रेप बढ़ने के पीछे एक वजह पर्यावरण परिवर्तन भी है. ऐसा दुनियाभर के महिला संगठन बता रहे हैं. हालांकि ऐसा बताने के पीछे एक और मंशा भी बताई जा रही है.
विज्ञापन
पर्यावरण परिवर्तन रेप की वजह? इसका क्या मतलब है? यह कैसे हो सकता है? कार्ला लोपेज ने भी कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया दी थी जब उन्होंने पहली बार यह बात सुनी थी. उन्हें याद है, "मैं ग्वाटेमाला के सांता मारिया जालपान में थी. वहां महिलाओं के एक समूह ने मुझे बताया कि लड़कियों को अगवा कर रेप किया जा रहा है, पानी के संकट के कारण." मध्य अमेरिका में महिलाओं के लिए एक संस्था फोंडो सेंटरोअमेरिकानो डे मुहेर्स चलाने वालीं लोपेज कहती हैं कि मेरे लिए यह एकदम चौंकाने वाली बात थी.
जालपान के जिंका आदिवासियों में पुरुष अक्सर लड़कियों को अगवा कर उनका रेप करते हैं और फिर उनसे विवाह कर लेते हैं. पिछले एक दशक से महिलाएं इस चलन को खत्म करने के लिए आंदोलन चला रही हैं. लेकिन बीते दो साल से चलन में बदलाव हुआ है. इलाके में बढ़ी खदानों और पर्यावरण परिवर्तन के कारण भूजल घटा है. लड़कियों और महिलाओं को पानी लाने के लिए अब दूर तक जाना होता है. स्थानीय महिलाएं बताती हैं कि बीते दो साल में रेप की घटनाएं दोगुनी हो गई हैं.
कोपेनहेगन में वीमिन डिलिवर कॉन्फ्रेंस में लोपेज ने बताया, "महिलाओं का एक समूह हमारे पास आया और बोला कि महिलाओं के लिए पानी उपलब्ध कराने की लड़ाई लड़नी होगी क्योंकि रेप के पीछे बड़ा कारण पानी है. हमने उन्हें 15 हजार डॉलर्स की सहायता दी. यह धन हमने पर्यावरण से जुड़े मुद्दों के लिए रखा था."
करीब 100 महिला संस्थाओं के संगठन वीमिंज एन्वायर्नमेंट ऐंड डिवेलपमेंट ऑर्गनाइजेशन की जूलियाना वालेज बताती हैं कि पूरी दुनिया के महिला संगठन पर्यावरणीय परिवर्तनों के महिलाओं पर पड़ते प्रभावों की बात उठा रहे हैं.
विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसा दो वजहों से है. एक तो पर्यावरण में होने वाले बदलावों के कारण आने वाली कुदरती आपदाओं, विस्थापन और जल संकट आदि के कारण महिलाएं प्रभावित हो रही हैं. और दूसरी वजह 100 अरब डॉलर्स सालाना की वह राशि है जो 2020 तक पर्यावरण परिवर्तन से जुड़े मुद्दों पर काम करने वालों को दी जानी है.
क्यों होते हैं बलात्कार?
भारत में रोजाना औसतन 92 महिलाओं का बलात्कार होता है. जब भी किसी महिला के साथ यह जघन्य अपराध होता है, कभी सवाल उसके कपड़ों तो कभी देर रात घर से बाहर रहने पर उठाए जाते हैं. क्या महिलाओं पर बंदिशें लगाना ही है उपाय?
तस्वीर: Fotolia/Miriam Dörr
तन ढकने की जरूरत
मानव सभ्यता की शुरुआत से ही मौसम की मार से बचने के लिए शरीर को ढकने की जरूरत महसूस की गई. बीतते समय के साथ जानवरों की छाल पहनने से लेकर आज इतने तरह के कपड़े मौजूद हैं. जीवनशैली के आसान होने के साथ साथ कपड़ों के ढंग भी बदले हैं और अब यह अवसर, माहौल, पसंद और फैशन के हिसाब से पहने जाते हैं. फिर पूरे बदन को ढकने वाले कपड़ों पर जोर क्यों?
तस्वीर: Fotolia/Peter Atkins
अंग प्रदर्शन यानि बलात्कारियों को न्यौता
भारत में बलात्कार के ज्यादातर मामलों में पाया गया है कि पीड़िता ने सलवार कमीज और साड़ी जैसे भारतीय कपड़े पहने हुए थे. उनपर हमला करने वाले पुरुषों ने अपनी सेक्स की भूख के कारण संतुलन खो दिया. ऑनर किलिंग के कई मामलों में किसी महिला को सबक सिखाने के मकसद से उस पर जबरन यौन हिंसा की गई और फिर जान से मार डाला गया. इन सबके बीच कपड़ों पर तो किसी का ध्यान नहीं गया.
