यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद तेल और गैस की कीमतों में हुई तेज वृद्धि ने जर्मन उद्योग की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. तो क्या जर्मनी के उद्यमों के बंद होने का खतरा पैदा हो गया है, या ये बहस महज बकवास है?
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जर्मनी में गैस और बिजली की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, जिनका असर उत्पादन के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों पर पड़ रहा है. तमाम कंपनियां इस ऊर्जा संकट से निपट नहीं पा रही हैं. हालात ऐसे हैं कि सरकार इन कंपनियों की मदद करना तो चाहती है लेकिन पूरी तरह ऐसा करने की स्थिति में नहीं है. सवाल ये है कि क्या जर्मनी के उद्योग ठप हो सकते हैं या इस आपदा को अवसर में बदला जा सकता है?
जर्मनी के कई केमिकल प्लांट किसी छोटे-मोटे शहर जितने बड़े हैं. यहां हर साल करोड़ों किलोवॉट बिजली और गैस की खपत होती है. जर्मनी की अर्थव्यवस्था को भारी मात्रा में ऊर्जा की जरूरत है, लेकिन इसकी आपूर्ति कम है और कीमतें ऐतिहासिक रूप से रिकॉर्ड स्तर पर हैं. रूस से गैस आपूर्ति बंद होने के बाद से जर्मनी में स्टील मिलों, भारी उद्योगों और मैकेनिकल इंजीनियरिंग क्षेत्र की कंपनियों के हाथ-पांव फूले हुए हैं.
गैस और बिजली की तेजी से बढ़ती कीमतों का सबसे ज्यादा असर केमिकल उद्योग पर पड़ा है. जर्मन रासायनिक उद्योग संघ के ऊर्जा विशेषज्ञ यॉर्ग रोटरमेल कहते हैं, "बिजली और गैस महंगी होने की वजह से कई उद्योगों में उत्पादों की लागत बढ़ गई है. लेकिन डिटरजेंट, दवाइयों और गोंद जैसे सीधे रसायनों से तैयार होने वाले उत्पादों की कीमतों को सीधे-सीधे बढ़ाया नहीं जा सकता. इससे अगले साल तक पूरी केमिकल वैल्यू चेन ही प्रभावित हो जाएगी."
सस्ते के चक्कर में रूस पर निर्भरता
केमिकल कंपनी बीएएसएफ BASF में इस्तेमाल होने वाली करीब आधी गैस रूस से आती थी. नब्बे के दशक की शुरुआत में BASF ने रूसी सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी गाजप्रोम के साथ मिलकर लुडविग्सहाफेन में अपने मुख्यालय तक एक गैस पाइपलाइन बनाई थी. पोलैंड से जर्मनी तक बन रही यमाल पाइपलाइन बनाने में भी कंपनी ने आर्थिक मदद दी. 2008 में BASF नॉर्ड स्ट्रीम 1 के निर्माण में भी शामिल हुई. इसके चलते रूसी गैस सस्ते में जर्मनी तक पहुंच रही थी.
जर्मनी के आर्थिक शोध संस्थान डीआईडब्ल्यू के प्रमुख मार्सेल फ्राचर रूस पर जर्मनी की लापरवाह नीति के आलोचक हैं. वे कहते हैं, "हमारी पहली गलती यह है कि रूस के क्रीमिया को खुद में मिलाने के बावजूद हम रूस पर निर्भरता बढ़ाते गए. हमारी दूसरी बड़ी गलती यह है कि हमने अक्षय ऊर्जा की ओर बहुत धीरे कदम बढ़ाए." उनका कहना है कि जर्मनी के पास पिछले दस साल से अक्षय ऊर्जा की तकनीक थी, जो कारगर और सस्ती भी है, लेकिन जर्मनी ने इस राह पर बहुत धीमे कदम बढ़ाए. फ्राचर कहते हैं, "आज जर्मनी में संकट इतना गहरा गया है कि हमारा आर्थिक ढांचा ही खतरे में पड़ गया है, यह हमारी ही गलती है."
वैकल्पिक ऊर्जा पर टिकी उम्मीदें
जर्मनी में बिजली बनाने के लिए गैस इस्तेमाल की जाती है. गैस महंगी होने की वजह से जर्मनी में बिजली की कीमत बाकी दुनिया से ज्यादा महंगी हो गई है. यहां प्रति किलोवॉट घंटे के लिए 32 सेंट चुकाने पड़ रहे हैं, जबकि इसका अंतरराष्ट्रीय औसत महज 12 सेंट है. ऊर्जा महंगी होने से निर्यात क्षेत्र में कारोबार करने वाली मझौले आकार की कंपनियों को भी परेशानी हो रही है. अभी तक जर्मनी इन्हीं कंपनियों के बूते बड़ी आर्थिक चुनौतियों से पार पाता आया है और उदारीकरण के दौर में आगे रहा है.
26 किलोमीटर लंबी पाइप पर टिकी जर्मनी की उम्मीद
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सस्ती ऊर्जा के बिना जर्मन कंपनियों के उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत महंगे साबित होंगे और वह प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकता है. तो उपाय क्या है? आईएनजी बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री कार्स्टेन ब्रेजेस्की कहते हैं, "ऊर्जा से जुड़ा ट्रांजिशन और ग्रीन ट्रांसफॉर्मेशन, ये दो बहुत बड़े मौके हैं, जिनसे हम इस आपदा को अवसर में बदल सकते हैं. वैकल्पिक ऊर्जा अपनाने के कदम हमें औद्योगिक देश होने के नाते, इंजीनियरों का देश होने के नाते फिर से वैश्विक स्तर पर शीर्ष पर पहुंचा सकते हैं." जर्मनी की कंपनियों को नई रणनीति बनाने, नई टेक्नोलॉजी में निवेश करने, ऊर्जा बचाने, शोध को बढ़ावा देने और विकासोन्मुखी होने की जरूरत है. और सरकार के सामने एनर्जी ग्रिड और इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने की चुनौती है.
