रूस और नाटो के बीच तनाव अपने चरम पर है. दोनों तरफ की तैयारियां देखकर लग रहा है कि दुनिया शीत युद्ध के कगार पर है.
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रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन को कहना पड़ा है कि रूस किसी नाटो देश पर हमले की तैयारी नहीं कर रहा है. सोची में एक सम्मेलन में उन्होंने कहा, "रूस किसी देश पर हमले की योजना नहीं बना रहा है. यह सोचना भी हास्यास्पद है. मैंने रूस, अमेरिका और यहां तक कि यूरोपीय विश्लेषकों के विचार पढ़े हैं. लेकिन ऐसा तो सोचा भी नहीं जा सकता. ऐसा सोचना मूर्खतापूर्ण और सच्चाई से परे की बात है."
रूसी राष्ट्रपति का इतना कहना भर इस बात का स्पष्ट संकेत है कि रूस और पश्चिम के बीच सबकुछ ठीक नहीं है. बल्कि हाल के दिनों में जो कुछ हुआ है उसके बाद तो यूरोप और अमेरिका में इस बात का डर बढ़ा है कि दुनिया एक बार फिर शीत युद्ध के कगार पर है. पहले रूस की यूक्रेन और जॉर्जिया में आक्रामक दखलअंदाजी और फिर सीरिया में राष्ट्रपति असद के साथ मिलकर अलेपो में विद्रोहियों पर हमलों ने दोनों पक्षों के बीच तनाव को इतना बढ़ा दिया है कि शीत युद्ध का डर पैदा हो गया है. और अब स्थिति यह है कि रूस की छोटी सी हरकत से भी पारा कई डिग्री बढ़ जाता है.
देखिए, रूस के इन हथियारों से सहम जाती है दुनिया
रूस के इन हथियारों से सहम जाती है दुनिया
शीत युद्ध के बाद से रूस को सैन्य रूप से कमजोर माना जाने लगा. लेकिन सीरिया के संघर्ष ने साफ कर दिया है कि रूस सैन्य रूप से बहुत ताकतवर है. रूस के पास ऐसे कई हथियार हैं जो मॉस्को को फिर से सुपरपावर बना सकते हैं.
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टी-14 टैंक
यह पांचवीं पीढ़ी का टैंक है. रूस ने इसे 2015 में लॉन्च किया. इस टैंक को रोबोटिक कॉम्बैट व्हीकल में भी बदला जा सकता है. हाल ही में रूस ने इस पर 152 एमएम की तोप लगाने का एलान किया है. रूसी उपप्रधानमंत्री दिमित्रि रोगोजिन के मुताबिक, यह तोप "एक मीटर मोटी स्टील की चादर को भेद सकती है."
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युद्धपोत प्योत्र वेलिकी
अटलांटिक महासागर में रूस के उत्तरी बेड़े का यह सबसे घातक युद्धपोत है. परमाणु ऊर्जा से चलने वाला यह युद्धपोत किरोव क्लास युद्धपोतों का हिस्सा है. नाटो इसे "विमानवाही पोतों का हत्यारा" कहता है. यह बैलेस्टिक मिसाइल को भी नष्ट कर सकता है.
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सुखोई टी-50
रूस का यह लड़ाकू विमान अमेरिका के हर तरह के लड़ाकू विमानों पर भारी पड़ता है. 2010 में पहली उड़ान के बाद रूस और भारत ने इसे साथ बनाने का फैसला किया. रणनीतिक साझीदारी के तौर पर रूस और भारत 2017 से इसे बड़े पैमाने पर बनाएंगे. लेकिन इस योजना पर वित्तीय मतभेद भारी पड़ रहे हैं.
