जर्मनी में पढ़ाई में कितना खर्च आता है?
२८ जून २०२५
राजस्थान के रहने वाले 25 वर्षीय निरंजन हाड़ा ने 2023 में जयपुर के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट से अपनी ग्रेजुएशन पूरी की. जिसके लिए उन्होंने बैंक से तीन लाख रुपये का कर्ज भी लिया था. पिछले दो साल से वह नौकरी कर कर्ज चुकाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि उनकी शुरुआती तनख्वाह 22 हजार थी. जिस से वह मुश्किल से ही कर्ज की किश्तें भर पाते थे.
खर्च के बाद बचने वाले कुछ पैसों से वह एक निजी संस्थान से जर्मन भाषा सीख रहे हैं. उनके दोस्त ने उन्हें बताया है कि जर्मन भाषा सीख कर वह जर्मनी जा सकते हैं और आगे की पढ़ाई कर सकते हैं. उन्हें यह भी पता चला है कि वहां पब्लिक यूनिवर्सिटी में फीस नहीं लगती. जिस कारण उन्हें लगता है कि जर्मन भाषा सीख कर उनके लिए आगे की राह आसान हो सकती है.
जर्मन यूनिवर्सिटी में एडमिशन पाने की राह
यह राह कितनी आसान है, यह जर्मनी में पढ़ने वाले भारतीय छात्र ही बता सकते हैं. जर्मनी में पढ़ने जाने के लिए सबसे पहले जरूरी है, एक यूनिवर्सिटी चुनना, जिसमें छात्र के पसंद का कोर्स मौजूद हो. इसके लिए यूनीअसिस्ट जैसी वेबसाइट का इस्तेमाल किया जा सकता है. यहां एक यूनिवर्सिटी में आवेदन करने पर 70 यूरो यानी लगभग 7000 रुपये का शुल्क लगता है और एक से ज्यादा यूनिवर्सिटी में अप्लाई करने के लिए 70 यूरो के बाद हर एक यूनिवर्सिटी के लिए अलग से 30 यूरो यानी लगभग 3000 रुपये का शुल्क लगता है.
24 साल के सौरभ ने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से 2024 में अपनी ग्रेजुएशन पूरी की और मास्टर्स के लिए वह जर्मनी जा रहे हैं. उन्हें जर्मनी के हाइडेलबर्ग यूनिवर्सिटी में ट्रांसकल्चरल स्टडीज में मास्टर्स कोर्स में दाखिला मिला है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि आवेदन करने से लेकर दाखिला लेने तक की पूरी प्रक्रिया में उनका 18 से 19 लाख रुपये का खर्च लग गया है. उन्होंने यूनीअसिस्ट (ऑनलाइन वेबसाइट) की बजाय सीधे यूनिवर्सिटी में आवेदन किया था. डाक से आवेदन की प्रक्रिया में लगभग 3,000 रुपये का खर्च लगा.
जर्मनी में अब चीन से ज्यादा भारत के छात्र पढ़ने आ रहे हैं
उनका कोर्स अंग्रेजी भाषा में होने के कारण उनके लिए आईईएलटीएस का सर्टिफिकेट भी अनिवार्य था. आईईएलटीएस की परीक्षा में लगभग 18,000 रुपये लगे. इसके अलावा, भारतीय छात्रों के लिए जर्मनी की यूनिवर्सिटी में दाखिला पाने और स्टूडेंट वीजा लेने के लिए एपीएस सर्टिफिकेट अनिवार्य होता है. भारतीय छात्रों को जर्मनी का स्टूडेंट वीजा लेने के लिए अपने सभी शैक्षणिक दस्तावेजों की जांच अकादमिक इवैल्यूएशन सेंटर (एपीएस) से करानी होती है. तभी उन्हें एपीएस सर्टिफिकेट मिलता है. एपीएस के लिए भी लगभग 18,000 रुपये की फीस लगती है.
विदेशी छात्रों को भरनी पड़ती है ज्यादा फीस
सौरभ ने बताया, "हमारी यूनिवर्सिटी में भारतीय छात्रों को प्रति सेमेस्टर 1,500 यूरो यानी लगभग 1,50,000 रुपये की फीस देनी होती है. यह फीस यूरोपीय संघ और कुछ अन्य देशों के छात्रों पर लागू नहीं होती.” ये ऐसे यूरोपीय देश हैं जो या तो यूरोपीय संघ के सदस्य हैं या यूरोजोन में शामिल हैं. वहां के छात्रों को जर्मनी में अकसर ट्यूशन फीस नहीं देनी पड़ती है. सौरभ को ना केवल 1,500 यूरो प्रति सेमेस्टर भरने होंगे, जो कि चार सेमेस्टर के लगभग छह लाख रुपये हुए. बल्कि साथ में सेमेस्टर योगदान भी देना होगा, जो कि कुल लगभग 64,000 रुपये तक होगा. इसके अलावा उनके लिए ब्लॉक्ड अकाउंट भी अनिवार्य है.
