पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच पनपते युद्ध जैसे हालात
२२ मार्च २०२४पिछले दो सालों से, पाकिस्तान लगातार अफगान तालिबान से यह मांग कर रहा है कि वह पाकिस्तानी तालिबान यानी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) पर लगाम लगाए. साथ ही, अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उसे पाकिस्तानी सैनिकों और आम लोगों पर हमला करने से रोके. हालांकि, इस्लामाबाद की इस मांग पर तालिबान ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. इससे टीटीपी का मनोबल और ज्यादा बढ़ गया है.
पाकिस्तान ने टीटीपी को प्रतिबंधित संगठन घोषित कर रखा है, लेकिन यह आतंकी संगठन पाकिस्तान की जमीन पर, खासकर उत्तर-पश्चिम इलाके में अफगानिस्तान की सीमा के पास अक्सर हमलों को अंजाम देता रहता है. बीते शनिवार को एक आत्मघाती हमलावर ने उत्तरी वजीरिस्तान जिले में स्थित सैन्य चौकी में विस्फोटकों से भरे ट्रक से टक्कर मार दी थी. इस हमले में सात पाकिस्तानी सैनिक मारे गए. हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-फुरसान-ए-मुहम्मद समूह ने ली थी. हालांकि, पाकिस्तानी सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि इस संगठन में बड़े पैमाने पर टीटीपी सदस्य शामिल हैं.
जवाबी कार्रवाई में, पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के अंदर हवाई हमले किए. इससे अफगान तालिबान नाराज हो गया है.
पाकिस्तान ने कहा कि उसने पाकिस्तानी तालिबान के एक अलग समूह को निशाना बनाया और हमलों को ‘अफगानिस्तान के अंदर सीमावर्ती क्षेत्रों में खुफिया जानकारी के आधार पर आतंकवाद विरोधी अभियान' बताया.
वहीं दूसरी ओर, तालिबान सरकार का दावा है कि पाकिस्तान ने आम नागरिकों के घरों को निशाना बनाया है. इसमें तीन बच्चों सहित कम से कम आठ लोग मारे गए हैं.
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि पिछले कुछ वर्षों में अफगान तालिबान और पाकिस्तान के बीच संबंधों में खटास आई है, लेकिन टीटीपी को लेकर हालिया तनाव नियंत्रण से बाहर होने की आशंका है.
टूट रहा पाकिस्तान का धैर्य
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलूच ने डीडब्ल्यू को बताया, "पाकिस्तान की सबसे बड़ी चिंता आतंकवादी समूहों से खतरा है. खासकर टीटीपी और उसके सहयोगी संगठन, जो अफगानिस्तान के अंदर अपने ठिकाने बनाकर पाकिस्तान पर हमले कर रहे हैं.”
उन्होंने कहा, "हमें इस बात से परेशानी है कि ये आतंकी संगठन इतनी आसानी से अफगानिस्तान से काम करते हैं और पाकिस्तान की जमीन पर आतंकी हमलों को अंजाम देते हैं. पाकिस्तान ने बार-बार तालिबान सरकार से आग्रह किया है कि वह इन आतंकी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे और आतंकवाद के लिए अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल होने से रोके.”
अफगानों को निकालकर पाकिस्तान मुसीबत मोल ले रहा है?
अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने पाकिस्तान सरकार की टीटीपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग को ठुकरा दिया है. उसका कहना है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान में आतंकी गुटों की उलझी हुई स्थिति को नहीं समझता है. तालिबान का मानना है कि अगर वह टीटीपी के खिलाफ बल का इस्तेमाल करता है, तो इससे सिर्फ अफगानिस्तान और पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र में अस्थिरता पैदा हो सकती है.
वहीं दूसरी ओर, पाकिस्तानी अधिकारी, खासकर सैन्य नेता अफगान सीमा पर सुरक्षा की स्थिति को लेकर काफी असहज दिखाई दे रहे हैं.
पूर्व पाकिस्तानी राजनयिक और विदेशी मामलों की विशेषज्ञ मलीहा लोधी ने डीडब्ल्यू को बताया, "पाकिस्तान के ये हवाई हमले इस बात को दिखाते हैं कि वह अफगान सरकार से बहुत नाराज है. अफगान सरकार टीटीपी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है और टीटीपी लगातार अफगानिस्तान की जमीन से पाकिस्तान पर हमले कर रहा है. पिछले दो सालों में तालिबान के साथ कई बार बातचीत हो चुकी है, लेकिन इस मुद्दे पर कोई हल नहीं निकला है.”
उन्होंने आगे कहा, "अफगानिस्तान में तालिबान नेता टीटीपी के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पाकिस्तान से समय मांगते रहे हैं, लेकिन पाक इसे एक बहाने के तौर पर देखता है और अब उसका धैर्य जवाब दे रहा है.”
आखिर क्या चाहता है टीटीपी?
टीटीपी की मुख्य मांगों में से एक यह है कि पाकिस्तान सरकार और सेना देश के उत्तर-पश्चिमी इलाके में अपनी उपस्थिति कम करे. टीटीपी अक्सर इस क्षेत्र में हमले करता रहता है, जहां सरकारी नियंत्रण कमजोर होता है.
टीटीपी कई कट्टर सुन्नी विद्रोही और कट्टरपंथी गुटों से मिलकर बना हुआ संगठन है. यह पाकिस्तान सरकार के खिलाफ 2007 से खूनी लड़ाई लड़ रहा है. हालांकि, टीटीपी का सीधा संबंध अफगान तालिबान से नहीं है, लेकिन वह उन्हें अपना नेता मानता है.