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एस-400 मिसाइल
रफ्तार 17,000 किलोमीटर प्रति घंटा और 400 मीटर के दायरे में किसी भी लक्ष्य को भेदने की क्षमता के चलते पायलट इससे घबराते हैं. सीरिया के उडारान खामेमिम बेस में जब रूस ने इन मिसाइलों को तैनात किया तो अमेरिका को अपने लड़ाकू विमान वहां से हटाने पर मजबूर होना पड़ा. अब रूस एस-400 को और बेहतर कर रहा है.
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सुखोई एसयू-35
रूस का यह लड़ाकू विमान अमेरिका के एफ-16 पर भारी पड़ता है. इसका मुकाबला करने के लिए अमेरिका ने एफ-35 बनाया. लेकिन हाल ही में अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के मुताबिक एफ-35 भी सुखोई से कमतर है. सुखोई एसयू-35 की तेज रफ्तार और जबरदस्त चपलता को टक्कर देना बहुत मुश्किल है.
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हाइपरसोनिक रॉकेट वाईयू-71
रूस काफी समय से परमाणु हथियारों के लिए हाइपरसोनिक मिसाइल बनाना चाहता था. "प्रोजेक्ट 4204" नाम के सीक्रेट कोड के साथ रूस ने वाईयू-71 बनाया. इसकी रफ्तार 12,000 किलोमीटर प्रतिघंटा है. जैन्स इंटेलिजेंस रिव्यू के मुताबिक यह मिसाइल आराम से नाटो के डिफेंस सिस्टम को भेद सकती है.
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लड़ाकू हेलीकॉप्टर एमआई-28एन
अमेरिकी कंपनी बोइंग के अपाचे लॉन्गबो लड़ाकू हेलीकॉप्टर रफ्तार और हथियारों की क्षमता के मामले में इससे पीछे हैं. रूस का यह हेलीकॉप्टर टैंक, बख्तरबंद गाड़ियों पर हमला कर सकता है. यह रात में भी उड़ता है.
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विमानवाही एडमिरल कुजनेत्सोव
एडमिरल कुजनेत्सोव दुनिया का अकेला विमानवाही पोत है जो कई तरह की एंटी बैलेस्टिक हथियारों और पनडुब्बी से लैस है. 1990 में पेश किया गया यह पोत अमेरिकी विमानवाही पोतों से उलट अकेला समंदर का सफर कर सकता है. वैसे 1991 में सोवियत संघ के विघटन के वक्त यह पोत यूक्रेन के हाथ लगने वाला था.
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Tupolev Tu-160M
टीयू-160एम इस वक्त दुनिया का सबसे बड़ा और भारी बमवर्षक है. रूसी पायलट इसे "सफेद हंस" कहते हैं. 2014 में आधुनिकीकरण के बाद टीयू-160एम की युद्ध क्षमता दोगुनी कर दी गई.
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परमाणु पनडुब्बी यूरी डोग्लोरुकी
बीते दशक में रूस ने बड़ी पनडुब्बियों के बजाए छोटी पनडुब्बियां बनानी शुरू कीं लेकिन यह जानलेवा साबित हुआ. यूरी डोग्लोरुकी के साथ रूस ने इस तकनीकी बाधा को दूर किया. साउंडप्रूफ होने की वजह से समंदर में इसका पता लगाना बहुत ही मुश्किल है. इसमें परमाणु हथियार लगाए जा सकते हैं.
