पालतू कुत्ते छोटे बच्चों की तरह होते हैं. जब वे बीमार महसूस करते हैं, तो उसे बयान नहीं कर पाते. कुत्ते अकसर ऐसे में चुपचाप कोने में पड़े रहते हैं. ऐसे में उन्हें डिप्रेशन या दिल की कोई बड़ी बीमारी भी हो सकती है.
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तनाव की चपेट में ना केवल मनुष्य बल्कि जानवर भी आते हैं. हालांकि पालतू जानवरों में तनाव उम्र बढ़ने, उनकी प्रतिरक्षा क्षमता, मौसम के परिवर्तन, विभिन्न अन्य कारकों के साथ जुड़ा हुआ है. पशुचिकित्सा करने वाली प्राची क्षत्रिय का कहना है कि सबसे अधिक तनाव संवेदनशील अंग हृदय होता है, जो न केवल प्रत्येक शरीर के ऊतकों की आवश्यकता को पूरा करता है, बल्कि दबाव चरण के दौरान एक समर्थन प्रणाली के रूप में भी कार्य करता है.
आमतौर पर बड़ी नस्लों की तरह डोबर्मन पिंसर्स, लैब्राडोर र्रिटीवर्स, बॉक्सर और जर्मन शेफर्ड कुत्तों को हृदय संबंधी बीमारियों की संभावना अधिक होती है, जैसे कंजेस्टिव कार्डियक फेलियर, हार्ट वाल्व अपर्याप्तता, पेरिकार्डियल इफ्यूजन और दूसरी बीमारियां इनमें प्रमुख हैं. उनका कहना है कि अपने पालतू कुत्ते के बर्ताव में निम्नलिखित बातों को नजरअंदाज ना करें:
- नियमित खांसी आना
- कम चलने या चंचल गतिविधि के बाद थकावट
- ज्यादा देर तक लेटे रहना
- भूख कम होना
- सीढ़ियों पर चढ़ने के लिए अनिच्छुक
- सुस्त उपस्थिति और अकेले बैठे रहना
प्राची क्षत्रिय का कहना है कि लगभग 10 प्रतिशत युवा और 65 प्रतिशत पुराने कुत्ते विभिन्न हृदय संबंधी समस्याओं से पीड़ित होते हैं. मालिकों की लापरवाही के कारण उनकी मौत तक हो जाती है. हालांकि विशेषज्ञों की सलाह है कि यदि आप अपने पालतू जानवरों के व्यवहार या दिनचर्या की गतिविधियों में कोई बदलाव पाते हैं, तो पशु चिकित्सकों से तत्काल संपर्क करें. इमेजिंग परीक्षण जैसे एक्स-रे, इकोकार्डियोग्राफी, इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी आदि ही पुष्टि करेगा कि आपका पालतू किसी बीमारी से पीड़ित है, उसे हृदय रोग है या नहीं.
पूजा गुप्ता (आईएएनएस)
महामारी के दौरान जर्मनी में लोगों ने पालतू जानवरों पर किए अरबों खर्च
कोरोना वायरस महामारी के दौरान जर्मनी में लोग 10 लाख और पालतू जानवर घर ले आए. इससे देश में पालतू जानवरों की कुल संख्या 3.5 करोड़ हो गई. इंसान के इन साथियों पर महामारी के दौरान खर्च हुए 400 अरब से भी ज्यादा रुपये.
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बड़ी बड़ी आंखें और बड़ा खर्च
पिछले साल पालतू जानवरों के सामान बेचने वाली दुकानों ने 420 अरब से ज्यादा मूल्य के सामान की बिक्री की. यह 2019 के मुकाबले 4.3 प्रतिशत ज्यादा बिक्री थी. इसमें जंगली पक्षियों के भोजन की बिक्री को जोड़ दें तो इस उद्योग ने 470 अरब से भी ज्यादा रुपयों की कमाई की. यह डाटा आईवीएच नाम के पालतू जानवरों के जरूरत का सामान बनाने वाले एक औद्योगिक समूह ने दिया है.
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हर मौसम में आपका साथी
कुत्ते जर्मनी में भी इंसान के सबसे अच्छे दोस्त हैं. देश में अब एक करोड़ से भी ज्यादा कुत्ते हैं और पिछले साल इनकी बिक्री भी बढ़ी और दाम भी. महामारी में कुत्तों ने लोगों को अकेलेपन से बचाने का काम किया. ऐसा कौन है जो परिवार के एक सदस्य को बढ़िया भोजन खिलाने के लिए थोड़ा और खर्च नहीं करेगा?
