ईरान में हत्या के कानून में सुधार करने और लोगों को इस बारे में जागरुक करने की मांग काफी जोर पकड़ती दिख रही है. एक महीने में ही तीन महिलाओं की उनके पिता या पति के हाथों बेहद क्रूरता से हत्या के मामले चर्चा में हैं.
विज्ञापन
इस महीने एक के बाद एक सामने आई इन तीन हत्याओं में कुछ बातें एक जैसी हैं जैसे जिनकी जान ली गई वे सभी महिलाएं थीं, जिन्होंने जान से मारा वे सभी पिता, पति या भाई जैसे करीबी रिश्तेदार थे, सभी हत्याएं तथाकथित "ऑनर किलिंग" मानी जाती हैं और इनमें से किसी भी हत्यारे को अपराध साबित होने पर भी किसी आम हत्यारे जैसी सजा नहीं मिलेगी. भले ही सुनने में ये अन्याय लगता हो लेकिन ईरान के कानून के हिसाब से यही न्याय है. दोषी साबित होने पर इन्हें केवल 3 से लेकर अधिकतम 10 साल तक की जेल हो सकती है. ईरान में शरिया कानून के अंतर्गत आने वाले इस मामले में बेटी की हत्या के लिए पिता को मृत्यु दंड या उम्र कैद नहीं दी जा सकती जबकि इसी जुर्म में मां को ऐसी सजा मिल सकती है.
हत्यारों को नहीं है कानून या सजा से डरने की जरूरत?
एक मामले में तो कथित तौर पर हत्यारे पिता ने अपनी बेटी की जान लेने से कुछ हफ्ते पहले ही वकील से बात कर इस बात की तसल्ली कर ली थी कि उसे इसके लिए कड़ी सजा तो नहीं झेलनी पड़ेगी. देश के कानून की नजर में अपनी हरकत की स्वीकार्यता के स्तर को समझते हुए उसने खून करने का फैसला लिया. मामला एक 14 साल की लड़की रोमीना का था, जिसका उसके पिता ने अपने ही कमरे में सोते हुए कुल्हाड़ी से सिर काट दिया. पिता का कहना है कि ये कदम उसने अपनी "इज्जत" बचाने के लिए उठाया क्योंकि लड़की अपनी पसंद के लड़के साथ घर छोड़ कर भाग गई थी.
ऐसे हुई ईरान में इस्लामिक क्रांति
शिया बहुल ईरान में कभी ऐसे शाह का शासन था जिन्हें जनता अमेरिका की कठपुतली मानने लगी. एक मौलवी ने इस आक्रोश का फायदा उठाया और 1979 में इस्लामिक क्रांति कर डाली.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AFP/G. Duval
आक्रोश के बीज
ईरान की इस्लामी क्रांति के बीज कई मायनों में 1963 में पड़े. तत्कालीन शाह, मोहम्मद रजा शाह पहलवी ने श्वेत क्रांति का एलान किया. ये ऐसे आर्थिक और सामाजिक सुधार थे, जो ईरान के परंपरागत समाज को पश्चिमी मूल्यों की तरफ ले जाते थे. इनका विरोध होने लगा.
तस्वीर: picture-alliance/akg-images/H. Vassal
शाह के शाही ख्बाव
1973 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दामों में भारी गिरावट आई. इससे ईरान की आमदनी चरमरा गई. लोग संकट में फंसे थे और शाह श्वेत क्रांति के सफल होने के ख्बावों में. इसी दौरान मौलवियों के एक धड़े ने श्वेत क्रांति को इस्लाम पर चोट करार दिया.
तस्वीर: fanous.com
लोग जुटते गए
सितंबर 1978 में ईरान में मोहम्मद रजा शाह पहलवी के खिलाफ प्रदर्शन भड़क उठे. धीरे धीरे मौलवियों के समूह ने प्रदर्शनों का नेतृत्व संभाल लिया. मौलवियों को फ्रांस में रह रहे अयातोल्लाह खोमैनी से निर्देश मिल रहे थे.
तस्वीर: fanous.com
अमेरिका की कठपुतली
लोगों में मोहम्मद रजा शाह की नीतियों के प्रति बहुत आक्रोश था. आलोचक कहते थे कि शाह अमेरिका के इशारों पर नाच रहे थे. लोग इससे खीझ गए थे. शाह ने आक्रोश को शांत करने के बजाए प्रदर्शकारियों को दबाने के लिए मार्शल लॉ लागू कर दिया.