जर्मन ब्लॉक्ड अकाउंट यानी ऐसा बैंक खाता, जो विदेशी छात्रों और नौकरी ढूंढने वाले वीजा आवेदकों के लिए जरूरी है. इस खाते के लिए आपको 11,904 यूरो (लगभग 11.9 लाख रुपये) जमा करने होते हैं. जर्मनी पहुंचने के बाद, उसमें से हर महीने 992 यूरो (लगभग 99,000 रुपये) निकाल सकते हैं, ताकि जरूरी खर्चे पूरे हो सकें. यह अकाउंट छात्र की वित्तीय स्थिरता दिखाने के लिए जरूरी है.
सौरभ ने कहा, "इसके अलावा, अगर आपको जर्मनी में कमरा लेना है, तो वहां एक से तीन महीने तक का किराया एडवांस में जमा करना होता है. इसलिए जर्मनी जाने से पहले आपको इन सभी खर्चों के लिए भी अतिरिक्त पैसे पहले से तैयार रखने होते हैं.”
महिलाओं के लिए हेल्थ इंश्योरेंस में काफी खर्चा
जर्मनी जाने के लिए मेडिकल इंश्योरेंस भी अनिवार्य है. सौरभ को ब्लॉक्ड अकाउंट के साथ ही इंश्योरेंस भी मिला है. उन्हें अलग से पैसे नहीं देने पड़े. हालांकि तीन साल से जर्मनी में पढ़ाई कर रही मोनिका के लिए यह नियम अलग है. वह लाइपजिष यूनिवर्सिटी से मेडिसिन की पढाई कर रही हैं.
मोनिका ने डीडब्ल्यू को बताया कि उन्हें हर महीने 450 यूरो का हेल्थ इंश्योरेंस लेना पड़ता है क्योंकि वह अस्पताल में काम करती हैं और यह उनके लिए एक अनिवार्य खर्चा है. इसके बिना उन्हें अस्पताल में काम करने की अनुमति नहीं मिलेगी. अस्पताल में काम करने के योग्य होने के लिए उन्हें कई अलग-अलग तरह के इंश्योरेंस लेने पड़ते हैं, जिसमें उनका जेंडर भी एक अहम भूमिका निभाता है.
मोनिका ने बताया, "इंश्योरेंस कई तरह के होते हैं और इनमें कुछ जेंडर पर भी निर्भर हैं. अगर आप महिला हैं, तो आपके लिए कुछ खास बीमा योजनाएं होती हैं. जैसे, अगर आपको गायनेकोलॉजिस्ट (स्त्री रोग विशेषज्ञ) से चेकअप करवाना है, तो उसके लिए एक अलग इंश्योरेंस होता है. यह नॉर्मल हेल्थ इंश्योरेंस में कवर नहीं होता.
मोनिका कहती हैं कि प्रति सेमेस्टर उन्हें सेमेस्टर फीस के रूप में 200 यूरो जमा करने होते हैं. इसके अलावा हर महीने लगभग 600 यूरो घर का किराया और राशन पर कुल मिलाकर 300 यूरो खर्च होता है. मोनिका ने कहा, "सर्दियों में यह खर्च बढ़ जाता है, क्योंकि इतनी ठंड की मुझे आदत नहीं है. तो मैं ज्यादा हीटिंग इस्तेमाल करती हूं. इस वजह से सर्दियों में घर खर्च 50 यूरो और बढ़ जाता है."
जर्मनी में इंश्योरेंस कंपनियां दो तरह की हैं सरकारी और प्राइवेट. सरकारी कंपनियों का छात्रों के लिए प्रीमियम तय है. निजी कंपनियों अलग-अलग फीस लेती हैं. इंश्योरेंस कंपनी बारमर के भारतीय छात्रों के लिए अकाउंट मैनेजर सेबास्टियन एयरलाइन ने डीडब्ल्यू को बताया, "सरकारी कंपनी से इंश्योरेंस लेने पर महीने का प्रीमियम 115 यूरो है." इसके अलावा बुजुर्ग होने पर मिलने वाली सेवाओं के लिए 36 यूरो का अतिरिक्त प्रीमयम भी देना होता है.
