क्या भूटान को भारत का सहयोगी होने की कीमत चुकानी पड़ रही है? क्या इसी वजह से चीन ने उसके साथ सीमा विवाद का नया राग छेड़ा है?
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कम से कम इस पर्वतीय देश के लोगों के मन में तो धीरे-धीरे यही धारणा बन रही है. कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षक भी ऐसा ही मानते हैं. हालांकि इसके बावजूद लोग भारत के साथ रिश्तों की मजबूती के ही पक्षधर हैं. भूटान सरकार ने अब तक ऐसा कुछ नहीं कहा है. उल्टे हाल में उसने भारत के साथ 600 मेगावाट की एक पनबिजली परियोजना के लिए करार पर हस्ताक्षर किया है. इसके अलावा अब भारत ने अरुणाचल प्रदेश से सटे भूटान के उसी इलाके से होकर एक वैकल्पिक सड़क बनाने का प्रस्ताव दिया है जिसे विवादित क्षेत्र बताते हुए चीन ने अपना दावा ठोका है.
भूटान के राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीन की ओर से पूर्वी सीमा पर शुरू किए विवाद का भारत के साथ उसके रिश्तों का सीधा संबंध है. भूटान में आम लोग ताजा सीमा विवाद पर सार्वजनिक रूप से चर्चा करने से बचते हैं. ज्यादातर लोग अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर ही बात करते हैं. एक पर्यवेक्षक ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा, "हमारे देश को जबरन इस विवाद में घसीटा जा रहा है. पूर्वी सीमा पर तो कभी कोई विवाद था ही नहीं. हमें भारत के साथ अपने नजदीकी संबंधों का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.” सेंटर फॉर भूटान एंड ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस स्टडीज के प्रमुख दोर्जी पेंजोर ने हाल में सिक्योरिटी ऑफ भूटान - वॉकिंग बिटवीन द जॉइंट्स शीर्षक अपने लेख में कहा है कि चीन के साथ भूटान का सीमा विवाद कोई मुद्दा नहीं है. दरअसल भारत का सहयोगी होने की वजह से ही यह देश चीन के निशाने पर है.
रायल थिम्पू कॉलेज में पढ़ाने वाले रबिलाल ढाकाल भी यही बात कहते हैं, "भूटान लंबे अरसे से भारत और चीन के आपसी विवाद का शिकार होता रहा है. भूटान में और चीन के साथ लगी उसकी सीमा पर भारतीय सेना की मौजूदगी पर चीन को हमेशा आपत्ति रही है.” उनका कहना है कि डोकलाम विवाद के समय भारतीय मीडिया के एक हिस्से ने दावा किया था कि भारतीय सेना सिक्किम में है जबकि वह असल में भूटान में थी. इससे चीन और चिढ़ गया. ढाकाल कहते हैं, "भारत और चीन के आपसी रिश्तों में कटुता की वजह से ही हमारे सामने नया सीमा विवाद पैदा हुआ है. अगर उन दोनों के रिश्ते सुधर जाते हैं, तो चीन के साथ हमें कोई दिक्कत नहीं रहेगी.”
भूटान के नागरिकों का एक तबका चीन के साथ ताजा सीमा विवाद को लेकर ज्यादा परेशान नहीं हैं. स्थानीय मीडिया में इस मुद्दे पर कुछ खास नहीं छप रहा है. ढाकाल कहते हैं, "भारतीय मीडिया में छपने वाली खबरों पर देश के लोगों को खास भरोसा नहीं है. इसके अलावा उनको अपने राजा पर पूरा भरोसा है कि वे इस विवाद को आसानी से सुलझा लेंगे. लेकिन भारतीय मीडिया में छपने वाली खबरों से एक तबका जरूर परेशान है.” भूटान के वरिष्ठ पत्रकार नामग्ये जाम कहते हैं, "भारत और चीन के दो पाटों के बीच फंसना आम लोगों के लिए तनावपूर्ण है. भूटान पारंपरिक तौर पर भारत का सहयोगी रहा है. लेकिन भारतीय मीडिया में तमाम किस्म की कहानियां छप रही हैं. उनमें से कुछ में तो यह आरोप भी लगाए गए हैं कि नेपाल की तरह भूटान भी चीन का समर्थन कर रहा है. इससे लोगों में कुछ चिंता है.”