तस्वीर: DW/K. Keppner
कानून का डर नहीं
संयुक्त राष्ट्र ने 2013 में एशिया प्रशांत क्षेत्र में किए अपने सर्वे में पाया गया कि सर्वे में शामिल हर चार में एक पुरुष ने अपने जीवन में कम से कम एक बार किसी महिला का बलात्कार किया है. इनमें से 72 से लेकर 97 फीसदी मामलों में इन पुरुषों को किसी कानूनी कार्यवाई का सामना नहीं करना पड़ा था.
तस्वीर: DW/P.M. Tewari
मनोरंजन का साधन हैं यौन अपराध
उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ इतने ज्यादा यौन अपराधों का कारण प्रदेश की पुलिस ने वहां मोबाइल फोनों के बढ़ते इस्तेमाल, पश्चिमी देशों के बुरे असर और छोटे कपड़ों को ठहराया. लोगों को सुरक्षा देने की अपनी जिम्मेदारी में पूरी तरह विफल पुलिस का कहना है कि मनोरंजन के बहुत कम साधन होने के कारण पुरुष यौन अपराधों को अंजाम देने लगते हैं.
तस्वीर: Indranil Mukherjee/AFP/Getty Images
महिलाओं से मिल रही है चुनौती
सड़कों, ऑफिसों या किसी सार्वजनिक स्थान पर कई बार महिलाओं के कपड़े नहीं बल्कि उनके चेहरे से झलकता आत्मविश्वास, स्वच्छंद रवैया और अब तक पुरुषों के कब्जे में रहे कई क्षेत्रों में उनकी पहुंच कई पुरुषों को बौखला रही है. सदियों से स्थापित पुरुषसत्तात्मक समाज के समर्थक ऐसी औरतों को सामाजिक संतुलन को बिगाड़ने का जिम्मेदार मानते हैं और यौन हिंसा कर उन्हें समाज में उनकी सही जगह दिखाने की कोशिश करते हैं.
तस्वीर: UNI
महिलाओं को ज्यादा बड़ा खतरा किससे
दुनिया के सबसे युवा देश में आज बलात्कार महिलाओं के खिलाफ चौथा सबसे बड़ा अपराध बन चुका है. नेशनल क्राइम ब्यूरो की 2013 रिपोर्ट बताती है कि साल दर साल दर्ज होने वाले इन करीब 98 फीसदी मामलों में बलात्कारी पीड़ित का जानने वाला था. ज्यादातर मामले जो प्रकाश में आते हैं वे सार्वजनिक जगहों पर अनजान लोगों द्वारा किए गए होते हैं जिस कारण इस सच्चाई पर ध्यान नहीं जाता.
तस्वीर: picture-alliance/AP
एक कदम आगे, दो कदम पीछे
एक ओर पहले के मुकाबले ज्यादा लड़कियां पढ़लिख रही हैं और कार्यक्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं. दूसरी ओर इस कारण वे शादी और बच्चे देर से पैदा कर रही हैं. भारत में शादी के पहले शारीरिक संबंध बनाने के मामले समाज के लिए असहनीय और खतरा बताए जाते हैं. इस कारण बहुत से युवा पुरुष को अपनी यौन इच्छा पूरी करने का कोई स्वस्थ तरीका नहीं मिलता और कई बार यही यौन हिंसा का कारण बनता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हिंसा का चक्र गर्भ से ही शुरु
भारत में अजन्मे बच्चे की लिंग जांच कर मादा भ्रूण को गर्भ में ही मार देने की घटनाएं आम हैं. जो लड़कियां जन्म ले पाती हैं वे संख्या में इतनी कम हैं कि समाज का संतुलन बिगड़ गया है. स्त्री-पुरुष अनुपात के मामले में भारत 1970 से भी नीचे आ गया है. इसके अलावा बाल विवाह, कम उम्र में मां बनना, प्रसव से जुड़ी मौतें और घरेलू हिंसा के लिए भी क्या छोटे कपड़ों को ही जिम्मेदार मानेंगे.
तस्वीर: UNI
8 तस्वीरें1 | 8
यह राशि देखते ही सवाल उठता है कि कहीं पैसा पाने के लिए महिला मुद्दों को जबरन तो पर्यावरण परिवर्तन से नहीं जोड़ा जा रहा. लोपेज इसका जवाब देती हैं. वह कहती हैं, "महिला संगठन अपनी सोच बदल रहे हैं क्योंकि उन्हें समस्याओं के मूल में वास्तविक वजह मिल रही हैं."