स्कॉलरशिप से हो सकती है मुफ्त पढ़ाई
जर्मनी में कई तरह की स्कॉलरशिप भी है. जैसे कि इरेस्मुस मुंडुस जॉइंट मास्टर्स स्कॉलरशिप. इसके तहत छात्र तीन अलग-अलग यूरोपीय देशों और तीन यूनिवर्सिटियों में मास्टर्स डिग्री कर सकते हैं, वह भी बिलकुल मुफ्त में. यह प्रोग्राम 33 यूरोपीय देशों में लागू है. इसके तहत छात्र तीन से बारह महीनों तक यूरोप में पढ़ाई कर सकते हैं. इस दौरान छात्रों को कोई ट्यूशन फीस नहीं देनी पड़ती बल्कि कुछ छात्रों को रहने और यात्रा खर्चों के लिए पैसे भी मिलते हैं.
आदित्य पटेल को यह स्कॉलरशिप मिली है. वह अभी लग्जमबर्ग यूनिवर्सिटी से अपना दूसरा सेमेस्टर पूरा कर रहे हैं. इसके साथ ही जर्मनी के माइंस यूनिवर्सिटी में उनका दाखिला हो गया है. जहां वह सितम्बर 2025 से लेकर फरवरी 2026 तक के बीच पढ़ेंगे. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "इस प्रोग्राम में पूर्ण स्कॉलरशिप तभी मिलती है, जब आप इंटरव्यू पास करते हैं और शीर्ष 17 छात्रों में आते हैं.
आदित्य पटेल बताते हैं कि अगर आपकी रैंक 18 से 22 के बीच आती है, तो आपको आंशिक स्कॉलरशिप मिल सकती है. "लेकिन मुझे फुल स्कॉलरशिप मिली है, मैं ट्यूशन फीस और सेमेस्टर फीस से पूरी तरह मुक्त हूं और मुझे हर महीने 1400 यूरो (लगभग 1,40,000 रुपये) की स्कॉलरशिप भी मिलती है, जिससे मेरा खर्च निकल जाता है.”
पार्ट-टाइम नौकरी खर्चे के लिए काफी नहीं
आंशिक स्कॉलरशिप वालों के पास स्टूडेंट जॉब करने का विकल्प होता है, लेकिन उन्हें महीने में केवल 40 घंटे ही काम करने की अनुमति है. जिससे वह केवल करीब 750 यूरो (लगभग 75,000 रुपये) तक ही कमा सकते हैं. आदित्य ने कहा, "भले ही ट्यूशन फीस, सेमेस्टर फीस या अन्य फीस माफ हो जाएं. लेकिन यहां सिर्फ रहने का खर्च ही करीब 950 यूरो प्रति माह तक है. मेरा पारिवारिक बैकग्राउंड साधारण है, हर महीने 90 हजार से 1 लाख रुपये का खर्च उठाना मुश्किल है. इसलिए, बिना स्कॉलरशिप के मेरे लिए यहां पढ़ पाना संभव नहीं था.”
खुशबू साहू 2024 में यूरोप के लिथुआनिया में पढ़ने आईं. विंटर कोर्स के दौरान उन्हें तीन महीने के लिए वायटॉटस मैग्नस विश्वविद्यालय में आने का मौका मिला था. जिसके साथ-साथ उन्हें 850 यूरो (लगभग 85,000 रुपये) का स्कॉलरशिप भी मिला था. खुशबू ने डीडब्ल्यू को बताया कि इतना पैसा उनके खर्चे के लिए काफी नहीं था. बल्कि उन्हें 15,000 से 20,000 रुपये के करीब खुद के पास से खर्च करने पड़ गए थे. वह भी तब जब उन्हें रहने के लिए अलग से कोई खर्च नहीं करना था और ना ही यूनिवर्सिटी की फीस भरनी थी. खाने-पीने और आने-जाने में ही उनका इतना खर्चा लग गया था.
जर्मनी में पढ़ने वाले छात्रों के खर्चा और कमाई की संभावना पढ़ाई के विषय और रहन-सहन के अनुसार अलग अलग है. खर्चे का बोझ इस पर भी निर्भर करता है कि कौन स्कॉलरशिप लेकर गया या किसने पब्लिक यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया या कौन प्राइवेट संस्थानों में पढ़ रहे हैं. विकल्प सब तरह के हैं और छात्र, अपनी सहूलियत और काबिलियत के अनुसार अपने लिए सही विकल्प चुन सकते हैं.