ऑनलाइन लर्निंग उपलब्ध करवाने वाली कंपनी बायजू’स के खिलाफ हजारों शिकायतें आ रही हैं. हालांकि 75 लाख ग्राहकों वाली कंपनी इनका खंडन करती है.
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राकेश कुमार अपने घर के बाहर अपनी बेटियों के साथ खेल रहे थे जब दो लोग उनसे मिलने आए. स्मार्ट ड्रेस पहने इन युवकों ने कुमार से कहा कि कि वे बायजू'स कंपनी के लिए काम करते हैं. बायजू'स एक शिक्षा-तकनीकी कंपनी है जो ऑनलाइन क्लास कराती है. सेल्समेन ने बताया कि 36,000 रुपये में कुमार की बेटी को ऑनलाइन क्लास मिलेंगी. दोनों ने कुमार की बेटी से दो घंटे तक बात की और उसके बाद कहा कि वह पढ़ाई में कमजोर है और उसे कोर्स की जरूरत है.
20,000 रुपये महीना कमाने वाले कुमार के लिए यह बहुत महंगा कोर्स था. बढ़ई का काम करने वाले 41 वर्षीय कुमार बताते हैं, "तब उन्होंने कहा कि मेरी बेटी भी मेरी तरह गरीब रह जाएगी और उसे मौका मिल रहा है, मैं उससे यह मौका छीन रहा हूं, मुझे शर्म आनी चाहिए.” आखिरकार कुमार मान गए. वह कहते हैं, "मैंने अपनी जिंदगी का सबसे खराब फैसला किया. अपने साले से पैसे लिए और मुझे पता नहीं कि यह मैं लौटाऊंगा कैसे.”
अब्दल्ला का खजानाः 15 हजार किताबें
82 साल के अब्दल्ला के पास एक ऐसा खजाना है जो उन्होंने अपनी जिंदगीभर में जमा किया है. देखिए, इस बुजुर्ग का यह खजाना...
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उम्र 82, जमापूंजीः 15,000 किताबें
अब्दल्ला अबु दाव ने अपने घर के तहखाने में खजाना रखा हुआ है. यह खजाना एक लाइब्रेरी है जिसमें 15 हजार किताबें हैं.
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मिस्र का संग्रहक
अब्दल्ला मिस्र के दकाहिला शहर में रहते हैं, जहां उनके घर की लाइब्रेरी सभी के लिए खुली है. वहां से् कोई भी किताब मुफ्त ले सकता है.
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50 साल की जमापूंजी
समाचार एजेंसी रॉयटर्स को अब्दल्ला बताते हैं कि उन्होंने यह संग्रह 50 साल पहले शुरू किया. इस में साहित्य, इस्लाम और अन्य विषयों पर कई किताबें हैं.
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पढ़ना जारी है
अब्दल्ला कहते हैं कि उन्हें अपने इस संग्रह से मोहब्बत है और “इन फायदेमंद किताबों को पढ़ना” वह जारी रखेंगे.
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खूब आते हैं पाठक
अब्दल्ला की लाइब्रेरी से किताबें लेने खूब लोग आते हैं. स्थानीय लोग ना सिर्फ वहां आकर पढ़ते हैं बल्कि उनसे अलग-अलग विषयों पर चर्चा भी करते हैं.
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एक तमन्ना
अब्दल्ला की एक ही तमन्ना है कि उनके घर में ढेर के रूप में पड़ी इन किताबों को पुस्तकालय का रूप मिल जाए.
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बायजू'स के साथ ऐसा अनुभव सिर्फ कुमार का नहीं है. हजारों भारतीय ऐसी ही कहानियां सुना रहे हैं. भारत का सबसे कीमती स्टार्टअप बायजू'स भारत में घर-घर में जाना जाने वाला नाम बन चुका है. लेकिन ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो कहते हैं कि उन्हें धोखा दिया गया. सोशल मीडिया और कंज्यूमर वेबसाइटों पर कंपनी के खिलाफ शिकायतों के अंबार लगे हैं जहां लोग कह रहे हैं बायजू'स के कारण उन्होंने अपनी बचत खो दी या उनके साथ धोखा हुआ.
