युद्ध के बाद ईरान परमाणु बम बनाएगा या शासन बदलेगा
२७ जून २०२५
गुरुवार को ईरान के सुप्रीम लीडर अयातोल्लाह खामेनेई ने संघर्ष थमने के बाद पहली बार देश को संबोधित किया. पहले से रिकॉर्डेड बयान को सरकारी टीवी चैनल पर प्रसारित किया गया. इसमें खामेनेई ने कहा कि उनके देश ने कतर में सैनिकों के अड्डे पर हमला करके "अमेरिका के मुंह पर तमाचा मारा है." इसके साथ ही खामेनेई ने अमेरिका को आगे और हमले के खिलाफ चेतावनी भी दी.
इस्राएल के साथ 12 दिन के युद्ध के बाद 19 जून को वह पहली बार ईरान के सरकारी टीवी चैनल पर दिखे. 86 साल के सुप्रीम लीडर ने दमदार दिखने की कोशिश की हालांकि वीडियो में और आवाज से वह एक हफ्ते पहले की तुलना में ज्यादा थके दिखाई पड़े. बोलते वक्त कुछेक बार उनके शब्द लड़खड़ाए भी. 10 मिनट से ज्यादा का भाषण अमेरिका और इस्राएल को चेतावनियों से भरा था.
ईरान को इन हमलों में कितना नुकसान पहुंचा है इसकी परतें खुलनी बाकी हैं. हालांकि जिस नुकसान की पुष्टि हुई है वह भी छोटा नहीं है. इस्राएली हमलों ने ईरान के ताकतवर रेवॉल्यूशनरी गार्ड की शीर्ष पंक्ति को मिटाने के साथ ही उसके बैलिस्टिक मिसाइलों के जखीरे को भी खासा नुकसान पहुंचाया है. इस्राएली मिसाइलों और अमेरिकी बंकर बस्टर बमों से उसके परमाणु कार्यक्रम को भी खासी चोट पहुंची है. खुद खामेनेई एक अज्ञात और गहराई में मौजूद गुप्त ठिकाने पर अकेलेपन में रहने को मजबूर हुए. सुप्रीम लीडर के सामने अब देश की ताकत को संगठित और सुनियोजित करने की चुनौती है.
"प्रतिरोध की धुरी" पर चोट
7 अक्टूबर 2023 को इस्राएल पर हमास के हमले के बाद ईरान की स्वघोषित "प्रतिरोध की धुरी" कमजोर पड़ गई है. मध्यपूर्व में ईरान समर्थित मिलिशिया की ताकत को इस्राएली हमलों ने काफी नुकसान पहुंचाया. चीन और रूस से ईरान को जो मदद की उम्मीद थी वह भी नहीं मिली.
बुधवार को यूरेशिया ग्रुप ने अपने विश्लेषण में कहा, "ईरान के नेतृत्व को कड़ा धक्का पहुंचा है और वह संघर्षविराम को बड़े ध्यान से बचाएगा, जिससे कि शासन को थोड़ा अवकाश मिले और वह आंतरिक सुरक्षा और पुनर्निर्माण पर ध्यान दे सके." यूरेशिया ग्रुप एक शोध और विश्लेषण संस्थान है जो निवेशकों और कारोबारियों को राजनीतिक घटनाओं के परिणामों का विश्लेषण कर जानकारी मुहैया कराता है.
इस्राएल के अभियान से यह बिल्कुल साफ है कि उसकी खुफिया एजेंसियों की ईरान में कितनी घुसपैठ है. ईरान के शीर्ष कमांडरों और परमाणु वैज्ञानिकों को एक झटके में इस्राएल ने निशाना बना लिया. ऐसे में सबसे पहले तो खामेनेई को संदिग्ध लोगों की पहचान कर उन्हें सैन्य संगठनों से बाहर करना होगा.
जर्मन इंस्टिट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्योरिटी अफेयर्स के विजिटिंग फेलो हामिदरेजा अजीजी का कहना है, "निश्चित रूप से शुद्धिकरण जैसा कुछ होना चाहिए लेकिन उसे कौन अंजाम देगा? जिस स्तर का अविश्वास इस वक्त मौजूद है वह अब असरदार योजना या सुरक्षा में फेरबदल को पंगु कर देगा."
इस माहौल में ईरान की सेना में विश्वास भरना खासतौर से रेवॉल्यूशनरी गार्ड की बड़ी चुनौती होगी. हालांकि सेनाओं के पास अधिकारियों की एक बड़ी जमात रहती है. इन हमलों में जनरल इस्माइल कानी बच गए हैं जो एलीट कुद्स फोर्स के इनचार्ज हैं.
दूसरी तरफ राजनीति में विदेश मंत्री अब्बास अरागची खुद एक सशक्त नेता के रूप में नजर आए. तेहरान में जब ज्यादातर नेता खामोश बैठे थे तब वही थे जो घोषणाएं कर रहे थे.
पिछले दो दशकों से देश जिस सुरक्षा नीति पर चल रहा है, खामेनेई को उस पर भी दोबारा विचार करना है. "प्रतिरोध की धुरी" के नाम पर हुए गठबंधनों से ईरान पूरे मध्यपूर्व में अपनी ताकत दिखाने के साथ ही एक सुरक्षात्मक बफर बनाने में सफल रहा और संघर्ष को ईरान की सीमाओं से दूर रखने में भी. यह बफर जोन अब नाकाम हो गया है.