इन देशों के हैं सबसे ज्यादा पड़ोसी देश
पड़ोसी देश मतलब वो देश जिनसे किसी देश की सीमा लगती है. भारत की सीमा सात देशों से लगती है. ये पड़ोसी देश बांग्लादेश, चीन, पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, भूटान और अफगानिस्तान हैं. देखिए सबसे ज्यादा पड़ोसी किन देशों के हैं.
जाम्बिया
अफ्रीकी देश जाम्बिया 11वां सबसे ज्यादा पड़ोसियों वाला देश है. जाम्बिया की सीमा डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, अंगोला, मलावी, मोजांबिक, तंजानिया, नामीबिया, जिम्बाब्वे और बोतस्वाना से मिलती है.
तस्वीर: DW/C.Mwakideu
तुर्की
तुर्की 10वां सबसे ज्यादा पड़ोसियों वाला देश है. तुर्की की सीमा अर्मेनिया, जॉर्जिया, ईरान, इराक, सीरिया, अजरबैजान, बुल्गारिया और ग्रीस से लगती है. तुर्की के आठ पड़ोसी देश हैं जिनके साथ 2,648 किलोमीटर की सीमा लगती है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Altan
तंजानिया
अफ्रीकी देश तंजानिया नवां सबसे ज्यादा पड़ोसियों वाला देश है. तंजानिया की सीमा केन्या, बुरुंडी, युगांडा, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, जांबिया, मलावी, मोजांबिक और रवांडा से लगती है. आठ पड़ोसी देशों से तंजानिया की 3,861 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है.
तस्वीर: DW/N. Quarmyne
सर्बिया
सर्बिया की सीमा रोमानिया, हंगरी, क्रोएशिया, बोस्निया और हरजेगोवनिया, मेसेडोनिया, बुल्गारिया, कोसोवो, और मॉन्टेनेग्रो से लगती है. नौ पड़ोसी देशों वाले सर्बिया की सीमा 2,027 किलोमीटर लंबी है. सबसे ज्यादा पड़ोसियों के मामले में ये आठवें नंबर पर है.
तस्वीर: Reuters/M. Djurica
फ्रांस
फ्रांस के पड़ोसी देशों में बेल्जियम, जर्मनी, स्विटजरलैंड, इटली, स्पेन, अंडोरा, लक्जमबर्ग, मोनाको और ब्रिटेन में शामिल हैं. इन आठ पड़ोसी देशों के साथ फ्रांस की 623 किलोमीटर लंबी सीमा है. ब्रिटेन के साथ फ्रांस की जल सीमा है. सबसे ज्यादा पड़ोसियों के मामले में ये सातवें नंबर पर है.
तस्वीर: Reuters/B. Tessier
ऑस्ट्रिया
ऑस्ट्रिया के भी आठ पड़ोसी देश हैं. इनमें हंगरी, स्लोवाकिया, चेक रिपब्लिक, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, इटली, लिश्टेनश्टाइन और स्लोवेनिया शामिल हैं. ऑस्ट्रिया की सीमा 2,562 किलोमीटर की है. सबसे ज्यादा पड़ोसियों के मामले में ये छठे नंबर पर है.
तस्वीर: Imago Images/Xinhua/Guo Chen
जर्मनी
जर्मनी के सभी नौ पड़ोसी देशों के नाम नीदरलैंड्स, बेल्जियम, फ्रांस, स्विटजरलैंड, ऑस्ट्रिया, चेक रिपब्लिक, पोलैंड, डेनमार्क और लक्जमबर्ग हैं. जर्मनी की सबसे सीमा चेक रिपब्लिक के साथ लगी है, जो 815 किलोमीटर लंबी है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/Y. Tang
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो
सबसे ज्यादा पड़ोसी देशों के मामले में चौथे स्थान पर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो है. इसके पड़ोसी बुरुंडी, रवांडा, युगांडा, दक्षिण सूडान, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, कॉन्गो रिपब्लिक, अंगोला, जाम्बिया और तंजानिया हैं. इसकी सीमा की लंबाई 2410 किलोमीटर है.
तस्वीर: AFP
ब्राजील
सबसे ज्यादा पड़ोसियों के मामले में ब्राजील तीसरे स्थान पर है. ब्राजील के 10 पड़ोसी देश हैं जिनमें सूरीनाम, गुएना, फ्रेंच गुएना, वेनेजुएला, कोलंबिया, पेरू, बोलिविया, उरुग्वे, पैराग्वे और अर्जेंटीना शामिल हैं. ब्राजील की सीमा 14,691 किलोमीटर लंबी है.
