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अपराधउत्तरी अमेरिका

अमेरिका में लगातार निशाना बनते भारतीय छात्र

रितिका
११ अप्रैल २०२४

2024 में अब तक अमेरिका में अलग-अलग परिस्थितियों में दस भारतीय छात्रों की मौत हुई है. इन घटनाओं के कारण उच्च शिक्षा के लिए भारतीय छात्रों की पहली पसंद माने जाने वाले अमेरिका में उनकी सुरक्षा एक अहम मुद्दा बन चुकी है.

अच्छी रिसर्च सुविधाओं और पढ़ाई के साथ स्टाइपेंड के कारण भारतीय छात्रों को पसंद आता है अमेरिका
अच्छी रिसर्च सुविधाओं और पढ़ाई के साथ स्टाइपेंड के कारण भारतीय छात्रों को पसंद आता है अमेरिका तस्वीर: Jack Hanrahan/Erie Times-News/AP Photo/picture alliance

अमेरिका में पढ़ाई कर रहे भारतीय छात्र मोहम्मद अब्दुल अरफात क्लीवलैंड ओहायो में 9 अप्रैल को मृत पाए गए. न्यू यॉर्क में भारतीय वाणिज्य दूतावास ने एक्स पर पोस्ट कर इस बात की जानकारी दी. साथ ही कहा है कि दूतावास इस मामले की जांच सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय एजेंसियों के संपर्क में है.अब्दुल पिछले तीन हफ्तों से लापता थे. वह पिछले साल मई में क्लीवलैंड यूनिवर्सिटी से आईटी में मास्टर्स की डिग्री लेने अमेरिका गए थे.

अब्दुल से उनके परिवार की आखिरी बार सात मार्च को बात हुई थी. इसके बाद 19 मार्च को परिवार से कॉल पर यह कहते हुए 1,200 डॉलर की फिरौती की मांग की गई थी कि अब्दुल को ड्रग्स बेचने वाले गैंग ने अगवा कर लिया है. तब से ही जांच एजेंसियां लगातार अब्दुल को खोजने में जुटी हुई थीं. लेकिन तीन हफ्ते बाद उनकी मौत की खबर सामने आई है.

अब्दुल अरफात की मौत इस साल सामने आया कोई पहला मामला नहीं है. सिर्फ 2024 में ही अब तक अमेरिका में अलग-अलग परिस्थितियों में कम से कम दस भारतीय और भारतीय-अमेरिकी छात्रों की मौत हो चुकी है. अप्रैल की शुरुआत में क्लीवलैंड, आहायो में ही एक भारतीय छात्र सत्य साई गड्डे की मौत हो गई थी, जिसकी जांच अभी जारी है. वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के छात्र और क्लासिकल डांसर अमरनाथ घोष की एक मार्च को मिसूरी में एक अनजान शख्स ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.

आंध्र प्रदेश के 20 साल के पारुचुरी अभिजीत बॉस्टन यूनिवर्सिटी के छात्र थे. इसी साल 11 मार्च को उनकी लाश कैंपस के अंदर ही एक कार में मिली थी. इंडियाना में पर्ड्यू यूनिवर्सिटी के छात्र समीर कामत की लाश पांच फरवरी को ग्रोव नेचर रिजर्व में मिली थी. हालांकि, अमेरिकी जांच अधिकारियों ने इसे आत्महत्या का मामला बताया था. पर्ड्यू यूनिवर्सिटी के ही एक और छात्र नील आचार्य भी कैंपस में मृत पाए गए थे. लापता होने के कुछ घंटे बाद ही उनकी लाश कैंपस में मिली थी.

वहीं, कनेटिकट में दो भारतीय छात्र गट्टू दिनेश और निकेश अपने कमरे पर मृत पाए गए थे. इन दोनों छात्रों की मौत के पीछे कार्बन मोनोऑक्साइड पॉइसनिंग थी. 18 साल के अकुल धवन की इस जनवरी में हाइपोथर्मिया से मौत हो गई थी. उनकी लाश भी यूनिवर्सिटी कैंपस में ही पाई गई थी.

फरवरी में सैयद मजहीर अली नाम के भारतीय छात्र का सोशल मीडिया पर एक एक बेहद विचलित कर देने वाला वीडियो सामने आया था. इंडियाना वेस्लेयन यूनिवर्सिटी के छात्र मजहीर को लूटपाट के दौरान चार लोगों ने बुरी तरह से पीटा था. इसी महीने यूनिवर्सिटी ऑफ सिनसिनाटी, ओहायो के 19 साल के छात्र श्रेयस रेड्डी की मौत हो गई थी.