तस्वीर: picture-alliance/akg-images/H. Vassal
खूनी संघर्ष
जनवरी 1979 आते आते पूरे ईरान में हालात बिल्कुल गृह युद्ध जैसे हो गए. प्रदर्शनकारी, निर्वासन में रह रहे अयातोल्लाह खोमैनी की वापसी की मांग कर रहे थे. उस समय सेना उन पर गोलियां चला रही थी.
तस्वीर: akairan.com
भाग गए शाह
हालात बेकाबू हो गए. शाह को परिवार समेत ईरान से भागना पड़ा. लेकिन भागने से पहले शाह विपक्षी नेता शापोर बख्तियार को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त कर गए.
तस्वीर: akairan.com
खोमैनी की वापसी
शापोर बख्तियार ने अयातोल्ला खोमैनी को ईरान वापस लौटने की इजाजत दे दी. लेकिन उन्होंने यह शर्त रखी कि प्रधानमंत्री वही रहेंगे.
तस्वीर: bachehayeghalam.ir
लौट आए खोमैनी
बख्तियार से ग्रीन सिग्नल मिलते ही अयातोल्लाह खोमैनी ने 14 साल बाद फ्रांस के निर्वासन से देश वापस लौटने का एलान किया. यह तस्वीर 11 फरवरी 1979 को छपे कायहान अखबार की है.
तस्वीर: bachehayeghalam.ir
तेहरान में स्वागत
12 फरवरी 1979 को खोमैनी एयर फ्रांस की फ्लाइट में सवार होकर पेरिस से तेहरान के लिए निकले. विमान जब तेहरान में लैंड हुआ तो क्रांतिकारी धड़े के नेताओं ने खोमैनी का जोरदार स्वागत किया.
तस्वीर: akairan.com
खोमैनी का सीधा दखल
तेहरान में लोगों को संबोधित करते हुए खोमैनी ने कहा, "मैं सरकार का गठन करुंगा." तेहरान के बेहशत ए जाहरा में उनका भाषण को सुनने के लिए एक लाख से ज्यादा लोग जमा हुए थे.
तस्वीर: atraknews.com
समानान्तर सत्ता
खोमैनी ने लोगों से बख्तियार सरकार के खिलाफ प्रदर्शन जारी रखने की अपील की. इसी बीच 16 फरवरी को खोमैनी ने मेहदी बाजारगान को अंतरिम सरकार का नया प्रधानमंत्री घोषित कर दिया.
तस्वीर: akairan.com
प्रदर्शन का इस्लामीकरण
ईरान में दो प्रधानमंत्री हो गए. एक बख्तियार और दूसरे बाजारगान. बाजारगान के पीछे खोमैनी के साथ साथ बड़ा जन समर्थन था. धीरे धीरे खोमैनी ने प्रदर्शन को धार्मिक रंग दे दिया.
तस्वीर: akairan.com
सेना में फूट
इसी बीच खबर आई कि ईरान की वायुसेना खोमैनी के समर्थन में उतर गई है. 19 फरवरी 1979 को कायहान अखबार की इस तस्वीर में वायु सैनिक खोमैनी को सलाम करते दिख रहे हैं.
तस्वीर: Mehr
आपस में भिड़े सैनिक
20 फरवरी को तेहरान में एक निर्णायक घटना हुई. शाह के प्रति वफादारी दिखाने वाले इंपीरियल गार्ड के सैनिकों ने एयरफोर्स डिफेंस ट्रूप्स पर हमला कर दिया.
तस्वीर: akairan.com
ढह गया पुराना ढांचा
इसके बाद मार्च तक हिंसक झड़पें चलती रही. धीरे धीरे सेना भी हथियारबंद विद्रोहियों के साथ इमाम खोमैनी के समर्थन में झुकती चली गई.
तस्वीर: akairan.com
इस्लामिक ईरान के सर्वेसर्वा
अप्रैल 1979 में एक जनमत संग्रह के बाद इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान का एलान किया गया. सरकार चुनी गई और खोमैनी को देश का सर्वोच्च धार्मिक नेता घोषित किया गया. खोमैनी के उत्तराधिकारी अयातोल्लाह खमेनेई आज भी इसी भूमिका में हर सरकार से ऊपर हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/V. Salemi
16 तस्वीरें1 | 16
दूसरा मामला केवल 19 साल की फातिमा का था जिसे उसके पति ने मार डाला था. यह पति रिश्ते में उसका चचेरा भाई लगता था और उसके साथ महिला की शादी जबरन कराई गई थी. पति की बदसलूकी से परेशान होने के बाद महिला घर से भागकर एक महीने से किसी शेल्टर होम में रही थी, जिसके बाद इस आदमी ने उसे मौत के घाट उतार दिया और फिर चाकू लेकर खुद ही पुलिस के पास चला गया. तीसरा मामला 22 साल की रेहाना का था, जिसे उसके पिता ने इसलिए जान से मार डाला क्योंकि वह देर से घर लौटी थी.