तस्वीर: AFP/D. Ramalho
रूस
रूस के कुल 14 पड़ोसी हैं. इनमें 12 रूस की मुख्यभूमि और दो पड़ोसी मुख्यभूमि के दूर के एक इलाके के हैं. मुख्यभूमि के पड़ोसी फिनलैंड, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, बेलारूस, यूक्रेन, जॉर्जिया, अजरबैजान, कजाखस्तान, चीन, मंगोलिया, उत्तरी कोरिया और नॉर्वे हैं. वहीं दो और पड़ोसियों लिथुआनिया और पोलैंड के बीच रूस का कलिनिन्ग्राद का इलाका है. रूस की सीमा 20,241 किलोमीटर लंबी है.
तस्वीर: Reuters/S. Zhumatov
चीन
सबसे ज्यादा पड़ोसी देश चीन के हैं. चीन की सीमा 14 देशों से लगती है. इनमें भारत, मंगोलिया, कजाखस्तान, उत्तरी कोरिया, रूस, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, म्यांमार, लाओस और वियतनाम शामिल हैं. इसके अलावा चीन के दो स्वायत्त इलाके हांगकांग और मकाउ भी उसके पड़ोसी हैं. चीन की थल सीमा की कुल लंबाई 22,117 किलोमीटर है.
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भारतीय सीमा पर स्थित जयगांव से सटे फुंत्शोलिंग में एक व्यापारी नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "भूटान शुरू से ही शांतिप्रिय देश रहा है. लेकिन अब भारत पर दबाव बढ़ाने के लिए ही चीन सीमा पर नया विवाद खड़ा करने की कोशिश कर रहा है. हम अब कोई विवाद नहीं चाहते. लेकिन सरकार चीन की धमकियों से भी नहीं डरेगी.”
चीन-भूटान सीमा के कथित विवादित क्षेत्र से होकर सड़क बनाने के भारत के प्रस्ताव ने भी आम लोगों की चिंता कुछ बढ़ाई है. उनको लगता है कि इससे नाराज होकर चीन दबाव बढ़ा सकता है. दरअसल, भारत ने भूटान के ट्रासीगांग जिले में स्थित साकटेंग वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी से होकर असम और अरुणाचल प्रदेश स्थित तवांग को जोड़ने के लिए सड़क बनाने की योजना बनाई है. यह वही येती क्षेत्र है जिस पर चीन ने हाल में अपना दावा ठोका था. बॉर्डर रोड्स आर्गानाइजेशन (बीआरओ) की यह योजना पहली नहीं है. लेकिन यह परियोजना सामरिक रूप से बेहद अहम है.
इसकी तैयार हो जाने पर असम की राजधानी गुवाहाटी और तावांग के बीच की दूरी लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर कम हो जाएगी. इसके जरिए भारतीय फौज आसानी से चीन से लगी सीमा तक पहुंच सकती है. फिलहाल कोई वैकल्पिक रूट नहीं होने के कारण भारतीय जवानों को असम से तवांग जाने के लिए सेला दर्रे से होकर गुजरना पड़ता है. जाड़े के दिनो में भारी बर्फबारी की वजह से इस सड़क पर आवाजाही बेहद मुश्किल हो जाती है.
दूसरी ओर, भूटान के लिए भी यह परियोजना अहम है. वह इसके जरिए इस क्षेत्र पर चीन के दावे और अतिक्रमण की कोशिशों का मुकाबला कर सकता है. चीन के साथ बढ़ते सीमा विवाद के बीच ही भारत ने भूटान से संबंधों को मजबूती देने के लिए हाल में संयुक्त उपक्रम के तहत 600 मेगावाट क्षमता वाली खोलोंगछू पनबिजली परियोजना के लिए एक करार पर भी हस्ताक्षर किया है.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि सीमा विवाद छेड़ने की टाइमिंग से साफ है कि चीन भूटान की बांह उमेठने का प्रयास कर रहा है. उसका निशाना दरअसल भारत है. भूटान को तो उसका सहयोगी होने का खामियाजा भरना पड़ रहा है. लेकिन बावजूद इसके देश के लोग भारत के साथ रिश्ते और मजबूत करने के पक्षधर हैं. एक पर्यवेक्षक बीके दहाल कहते हैं, "भारत हमारा पारंपरिक शुभचिंतक रहा है. हमें हर मुद्दे पर उससे सहायता मिलती रही है. ऐसे में चीन के मंसूबे पूरे नहीं होंगे.”