तस्वीर: picture-alliance/J. de Cuveland
लेकिन पहला नंबर कुत्तों का नहीं हैं
कुत्तों की लोकप्रियता में बढ़ोतरी के बावजूद, पालतू जानवरों की दुनिया की असली राजा बिल्लियां हैं. इस समय देश में सवा करोड़ से भी ज्यादा बिल्लियां हैं, जो पालतू जानवरों की कुल संख्या का एक चौथाई है. पिछले साल सबसे ज्यादा इजाफा (9.4 प्रतिशत) बिल्लियों के लिए नाश्ते और दूध पर होने वाले खर्च में हुआ.
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47 प्रतिशत घरों में हैं पालतू जानवर
पिछले साल जर्मनी के लोग करीब 10 लाख नए पालतू जानवर घर ले आए. अब करीब 47 प्रतिशत घरों में पालतू जानवर हैं, लेकिन यह सभी कुत्ते और बिल्लियां नहीं हैं. इनमें करीब 50 लाख खरगोश, गिनी पिग, हैम्स्टर और चूहे भी हैं. पालतू पक्षियों की संख्या है 35 लाख, एक्वेरियम के 18 लाख और छिपकलियों और कछुओं के लिए टेरारियम की संख्या है करीब 13 लाख.
जर्मनी में अधिकांश लोगों को सामाजिक दूरी का पालन करना पड़ रहा है, लेकिन पालतू जानवर सैर के वक्त अपने दोस्तों से मिल सकते हैं. शायद इसीलिए महामारी के दौरान जानवरों के डॉक्टर, उनकी देख रेख करने वाले और उन्हें सैर कराने वाले काफी व्यस्त रहे. इस खर्च का इस अध्ययन में जिक्र नहीं है, जिसका मतलब जानवरों पर हुए असली खर्च का आंकड़ा कहीं ज्यादा है.
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इसके बावजूद जर्मनी के लोग अमेरिका से पीछे ही हैं
जर्मनी के लोग अपने पालतू जानवरों से मोहब्बत करते होंगे, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से वो बहुत पीछे हैं. 'द इकॉनोमिस्ट' के एक शोध के मुताबिक 2019 में पालतू जानवरों पर प्रति व्यक्ति खर्च के मामले में जर्मनी पूरी दुनिया में पांचवें स्थान पर था. इस सूची में जर्मनी से आगे थे स्विटजरलैंड, फ्रांस और यूके. पहले स्थान पर था अमेरिका, जहां पालतू जानवरों पर जर्मनी से दो गुना ज्यादा खर्च हुआ.
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"टशन में"
पालतू जानवरों पर खर्च का सबसे बड़ा हिस्सा भोजन पर खर्च होता है, लेकिन और भी कई चीजें हैं जो बेहद जरूरी होती जा रही हैं. पैसे वाले लोग अब अपने जानवरों के लिए टिफनी के पट्टे, प्राडा के कैरी-बैग, वर्साचे के कटोरे, राल्फ लॉरेन के स्वेटर और मॉन्क्लेर के मोटे जैकेट भी खरीद रहे हैं.
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घर से काम, तो खरीदारी ऑनलाइन
लोगों का घरों से काम करना पालतू जानवरों के लिए अच्छी खबर रही, लेकिन उनका दिन भर ख्याल रखने वाले केंद्रों का धंधा चौपट हो गया. हां, उनकी जरूरत के सामान की ऑनलाइन खरीदारी जरूर बढ़ गई. पिछले साल ऑनलाइन खर्च कम से कम 70 अरब रुपए के आस पास रहा, जो एक साल पहले के मुकाबले 16 प्रतिशत ज्यादा है.
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तालाबंदी की दोस्ती क्या आगे भी रहेगी
हाल में कई जानवरों के दाम काफी बढ़ तो गए, लेकिन तालाबंदी के बाद क्या होगा इसे ले कर कई तरह की चिंताए जन्म ले रही हैं. जब तालाबंदी और महामारी पूरी तरह से खत्म हो जाएंगे और सब कुछ पहले जैसा सामान्य हो जाएगा, क्या तब भी लोगों के पास उनके जानवरों के लिए इतना ही समय होगा और वो उन्हें तब भी रखना चाहेंगे? जानवरों को शरण देने वाली जगह चलाने वालों को इसकी सबसे ज्यादा चिंता है. - टिमोथी रूक्स