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भारत-चीन विवाद में फंसा भूटान

प्रभाकर मणि तिवारी
१६ जुलाई २०२०

क्या भूटान को भारत का सहयोगी होने की कीमत चुकानी पड़ रही है? क्या इसी वजह से चीन ने उसके साथ सीमा विवाद का नया राग छेड़ा है?

Massentourismus Bhutan
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Henley

कम से कम इस पर्वतीय देश के लोगों के मन में तो धीरे-धीरे यही धारणा बन रही है. कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षक भी ऐसा ही मानते हैं. हालांकि इसके बावजूद लोग भारत के साथ रिश्तों की मजबूती के ही पक्षधर हैं. भूटान सरकार ने अब तक ऐसा कुछ नहीं कहा है. उल्टे हाल में उसने भारत के साथ 600 मेगावाट की एक पनबिजली परियोजना के लिए करार पर हस्ताक्षर किया है. इसके अलावा अब भारत ने अरुणाचल प्रदेश से सटे भूटान के उसी इलाके से होकर एक वैकल्पिक सड़क बनाने का प्रस्ताव दिया है जिसे विवादित क्षेत्र बताते हुए चीन ने अपना दावा ठोका है.

भूटान के राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीन की ओर से पूर्वी सीमा पर शुरू किए विवाद का भारत के साथ उसके रिश्तों का सीधा संबंध है. भूटान में आम लोग ताजा सीमा विवाद पर सार्वजनिक रूप से चर्चा करने से बचते हैं. ज्यादातर लोग अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर ही बात करते हैं. एक पर्यवेक्षक ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा, "हमारे देश को जबरन इस विवाद में घसीटा जा रहा है. पूर्वी सीमा पर तो कभी कोई विवाद था ही नहीं. हमें भारत के साथ अपने नजदीकी संबंधों का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.” सेंटर फॉर भूटान एंड ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस स्टडीज के प्रमुख दोर्जी पेंजोर ने हाल में सिक्योरिटी ऑफ भूटान - वॉकिंग बिटवीन द जॉइंट्स शीर्षक अपने लेख में कहा है कि चीन के साथ भूटान का सीमा विवाद कोई मुद्दा नहीं है. दरअसल भारत का सहयोगी होने की वजह से ही यह देश चीन के निशाने पर है.

रायल थिम्पू कॉलेज में पढ़ाने वाले रबिलाल ढाकाल भी यही बात कहते हैं, "भूटान लंबे अरसे से भारत और चीन के आपसी विवाद का शिकार होता रहा है. भूटान में और चीन के साथ लगी उसकी सीमा पर भारतीय सेना की मौजूदगी पर चीन को हमेशा आपत्ति रही है.” उनका कहना है कि डोकलाम विवाद के समय भारतीय मीडिया के एक हिस्से ने दावा किया था कि भारतीय सेना सिक्किम में है जबकि वह असल में भूटान में थी. इससे चीन और चिढ़ गया. ढाकाल कहते हैं, "भारत और चीन के आपसी रिश्तों में कटुता की वजह से ही हमारे सामने नया सीमा विवाद पैदा हुआ है. अगर उन दोनों के रिश्ते सुधर जाते हैं, तो चीन के साथ हमें कोई दिक्कत नहीं रहेगी.”

भूटान के नागरिकों का एक तबका चीन के साथ ताजा सीमा विवाद को लेकर ज्यादा परेशान नहीं हैं. स्थानीय मीडिया में इस मुद्दे पर कुछ खास नहीं छप रहा है. ढाकाल कहते हैं, "भारतीय मीडिया में छपने वाली खबरों पर देश के लोगों को खास भरोसा नहीं है. इसके अलावा उनको अपने राजा पर पूरा भरोसा है कि वे इस विवाद को आसानी से सुलझा लेंगे. लेकिन भारतीय मीडिया में छपने वाली खबरों से एक तबका जरूर परेशान है.” भूटान के वरिष्ठ पत्रकार नामग्ये जाम कहते हैं, "भारत और चीन के दो पाटों के बीच फंसना आम लोगों के लिए तनावपूर्ण है. भूटान पारंपरिक तौर पर भारत का सहयोगी रहा है. लेकिन भारतीय मीडिया में तमाम किस्म की कहानियां छप रही हैं. उनमें से कुछ में तो यह आरोप भी लगाए गए हैं कि नेपाल की तरह भूटान भी चीन का समर्थन कर रहा है. इससे लोगों में कुछ चिंता है.”

भारतीय सीमा पर स्थित जयगांव से सटे फुंत्शोलिंग में एक व्यापारी नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "भूटान शुरू से ही शांतिप्रिय देश रहा है. लेकिन अब भारत पर दबाव बढ़ाने के लिए ही चीन सीमा पर नया विवाद खड़ा करने की कोशिश कर रहा है. हम अब कोई विवाद नहीं चाहते. लेकिन सरकार चीन की धमकियों से भी नहीं डरेगी.”

चीन-भूटान सीमा के कथित विवादित क्षेत्र से होकर सड़क बनाने के भारत के प्रस्ताव ने भी आम लोगों की चिंता कुछ बढ़ाई है. उनको लगता है कि इससे नाराज होकर चीन दबाव बढ़ा सकता है. दरअसल, भारत ने भूटान के ट्रासीगांग जिले में स्थित साकटेंग वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी से होकर असम और अरुणाचल प्रदेश स्थित तवांग को जोड़ने के लिए सड़क बनाने की योजना बनाई है. यह वही येती क्षेत्र है जिस पर चीन ने हाल में अपना दावा ठोका था. बॉर्डर रोड्स आर्गानाइजेशन (बीआरओ) की यह योजना पहली नहीं है. लेकिन यह परियोजना सामरिक रूप से बेहद अहम है.

इसकी तैयार हो जाने पर असम की राजधानी गुवाहाटी और तावांग के बीच की दूरी लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर कम हो जाएगी. इसके जरिए भारतीय फौज आसानी से चीन से लगी सीमा तक पहुंच सकती है. फिलहाल कोई वैकल्पिक रूट नहीं होने के कारण भारतीय जवानों को असम से तवांग जाने के लिए सेला दर्रे से होकर गुजरना पड़ता है. जाड़े के दिनो में भारी बर्फबारी की वजह से इस सड़क पर आवाजाही बेहद मुश्किल हो जाती है.

दूसरी ओर, भूटान के लिए भी यह परियोजना अहम है. वह इसके जरिए इस क्षेत्र पर चीन के दावे और अतिक्रमण की कोशिशों का मुकाबला कर सकता है. चीन के साथ बढ़ते सीमा विवाद के बीच ही भारत ने भूटान से संबंधों को मजबूती देने के लिए हाल में संयुक्त उपक्रम के तहत 600 मेगावाट क्षमता वाली खोलोंगछू पनबिजली परियोजना के लिए एक करार पर भी हस्ताक्षर किया है.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि सीमा विवाद छेड़ने की टाइमिंग से साफ है कि चीन भूटान की बांह उमेठने का प्रयास कर रहा है. उसका निशाना दरअसल भारत है. भूटान को तो उसका सहयोगी होने का खामियाजा भरना पड़ रहा है. लेकिन बावजूद इसके देश के लोग भारत के साथ रिश्ते और मजबूत करने के पक्षधर हैं. एक पर्यवेक्षक बीके दहाल कहते हैं, "भारत हमारा पारंपरिक शुभचिंतक रहा है. हमें हर मुद्दे पर उससे सहायता मिलती रही है. ऐसे में चीन के मंसूबे पूरे नहीं होंगे.”

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