दुनियाभर के परमाणु कार्यक्रमों की निगरानी करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था आईएईए ने एक रिपोर्ट में कहा है कि ईरान में कई ऐसी जगहों पर यूरेनियम के संकेत मिले हैं, जिनके बारे में उसने दुनिया को नहीं बताया है.
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तीन महीने पहले ही ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने अमेरिका की उस योजना को खारिज कर दिया था जिसमें आईएईए के बोर्ड द्वारा ईरान की अपने परमाणु कार्यक्रम पर पारदर्शिता न बरतने के कारण निंदा किए जाने का प्रस्ताव था. आईएईए के प्रमुख रफाएल ग्रोसी ने एक रिपोर्ट में कहा है, "कई महीने बीत जाने पर भी ईरान ने यह नहीं बताया है कि उन तीन जगहों पर नाभिकीय पार्टिकल कहां से आए, जहां एजेंसी ने अनिवार्य परीक्षण किए थे.”
आईएईए के इस खुलासे के बाद यूरोपीय देशों के सामने एक उलझन खड़ी हो सकती है कि वे अमेरिका के ईरान की निंदा के प्रस्ताव का समर्थन करें या न करें, जो असल में 2015 में ईरान के साथ हुई परमाणु संधि को नुकसान पहुंचा सकता है. ईरान परमाणु संधि पर फिलहाल विएना में बातचीत चल रही है. ग्रोसी ने हालांकि उम्मीद जताई है कि अगले हफ्ते बोर्ड की मुलाकात से पहले हालात बदल जाएंगे.
क्या है रिपोर्ट?
उनकी रिपोर्ट कहती है कि आईएईए के ‘महानिदेशक इस बात को लेकर नाखुश हैं कि एजेंसी और ईरान के बीच चल रही तकनीकी बातचीत के अपेक्षित नतीजे नहीं निकले हैं.' रिपोर्ट कहती है, "ईरान की सुरक्षा व्यवस्था के बारे में उद्घोषणाओं से संबंधित एजेंसी के सवालों के जवाब देने में प्रगति ना होने का असर उसके परमाणु कार्यक्रम के असैनिक होने का आश्वासन देने की आईएईए की क्षमता पर पर पड़ता है.”
सदस्य देशों को भेजी गई एजेंसी की एक अन्य त्रैमासिक रिपोर्ट में एजेंसी ने ये संकेत दिए हैं कि नतांज में धमाके और बिजली कटने से ईरान के यूरेनियम संवर्धन को खासा नुकसान पहुंचा है. इस धमाके के लिए ईराने इस्राएल को जिम्मेदार बताया है. आईएईए के मुताबिक अगस्त 2019 के बाद से ईरान के संवर्धित यूरेनियम के भंडार का स्तर सबसे कम रहा है.
अगस्त में यह भंडार 273 किलोग्राम था जो अब 3,241 किलोग्राम होने का अनुमान लगाया गया है. हालांकि आईएईए के मुताबिक ईरान के असहयोग के कारण इसे सत्यापित नहीं किया जा सका. परमाणु समझौते के तहत 202.8 किलोग्राम की सीमा तय की गई है जिससे यह मात्रा कहीं ज्यादा है. हालांकि ईरान ने अपने संग्रह को छह टन से कम रखने का वादा किया था.
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नतांजमें नुकसान
नतांज में ईरान का भूमिगत यूरेनियम संवर्धन प्लांट है. आईएईए ने 24 मई को इस बात की पुष्टि की थी कि वहां अलग-अलग तरह के सेंट्रिफ्यूग्स के 20 समूहों में यूरेनियम हेक्साफ्लोराइरड संवर्धन के लिए जमा किया जा रहा है. एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक धमाके से पहले यह संख्या 35 से 37 के बीच थी. 2018 में अमेरिका ने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से खुद को अलग कर लिया था और उसके खिलाफ नए प्रतिबंध लगा दिए थे. इसके जवाब ईरान ने भी समझौता तोड़कर 2019 में अपनी परमाणु गतिविधियां फिर से शुरू कर दी थीं.
समझौते के उल्लंघन की सबसे ताजा घटनाओं में यूरेनियम संवर्द्धन का स्तर 20 से बढ़ाकर 60 प्रतिशत तक ले जाना शामिल है, जो हथियार बनाने की ओर एक बड़ा कदम माना जा रहा है. समझौते में यह स्तर 3.67 प्रतिशत पर रखना तय किया गया था. ईरान के इन उल्लंघनों के चलते अमेरिका समेत कई देशों ने नाराजगी जताई है.
वीके/एए (डीपीए, रॉयटर्स, एपी)
बिजली उत्पादन के विभिन्न तरीके
रोटी, कपड़ा और मकान की तरह ही बिजली भी लोगों की मूलभूत आवश्यकता बन चुकी है. घर रोशन करने से लेकर ट्रेन चलाने तक हर जगह बिजली की जरूरत होती है. एक नजर बिजली उत्पादन के तरीकों पर.
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कोल पावर प्लांट
कोल पावर प्लांट बिजली उत्पादन का परंपरागत तरीका है. इसमें कोयले की मदद से पानी गर्म किया जाता है. इससे बनी भाप के उच्च दाब से टरबाइन तेजी से घूमता है और बिजली का उत्पादन होता है.
