विदेशों में बस रही हैं ईरानी महिलाएं
२८ सितम्बर २०२३मरियम छह महीने पहले पढ़ाई के लिए जर्मनी आईं. पहचान गुप्त रखने के लिए उन्होंने अपना नाम मरियम बताया. 39 साल की मरियम पेशे से इंजीनियर हैं. डीडब्ल्यू को उन्होंने बताया, "दूसरे देश में बसना, बहुत लंबे समय तक मैंने इस बारे में सोचा ही नहीं."
ईरान की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी से मरियम ने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की. बाद में वह तेहरान की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में जॉब करने लगीं. मरियम कहती हैं, "पूरी जिंदगी बहुत कुछ हासिल करने के लिए मैंने कड़ी मेहनत की."
फिर परिस्थितियां कैसे बदल गईं, इस बारे में मरियम कहती हैं, "अंत में मुझे महसूस हुआ कि मैं कितना ही अच्छा करूं या कितनी ही मेहनत करूं, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं इस दलदल से कभी बाहर नहीं निकल सकूंगी और आजाद व खुश महसूस नहीं कर सकूंगी."
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मरियम की कई सहेलियां और परिचित, या तो ईरान छोड़ चुके हैं या इसकी तैयारी कर रहे हैं. पेशेवर और अनुभवी इंजीनियर मरियम ने बाहर निकलने के लिए पढ़ाई का रास्ता चुना. जर्मनी में उनके कई दोस्त हैं. उन्होंने दक्षिण जर्मनी की एक टेक्निकल यूनिवर्सिटी में मास्टर्स कोर्स के लिए अप्लाई किया. मंजूरी मिली और उन्हें वीजा मिलने का रास्ता साफ हो गया.
मरियम राजनीति के बारे में ज्यादा बातचीत नहीं करना चाहती हैं. वह कहती हैं, "ईरान में हमारी जिंदगी का हर पहलू राजनीतिक कर दिया गया है. एक महिला के नाते आप सुबह घर से निकलते समय क्या पहनती हैं, वो भी एक राजनीतिक बयान है. हमें हर दिन बहुत ज्यादा दबाव और तनाव से गुजरना पड़ता है. हम इससे बच नहीं सकते."
"जर्मनी में बीते छह महीने में मेरा सबसे अच्छा अनुभव ये रहा है कि मैं जो भी पहनना चाहूं वो बिना झिझक और टोकाटोकी के पहन सकती हूं. इसके साथ ही ये भरोसा कि यहां कोशिश करने पर मैं बेहतर भविष्य बना सकती हूं."
जर्मनी में प्रवास की वजह
मरियम मैसेजिंग ऐप, टेलीग्राम पर 'इमिग्रेटिंग टू जर्मनी' नाम के एक ग्रुप से जुड़ी है. 40,000 सदस्यों वाला यह ग्रुप इनक्रिप्टेड है. जर्मनी में विदेशी कामगारों के लिए जॉब वैकेंसी, इसमें पोस्ट की जाती है. साथ ही ईरानी डिग्री की मान्यता से जुड़े सवाल या आगे की पढ़ाई के लिए मशविरा, ग्रुप में ऐसे सवालों के जवाब भी मिल जाते हैं. इस ग्रुप में मेडिकल प्रोफेशनलों के लिए मौकों से जुड़ी पोस्ट बहुत ज्यादा रहती हैं.
बीते दो साल में मेडिकल सेक्टर से जुड़े 10,000 से ज्यादा लोगों ने ईरान छोड़ा है. ये आधिकारिक आंकड़े हैं. ईरानी अखबार शार्ग ने इसी साल मई में इस बारे में एक रिपोर्ट छापी थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक, इनमें से कई अरब देशों में गए.
