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क्या भारत सचमुच ‘विश्वमित्र’ बन गया है?

महिमा कपूर
९ फ़रवरी २०२४

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके कार्यकाल में भारत को ‘विश्वमित्र’ बताया है. आखिर कितनी सच्चाई है इस दावे में?

जी20 शिखर सम्मेलन
2023 के जी20 शिखर सम्मेलन को भारत ने अपनी सफलता बताया हैतस्वीर: AFP

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मौकों पर भारत का जिक्र ‘विश्वमित्र' के रूप में किया है. इस शब्द का इस्तेमाल उन्होंने हाल के अपने भाषणों और देश भर में होने वाली रैलियों में जमकर किया है.

पिछले साल सितंबर में उन्होंने संसद में कहा, "यह हम सभी के लिए गर्व की बात है कि भारत ने 'विश्वमित्र' के रूप में अपनी जगह बनाई है और पूरी दुनिया भारत में एक मित्र को देख रही है.”

ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में जिंदल इंडिया इंस्टीट्यूट के महानिदेशक श्रीराम चौलिया इस अभियान को ग्लोबल साउथ की अग्रणी आवाज बनने की मोदी सरकार की मंशा के प्रतिबिंब के तौर पर देखते हैं.

भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में प्रधानमंत्री मोदी से गले मिलते फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रोंतस्वीर: Money Sharma/AFP/Getty Images

डीडब्ल्यू से बातचीत में चौलिया कहते हैं, "इस विचार का मकसद भारत को एक स्वतंत्र शक्ति के रूप में स्थापित करना है, जो चीन से अलग, अमेरिका से अलग और यूरोपीय लोगों से अलग हो. इस अवधारणा में दोस्ती, सहयोग, सह-अस्तित्व और पारस्परिक लाभ शामिल हैं.”

जी20 सम्मेलन के बाद कई विवाद

साल 2023 में भारत ने नई दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करके अपने सांस्कृतिक और राजनयिक संबंधों का प्रदर्शन किया. हालांकि, तब से भारत सरकार का कई राजनयिक विवादों से भी सामना हुआ है.

जी20 सम्मेलन के अभी दो हफ्ते भी नहीं बीते थे कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत पर कनाडाई धरती पर सिख कार्यकर्ता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया.

दिसंबर, 2023 में अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने अमेरिकी धरती पर एक अमेरिकी नागरिक की एक भारतीय व्यक्ति द्वारा की गई हत्या की साजिश को नाकाम कर दिया है. इस अमेरिकी नागरिक ने भी एक सिख अलगाववादी राज्य की वकालत भी की थी. दोनों मामलों की जांच चल रही है.

पड़ोसी देश म्यांमार में साल 2021 में जब सैन्य तख्तापलट हुआ और उसके बाद से वहां आंतरिक संघर्ष बढ़ने लगा तो उससे लगी सीमा पर भारत ने फरवरी, 2021 में बाड़ लगाने की योजना की घोषणा की.

जी20 शिखर सम्मेलन के बाद से भारत और कनाडा के संबंध काफी बिगड़ गएतस्वीर: Sean Kilpatrick/The Canadian Press/ZUMA/picture alliance

मालदीव में नवनिर्वाचित सरकार ने चीन के साथ मजबूत संबंधों का दिखावा करते हुए भारतीय सैनिकों को हटाने का आदेश दिया है.

दिल्ली में ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञ हर्ष पंत कहते हैं, "अतीत में भी भारत का दोस्त बनने का इरादा था लेकिन तब उसमें कोई वास्तविक क्षमता नहीं थी क्योंकि हम घरेलू मुद्दों से निपट रहे थे. आज, भारत की विश्वसनीयता काफी बढ़ी है.”

भारत-अमेरिका संबंध

पंत आगे कहते हैं, "यह संभव नहीं है कि कोई भी बड़ा खिलाड़ी भारत को नजरअंदाज कर सके. एक समय ऐसा लग रहा था कि यूक्रेन-रूस युद्ध पश्चिम के साथ भारत के संबंधों को खत्म कर देगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पश्चिमी शक्तियों, खासकर अमेरिका, की भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी है क्योंकि उनके लिए चीन दीर्घकालिक समस्या है.”

यूक्रेन में रूस के युद्ध से असहमत होने के बावजूद, भारतीय नेताओं ने रूस के खिलाफ अमेरिका के नेतृत्व वाले प्रतिबंध अभियान में शामिल होने से इनकार कर दिया.

इसके बजाय, भारत ने रियायती कीमतों पर रूसी तेल स्वीकार कर लिया है जिससे रूस से होने वाले आयात में वृद्धि हुई है. इसके बावजूद भारत के रिश्ते अमेरिका के साथ पहले से भी ज्यादा मजबूत हैं.