पाकिस्तान ने 2008 में टीटीपी पर प्रतिबंध लगा दिया था और यह समूह पूरे पाकिस्तान में कई हमलों के लिए जिम्मेदार रहा है. अब तक का सबसे घातक हमला 2014 में पेशावर के एक स्कूल पर हुआ था. उस हमले में करीब 150 लोग मारे गए थे, जिनमें ज्यादातर स्कूली बच्चे थे. टीटीपी पाकिस्तान में शरिया कानून और पूरे इलाके में तालिबानी शासन लागू करने की बात करता है. उसका मकसद पाकिस्तान को भी उसी तरह का इस्लामी राष्ट्र बनाना है जैसा कि तालिबान के कब्जे वाला अफगानिस्तान है.
संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने भी टीटीपी को आतंकवादी संगठन घोषित किया है. टीटीपी के हमलों में पाकिस्तान में हजारों नागरिक और सुरक्षा बल मारे गए हैं.
टीटीपी को घेरने की कोशिश
पाकिस्तान ने पिछले कुछ वर्षों में टीटीपी के खिलाफ कई सैन्य अभियान चलाया है, लेकिन इस बार ऐसा लगता है कि वह इस आतंकी समूह को निशाना बनाने के लिए हर संभव कोशिश करने को तालिबानपाकिसतैयार है. इसमें अफगानिस्तान के अंदर टीटीपी के ठिकानों पर हमला करना शामिल है, जिससे अफगान तालिबान काफी ज्यादा नाराज हो सकता है और इसे युद्ध की कार्रवाई के तौर पर देख सकता है.
काबुल में तालिबान सरकार के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमारे पास महाशक्तियों के खिलाफ आजादी के लिए लड़ने का लंबा अनुभव है. अफगानिस्तान किसी को भी अपने क्षेत्र पर आक्रमण करने की अनुमति नहीं देता है. पाकिस्तान अपने इलाके की समस्याओं को हल नहीं कर पा रहा है, तो इसके लिए उसे अफगानिस्तान को दोषी नहीं ठहराना चाहिए. पाकिस्तानी हवाई हमलों जैसी घटनाओं के नतीजे काफी बुरे हो सकते हैं.”
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अटलांटिक काउंसिल के सीनियर फेलो और फ्रांस व कनाडा में अफगानिस्तान के राजदूत रह चुके उमर समद का मानना है कि पाकिस्तान अब टीटीपी के खतरे को नजरअंदाज नहीं कर सकता है. उन्होंने जोर देकर कहा, "इस समस्या की जड़ें, इतने सालों का इतिहास और अब तक का घटनाक्रम, एक नए मोड़ पर पहुंच चुका है. अब इसमें ज्यादा खिलाड़ी और मकसद शामिल हो गए हैं. इसलिए, इस जटिल परिस्थिति से निपटने के लिए नए नजरिए और ज्यादा कारगर तरीके की जरूरत है. ऐसा कोई रास्ता निकालना होगा जिससे पूरी तरह से युद्ध जैसी स्थिति से बचा जा सके, क्योंकि युद्ध से सभी को नुकसान होगा.”
घरेलू समस्याएं
विशेषज्ञों का मानना है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के अंदरूनी राजनीतिक झगड़े भी युद्ध जैसे हालात पैदा कर सकते हैं, भले ही पूरी तरह से युद्ध ना हो.
पाकिस्तान की सेना को चुनाव में कथित तौर पर हस्तक्षेप करने के साथ-साथ जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पार्टी के साथ गलत व्यवहार करने के आरोप में काफी ज्यादा आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि, टीटीपी वाकई में देश के लिए एक बड़ी समस्या है और अफगान सीमा पर सैन्य कार्रवाई करने से शायद पाकिस्तानी सेना के जनरलों को जनता का समर्थन मिल सकता है.
वहीं, अफगानिस्तान में टीटीपी मुद्दे पर तालिबान बंटा हुआ नजर आ रहा है. इस्लामाबाद स्थित थिंक टैंक इंटरनेशनल रिसर्च काउंसिल फॉर रिलीजियस अफेयर्स के प्रमुख मुहम्मद इसरार मदनी ने डीडब्ल्यू को बताया कि अफगानिस्तान का तालिबान नेतृत्व टीटीपी मुद्दे की संवेदनशीलता को समझता है, लेकिन मध्य और निचले स्तर के कैडर इसे नहीं समझते क्योंकि दोनों की जिहादी विचारधारा एक जैसी है.
अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार टीटीपी के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाना चाहती. इसकी एक वजह यह भी है कि इससे उसके संगठन में दरार आ सकती है. उसके अपने लोग आपस में लड़ सकते हैं. साथ ही, पाकिस्तानी आतंकी तथाकथित इस्लामिक स्टेट जैसे समूहों से जुड़ सकते हैं.
काबुल में रहने वाले सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ तमीम बाहिस ने कहा, "अफगानिस्तान के आम नागरिक यह मानते हैं कि पाकिस्तान उनके देश में हिंसा भड़काता है और हिंसा करने वालों का समर्थन करता है.”
बाहिस ने डीडब्ल्यू को बताया, "करीब चार दशक तक चले संघर्ष के बाद, अब जाकर अफगानिस्तान में थोड़ी शांति आई है. पाकिस्तान के हवाई हमलों को अफगान लोग पाकिस्तान की चाल समझते हैं. उन्हें लगता है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान को आतंकियों का अड्डा बताकर उन्हें फिर से संघर्ष के दौर में धकेलना चाहता है.” तालिबान के नेता इस बात का फायदा उठाकर अपनी सरकार को सही ठहरा सकते हैं.