जंगलों-पहाड़ों से घिरे भूटान में बढ़ रही हैं गाड़ियां
पिछले दो दशकों में भूटान की सड़कों पर चलने वाली कारों, बसों और ट्रकों की संख्या में पांच गुना तक का इजाफा हुआ है. गाड़ियों की बढ़ती संख्या ने पर्यावरण पर लोगों की चिंता बढ़ा दी है. हालांकि समस्या इसके अलावा और भी हैं.
तस्वीर: DW/M. M. Rahman
कारों का असर
दुनिया को हैप्पीनेस इंडेक्स मतलब प्रसन्नता सूचकांक का सूत्र देने वाला भूटान अपने सतत विकास के लिए जाना जाता रहा है. लेकिन तेजी से होती कारों की बिक्री पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है. जानकार मान रहे हैं कि आम लोगों का कार प्रेम देश में कार्बन उत्सर्जन को कम करने वाले प्रयासों को प्रभावित कर सकते हैं.
तस्वीर: DW/M. M. Rahman
ट्रैफिक जाम की समस्या
पहाड़ों से घिरे भूटान में कोई टैफिक लाइट नहीं है. गाड़ियों को पार्क करने के लिए पर्याप्त जगहें भी नहीं बनाई गई. ऐसे में गाड़ियों की संख्या बढ़ने की वजह से ट्रैफिक जाम की समस्या देश में आम हो गई है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/U. Dahal
हर सात व्यक्ति पर एक कार
विश्व बैंक के अनुसार, पिछले दशक में प्रत्येक वर्ष भूटान की अर्थव्यवस्था 7.5 प्रतिशत बढ़ी है. भूटान की आबादी लगभग 7.50 लाख है. अधिकारियों का अनुमान है कि भूटान में हर सात लोगों पर अब एक कार है.
तस्वीर: DW/M. M. Rahman
नहीं मालूम नियम कायदे
भूटान में गलियां काफी संकरी है और सड़कें काफी पुरानी. साथ ही बुनियादी ढांचे की कमी है. लोगों को गाड़ी चलाने के नियम-कानून भी नहीं मालूम हैं. स्थिति ये है कि कुछ लोग बीच सड़क पर अपनी कारों को छोड़ देते हैं. इन सब वजहों से यहां समस्या बढ़ रही है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/U. Dahal
गाड़ियों में सुबह का नाश्ता
आबादी के साथ-साथ गाड़ियों की संख्या बढ़ने का असर ये हुआ है कि पहले सुबह में जहां पांच मिनट के लिए जाम लगता था, अब यह बढ़कर आधा घंटा पहुंच गया है. लोग समय बचाने के लिए गाड़ियों में सुबह का नाश्ता करने लगे हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/U. Dahal
पहली बार बहुमंजिला कार पार्किंग
भीड़ को व्यवस्थित करने के लिए राजधानी थिंपू में पहली बार दो बहुमंजिला कार पार्किंग का निर्माण किया जा रहा है. प्रत्येक में लगभग 600 कारों के लिए जगह है. राष्ट्रीय पर्यावरण आयोग का कहना है कि ट्रैफिक जाम और वाहनों की संख्या में वृद्धि के बावजूद भूटान कार्बन नकारात्मक देश है, लेकिन हालातों को बिगड़ने से पहले ही रोकना है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/U. Dahal
बढ़ती ग्रीनहाउस गैस
भूटान में ग्रीन हाउस गैस मुख्य रूप से गायों से निकलने वाले मीथेन, फसलों के जलने और अन्य कृषि गतिविधियों से वातावरण में जाती थी. हालांकि पिछले कुछ समय से ग्रीन हाउस गैस कार और कारखानों से भी निकलने लगी है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Henley
70 फीसदी जंगल
भूटान का दावा है कि जितना कार्बन वे छोड़ते हैं, उससे अधिक अवशोषित करते हैं. भूटान का संविधान कहता है कि देश का कम से कम 60 प्रतिशत हिस्सा जंगल का होना चाहिए. हालांकि वर्तमान में देश का 70 प्रतिशत फीसदी हिस्सा जंगलों से ढका है. (स्रोत-एएफपी)