बम के लिए होड़
खामेनेई यह नतीजा निकाल सकते हैं कि उनका देश परमाणु बम बना कर ही खुद को सुरक्षित रख सकता है, जैसा कि उत्तर कोरिया ने किया है. ईरान ने परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए चलाने के बाद भी यूरेनियम को 60 फीसदी तक संवर्धित कर लिया है, जो हथियार बनाने के बहुत करीब है.
विश्लेषक मानते हैं कि खामेनेई हथियार बनाने का विरोध युद्ध से बचने के लिए ही कर रहे थे. अब सिस्टम के अंदर जो लोग हैं वो बम बनाने की मांग कर रहे हैं. अजीजी ने कहा, "हम शायद पहले ही उस सीमा को पार कर चुके हैं जहां खामेनेई का नजरिए बदलेगा."
इसके बाद भी हथियार बनाने की किसी पहल में कई जोखिम है. अमेरिका और इस्राएली बमों की बौछार से ईरान को कितना नुकसान हुआ है यह साफ नहीं है तो भी यह तय है कि ईरान को अपने परमाणु केंद्र और सेंट्रीफ्यूज के ढांचे को दोबारा खड़ा करना होगा. यह काम उसे अत्यंत गोपनीयता के साथ करना होगा. अगर इस्राएल को इसका पता चला तो हमले फिर शुरू हो सकते हैं.
खामेनेई इसके उलट अमेरिका से बातचीत का रास्ता भी पकड़ कर प्रतिबंधों में कुछ छूट ले सकते हैं. अमेरिका के मध्य पूर्व के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ ने मंगलवार की रात फॉक्स न्यूज से कहा कि भविष्य में बातचीत के आसार "भरोसा जगाने वाले हैं."
ईरान की घरेलू चुनौतियां
युद्ध से थकेहारे ईरान के नेतृत्व के सामने घरेलू मोर्चे पर भी बड़ी समस्याएं हैं. ईरान की अर्थव्यवस्था कई सालों से अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों, भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन से जूझ रही है. कई महीनों से बीमार पावर ग्रिड कई-कई घंटों की ब्लैकआउट करने को विवश है.
युद्ध में तेहरान का शेयर बाजार भी बंद था और मुद्रा विनिमय भी, इसकी वजह से ईरान की मुद्रा रियाल बड़ी तेजी से नीचे गिरी है. 2015 में परमाणु करार के समय जो 1 डॉलर 32,000 रियाल के बराबर था वह अब 10 लाख रियाल के बराबर हो गया है. जैसे ही कारोबार शुरू होगा यह और नीचे जा सकता है.
देश में पहले से ही अशांति है. 2019 में जब गैसोलीन की कीमतें बढ़ीं तो देश के 100 शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए, बैंक और गैसोलीन के स्टेशनों को जलाया गया. एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक इसके बाद सरकार की कार्रवाई में 321 लोगों की जान गई और हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया.
इसके बाद 2022 में महशा अमीनी की मौत के बाद हुए प्रदर्शनों में 500 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और 22,000 से ज्यादा गिरफ्तार हुए. यह सारा बवाल महशा अमीनी के हिजाब पहने से इनकार के बाद शुरू हुआ था. बहुत सी महिलाएं ईरान में आज भी हिजाब नहीं पहनतीं लेकिन आशंका है कि युद्ध के बाद नई पाबंदियां लग सकती हैं.
खामेनेई का उत्तराधिकारी
खामेनेई को हटाने के इस्राएल के इरादों के बावजूद वह इस युद्ध में बच गए. हालांकि उनके बाद ईरान में क्या होगा यह कोई नहीं जानता. युद्ध की वजह से इस्लामिक रिपब्लिक अपने आप को बदलने के बारे में भी सोच सकता है और तब शायद ज्यादा सैन्य शासन वाला प्रशासन भी आ सकता है.
इस्लामिक रिपब्लिक में फिलहाल शिया मौलाना सबसे ऊपर हैं. नागरिक सरकार और सैन्य प्रशासन के बीच सीमा रेखा वही खींचते हैं. सरकार, सेना, खुफिया तंत्र सबकुछ उनके ही अधीन है और सुप्रीम लीडर के रूप में खामेनेई मौलवियों की ताकत के प्रतीक हैं.
शिया मौलवियों के एक पैनल पर उनका उत्तराधिकारी चुनने की जिम्मेदारी है. कई नामों की चर्चा है जिनमें खामेनेई के बेटे और अयातोल्लाह रुहोल्ला खोमैनी के पोते भी शामिल हैं. कुछ उम्मीदवार ज्यादा सख्त हैं तो कुछ सुधारों के लिए तैयार नजर आते हैं.
सुप्रीम लीडर कोई भी बने ऐसा लग रहा है कि रेवॉल्यूशनरी गार्ड के कमांडरों की ताकत अब शायद पहले से ज्यादा होगी. अजीजी कहते हैं, "लोग मौलाना के वर्चस्व वाले इस्लामिक रिपब्लिक से सेवा के वर्चस्व वाले इस्लामिक रिपब्लिक की तरफ जाने की बात कर रहे हैं. इस युद्ध ने इसे और ज्यादा स्वीकार्य बना दिया है."