ईरान की अदालत ने फ्रांस के नागरिक बेंजामिन ब्रीएर को जासूसी के आरोप में आठ साल की जेल की सजा सुनाई है. उनके वकील ने मुकदमे को राजनीति से प्रेरित बताया है.
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फ्रांसीसी समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक एक ईरानी अदालत ने मंगलवार को बेंजामिन ब्रीएर को जासूसी का दोषी पाए जाने के बाद आठ साल जेल की सजा सुनाई. हालांकि, बेंजामिन के वकीलों का कहना है कि कानूनी प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण थी और आरोप राजनीति से प्रेरित थे.
ब्रीएर के खिलाफ क्या आरोप लगे?
36 साल के बेंजामिन साल 2020 से ईरान में कैद हैं. उन्हें तुर्कमेनिस्तान-ईरान सीमा के पास रेगिस्तान में एक हेलीकैम उड़ाने के बाद गिरफ्तार किया गया था- यह एक रिमोट नियंत्रित मिनी हेलीकॉप्टर होता है, जिसका इस्तेमाल हवाई या मोशन पिक्चर हासिल करने के लिए किया जाता है.
ब्रीएर को सजा का फैसला उस समय पर आया है जब ईरान और अमेरिका के बीच 2015 न्यूक्लियर डील पर सहमति के लिए कई देश कोशिशों में जुटे हुए हैं. 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका को इस समझौते से अलग कर लिया. उन्होंने ईरान पर फिर से आर्थिक प्रतिबंध भी लगा दिए. जवाब में ईरान ने भी परमाणु समझौते की कई शर्तें तोड़ीं. इसके बाद से ही इस डील की सार्थकता पर संशय बना हुआ है.
ब्रीएर के वकील फिलिप वैलेंट ने मुकदमे को एक "दिखावा" बताया और इसकी आलोचना की. उन्होंने कहा, "यह सजा विशुद्ध रूप से राजनीतिक कार्रवाई का परिणाम है और इस सजा का कोई आधार नहीं है." वैलेंट ने कहा, "निष्पक्ष न्यायाधीश के समक्ष उन्हें निष्पक्ष सुनवाई का मौका नहीं दिया गया." उन्होंने कहा कि ब्रीएर को मशहद में बंद कमरे की क्रांतिकारी अदालतों में पेश किया गया था और उन्हें सजा के बारे में पूरी तरह से सूचित नहीं किया गया था.
ब्रीएर के एक ईरानी वकील सईद देनघन ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि उनके मुवक्किल सजा से "हैरान" थे और 20 दिनों के भीतर इसके खिलाफ अपील करेंगे. ब्रीएर के परिवार का कहना है कि वह निर्दोष हैं और राजनीति के लिए उनकी बलि दी जा रही है. ब्रीएर क्रिसमस से ही भूख हड़ताल पर हैं.
अन्य पश्चिमी लोग भी ईरानी हिरासत में हैं
ब्रीएर ईरान द्वारा हिरासत में लिए गए एक दर्जन से अधिक पश्चिमी लोगों में से एक हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ता ऐसे व्यक्तियों को बंधक कहते हैं और दावा करते हैं कि इन पश्चिमी नागरिकों को ईरान के शक्तिशाली रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के इशारे पर हिरासत में लिया जा रहा है ताकि तेहरान पश्चिम से रियायतें प्राप्त कर सके.
इस बीच फ्रांस के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि ब्रीएर की सजा "अस्वीकार्य" है और वास्तव में इसका कोई आधार नहीं है. फ्रांस अतीत में तेहरान को चेतावनी दे चुका है कि वह जिस तरह से ईरान में पकड़े गए फ्रांसीसी नागरिकों के मामलों से निपट रहा है उससे रिश्तों में खटास आ सकती है.
