वॉल स्ट्रीट जर्नल अखबार ने उनकी कहानी छापी. इस कहानी में उन्होंने कहा, "हलो राष्ट्रपति जी, मुझे और मेरे परिवार को बचाइए.”
आखिरकार राहत
खलीली की अपील राष्ट्रपति तक पहुंची और उनकी प्रवक्ता वाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने कहा कि सरकार खलीली की मदद करेगी. उन्होंने कहा, "हम आपको बाहर निकालेंगे. हम आपकी सेवाओं की इज्जत करते हैं.”
30 सितंबर को अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं के चले जाने के बाद अमन खलीली और उनका परिवार अफगान-अमेरिकीयों और पूर्व अमेरिकी सैनिकों की मदद से एक सुरक्षित ठिकाने पर छिपा रहा. उनके पास अफगान पासपोर्ट नहीं था इसलिए वह मजार ए शरीफ से भी उड़ान नहीं भर सके. बाद में वे लोग दो दिन की पैदल यात्रा करके पाकिस्तान सीमा पर पहुंचे. 5 अक्टूबर को उन्होंने सीमा पार की.
वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक विदेश मंत्रालय उनकी वीजा अर्जी को जल्दी पास करने के लिए विशेष इमिग्रेशन वीजा की योजना बना रहा है.
वीके/सीके (एएफपी)
अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए नए नियम
अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए नए नियम
तालिबान ने अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए नए नियमों का ऐलान कर दिया है. तो कैसी होगी अब महिलाओं की जिंदगी.
तस्वीर: AAMIR QURESHI/AFP
महिलाओं के लिए नए नियम
अफगानिस्तान के नए उच्च शिक्षा मंत्री अब्दुल बाकी हक्कानी ने कहा है कि महिलाएं पढ़ाई कर पाएंगी लेकिन उन्हें कुछ विशेष नियमों का पालन करना होगा.
तस्वीर: Bilal Guler/AA/picture alliance
पढ़ाई की इजाजत
महिलाओं को यूनिवर्सिटी में पढ़ने की इजाजत होगी. हक्कानी ने कहा है कि जैसा देश आज है, उसी के आधार पर नए अफगानिस्तान का निर्माण किया जाएगा ना कि 20 साल पहले के तालिबानी शासन के आधार पर.
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लड़कों से अलग
महिला छात्रों को लड़कों से अलग पढ़ाया जाएगा. उन्हें इस्लामिक कानून के आधार पर कपड़े पहनने होंगे यानी सिर से पांव तक खुद को ढककर रखना होगा.
तस्वीर: Social media handout via REUTERS
पुरुष शिक्षक नहीं
हक्कानी ने कहा कि छात्राओं को पढ़ाने की जिम्मेदारी जहां तक संभव होगा शिक्षिकाओं को ही दी जाएगी. उन्होंने कहा कि शुक्र है देश में काफी महिला शिक्षक हैं.
तस्वीर: WAKIL KOHSAR/AFP/Getty Images
अलग-अलग बैठना होगा
जहां महिलाएं उपलब्ध नहीं होंगी, वहां पुरुष शिक्षक भी पढ़ा सकेंगे लेकिन विश्वविद्यालयों में छात्र-छात्राओं को अलग-अलग बैठना होगा और पर्दे में रहना होगा.
तस्वीर: Bernat Armangue/AP/picture alliance
कक्षाओं में पर्दे
पुरुष और महिला छात्राओं के बीच में पर्दे लगाए जाएंगे या फिर स्ट्रीमिंग के जरिए भी पढ़ाई कराई जा सकती है.