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क्या लीथियम की कमी से ई-मोबिलिटी खत्म होने वाली है?

२६ जुलाई २०२१

यूरोपीय संघ अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में मदद के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों पर भरोसा कर रहा है. लेकिन जैसे-जैसे ई-कारों की मांग बढ़ रही है, कच्चे माल की कमी भी होने लगी है.

तस्वीर: Reuters/T. Schwarz

साल 2020 न सिर्फ महामारी का वर्ष था, बल्कि वह वर्ष भी था जब ई-मोबिलिटी ने यूरोप में नए इलेक्ट्रिक वाहनों के पंजीकरण में 137 फीसद की वृद्धि दर्ज की. ई-कार बैटरी बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली 20 विभिन्न सामग्रियों में से लीथियम को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह अद्वितीय हल्की धातु उच्च ऊर्जा-घनत्व वाली रिचार्जेबल बैटरी का एक प्रमुख घटक है. इसकी विद्युत रासायनिक क्षमता को किसी अन्य सामग्री से प्रतिस्थापित भी नहीं किया जा सकता है.

जर्मन मिनरल रिसोर्ज एजेंसी (डेरा) में आर्थिक भूवैज्ञानिक मिषाएल श्मिट ने डीडब्ल्यू को बताया, "अगले 10 से 15 वर्षों के लिए हमने जिस बैटरी तकनीक का सहारा लिया है, उसके लिए लीथियम की आवश्यकता होती है. उसका कोई विकल्प नहीं है."

कहां मिलता है लीथियम?

पृथ्वी की ऊपरी सतह का करीब 0.0007% हिस्सा लीथियम से बना है. हालांकि इसे 2020 में यूरोपीय संघ की ओर से तैयार की गई कच्चे माल की सूची में जोड़ा गया था लेकिन श्मिट का कहना है कि लीथियम को वास्तव में दुर्लभ धातु नहीं माना जाता है.

यह चट्टानों, मिट्टी और समुद्र के पानी के बीच व्यापक रूप से पाया जाता है और हाल के वर्षों में इसकी काफी मात्रा खोजी गई है. अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार, इस वक्त दुनिया भर में लीथियम संसाधनों की मौजूदगी करीब 8.6 करोड़ टन है.

कुछ वैज्ञानिकों का सुझाव है कि अब तक मौजूद लीथियम से साल 2100 तक करीब तीन अरब इलेक्ट्रिक कारें चल सकती हैं. इस समय दुनिया भर में करीब डेढ़ अरब कारें हैं. यूरोपीय आयोग ने अनुमान लगाया है कि जलवायु तटस्थता लक्ष्यों को पूरा करने के लिए ई-मोबिलिटी पर निर्भरता बढ़ानी होगी और यूरोपीय संघ को साल 2030 तक 18 गुना और साल 2050 तक 60 गुना अधिक लीथियम की आवश्यकता होगी.

यूरोप पूरी तरह से लीथियम आयात पर निर्भर है और कीमतें साल की शुरुआत से 60 फीसद से ज्यादा बढ़ गई हैं. श्मिट कहते हैं, "साल 2020 में वैश्विक स्तर पर उत्पादित 80,000 टन लीथियम का बाजार वर्तमान जरूरतों के हिसाब से कम है. इसमें से केवल 70 फीसद ही बैटरी बनाने में सक्षम और उपयोगी था."

श्मिट के मुताबिक, "लीथियम बाजार में ऑस्ट्रेलिया (हार्ड-रॉक माइनिंग) और दक्षिण अमेरिका (ब्राइन माइनिंग) के मुट्ठी भर लोगों का वर्चस्व है, जो लीथियम उत्पादन का 85 फीसद हिस्सा हैं. इन कंपनियों को लीथियम की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए साल 2030 तक दस अरब यूरो तक निवेश करने की जरूरत होगी."

यूरोप के लीथियम का क्या?

यूरोप में फिलहाल लीथियम का उत्पादन नहीं होता लेकिन श्मिट कहते हैं कि यहां इसके बड़े पैमाने पर उत्पादन के स्रोत मौजूद हैं. उनके मुताबिक, यदि उन स्रोतों से लीथियम का उत्पादन यूरोप में होता है तो इससे न सिर्फ कीमतों में गिरावट आएगी, बल्कि दूर-दराज के देशों से यूरोपीय देशों की लीथियम आयात की निर्भरता भी कम होगी.

उदाहरण के लिए, जर्मन-ऑस्ट्रेलियाई कंपनी वुल्कान एनर्जी रिसोर्सेज, जर्मनी के ऊपरी राइन घाटी क्षेत्र से लीथियम का उत्पादन करना चाहती है, जो करीब 12 हजार वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है. इस क्षेत्र को यूरोप में लीथियम का सबसे बड़ा भंडार कहा जाता है. कुछ अनुमानों के आधार पर यह कहा जाता है कि इस क्षेत्र में इतना लीथियम मौजूद है कि यह चालीस अरब इलेक्ट्रिक कारों के लिए बैटरी बनाने के लिए पर्याप्त हो सकता है.

वुल्कान एनर्जी रिसोर्सेज का लक्ष्य कार्बन मुक्त लीथियम का उत्पादन करना है, जिस पर पारंपरिक लीथियम निष्कर्षण विधियों की कीमत का करीब आधा खर्च आता है. कंपनी के सह संस्थापक और इसकी जर्मन शाखा के डायरेक्टर होर्स्ट क्रूटर कहते हैं, "हम अक्षय ऊर्जा और लीथियम निष्कर्षण को मिलाकर इसे हासिल करना चाहते हैं."