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मसलन रूस के युद्धक पोत एडमिरल कुजनेत्सोव के जब सीरिया जाते समय उत्तरी अफ्रीका में ईंधन भरवाने की खबरें आईं तो नाटो देशों ने फौरन आपत्ति जताई. इसके बाद एडमिरल कुजनेत्सोव का स्पेन में एक बार रुकने का कार्यक्रम भी रद्द कर दिया गया. नाटो देशों का कहना था कि इस जहाज का इस्तेमाल सीरियाई शहर अलेपो में मासूम नागरिकों पर हमले के लिए किया जा सकता है. ब्रिटिश अखबारों ने इस बारे में रूस पर तीखी टिप्पणियां की थीं. इससे पहले भी नाटो देश रूस पर आरोप लगाते रहे हैं कि अलेपो में रासायनिक हथियारों से हमले किए जा रहे हैं. रूस इन आरोपों को खारिज करता रहा है लेकिन इससे दोनों पक्षों के बीच तनाव बढ़ा है. और यहां तक बढ़ा है कि नाटो ने रूस के साथ लगती सीमा पर फौजों की तैनाती बढ़ाने जैसे फैसले किए हैं. उधर ब्रिटेन ने ऐलान किया है कि वह एस्टोनिया में और ज्यादा फौजी भेजेगा. पहले 500 सैनिक भेजे जाने की बात थी लेकिन अब ब्रिटेन ने कहा है कि टैंक और अन्य बख्तरबंद गाड़ियों के साथ कुल मिलाकर 800 सैनिक एस्टोनिया में नाटो मिशन के तहत तैनात किए जाएंगे. शीत युद्ध खत्म होने के बाद से रूसी सीमा के आसपास यह नाटो की सबसे बड़ी तैनाती होगी. जर्मनी भी अपने 600 सैनिक और लेपर्ड टैंक लिथुआनिया भेजने की तैयारी कर रहा है.
जाहिर इस तरह के कदमों को आक्रामक नेता व्लादीमीर पुतिन चुपचाप नहीं देख सकते. उन्होंने सोची में कहा, "अब तक हम खुद पर नियंत्रण बनाए रखे हुए हैं. और हम अपने सहयोगियों के साथ रूखा व्यवहार नहीं कर रहे हैं. लेकिन हर चीज की एक हद होती है. हम जवाब भी दे सकते हैं."
देखिए, शीत युद्ध ने दुनिया को क्या दिया
शीतयुद्ध की विरासत
बंकर, टैंक, जासूसी स्टेशन. जर्मन फोटोग्राफर मार्टिन रोएमर्स ने दस साल तक शीत युद्ध के अवशेषों की तस्वीर ली है. ये तस्वीरें बर्लिन में एक प्रदर्शनी में दिखाई गई थी.
तस्वीर: Martin Roemers
डूबने से पहले
एक खंडहर बादलों में तैरता दिख रहा है. दरअसल शीतयुद्ध के समय का यह बंकर पूर्वी सागर में डुबोया जा रहा है. यह तस्वीर बंकर को पानी में दफनाने से ठीक पहले ली गई है. शीतयुद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के खत्म होने के कुछ समय बाद से 1989 में बर्लिन दीवार के गिरने तक चला. यह खूनी विवाद में तो नहीं बदला, लेकिन लोगों के सामने तलवार की तरह लटकता रहा.
तस्वीर: Martin Roemers
तैयारी
दोनों ही पक्ष दूसरे के संभावित आकस्मिक हमले से बचने की कोशिश में बंकर बना रहे थे, रॉकेट तैनात कर रहे थे और मॉनिटरिंग स्टेशन बना रहे थे. उस समय की सोच थी शस्त्र होड़. पश्चिम जर्मनी, जीडीआर, रूस और पश्चिम यूरोप में हर कहीं लोग गंभीर स्थिति के आने के लिए तैयार हो रहे थे. तस्वीर में पश्चिम जर्मनी के लॉर्श में जर्मन सेना का परमाणु सुरक्षा बंकर.
तस्वीर: Martin Roemers
सोवियत ट्रेनिंग
मार्टिन रोएमर्स ने 1998 से 2009 के बीच शीतयुद्ध के अवशेषों की तस्वीर लेने के लिए दस देशों का दौरा किया. इस दौरान ली गई तस्वीरों से 73 तस्वीरों की एक ऋंखला बनी है. इनमें सोवियत सेना के एक अड्डे पर अभ्यास के दौरान चलाई गई गोलियों के बचे हुए कचरे की तस्वीर भी है. यह तस्वीर संघर्षों में उलझी हमारी दुनिया में अभी भी सामयिक लगती है.