संकट के दौर में इन उपायों से ऊर्जा बचा रहा है जर्मनी
जर्मनी और यूरोप ऊर्जा संकट का सामना कर रहे हैं. यूरोपीय संघ ने 15 फीसदी ऊर्जा बचाने की मुहिम शुरू की है. जर्मन सरकार ने देशवासियों के लिये कुछ नियम तय किये हैं, हालांकि बहुत से लोग अपनी तरफ से भी कई कोशिश कर रहे हैं.
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बैंक में बिजली की बचत
बैंकों ने भी ऊर्जा संकट को देखते हुए कदम उठाये हैं. ऑफिस में जगहों को नई तरह से व्यवस्थित किया जा रहा है और कम स्टाफ वाले दफ्तर एक जगह लाये जा रहे हैं. डॉयचे बैंक ने कहा है कि वह जर्मनी में अपनी 1400 इमारतों में ऊर्जा बचाने के उपाय लागू कर रहा है और इसके जरिये 49 लाख किलोवॉट बिजली बचाई जायेगी.
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ऊर्जा बचाने के नियम का दूसरा चरण अक्टूबर में
ऊर्जा बचाने के नियमों का पहला चरण 1 सितंबर से लागू हो गया जो फरवरी तक चलेगा. दूसरा चरण अक्टूबर में आयेगा जो अगले दो सालों के लिये होगा. इसमें गैस हीटिंग का इस्तेमाल करने वाली सभी इमारतों की ऊर्जा दक्षता की जांच भी होगी.
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ऐतिहासिक इमारतों में अंधेरा
जर्मनी में ऐतिहासिक इमारतों के बाहर जलने वाली रोशनी रात को गुल कर दी जा रही है. पहले ये बड़ी बड़ी इमारतें सारी रात रोशनी से जगमग रहती थीं. कोलोन का विशाल कथीड्रल भी उन इमारतों में शामिल है जो अब रात में नहीं जगमगाते. उत्सव या सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिये यह पाबंदी नहीं है.
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सार्वजनिक इमारतों में बिजली की बचत
सार्वजनिक इमारतों के गलियारों और हॉल में अब हीटिंग नहीं होगी और दफ्तरों का तापमान भी 19 डिग्री से ज्यादा नहीं होगा. यहां सिर्फ हाथ धोने के इस्तेमाल होने वाले गर्म पानी के गीजर और टैंक स्विच ऑफ कर दिये गये हैं. अस्पताल, स्कूल और डे केयर सेंटर को इन नियमों से बाहर रखा गया है.
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दुकानों के लिये निर्देश
जर्मन सरकार ने दुकानों और शोरूम के लिये भी उर्जा बचाने के दिशा निर्देश जारी किये हैं. एयरकंडीशन या हीटिंग चलाते समय दुकानों के दरवाजे खुले नहीं रहेंगे ताकि बिजली बचाई जा सके. हीटिंग को 19 डिग्री से ज्यादा नहीं रखने के भी निर्देश दिये गये हैं.
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बिलबोर्ड और नियॉन साइन
बिजली से रोशन विज्ञापन और बिलबोर्ड को अब रात में 10 बजे के बाद बंद कर दिया जा रहा है. ट्रैफिक सुरक्षा से जुड़े विज्ञापन और साइनबोर्ड इसमें शामिल नहीं हैं. दुकानों के शोकेस पर अभी यह नियम लागू नहीं किया गया है.
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स्विमिंग पूल में गर्म पानी नहीं
स्विमिंग पूल और स्पोर्ट्स हॉल में अब हीटिंग बंद कर दी गई है. यहां तक कि स्विमंग पूल के शॉवर में भी गर्म पानी नहीं मिल रहा. प्राइवेट पूल को अब गैस या बिजली से गर्म नहीं किया जा सकता है. रिहैबिलिटेशन सेंटर या फिर रिक्रियेशनल फैसिलिटी और होटल को इस नियम के दायरे से बाहर रखा गया है.
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रेल सेवा में बिजली बचाने की मुहिम
जर्मन रेल कंपनी डॉयचे बान पूरे देश में सबसे ज्यादा बिजली का इस्तेमाल करती है. कुछ हफ्ते पहले डॉयचे बान ने ऊर्जा बचाने के उपाय लागू किये हैं और इसके लिये कर्मचारियों को बोनस भी देगी. कंपनी ने रोशनी, हीटिंग, एयरकंडीशन यहां तक कि लिफ्ट का कम इस्तेमाल कर बिजली बचाने वालों को बोनस देने का फैसला किया है.
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निजी स्तर पर कोशिशें
सरकार के सुझाये उपायों के अलावा भी बहुत से लोग निजी स्तर पर बिजली और ऊर्जा बचाने की कोशिशों में जुटे हैं. सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने के साथ ये लोग बिजली कम इस्तेमाल करने, खाना कम बनाने यहां तक कि शॉवर में कम समय बिताने जैसे उपाय आजमा रहे हैं.
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लकड़ी जला कर आग
बहुत से लोगों ने सर्दियों के लिये लकड़ी जमा करनी शुरू कर दी है. गैस की महंगाई और उसकी कमी को देखते हुए इसका इस्तेमाल करना पड़ सकता है. बहुत से घरों में अब भी ऐसी फायरप्लेस और चिमनियां लगी हुई हैं जिनमें लकड़ी जला कर घर को गर्म किया जा सकता है. हालत ये हो गई है कि लकड़ी बेचने वाली दुकानें कोटा तय कर रही हैं.