गरीबों को बनाया निशाना
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने बायजू'स के 22 ग्राहकों से बात की. उनमें से अधिकतर कम आय वाले परिवार हैं जो कहते हैं कि सेल्स के लोगों ने बहुत आक्रामकता से उन्हें कोर्स खरीदने को मजबूर किया और धन बटोर कर ले गए. ज्यादातर कहते हैं कि कंपनी के सेल्समेन ने उनकी अपने बच्चों को सर्वश्रेष्ठ शिक्षा उपलब्ध कराने की इच्छा का फायदा उठाया और उन्हें कर्जदार बना दिया.
कॉन्टेक्स्ट ने बायजू'स के 26 कर्मचारियों से भी बात की जिनमें से 18 अभी भी वहां काम कर रहे हैं. वे बताते हैं कि वे लोग बेहद कठिन हालात में काम कर रहे हैं, उनसे बुरा व्यवहार किया जाता है और सेल्स टारगेट हासिल करने के लिए लोगों को किसी भी तरह कोर्स खरीदने के लिए मजबूर करने को प्रोत्साहित किया जाता है.
दुनिया के सबसे सुन्दर पुस्तकालय
पुस्तकालयों का इतिहास 4,000 सालों से भी पुराना है. बॉलरूम की तरह दिखने वाले हों या यूएफओ की तरह, दुनिया में तरह तरह के पुस्तकालय हैं. लेकिन ये कैसे भी दिखाई देते हों, किताबों के लिए प्रेम इन्हें एक सूत्र में बांधता है.
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समुदाय के लिए
फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी की सेंट्रल लाइब्रेरी ऊडी डिजाइन पुस्तक प्रेमियों के लिए एक सपने जैसी है. इस चार मंजिला इमारत की शिल्प कला में फिनलैंड की प्राकृतिक दुनिया को रेखांकित किया गया है. बाहरी दीवारों को लकड़ी जैसा रूप दिया गया और इमारत का आकार लहरनुमा बर्फ से ढकी जमीन के जैसा बनाया गया है. इसके अंदर किताबें ही नहीं, सिनेमाघर और सॉना भी है.
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राख से फिर जन्म लेना
जर्मनी के वाइमार की डचेस ऐना अमालिया लाइब्रेरी को 300 सालों से "हरत्सोगलिश बिबलियोथेक" ("द ड्यूकल लाइब्रेरी") कहा जाता था. बाद में एक भीषण आग में इमारत आंशिक रूप से जल गई थी. 1991 में इसे अपना मौजूदा नाम मिला. 24 अक्टूबर, 2007 में इसे फिर से खोल दिया गया. यह तस्वीर उसके मशहूर रोकोको हॉल की है.
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लाइब्रेरी या फुटबॉल का मैदान?
अगर आपके पास स्टूडेंट कार्ड नहीं है तो भी आपको द नीदरलैंड्स के डेल्फ्ट की यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के पुस्तकालय जा कर अफसोस नहीं होगा. घास के मैदान जैसी दिखाई देने वाली इसकी ढलान वाली छत इसका सबसे आकर्षक हिस्सा है. इमारत के बीच में से निकलता 42 मीटर ऊंचा एक कोन आपको दूर से ही नजर आ जाएगा. इसमें किताबों से भरी चार मंजिलें हैं.
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ट्यूलिप की लकड़ी और एबनी
पुर्तगाल के कोइम्ब्रा स्थित बिब्लिओतेका जोआनीना में सभी अलमारियां ट्यूलिप की लकड़ी और एबनी से बनी हुई हैं. पुर्तगाल के राजा जॉन पंचम ने इसे बनवाया था, इसलिए इसका नाम उन्हीं के नाम पर है. 2013 में ब्रिटेन के अखबार "द डेली टेलीग्राफ" ने इस लाइब्रेरी को दुनिया के सबसे सुंदर पुस्तकालयों की सूची में शामिल किया किया था.