अच्छे भविष्य के सपनों पर असुरक्षा का काला साया

16 जनवरी को हरियाणा के 25 वर्षीय छात्र विवेक सैनी की हत्या एक बेघर इंसान ने जॉर्जिया में हथौड़ा मार कर कर दी थी. उन्होंने हाल ही में अमेरिका में अपनी एमबीए की डिग्री पूरी की थी. डीडब्ल्यू के साथ बातचीत में विवेक सैनी के भाई शिवम सैनी ने कहा, "किसी के जाने के बाद तो सबको लगता है कि अमेरिका से बेहतर भारत ही था. विवेक पढ़ने में बेहद होनहार था. वहां भी टॉपर था. उसके सपने थे अमेरिका को लेकर कि बाहर से पढ़कर आएगा तो भारत में भी अच्छी नौकरी लग जाएगी.”

बॉस्टन स्थित हार्वर्ड यूनिवर्सिटी भारत समेत दुनिया भर के छात्रों का पसंदीदा ठिकाना है तस्वीर: picture-alliance/ZB/A. Engelhardt

​​भारतीय छात्रों पर लगातार जारी हमलों को लेकर व्हाइट हाउस ने फरवरी में कहा था कि बाइडन प्रशासन स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर काम कर रहा है ताकि ऐसे हमलों को रोका जा सके और जो ऐसे हमले कर रहे हैं उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाए. अमेरिका के गैर-सरकारी संगठन 'टीम एड' के संस्थापक मोहन नानापनेनी ने भारतीय न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया कि उनकी टीम के पास लगभग हर दिन एक भारतीय की मौत का मामला जरूर आता है. इनमें से ज्यादातर भारतीय छात्र या नये एच-1बी वीजा धारक होते हैं. अगर किसी भारतीय की मौत अमेरिका में हो जाती है तो यह संस्था उनके शव को भारत लाने में परिवारों की सहायता भी करती है.

इन सभी छात्रों की मौत अलग-अलग कारणों से जरूर हुई है लेकिन लगातार हुई इन घटनाओं ने अमेरिका में रह रहे भारतीय छात्रों की सुरक्षा पर सवाल जरूर खड़े किए हैं. साथ ही उन छात्रों के मन में आशंकाएं पैदा की हैं जो अमेरिका जाकर आगे की पढ़ाई करने की योजना बना रहे हैं.

28 वर्षीय प्रदीप्ता डारमथ कॉलेज से फिजिक्स में पीएचडी कर रहे हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने बताया, "मैंने कभी सीधे तौर पर नस्लभेद का सामना नहीं किया है लेकिन यहां नस्लभेद है यह जरूर महसूस किया है. मेरी यूनिवर्सिटी जिस इलाके में है वहां का माहौल सुरक्षित है लेकिन ओहायो, इलिनॉय जैसे राज्यों में पढ़ रहे भारतीय छात्रों के अनुभव मुझसे बेहद अलग हैं."

प्रदीप्ता अपने कैंपस का एक अनुभव साझा करते हुए कहते हैं, "हम भारतीय छात्र बेकार की बहसों में पड़ने से बचते हैं, अगर हम सही हैं तब भी चुप रहना पसंद करते हैं. एक बार यहां तीन भारतीय छात्रों पर कैंपस में ही एक शख्स ने कई नस्लभेदी टिप्पणियां की थीं. तब इन्होंने अपने एक पाकिस्तानी दोस्त को मदद के लिए बुलाया लेकिन फिर भी वह शख्स नस्लभेदी टिप्पणियां करता रहा. उस पाकिस्तानी छात्र ने इस घटना को रिकॉर्ड करना शुरू किया क्योंकि उसे पता था अगर उसके पास सबूत नहीं होगा तो उस पर शायद कोई भरोसा नहीं करेगा. लेकिन फिर उस छात्र के साथ भी उस शख्स ने हाथापाई करने की कोशिश की और जाते-जाते उस पर एक बीयर कैन भी फेंका.”

क्यों अमेरिका आज भी है छात्रों की पहली पसंद

पढ़ने लिखने का बेहतरीन माहौल, रिसर्च के मौके, स्कॉलरशिप के विकल्प, दुनिया की सबसे बेहतर यूनिवर्सिटीज के साथ अमेरिका अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए बेस्ट ठिकाना रहा है. खासकर साइंस और टेक्नॉलजी के क्षेत्र में दिलचस्पी रखने वाले छात्रों की अमेरिका हमेशा ही पहली प्राथमिकता रहा है.

साथ ही यहां ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग के तहत बड़ी संख्या में अंतरराष्ट्रीय छात्रों को डिग्री पूरी होने के बाद रोजगार के अवसर भी मिलते हैं. यह भी एक बड़ी वजह है कि उच्च शिक्षा के लिए अधिकतर अंतरराष्ट्रीय छात्र आज भी अमेरिका जाना पसंद करते हैं. ओपन डोर्स रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक 2022-23 में अमेरिका जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में 35 फीसदी की बढ़त देखी गई. इस साल रिकॉर्ड 2,68,923 भारतीय छात्रों ने उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका का रुख किया. अमेरिका में पढ़ रहे दस लाख से अधिक अंतरराष्ट्रीय छात्रों में 25 फीसदी भारतीय हैं.