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हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट
हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट ऐसी जगहों पर बनाए जाते हैं जहां तेजी से पानी का प्रवाह होता है. सबसे पहले बांध बना कर नदी के पानी को रोका जाता है. यह पानी तेजी से नीचे गिरता है. इसकी मदद से टरबाइन को घुमाया जाता है और बिजली उत्पादन होता है.
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सौर ऊर्जा
सौर ऊर्जा प्लांट की स्थापना उन क्षेत्रों में की जाती है जहां पूरे साल सूरज की रोशनी पहुंचती है. सूर्य की किरणों को बिजली में बदलने के लिए फोटोवोल्टिक सेलों का उपयोग होता है. इससे एक बैटरी जुड़ी होती है जिसमें बिजली जमा होती है. सोलर फोटोवोल्टिक सेल से पैदा होने वाली बिजली दिष्ट धारा (डायरेक्ट करंट) के रूप में होती है.
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पवन चक्की
पवन चक्की का इस्तेमाल उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां हवा की गति तेज होती है. पवन चक्की लगाने के लिए एक टावर के ऊपर पंखे लगाए जाता है. यह पंखा हवा की वजह से घूमता है. पंखे के साथ शाफ्ट की मदद से एक जेनेरेटर जुड़ा होता है. जेनरेटर के घूमने से बिजली उत्पादन होता है.
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न्यूक्लियर पावर प्लांट
इस प्लांट में यूरेनियम-235 को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. यूरेनियम के परमाणुओं को विखंडित करने के लिए एटॉमिक रिएक्टर का इस्तेमाल होता है. इससे पैदा होने वाली उष्मा से भाप बनाई जाती है. इसी भाप से टरबाईन को घुमाया जाता है जिससे बिजली का उत्पादन होता है. एक किलो यूरेनियम 235 से उत्पन्न ऊर्जा 2700 क्विंटल कोयले जलाने से पैदा हुई ऊर्जा के बराबर होती है.
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डीजल पावर प्लांट
डीजल पावर प्लांट की स्थापना उन जगहों पर की जाती है जहां कोयले और पानी की उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में नहीं होती है. डीजल मोटर की मदद से जेनरेटर चलाया जाता है जो बिजली का उत्पादन करता है. यह एक तरह का वैकल्पिक साधन है. सिनेमा हॉल, घर, शादी-विवाह या किसी कार्यालय में आपात स्थिति में बिजली की आपूर्ति के लिए इसका इस्तेमाल होता है.
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नैचुरल गैस पावर प्लांट
नैचुरल गैस पावर प्लांट कोल थर्मल पावर प्लांट की तरह ही होता है. फर्क बस इतना है कि इसमें पानी को गर्म करने के लिए कोयले की जगह नैचुरल गैस का इस्तेमाल होता है. पानी गर्म होने के बाद भाप बनता है. उच्च दाब वाले भाप से टरबाइन घूमता है. और इससे बिजली उत्पादन होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
समुद्री लहर
समुद्र की लहरों से बिजली पैदा की जाती है. समुद्र किनारे दीवार या चट्टान में जेनरेटर और टरबाइन लगाया जाता है. (एक हौज बनाया जाता है जहां टरबाइन और जेनरेटर लगे होते हैं. लहरें जब हौज के भीतर आती है उसमें मौजूद पानी ऊपर उठता-गिरता है. इससे हौज के ऊपरी हिस्से में बनी जगह पर हवा तेजी से ऊपर-नीचे आती है.) लहरों के आने जाने पर टरबाइन दबाव से घूमता है और जेनरेटर चलने लगता है. बिजली पैदा होती है.
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समुद्री तरंग
इस तरीके में लोहे के बड़े-बड़े पाइपों को स्प्रिंग के माध्यम से एक साथ जोड़ा जाता है. ये समुद्र की सतह पर तैरते रहते हैं. इनका आकार रेलगाड़ी के पांच डिब्बों के बराबर होता है. इनके अंदर मोटर तथा जेनरेटर लगे होते हैं. तरंगों की वजह से पाइप जब ऊपर नीचे होते हैं तो अंदर मौजूद मोटर चलने लगती है. मोटर से जेनेरेटर चलता है और बिजली उतपन्न होती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बायोमास से बिजली निर्माण
खेती, पशुपालन, उद्योग या वन क्षेत्र के उपयोग में काफी मात्रा में बायोमास सामग्री इकट्ठा होती है. कोल थर्मल पावर प्लांट की तरह ही इसका भी प्लांट होता है. फर्क ये है कि यहां कोयले की जगह बायोमास को जलाया जाता है और पानी को गर्म किया जाता है. पानी गर्म से होने से जो भाप बनती है उससे टरबाइन घूमता है और बिजली उत्पादन होता है.
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जियो थर्मल पावर प्लांट
जैसे-जैसे पृथ्वी की गहराई में जाते हैं, धरती गर्म होती जाती है. एक स्थान वह भी आता है जहां गर्मी की वजह से सारे पदार्थ पिघल जाते हैं जिसे लावा कहते हैं. धरती के अंदर मौजूद इसी ताप के इस्तेमाल से बिजली बनाई जाती है. इसके लिए जमीन में कुएं खोदे जाते हैं. अंदर के गर्म पानी और उसकी भाप का अलग-अलग तरह से इस्तेमाल कर टरबाइन घुमाया जाता है और बिजली बनाई जाती है.