पटरी पर लौट रही है यूरोप की अर्थव्यवस्था?
४ दिसम्बर २०१७
ऐसे बनते हैं करारे नोट
करारे नोट सबको अच्छे लगते हैं. भारत का रुपया हो या यूरोप का यूरो या फिर अमेरिका का डॉलर, ये सब कपास से बनते हैं. जी हां, कागज से नहीं कपास से. चलिए देखते हैं कैसे.
कपास से नोट तक
भारत समेत कई देशों में नोट बनाने के लिए कपास को कच्चे माल की तरह इस्तेमाल किया जाता है. कागज की तुलना में कपास ज्यादा मुश्किल हालात झेल सकता है. लेकिन नोट बनाने के लिए कपास को पहले एक खास प्रक्रिया से गुजरना होता है.
आगे दुनिया रहस्यमयी
कपास की ब्लीचिंग और धुलाई करने के बाद उसकी लुग्दी बनाई जाती है. इसका असली फॉर्मूला सीक्रेट है. इसके बाद सिलेंडर मोल्ड पेपर मशीन उस लुग्दी को कागज की लंबी शीट में बदलती है. इसी दौरान नोट में वॉटरमार्क जैसे कई सिक्योरिटी फीचर डाल दिये जाते हैं.
ठगों से बचने के लिए
यूरोजोन की मुद्रा यूरो में 10 से ज्यादा सिक्योरिटी फीचर होते हैं. इनकी मदद से जालसाजी या नकली मुद्रा के चलन को रोकने की कोशिश होती है. जालसाजी को रोकने के लिए निजी प्रिंटरों पर नकेल कसी जाती है.
ठग तो ठग हैं
तमाम कोशिशों के बावजूद जालसाज नकली नोट बाजार में पहुंचा ही देते हैं. 2015 में रिकॉर्ड संख्या में नकली यूरो सामने आए. यूरोपीय सेंट्रल बैंक के मुताबिक इस वक्त दुनिया भर में 9,00,000 यूरो के नोट नकली हैं.
गुमनाम कलाकार
यूरो के नोट डियाजन करने का जिम्मा राइनहोल्ड गेर्स्टेटर का है. उन्हें हर यूरो के नोट पर यूरोप के इतिहास का जिक्र करने में मजा आता है. 5 से 500 यूरो तक के हर नोट पर यूरोपीय इतिहास से जुड़ी छवि जरूर मिलेगी.
हर नोट अलग
दुनिया के करीब सभी देशों में हर नोट बिल्कुल अनोखा होता है. उसका अपना नंबर होता है. यूरो के नोटों में भी ऐसा नंबर होता है. नोट छापने वाली 12 प्रिटिंग प्रेसें अलग अलग अंदाज में नंबर छापती है. नंबरों के आधार पर ही तय होता है कि कौन से नोट यूरोजोन के किस देश को भेजे जाएंगे.
500 यूरो की असली कीमत
यूरोजोन में एक नोट छापने की कीमत करीब 16 सेंट आती है. बड़े नोट थोड़े ज्यादा महंगे पड़ते हैं. लागत के हिसाब से सिक्के ज्यादा महंगे पड़ते हैं. उन्हें बनाने में ज्यादा खर्च आता है.
कंजूसों की नोट छपाई
जर्मनी का संघीय बैंक अब नोट छपाई को आउटसोर्स करना चाह रहा है. खर्च कम करने के लिए ऐसा किया जा रहा है. बीते साल जर्मन प्रिंटर गीजेके डेवरियेंट को अपनी म्यूनिख प्रेस से 700 कर्मचारियों की छुट्टी करनी पड़ी. कंपनी को मलेशिया और लाइपजिग में नोट छापना सस्ता पड़ रहा है.
समय समय पर नयापन
एक नोट को जस का तस बाजार में बहुत समय तक नहीं रखा जा सकता. ऐसा करने से नकली नोट बनाने वालों को मौका मिलता है. लिहाजा समय समय पर नोटों का डिजायन बदला जाता है. आम तौर पर 5,10,20,50,100 और 500 के नोटों को अलग अलग सालों में बदला जाता है.