क्या अब कम होगाअमेरिकन ड्रीम' का आकर्षण?

अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय छात्रों को मिल रहे तमाम अवसरों और बेहतर शिक्षा के बीच उनकी सुरक्षा का सवाल बेहद अहम है. लगभग लगातार आ रही छात्रों की मौत की खबरों ने अमेरिका जाकर पढ़ाई करने की योजना बना रहे भारतीय छात्रों को सोचने पर मजबूर जरूर किया है. शिवम कहते हैं, "विवेक की मौत के बाद आस पास के कई छात्र जो अमेरिका जाकर पढ़ने की सोच रहे थे, उन्होंने नहीं जाने का फैसला किया है. यहां तक कि जो नौकरी के लिए अमेरिका जाने का सोच रहे थे वह भी इस घटना के बाद नहीं जाना चाहते.”

पिछले साल नॉर्थइस्टर्न यूनिवर्सिटी, सिएटल की छात्रा जान्हवी कंडूला की मौत पुलिस की गाड़ी से टक्कर लगने के बाद हो गई थी. घटना के बाद बॉडीकैम फुटेज में जांच के लिए घटनास्थल पर आए पुलिस ऑफिसर डैनियल ऑडर्रर को हंसता हुआ पाया गया था. इस घटना ने अमेरिका की नस्लभेद की समस्या पर एक नयी बहस शुरू कर दी थी.

27 वर्षीय दिल्ली के मोहित दास (बदला हुआ नाम) इस साल पीएचडी के लिए अमेरिका की यूनिवर्सिटी में अप्लाई करने की सोच रहे हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "ऐसा नहीं है कि मैं किसी ‘बिग अमेरिकन ड्रीम' के पीछे हूं. लेकिन वहां के कॉलेज अच्छे हैं. वहां ट्रेनिंग, रिसर्च में फंडिंग और स्टाइपेंड अन्य देशों के मुकाबले बेहतर है. कहीं न कहीं ये सब उस बिग अमेरिकन ड्रीम का ही हिस्सा है.”

हाल ही में हुई भारतीय छात्रों की मौत पर वह कहते हैं, "यह मेरे लिए चिंता का विषय जरूर है. बतौर छात्र पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के वक्त से ही हमारे मन में कई सारी चिंताएं थीं. एक ब्राउन पर्सन के तौर पर नस्लभेद का डर हमेशा रहता है. यूनिवर्सिटी स्पेस एक सुरक्षित स्पेस माना जाता रहा है. लेकिन जब मैं यूनिवर्सिटी का चुनाव कर रहा हूं तो इन बातों का ध्यान रख रहा हूं कि वहां का माहौल कैसा है. जैसे, जिन जगहों पर अधिक नस्लभेद हैं वहां अच्छी यूनिवर्सिटीज होने के बावजूद मैं अप्लाई नहीं करूंगा. मुझे डर है. ऐसे अमेरिकी राज्यों में जहां नस्लभेद की घटनाएं अधिक होती हैं, वहां रहने वाले भारतीय छात्र बताते हैं कि वे बस दूसरे भारतीय छात्रों के साथ ही दोस्ती रखते हैं.”

प्यू रिसर्च सेंटर के मुताबिक अमेरिका में करीब 50 फीसदी भारतीय व्यस्कों ने नस्लभेद का सामना किया है. हर दस में से तीन भारतीय ने बताया कि उन्हें वापस अपने देश लौट जाने को कहा गया है. करीब 44 फीसदी भारतीय मानते हैं कि एशियाई लोगों के खिलाफ नस्लभेद अमेरिका में एक गंभीर समस्या है.

प्रदीप्ता कहते हैं, "अमेरिका आने से पहले नस्लभेद और हेट क्राइम की घटनाओं के बारे में पढ़कर यह जरूर सोचता था कि क्या मुझे यहां जाना चाहिए. ऐसी घटनाएं यहां आने वाले छात्रों का मनोबल जरूर घटाती हैं. भारत में बेहतर रिसर्च के विकल्प नहीं हैं, फंडिंग कम है वरना शायद मैं यहां नहीं आता. नस्लभेद की घटनाओं के कारण मैंने सोचा कि इससे बेहतर भारत है. एक आप्रवासी के रूप में आपके सामने एक सवाल होता है कि किसे प्राथमिकता दें. मुझे लगता है कि कई ऐसे छात्र हैं जो आना चाहते थे लेकिन इन घटनाओं के कारण नहीं आते.”

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