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)
कार्टून के सहारे रंगभेद से लड़ाई
तुर्की से लेकर ईरान और ब्राजील से लेकर बेल्जियम तक दुनिया भर के कार्टूनिस्ट अपनी कला का इस्तेमाल नस्लवाद का विरोध करने में कर रहे हैं.
सबके लिए रंगीन दुनिया
रंगीन दुनिया में कुछ लोगों को जरूर खोना पड़ता है. दक्षिण कोरियाई कलाकार योंग सिक ओह के इस कार्टून में यही दिखाया गया है. इंसान अब भी नस्लवाद या रंगभेद को मिटाने में सफल नहीं हो सका है. भेदभाव ना सिर्फ काले लोगों के साथ है बल्कि समलैंगिक, महिला या फिर दूसरे धर्मों के साथ भी. यह इस पर निर्भर है कि आप रहते कहां हैं.
थोड़ा और रंग भी चलेगा
जर्मन पेयर वेडरविले के इस कार्टून में दो काले पक्षी एक पेड़ की शाखा पर बैठे हैं और उनके पीछे काली और सफेद जमीन है. सामने की शाखा पर एक रंगीन पक्षी को बैठे देख कर एक पक्षी दूसरे से कहता है कि विदेशी अच्छे से घुलते मिलते नहीं हैं, देखने में भी.
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नस्लवादी कंपोजर
एबनी और आइवरी (काले सफेद की) जब मेरे पियानों में साथ साथ रह सकते हैं तो हे भगवान हम क्यों नहीं? बीटल फेम गायक पॉल मैक्कार्टनी ने अपने मशहूर गीत "एबनी एंड आइवरी" में यही गाया. बेल्जियम के किम डूषाटू ने इस कार्टून को बनाते वक्त निश्चित रूप से यही सवाल अपने आप से पूछा होगा. एक पियानो वादक को जरूर यह जानना चाहिए कि काली और सफेद दोनों तरह के बटन के बगैर उसके पास सिर्फ शोर ही बचेगा.
यूरोपीय राष्ट्रगान में व्यथा
ओड टू जॉय दुनिया भर में मशहूर है. इसे फ्रीडरीष शिलर ने 1785 में लिखा था और बेथोफन ने अपनी नाइंथ सिंफनी में इसे संगीत में ढाला. यह 1985 से ही यूरोपीय संघ का राष्ट्रगान है. इस कार्टून में भगोड़े गीत के छंदों में फंसे हुए दिखाई देते हैं जो कांटेदार तार का प्रतीक हैं और नीचे लिखा है, "सारे लोग भाई बन जाएंगे." इसमें यूरोप की सीमा पर शरणार्थियों के साथ होने वाला व्यवहार दिखाया गया है.
शर्त के साथ स्वागत
लोगों के अपने देश छोड़ने के पीछे कई वजहें हैं, जैसे कि जंग, दमन या गरीबी. हालांकि इन शरणार्थियों का दूसरी जगह भी स्वागत नहीं होता है. ऐसे में वो किसी और ठिकाने की ओर जाने की कोशिश करते हैं, गैरकानूनी रूप से कभी पैदल तो कभी रबड़ की नावों में. यान टॉमाशॉफ का कार्टून यह दिखाता है कि जो देश शरणार्थियों के लिए खुले हैं वहां भी उन्हें पहले नए देश के लिए उपयोगी साबित होना पड़ता है.
आम आदमी का पर्दा
लोकतांत्रिक समाज किसी भी तरह के रंगभेद या भेदभाव पर संविधान के जरिए रोक लगाते हैं. हालांकि सम्मानित लगने वाले कुछ लोग अपने धुर दक्षिणपंथी विचारों को आम आदमी के पर्दे की आड़ में छिपा लेते हैं जैसा कि बर्न्ड पोलेंज ने इस कार्टून में दिखाया है. यहां सूट पहने इस आदमी के सिर में एक छोटा सा गंजा आदमी है जो बेसबॉल की बैट हाथों में लिए आंख से बाहर निकल कर झांक रहा है जैसे कि वो कोई झांकने वाली छेद हो.