चीन से बढ़ती प्रतिद्वंदिता की वजह से अमेरिकी कूटनीति में भारत की विशेष जगह बन गई हैतस्वीर: Sean Kilpatrick/The Canadian Press via AP

अक्तूबर में वाशिंगटन डीसी की यात्रा पर पहुंचे विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने घोषणा की कि भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच इस समय संबंध ‘सबसे बेहतर' हैं.

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भी इसी भावना को दोहराते हुए दोनों देशों के संबंधों को ‘असाधारण सफलता की कहानी' बताया.

गहरे होते संबंध

चैथम हाउस थिंक टैंक में दक्षिण एशिया के वरिष्ठ फेलो चितिज बाजपेयी ने डीडब्ल्यू को बताया कि भारत-अमेरिका साझेदारी रक्षा, प्रौद्योगिकी और ऊर्जा क्षेत्रों में संबंधों को गहरा करने के लिए है. यह चीन के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ भारत की एक लंबे समय से चली आ रही अमेरिकी धारणा से रेखांकित होता है.

भारत एकमात्र ऐसी प्रमुख अर्थव्यवस्था है जिसके एक ही समय में ईरान, इस्राएल, रूस और यूरोपीय संघ के साथ गहरे और अच्छे संबंध हैं. पिछले महीने ही विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ईरान और रूस दोनों देशों का दौरा किया था जबकि पीएम मोदी ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों को भारत में आमंत्रित किया था.

बाजपेयी कहते हैं, "इस अर्थ में तो भारत स्पष्ट रूप से विश्वमित्र है. लेकिन 'अब युद्ध का समय नहीं है' जैसे बयानों के अलावा यह व्यावहारिक रूप से क्या संदेश देता है?”

प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में भारत की विदेश नीति की समीक्षा भी बढ़ी हैतस्वीर: via REUTERS

साल 2014 में सत्ता में आने के बाद पीएम मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह के लिए दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) देशों के नेताओं को निमंत्रण देकर भारत की पड़ोसी प्रथम नीति (NFP) को पुनर्जीवित करने का संकेत दिया था.

मोदी ने नेपाल में अपने पहले सार्क शिखर सम्मेलन में दिए भाषण में कहा, "मैं भारत के लिए जिस भविष्य का सपना देखता हूं, वही भविष्य मैं अपने पूरे क्षेत्र के लिए चाहता हूं.”

बाजपेयी कहते हैं कि ग्लोबल साउथ के नेता के रूप में भारत जिस तरह से आगे बढ़ रहा है, उससे लोगों में ऐसी भावना है कि भारत इस क्षेत्र और इसके पड़ोस को ‘आगे बढ़ाने' की कोशिश कर रहा है.

वो कहते हैं, "इसके तीन पड़ोसी देश आईएमएफ के रहमोकरम पर हैं. कुछ विफल राज्य हैं या फिर गृह युद्ध के चलते लगभग विफल राज्य हैं और कुछ ऐसे देश हैं जिनके साथ भारत का अदृश्य संघर्ष चल रहा है.”

मुश्किल राह

बाजपेयी कहते हैं कि संघर्ष जारी रहने के कारण भारत पर पक्ष लेने का दबाव होने की संभावना है.

जी20 घोषणा पत्र पर सहमति बनने से पहले क्या-क्या हुआ?

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उनके मुताबिक, "ऐसे मंचों पर जहां चीन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, उदाहरण के लिए ब्रिक्स देश, जहां ये देश पश्चिम विरोधी एजेंडा चला रहे हैं, वहां भारत सबसे अलग दिखेगा. लेकिन यदि दबाव बढ़ता है, यदि ताइवान स्ट्रेट में संघर्ष छिड़ता है या रूस और अमेरिका के बीच सीधा संघर्ष होता है या फिर मध्य पूर्व में संघर्ष बढ़ता है, तब ऐसी स्थिति में भारत को किसी पक्ष में खड़े होने पर मजबूर होना होगा.”

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फेलो और येल यूनिवर्सिटी में लेक्चरर सुशांत सिंह कहते हैं, "बड़ी समस्या तब पैदा होगी जब भारत का चीन के साथ सैन्य संघर्ष होगा. तभी भारत को अपने दोस्तों का आह्वान करना होगा. क्योंकि यदि आप सभी के मित्र हैं, तो यह भी सही है कि आप किसी के भी मित्र नहीं हैं.”

सुशांत सिंह कहते हैं कि मोदी सरकार के दौरान अमेरिकी और भारतीय मूल्यों में काफी भिन्नता आई है, मसलन-मानवाधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता, लोकतांत्रिक मानकों, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा इत्यादि मामलों में. लेकिन रणनीतिक दृष्टि अभी भी संबंधों को मजबूत बनाए रखती है.

सुशांत सिंह कहते हैं कि हालांकि छोटे-मोटे राजनयिक विवाद भारत के लिए कोई चुनौती नहीं हैं, लेकिन अमेरिका, भारत और चीन से सीधे तौर पर जुड़ा एक संभावित संघर्ष, "वास्तव में भारत के बेहतर संतुलन की परीक्षा लेगा...”

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