सिकंदरिया की लाइब्रेरी कभी दुनिया की सबसे मशहूर लाइब्रेरी हुआ करती थी, लेकिन करीब 2,000 साल पहले वो एक आग में नष्ट हो गई. कहा जाता है कि वहां पेपिरस के करीब 4,90,000 रोलों में उस समय की दुनिया का सारा ज्ञान था. उसी परंपरा को जारी रखते हुए 2002 में नया पुस्तकालय खोला गया था. इसे बनाने में 22 करोड़ डॉलर की लागत आई.
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मिस्र के ममियों के बीच
स्विट्जरलैंड के सेंट गॉलेन स्थित सेंट गॉल की ऐबी लाइब्रेरी में रखी चीजों में से कुछ तो 1,300 साल से भी ज्यादा पुरानी हैं. यहां आने वाले लोग यहां यूरोप का सबसे पुराना बिल्डिंग प्लान और मिस्र की एक ममी भी देख सकते हैं. यह तस्वीर "बुकरसाल" (द बुक हॉल) की है जो 1983 से यूनेस्को की वैश्विक धरोहर सूची में है.
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एक राष्ट्रपति द्वारा बचाया गया पुस्तकालय
जब भी आप वाशिंगटन डीसी में हो तो कांग्रेस की लाइब्रेरी जरूर जाइएगा. इसकी स्थापना सन 1800 में की गई थी लेकिन सिर्फ 14 सालों बाद ही अंग्रेजों ने इसे जला दिया था. बाद में इसके जीर्णोद्धार के लिए अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन ने अपने निजी संग्रहण से करीब 6,500 किताबें बेच कर 24,000 डॉलर की कुल लागत की पूरी रकम जुटाई. तस्वीर मुख्य कक्ष की है जिसे नव-रेनेसां शैली में बनाया गया था.
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डबलिन का लॉन्ग रूम
आयरलैंड की राजधानी डब्लिन की ट्रिनिटी कॉलेज लाइब्रेरी का तीन मंजिला "लॉन्ग रूम" 64 मीटर लंबा और 12 मीटर चौड़ा है. लेकिन यह हमेशा से इतना प्रभावशाली नहीं था. 1858 में इसकी सपाट, प्लास्टर की छत को हटा कर शाहबलूत या ओक के पेड़ की लकड़ी की नई छत बनाई गई.
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एक फिल्मी सितारा
न्यू यॉर्क पब्लिक लाइब्रेरी को तो कई फिल्मों में दिखाया गया है, जिनमें 1933 की "फॉर्टीसेकंड स्ट्रीट" म्यूजिकल, 1961 की "ब्रेकफास्ट ऐट टिफनीज", 1984 की "घोस्टबस्टर्स", 2008 की "सेक्स एंड द सिटी" और 2002 की "स्पाइडर-मैन" शामिल हैं. इसके मुख्य कक्ष को 1911 में खोला गया था और बाद में इसका विस्तार किया गया.
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चीन में हर चीज ही विशाल है
चीन की नेशनल लाइब्रेरी दुनिया के सात सबसे बड़े पुस्तकालयों में से एक है. इसमें तीन करोड़ से ज्यादा किताबें और मीडिया सामग्री है. इसका निर्माण "कैपिटल लाइब्रेरी" के रूप में 1809 में करवाया गया था. 1928 में चीनी गणराज्य की स्थापना के बाद इसे "बीजिंग लाइब्रेरी" नाम दे दिया गया. इसका मौजूदा नाम इसे 1998 में मिला.
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कॉन्टेक्स्ट ने इस बारे में बायजू'स को सवालों की एक सूची भेजी थी. जवाब में कंपनी ने कहा कि उसने कुछ भी गलत नहीं किया है और उसकी गतिविधियां ‘ग्राहकों के सम्मान और संतुष्टि पर केंद्रित हैं.'
अपने जवाब में बायजू'स लिखता है, "हमने कभी अपने सेल्सपर्सन और मैनेजर को ऐसे लोगों से बात करने को नहीं कहा जो हमारे उत्पादों को खरीद नहीं सकते या खरीदना नहीं चाहते. अपनी सेल्स में हम सर्वोच्च नैतिक मानकों का पालन करते हैं.”
