इराक की राजधानी बगदाद में सरकार के विरोध में सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच हुई हिंसक झड़पों के बाद गोलीबारी में तीन प्रदर्शनकारियों की मौत हो चुकी है, जबकि दर्जनों घायल बताए जा रहे हैं.
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इराक में सरकार विरोधी प्रदर्शन फिर तेज हो गए हैं. सोमवार रात को सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच तीखी झड़प हुई. इराकी सुरक्षा बलों ने प्रदर्शनकारियों को तितर बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे और फायरिंग की. इससे पहले अक्टूबर में सरकार विरोध बड़े प्रदर्शन हुए थे. लेकिन अमेरिकी हवाई हमले में ईरानी कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की मौत के बाद प्रदर्शन फिर सड़कों पर लौट आए हैं.
राजधानी बगदाद में हिंसक झड़पों के बाद अधिकारियों ने शहर के कई इलाकों को बंद कर दिया है. सिनक ब्रिज और टायरान स्क्वायर के पास जुटे प्रदर्शनकारियों को तितर बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले और गोलीबारी की गई. इसकी पुष्टि चिकित्सा और सुरक्षा अधिकारियों ने की है.
प्रदर्शन के दौरान सुरक्षा बलों की कार्रवाई में दो लोग मारे गए जबकि तीसरे प्रदर्शनकारी की मौत इलाज के दौरान हुई. विरोध प्रदर्शन की कवरेज कर रहे 21 साल के पत्रकार युसूफ सत्तार भी मृतकों में शामिल हैं.
ग्रीन जोन में धमाका
इस बीच, इराक की राजधानी के उच्च सुरक्षा वाले ग्रीन जोन में अमेरिकी दूतावास के पास दो रॉकेट दागे गए. सुरक्षा सूत्रों और चश्मदीदों के मुताबिक रॉकेट हमले से हुए धमाके में किसी के हताहत होने की खबर नहीं है. रॉकेट हमले के फौरन बाद इलाके में सायरन की आवाज सुनाई दी लेकिन इस हमले से जान-माल के नुकसान की फिलहाल कोई सूचना नहीं है.
जनरल कासिम सुलेमानी की मौत के बाद से अमेरिकी दूतावास को निशाना बनाकर रॉकेट हमले किए जा रहे हैं. पहले की तरह हुए रॉकेट हमले की तरह इस हमले के पीछे किसका हाथ है, यह अब तक पता नहीं चल पाया है.
एए/ (रॉयटर्स, एएफपी, एपी)
2019 : विरोध प्रदर्शनों का साल
दुनिया के अलग अलग हिस्सों में 2019 के दौरान करोड़ों लोग सड़कों पर उतरे. कहीं उन्होंने लोकतंत्र के लिए नारे बुलंद किए तो कहीं धार्मिक आधार पर भेदभाव का विरोध किया. कोई अपनी सरकार से नाखुश था तो किसी को भविष्य की चिंता थी.
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हांगकांग की स्थिरता को झटका
हांगकांग के प्रदर्शनों ने इस साल चीन की नाक में खूब दम किया. इनकी शुरुआत उस बिल से हुई जिसके जरिए हांगकांग से भगोड़े लोगों को चीन की मुख्य भूमि पर प्रत्यर्पित किया जा सकेगा. बिल तो वापस ले लिया गया है लेकिन लोकतंत्र के समर्थन में वहां प्रदर्शनों का सिलसिला जारी है. प्रदर्शनों में बल प्रयोग को लेकर दुनिया भर में चीन की आलोचना भी हुई.
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पर्यावरण के लिए
स्वीडन की संसद के सामने एक लड़की के प्रदर्शन ने 2019 में एक बड़े आंदोलन को जन्म दिया. ग्रेटा थुनबर्ग से प्रेरणा लेकर दुनिया भर के स्कूली बच्चों ने पर्यावरण की रक्षा के लिए 'फ्राइडे फॉर फ्यूचर' मार्च निकाले. जर्मनी समेत लगभग 150 देशों में साढ़े चार हजार से ज्यादा प्रदर्शन हुए. ग्रेटा की मुहिम को देखते हुए कई सरकारों ने जलवायु संकट की घोषणा भी की.
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धार्मिक भेदभाव के खिलाफ प्रदर्शन
भारत में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ कई हिस्सों में बड़े विरोध प्रदर्शन हुए. यह कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले गैर मुस्लिम लोगों को भारत में आने पर नागरिकता देने की वकालत करता है. आलोचकों का कहना है कि यह कानून धर्म के आधार भेदभाव करता है जिसकी संविधान में इजाजत नहीं है. प्रदर्शनों के दौरान कई लोग मारे गए.