ईरानी शासन का कैसा रवैया
ईरान की इस्लामी सरकार नहीं चाहती कि इन घटनाओं का संबंध देश में इस अपराध के लिए सजा के हल्का होने से जोड़ा जाए. देश भर के राजनीतिक मंचों और सोशल मीडिया पर तथाकथित सम्मान के नाम पर की जाने वाली ऐसी हिंसा की आलोचना देखने को मिली है. यही कारण है कि देश के सर्वोच्च नेता खमेनेई के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से जारी बयान में उनके हवाले से लिखा है कि उन लोगों का मजबूती से मुकाबला किया जाना चाहिए जो "महिलाओं का अपमान अपना हक मानते हैं."
ईरान के इस्लामिक कानून में सुधारों की मांग को लेकर कई नागरिक अधिकार कार्यकर्ता काम करते आए हैं. उनकी मांग रही है कि किसी के खून के लिए हर खूनी को एक जैसी सजा मिलनी चाहिए. घरेलू हिंसा को अपराध का दर्जा दिए जाने के कानून सुधार करने की तैयारी आठ साल से चल रही है लेकिन अब तक उस पर सहमति नहीं बनी है.
शरिया कानून पर बहस के लिए नहीं तैयार
हत्याओं की इस ताजा श्रृंखला में सबसे पहले बड़े मामले पर छिड़ी देशव्यापी चर्चा के बाद जल्दी जल्दी में देश में वो कानून पास किया गया जो पिछले 11 साल से लटका था. यह कानून बच्चों के अधिकारों से जुड़ा था जिसे लेकर ईरानी संसद की ताकतवर और संकीर्ण सोच वाली गार्डियन काउंसिल और दूसरे सुधारवादी धड़े के बीच सहमति नहीं बन पाई थी. लेकिन हत्याकांड के बाद बने दबाव के कारण पास हुए इस कानून में भी वो शर्त नहीं बदली जा सकी कि बच्चों को जान से मारने वाले पिता को आम खूनी की तरह सजा नहीं दी जाएगी. इसका कारण यह है कि यह इस्लामिक शरिया कानून से निकली व्याख्या है जिस पर अब भी सरकार बहस के लिए तैयार नहीं है.
विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसी हत्याओं की जड़ें उस गहरी पितृसत्तात्मक सोच से निकलती हैं जो महिलाओं को अपने से कमतर और उसके साथ अन्याय को आम मानता है. कई सदियों से ईरानी समाज ऐसी बीमार सोच की गिरफ्त में रहा है जिसे सुधारने के लिए ना केवल महिलाओं की हत्या जैसे जुर्म के लिए उनके रिश्तेदारों को भी कड़ी से कड़ी सजा दिलाने वाला कानून बनाना होगा बल्कि समाज में बड़े स्तर पर कई सालों तक लगातार जागरूकता अभियान चलाने होंगे.
घूंघट, बुर्का, नकाब या हिजाब - इनके कई अलग नाम और अंदाज हैं. ऐसे पर्दों से अपने व्यक्तित्व को ढकने को दासता का प्रतीक मानें या केवल एक फैशन एक्सेसरी, यहां देखिए दुनिया भर के चलन.
तस्वीर: Getty Images/C.Alvarez
ईरान में प्रचलित हिजाब
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Mehri
मलेशिया का हिजाब 'टुडोंग'
तस्वीर: Getty Images/AFP/S.Khan
इराक में पूरा ढकने वाला पर्दा
तस्वीर: Getty Images/D.Furst
तुर्की में प्रचलित इस्लामी हेडस्कार्फ
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Altan
फलस्तीन के सुरक्षा दस्ते में शामिल महिलाएं
तस्वीर: Getty Images/AFP/M.Abed
भारतीय महिलाओं का दुपट्टा
तस्वीर: Getty Images/AFP/S.Jaiswal
लेबनान की मारोनीट ईसाई महिलाओं का सिर ढकने का अंदाज