ईरान के संसदीय स्वास्थ्य आयोग के प्रमुख हुसैन अली शाहरियारी के मुताबिक देश के मेडिकल सिस्टम बहुत बुरे हाल में है. देश छोड़ने वाले मेडिकल स्टाफ में, प्रोफेसर, डॉक्टर और नर्सें शामिल हैं.
शरीफ यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के मुताबिक हर साल करीब 65,000 उच्च शिक्षित और प्रतिभाशाली लोग ईरान छोड़ रहे हैं. यूनिवर्सिटी की ईरान माइग्रेशन ऑब्जरवेट्री के मुताबिक ऐसा बीते 10 साल से हो रहा है. 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से लाखों लोग ईरान छोड़ चुके हैं. इसकी मुख्य वजह आर्थिक मुश्किलें भी हैं और सरकार की दमनकारी नीतियां भीं.
प्रतिभा के इस पलायन को कैसे रोका जाए, इस पर ईरान सरकार ने सार्वजनिक रूप से अब तक कुछ नहीं कहा है.
ईरान छोड़ने वाली महिलाओं की बढ़ती संख्या
अकादमिक क्षेत्र में यह संख्या पहले से ऊंची रही है और हाल के वर्षों में और विकट हो गई है. ईरान माइग्रेशन ऑब्जरवेट्री के डायरेक्टर बहराम सलावती ने 2022 की शुरुआत में इससे जुड़ी चेतावनी दी थी. उन्होंने कहा कि महिलाओं में बेरोजगारी, पलायन की एक बड़ी वजह है.
आधिकारिक आंकड़े दिखाते हैं कि ईरान में 60 फीसदी स्टूडेंट, महिलाएं हैं, लेकिन जॉब मार्केट में उनकी हिस्सेदारी सिर्फ 15 फीसदी है. 2022 में महसा अमीनी की मौत के बाद देश भर में महिला अधिकारों को लेकर प्रदर्शन हुए. सरकार ने डंडे के बल पर प्रदर्शनों को कुचला. इसके बाद ईरान छोड़ने वाली महिलाओं की संख्या और बढ़ गई.
समाज विज्ञानी मेहरदाद दारविशपोर कहते हैं, "जब प्रदर्शन किसी समाधान तक नहीं ले जाते, और प्रदर्शनकारियों को भी बदलाव का कोई रास्ता नहीं दिखता, जब भविष्य संभावनाशून्य दिखने लगे, तब वे देश छोड़ने की रणनीति पर मजबूर होते हैं." दारविशपोर स्वीडन की मैलारडालेन यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं. वह कई साल से माइग्रेशन के मुद्दों पर रिसर्च कर रहे हैं.
"हम ईरान से महिलाओं के बाहर निकलने का एक ट्रेंड देख रहे हैं." दारविशपोर आगे कहते हैं, "ईरान के शासकों को सामाजिक मेल मिलाप में कोई दिलचस्पी नहीं है. वे भय और दमन पर भरोसा करते हैं."
"अकादमिक क्षेत्र की महिलाओं का विदेशों में बसना, समाज की लोकतांत्रिक और सेक्युलर मांगों को कमजोर करेगा. इसीलिए सत्ता में बैठे लोग इस पर कुछ नहीं करेंगे. उनका व्यवहार ऐसा लगता है, जैसे कोई सिर्फ अपनी ताकत बरकरार रखने के लिए अपने नागरिकों के हित और राष्ट्रीय संसाधनों की अनदेखी करे."
'देश छोड़ना, चुनाव नहीं, मजबूरी है'
ईरान की संसद ने हाल ही में सिर ना ढंकने वाली महिलाओं के लिए सख्त सजा का बिल पास किया है. कई महीनों की बहस के बाद पास हुए बिल में पोशाक संबंधी कायदों का उल्लंघन करने पर 10 साल तक की जेल हो सकती है.
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मरियम बिल का जिक्र छेड़ते हुए कहती हैं, "विदेश में रहना मेरे लिए कोई चुनाव नहीं हैं. मुझे इसके लिए मजबूर किया गया."