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सद्दाम का दौर ही बेहतर था
अक्टूबर के महीने में इराक में लोग बड़ी संख्या में सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरे. इस दौरान हिंसा में 460 लोग मारे गए जबकि 25 हजार से ज्यादा घायल हुए. भ्रष्टाचार, बरोजगारी और देश की सरकार पर ईरान के प्रभाव से नाराज लोगों के रोष को देखते हुए प्रधानमंत्री अदिल अब्दुल माहिल ने इस्तीफा दे दिया. कई लोग आज इराकी तानाशाह सद्दाम के दौर को बेहतर बता रहे हैं.
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बेरुत में भी बवाल
लेबनान में सरकार के खिलाफ अक्टूबर में बड़े प्रदर्शन हुए. लोग गैसोलीन, तंबाकू और यहां तक कि व्हाट्सऐप फोन कॉल पर भी टैक्स बढ़ाने जाने से नाराज थे. बाद में प्रदर्शनों ने सरकारी भ्रष्टाचार और घटते जीवनस्तर के खिलाफ रोष का रूप ले दिया. प्रधानमंत्री साद हरीरी के इस्तीफे के बावजूद प्रदर्शनकारियों ने अंतरिम प्रधानमंत्री से मिलने से इनकार कर दिया. वे बड़े स्तर पर बदलावों की मांग कर रहे हैं.
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ईरान रहा हफ्तों तक ठप
ईरान में नवंबर के महीने में जब गैसोलीन के दामों में जब 50 प्रतिशत की वृद्धि कर दी गई तो कई शहरों में लोगों ने जमकर विरोध किया. कई शहरों में लगभग दो लाख लोग सड़कों पर उतरे. सरकार ने बलपूर्वक विरोध को दबाने की कोशिश की. अमेरिका का कहना है कि इस दौरान एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए और यह 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से देश में सबसे बड़ी हिंसा है.
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सूडान में क्रांति किस काम की
अफ्रीकी देश सूडान में महीनों तक चले विरोध प्रदर्शनों के बाद दशकों से सत्ता में जमे ओमर अल बशीर को अप्रैल में सत्ता छोड़नी पड़ी. इसके बाद देश में सत्ता संघर्ष शुरू हो गया. सेना और लोकतंत्र समर्थक पार्टियां, दोनों सत्ता पर कब्जा करने में जुटी हैं. इस दौरान देश में फैली अशांति में दर्जनों लोग मारे गए हैं. अगस्त में दोनों पक्षों ने अंतरिम सरकार बनाने के लिए एक संवैधानिक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए.
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लातिन अमेरिका में असंतोष
चिली में लगभग दो महीने पहले प्रदर्शन हुए. देश के राजनीतिक और आर्थिक सिस्टम से मायूस लोगों ने सड़कों पर उतरने का फैसला किया. प्रदर्शनकारी स्वास्थ्य, पेंशन और शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलावों की मांग कर रहे हैं. 2019 में बोलिविया, होंडुरास और वेनेजुएला जैसे कई लातिन अमेरिकी देशों में भी प्रदर्शन हुए. मई में वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो को हटाने की कोशिश भी हुई.
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फ्रांस में सब कुछ ठप
फ्रांस में येलो वेस्ट प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों के लिए खूब सिरदर्द बने. 2018 की आखिरी दिनों में प्रस्तावित टैक्स वृद्धि के विरोध में इन प्रदर्शनों की शुरुआत हुई. बाद में सरकार की नीतियों से नाराज अन्य लोग भी इनका हिस्सा बन गए. लेकिन दिसंबर आते आते फ्रांस के लोग फिर सड़कों पर दिखे, इस बार माक्रों के पेंशन सुधारों के खिलाफ.
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आजादी की आस
स्पेन की सुप्रीम कोर्ट ने जब नौ कैटेलान नेताओं को कैद की सजा सुनाई तो प्रांतीय राजधानी बार्सिलोना में नए सिरे से प्रदर्शन शुरू हो गए. एक समय इनमें हिस्सा लेने वाले लोगों की तादाद पांच लाख तक पहुंच गई. इस दौरान लगातार छह रातों तक हिंसा की घटनाएं देखने को मिलीं. इस दौरान आम हड़ताल भी हुई, जिससे यातायात, कार उत्पादन और फुटबॉल मैच तक को रोकना पड़ा.