वालेज कहती हैं कि महिलाओं के कई संकटों की जड़ में पर्यावरण परिवर्तन है. वह बताती हैं, "रेप जैसे सुरक्षा से जुड़े संकटों से लेकर गर्भपात या प्रसव के दौरान मौत जैसी स्वास्थ्य समस्याओं आदि के मूल कारण खोजे जा रहे हैं और पर्यावरण सभी में साझा है." इस वजह से ज्यादा से ज्यादा संस्थाओं को जो धन दिया जा रहा है उनमें पर्यावरण परिवर्तन से जुड़े मुद्दों का हिस्सा भी है. हालांकि महिला मुद्दों के लिए धन पाना इतना आसान भी नहीं है. सोसाइडाड मेक्सिकाना प्रो डेरेचोस डे ला मुहेर की लॉरा गार्सिया कहती हैं, "हमारा सीधा लेकिन कड़ा मानक है. आपके प्रोजेक्ट में महिलाओं का हित स्पष्ट होना चाहिए. इस प्रोजेक्ट की मुखिया महिला होनी चाहिए और इसका मकसद लैंगिक समानता होना चाहिए. हमें मिलने वाले ज्यादातर प्रस्ताव इस मानक पर खरे नहीं उतर पाते."
भारत में जब गांवों में रेप बढ़ने के शौचालय न होने से जोड़कर देखा गया तो लोगों की प्रतिक्रिया कुछ वैसी ही थी. लेकिन आंकड़े और अनुभव बताते हैं कि जिन गांवों में घरों में शौचालय बढ़े, वहां महिलाओं के साथ होने वाली घटनाओं में कमी आई है.
वीके/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
क्या है ग्लोबल वॉर्मिंग
दुनिया परेशान है. धरती गर्म हो रही है और उसका असर जलवायु पर हो रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर धरती को गर्म होने से रोका नहीं गया तो इंसान का जीना मुश्किल हो जाएगा.
तस्वीर: AFP/Getty Images/P. J. Richards
ग्रीनहाउस प्रभाव एक प्राकृतिक क्रिया है जो धरती को इतना गर्म कर रही है कि इंसान का आराम से रहना मुश्किल होता जा रहा है. नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाय ऑक्साइड और दूसरी गैसों की अदृश्य चादर धरती को घेर रखा है और वह सूरज की गर्मी को सोख कर रखता है.
तस्वीर: picture-alliance/chromorange
मानव गतिविधियों की वजह से लगातार कार्बन डाय ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है. पेडों का कटना हो, कोयला जलाना या तेल और पेट्रोल से गाड़ी चलाना, यह सब कार्बन डाय ऑक्साइड के उत्सर्जन में योगदान देता है. अतिरिक्त कार्बन वायुमंडल में अतिरिक्त चादर तैयार करती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/I. Wagner
इंसान इस समय पहले से कहीं ज्यादा ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2014 में 53 अरब टन के बराबर ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन हुआ. सन 1970 से 2000 के बीच के 1.3 प्रतिशत के मुकाबले 2000 के बाद के वर्षों में सालाना वृद्धि दर 2.2 प्रतिशत रही है.
तस्वीर: picture-alliance / dpa
हर साल निकलने वाली ग्रीनहाउस गैसों का सबसे बड़ा हिस्सा यानि 35 प्रतिशत बिजली के उत्पादन की प्रक्रिया में पैदा होता है. 24 प्रतिशत के साथ कृषि और जंगलों का कटना दूसरे नंबर पर है. भारी उद्योग 21 प्रतिशत ग्रीनहाउस गैसों के लिए जिम्मेदार है तो परिवहन 14 प्रतिशत के लिए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Alves
जलवायु सम्मेलनों के जरिये धरती के गर्म होने को औद्योगिक क्रांति से पहले के स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस पर रोकने की कोशिश हो रही है. इसके लिए वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के संकेंद्रण को 450 पार्टिकल पर मिलियन के स्तर पर रोकना होगा. सन 2011 में औसत संकेंद्रण 430 पीपीएम था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
धरती का तापमान 1880 से 2015 के बीच 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है. लेकिन यह हर कहीं बराबर नहीं है. समुद्र की तुलना में जमीन पर तापमान में ज्यादा वृद्धि देखी गई है. उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर भी तापमान में अधिक वृद्धि हुई है. साल 2015 के अब तक के सबसे ज्यादा गर्म होने का अनुमान है.
तस्वीर: DW/I. Quaile
संयुक्त राष्ट्र की विज्ञान संस्था का कहना है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी नहीं की गई तो 2100 तक वैश्विक तापमान 3.7 से 4.8 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा. 2 डिग्री सेल्सियस की सीमा में रहने के लिए 2030 तक पर्यावरण तकनीक में सैकड़ों अरब डॉलर के निवेश की जरूरत होगी.