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गुप्त नस्लभेदी समाज
ईरानी कार्टूनिस्ट साएद सादेगी के इस कार्टून में पेंसिलों की कतार है, और सिर्फ एक की नोक सफेद है जिसमें आंखों की भी छेद है, निश्चित रूप से यह कू क्लक्स क्लैन की आकृति है. यह गुप्त समाज इस सच्चाई को स्वीकार नहीं करता कि अमेरिकी गृहयुद्ध के बाद से ही वहां गुलामी खत्म हो चुकी है. इसके सदस्यों ने योजनाबद्ध तरीके से पहले काले लोगों और फिर यहूदियों, कम्युनिस्टों और समलैंगिकों को निशाना बनाया.
रोजा पार्क्स को श्रद्धांजलि
अमेरिकी कलाकार लोरेन फिशमैन ने रंगभेद से लड़ने वाली काली रोजा पार्क्स को श्रद्धांजलि दी है. अफ्रीकी अमेरिकी पार्क्स को 1955 में गिरफ्तार किया गया क्योंकि वो बस में एक गोरे के लिए अपनी सीट से उठने को तैयार नहीं थीं. सात दशकों बाद भी रंगभेद आज अमेरिका में प्रमुख मुद्दा है. कार्टून में एक काली महिला वाशिंग मशीन के सामने खड़ी है जिन पर काले और सफेद धुलाई के विकल्प है और सोचती है: "भाड़ में जाए..."
जिंदगी रंगीन है
डाइवर्सिटी जिंदगी को रंगीन बनाती है. इसे दिखाने के लिए गीडो कुह्न ने योहानेस फेरमेयर की मशहूर पेंटिंग की "गर्ल विद द पर्ल ईयररिंग्स" को दिखाया है. यहां इसे मोनालिसा ऑफ द नॉर्थ कहा जाता है. इसमें तीन अलग अलग रंगों की मुस्कुराती बहनें हैं. तस्वीर के नीचे जो लिखा है उसमें सब बयान हो जाता है.
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काल्पनिक आदर्श
तुर्क कार्टूनिस्ट बुराक एर्गिन समाज में और ज्यादा सहनशीलता की अपील करते हैं. प्रदर्शनकारियों को पीटती पुलिस अकसर सुर्खियां बटोरती है लेकिन इस कार्टून में पुलिस अधिकारी और प्रदर्शनकारी हाथों में फूल ले कर एक दूसरे की तरफ बांहें फैलाए बढ़ रहे हैं. सच्चाई भले ही अलग हो लेकिन उनका कार्टून सामंजस्य का एक काल्पनिक आदर्श दिखाता है.
दुनिया के रंग
कार्टूनिस्ट फ्रीलाह के देश ब्राजील में सारे रंग है वो इन्हें एथनो कलर्स नाम देते हैं. कई देशों के लोगों ने यहां के मूल निवासियों के साथ शादियां की हैं और हर रंग के ब्राजीलियाई लोग देश की समृद्ध संस्कृति की विरासत के रूप में मौजूद हैं हालांकि इसके बाद भी काले और सांवले रंग वाले लोगों के साथ नस्लभेद यहां जारी है.
यिन और यांग
अगर लोग चीनी लोगों के यिन और यांग के सिद्धांत को अपना लें तो नस्लभेद का मुद्दा बाकी नहीं बचेगा इसके मुताबिक दो विपरीत ताकतें एक दूसरे की ओर आकर्षित होती हैं इनमें तो कोई बड़ा होता है ना कोई छोटा. इसमें एक संतुलन होता है ये दोनों आधे आधे हैं जो आपस में मिल कर पूरे होते है. इस कार्टून के सहारे क्यूबा के मिगेल मोरालेस ने साफ कहा है, "नस्लवाद को ना है."