कर्मचारियों द्वारा की गई आलोचना के बारे में कंपनी के प्रवक्ता ने कहा कि उनके 50 हजार कर्मचारी हैं और उनमें से आलोचना करना वाला एक बहुत ही छोटा सा हिस्सा है जबकि काम के हालात कॉरपोरेट भारत में ‘सबसे सेहतमंद और सम्मानित' हैं.
नहीं मिला रिफंड
कुमार दावा कहते हैं कि जब उन्होंने कोर्स खरीदा था तो सेल्स वाले लोगों ने कहा था कि 15 दिन के ट्रायल के बाद वह 7,000 रुपये की डाउनपेमेंट वापस पा सकते हैं. उनका यह भी दावा है कि एक सेल्समैन ने उनका फोन और पहचान पत्र लेकर बिना उनकी इजाजत लिए उनके नाम से कर्ज की अर्जी डाल दी. वह कहते हैं कि उन्हें पता तब चला जब उन्हें अगले महीने किश्त अदा करने के लिए संदेश आने लगे. वह कहते हैं कि उन्होंने सिर्फ कोर्स लिया था, कर्ज नहीं.
वह कहते हैं, "अगले ही दिन मैंने अपना ख्याल बदल लिया. मुझे लग गया कि मेरे पास इतना पैसा नहीं है. मैं एक मजदूर आदमी हूं जिसे चार लोगों के परिवार का चलाना है. मैंने रिफंड के लिए फोन किया पर वे लोग (सेल्समेन) गायब हो गए.”
अक्तूबर के बाद से कुमार के बैंक खाते से 4,000 रुपये काटे जा चुके हैं. बायजू'स के सेंटर पर वह दर्जनों बार जा चुके हैं ताकि कोर्स कैंसल कर सकें लेकिन अब तक भी उनके खाते से लगातार पैसे कट रहे हैं. इस बारे में कुमार के साले ने पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई है. बायजू'स ने इस बारे में सवालों का जवाब नहीं दिया.
पढ़ाई के लिए कौन सा देश जाना पसंद करते हैं भारतीय छात्र
2019 में उच्च शिक्षा के लिए 7,70,000 भारतीय छात्र विदेश गए थे और 2024 तक यह संख्या लगभग 18 लाख बढ़ने का अनुमान है. जानते हैं भारतीय छात्रों को कौन सा देश भा रहा है.
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कनाडा है पहली पसंद
विदेश में उच्च शिक्षा पर कंसल्टिंग फर्म रेडसीर की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में उच्चा शिक्षा हासिल करने के लिए 2,20,000 भारतीयों ने कनाडा की यात्रा की, इसके बाद भारतीय छात्रों की पसंद अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया है.
तस्वीर: DW/K Jovanovski
अमेरिका में बेहतर भविष्य की तलाश
अच्छी शिक्षा और बेहतर भविष्य की तलाश में लाखों भारतीय छात्र विदेश पढ़ने जाते हैं. साल 2019 में 2,02,000 छात्रों ने पढ़ाई के लिए अमेरिका को चुना.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. McCollester
ऑस्ट्रेलिया भी पसंद
रिपोर्ट के मुताबिक कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन के अलावा छात्र ऑस्ट्रेलिया में भी पढ़ना पसंद करते हैं. 2019 के आंकड़ों के मुताबिक 1,43,000 छात्रों ने उच्च शिक्षा के लिए ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों में दाखिला लिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. He
क्या पढ़ते हैं भारतीय छात्र
विदेश में उच्च शिक्षा का विकल्प चुनने वाले अधिकांश भारतीय छात्र स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए वहां जाते हैं.
तस्वीर: DW/Sirsho Bandopadhyay
अरबों डॉलर होते हैं खर्च
विदेश में पढ़ने वाले ये छात्र सामूहिक रूप से वार्षिक आधार पर अनुमानित 28 अरब डॉलर खर्च करते हैं.