तस्वीर: Martin Roemers
नया शीत युद्ध
हाल में म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में रूस के प्रधानमंत्री दिमित्री मेद्वेदेव ने नए शीत युद्ध की बात की. फोटोग्राफर रोएमर्स इस आकलन से इत्तेफाक नहीं रखते लेकिन इन तस्वीरों के जरिए वे एक तरह की चेतावनी तो दे ही रहे हैं. उनका कहना है कि वे राजनीतिक एक्टिविस्ट नहीं हैं लेकिन अपनी तस्वीरों से दिखा रहे हैं कि युद्ध इंसान और माहौल पर क्या असर डालते हैं.
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राजा से सेना तक
सैक्सनी के अल्टेनग्राबोव में मार्टिन रोएमर्स ने सोवियत सेना के ट्रेनिंग ग्राउंड की तस्वीर ली. टूटा टैंक उन दिनों की गवाही दे रहा है. उन्हें ये बात काफी दिलचस्प लगी कि यहां कभी जर्मन सम्राट के सैनिक अभ्यास किया करते थे, तो बाद में नाजियों की सेना वेयरमाख्त के. आज ये जगह उतनी सुनसान नहीं जितनी तस्वीर में दिखती है. यहां जर्मन सेना बुंडेसवेयर के सैनिक अभ्यास करते हैं.
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अंत में रोशनी
रोएमर्स की तस्वीरें सही मायने में ऐतिहासिक नहीं हैं. उन्होंने जब इन जगहों का दौरा किया तो शीतयुद्ध खत्म हो चुका था और दोनों ओर के सैनिकों को वापस कर लिया गया था. रोएमर्स की दिलचस्पी ढहती इमारतों और उस क्षण में थी जब प्रकृति उस पर कब्जा कर रही थी. यह तस्वीर ब्रिटेन के परमाणु बंकर से बाहर निकलने के रास्ते की है.
तस्वीर: Martin Roemers
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शीत युद्ध के बाद रूस और नाटो के बीच तनाव अब तक का सबसे ज्यादा है. और तो और, रूस तो अपने यहां अभ्यास कर रहा है कि परमाणु हमला हो जाए तो क्या किया जाएगा. मॉस्को में इसी हफ्ते यह अभ्यास किया गया जिसके बाद अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने लिखा कि क्रेमलिन के मिनिस्ट्री ऑफ इमरजेंसी सिचुएशंस में तो शीत युद्ध आ चुका है. कुछ समय पहले एक रूसी अखबार ने खबर छापी थी कि रूस ने अपने सरकारी अधिकारियों से कहा है कि वे ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका में पढ़ रहे अपने बच्चों को वापस बुला लें. इस तरह की घटनाओं ने इस डर को बढ़ाया है कि दोनों पक्ष एक शीत युद्ध की तैयारी कर रहे हैं.
ऑस्ट्रेलिया की वेबसाइट न्यूज डॉट कॉम से बातचीत में कैनबरा की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ग्रेग ऑस्टिन ने कहा कि मध्य पूर्व, कोरियाई प्रायद्वीप और यूक्रेन में बढ़ते तनाव को देखते हुए तो दूसरे शीत युद्ध की चिंता जायज है. ब्रिटेन के अखबार इंडिपेंडेंट की वेबसाइट पर छपे एक लेख में अखबार के डिप्टी मैनेजिंग एडिटर शॉन ओ गार्डी लिखते हैं कि दुनिया एक खतरनाक और विनाशक शीत युद्ध के कगार पर है. वह लिखते हैं, "सवाल ये है कि अभी जो छोटे छोटे युद्ध हो रहे हैं वे कम से कम अमेरिका, चीन और रूस के बीच एक बड़े विवाद को तो पैदा नहीं कर देंगे."