यह प्रक्रिया काफी सरल है. लीथियम युक्त गर्म पानी को राइन के नीचे हजारों मीटर से सतह पर पंप किया जाता है, जिससे गर्मी और बिजली पैदा होती है. बैटरी के कच्चे माल को वापस गहराई में प्रवाहित करने से पहले चुंबक की मदद से उसे पानी से निकाला जा सकता है. क्रूटर कहते हैं, "हमारा लक्ष्य साल 2025 तक हर साल 40 हजार टन लीथियम कार्बोनेट का उत्पादन करना है. यह लीथियम हर साल करीब दस लाख कारों के लिए बैटरी बनाने के लिए पर्याप्त होगा.”

क्या भूतापीय खनन सुरक्षित है?

यदि कंपनी सफल हो जाती है, तो यह जर्मनी की लीथियम आपूर्ति को ही सुरक्षित नहीं करेगा, बल्कि यह जर्मनी को दुनिया के सबसे बड़े उत्पादकों में भी बदल सकता है. लेकिन सवाल यह है कि यूरोप की सबसे बड़ी नदियों में से एक, राइन के आस-पास लीथियम का यह भूतापीय खनन पर्यावरण के लिए कितना अनुकूल है. क्रूटर कहते हैं, "यह एक भौतिक प्रक्रिया है, इसलिए हम जो कुछ करना चाह रहे हैं, उसमें रसायनों की भूमिका बहुत सीमित होती है. इससे ना पर्यावरण पर असर पड़ेगा, ना हवा पर और ना पानी पर."

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श्मिट कहते हैं कि वुल्कान की परियोजना सैद्धांतिक रूप में एक अच्छा प्रयास है लेकिन इसे शुरू करने से पहले तमाम दूसरे सवालों पर भी विचार करना होगा. उनके मुताबिक, "यह काफी हद तक गहरे भूतापीय संयंत्रों की सफलता पर निर्भर करता है, जो लीथियम युक्त पानी प्रदान करेगा."

यही नहीं, इस अभियान में एक और बाधा है. राइन घाटी क्षेत्र के कुछ निवासी अपने इलाके में कोई भूतापीय ड्रिलिंग नहीं चाहते हैं क्योंकि उन्हें डर है कि इससे भूकंप आ सकता है. साल 2006 में जर्मन-स्विस सीमा पर बाजेल में स्विस डीप हीट माइनिंग परियोजना की वजह से रिक्टर पैमाने पर तीन की तीव्रता वाले कई भूकंप आए थे जिसकी वजह से इसे स्थगित करना पड़ा था. विशेषज्ञों का कहना है कि भूकंप का खतरा बहुत कम होता है लेकिन इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता.

क्या रीसाइक्लिंग है जवाब?

मौजूदा समय में इलेक्ट्रिक कार बैटरी में मौजूद लीथियम का केवल दस फीसद की ही रीसाइक्लिंग की जाती है. बढ़ती मांग और सीमित आपूर्ति को देखते हुए यूरोपीय संघ ने महत्वाकांक्षी नए रीसाइक्लिंग लक्ष्य तैयार किए हैं, जिसके तहत साल 2030 तक लीथियम बैटरी का 70 फीसद हिस्सा दोबारा इस्तेमाल हो सकेगा.

श्मिट कहते हैं, "उन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हमें सभी संबद्ध उद्योगों के साथ एक पुनर्चक्रण बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है लेकिन यह अभी तक अस्तित्व में नहीं है क्योंकि हमारे पास अभी तक इसकी पर्याप्त मात्रा नहीं है."

कार बैटरी से लीथियम की रीसाइक्लिंग उतनी आसान नहीं है जितना लगता है. श्मिट कहते हैं कि यह एक ज्वलनशील पदार्थ है जिसके लिए विशेष तरीके से भंडारण की आवश्यकता होती है. इसीलिए अभी इसे रीसाइकिल करना बहुत महंगा है, "बैटरियों में मूल्यवान सामग्री जैसे निकल या कोबाल्ट को कम मूल्य की सामग्री के लिए भुगतान करना होगा जिसे यूरोपीय संघ द्वारा निर्धारित रीसाइक्लिंग लक्ष्यों को पूरा करने के लिए फिर से प्राप्त करना होगा."

इसके पीछे एक पर्यावरणीय कारण भी है जिसकी वजह से लीथियम को हमेशा रीसाइकिल करने का कोई मतलब नहीं होता है. श्मिट कहते हैं, "रीसाइक्लिंग लीथियम बैटरी की गुणवत्ता की नहीं हो सकती. यह संभव है कि प्राथमिक स्रोतों की तुलना में आगे के प्रसंस्करण कदम आवश्यक होंगे लेकिन ये उत्पादन की लागत को बढ़ा भी सकते हैं और इसकी वजह से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन भी बढ़ सकता है.”

दूसरे शब्दों में, लीथियम को स्थाई रूप से रीसाइकिल करने के मामले में जर्मनी को अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है. इसके अलावा बैटरी की बेतहाशा मांग को देखते हुए एक स्थाई रीसाइक्लिंग रणनीति पर काम करने का समय अभी भी है. अभी आठ से दस वर्षों का समय है जब इसकी मांग काफी बढ़ेगी क्योंकि तब ई-कारों की पहली खेप की बैटरी खराब होगी.

रिपोर्ट: नील किंग, नैतली मुलर

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