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW
पंजाब और आंध्र प्रदेश से सबसे ज्यादा छात्र जाते हैं विदेश
देश के सभी राज्यों के मुकाबले पंजाब और आंध्र प्रदेश से सबसे अधिक 12 फीसदी छात्र विदेश पढ़ने के लिए गए थे. अन्य राज्यों में महाराष्ट्र से 11 फीसदी छात्र विदेश गए. वहीं गुजरात से 8, कर्नाटक से 5 और तमिलनाडु से 7 और बाकी राज्यों से 45 फीसदी छात्र विदेशों में पढ़ने गए.
तस्वीर: ATTILA KISBENEDEK/AFP/Getty Images
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बायजू'स के कर्मचारी, उपभोक्ता अधिकारों के विशेषज्ञ और डिजिटल अधिकारों के लिए काम करने वाले लोग कहते हैं कि कुमार के साथ जो हुआ वह एक धोखाधड़ी भरा बिजनस मॉडल है जिसमें कमजोर लोगों को शिकार बनाया जाता है. विशेषज्ञ कहते हैं कि जिन लोगों को निशाना बनाया जाता है वे अक्सर गरीब परिवारों से होते हैं और उन्हें तकनीक की भी कम जानकारी होती है, इसलिए उन्हें अपने अधिकारों और समस्याओं के निवारण के रास्ते भी पता नहीं होते.
बायजू'स के खिलाफ बढ़तीं शिकायतों के साथ ही शिक्षा-तकनीकी के क्षेत्र में नियमन और कानूनों की मांग भी बढ़ रही है. उपभोक्ता मामले मंत्रालय में उपभोक्ता कानून प्रमुख अशोक आर पाटिल कहते हैं कि शिक्षा-तकनीकी कंपनियों के खिलाफ आ रहीं शिकायतों की जांच की जा रही है और ऐसी नीतियां बनाने पर भी काम चल रहा है, जो इस क्षेत्र को नियमित करेंगी. शिक्षा मंत्रालय ने ग्राहकों को ऐसी कंपनियों के दावों के प्रति सावधान रहने को भी कहा है, जिनमें स्वतः कर्ज देने जैसी योजनाओं का प्रयोग किया जा सकता है.
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बायजू'स का खंडन
बायजू'स उपभोक्ताओं की भ्रामक विज्ञापनों और गलत दावों के साथ बेचने जैसी शिकायतों को सिरे से खारिज करता है. उसके प्रवक्ता ने कहा कि हर बार जब कोई कोर्स बिकता है तो आंतरिक ऑडिट टीम उसकी जांच करती है. बायजू'स के 75 लाख से ज्यादा ग्राहक हैं और हर महीने 1,50,000 से ज्यादा कोर्स बिकते हैं जिनमें से कंपनी के मुताबिक सिर्फ 1,500 के आसपास ही रिफंड के लिए अप्लाई करते हैं.
हालांकि बहुत से माता-पिता कहते हैं कि रिफंड लेना बहुत मुश्किल है और अक्सर उनकी बात नहीं सुनी जाती. कंज्यूमर कंपलेंट्स डॉट इन वेबसाइट पर बायजू'स के खिलाफ 3,759 शिकायतें हैं जिनमें 1,397 को हल किया गया है. अन्य शिक्षा-तकनीकी कंपनियों जैसे सिंपलीलर्न, वेदांतु, अनएकेडमी और अब दीवालिया हो चुकी लीडो लर्निंग के खिलाफ कुल शिकायतों की संख्या सिर्फ 350 है.
बायजू'स की स्थापना 2011 में बेंगलुरु में हुई थी. 2015 में उसने अपनी ऐप शुरू की और कोविड महामारी कंपनी के लिए वरदान साबित हुई क्योंकि ग्राहकों ने ऑनलाइन लर्निंग का रुख किया. उसके बाद कंपनी को बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय निवेश भी मिला है. हालांकि स्कूल खुलने के साथ ही कंपनी की सफलता की रफ्तार धीमी पड़ गई. सितंबर 2021 में उसका रेवन्यू 3 फीसदी गिरा और उसे 45.64 अरब डॉलर का नुकसान हुआ.