विपक्ष का आरोप है कि साल में तीसरी बार चुनाव के लिए नेतन्याहू जिम्मेदार हैं. क्योंकि वह अपने आपको कानूनी मामलों से बचाना चाहते हैं.
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इस्राएल में तीसरी बार चुनाव के लिए सांसद एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराया है. सांसदों ने एक प्रस्ताव पास कर संसद को भंग कर दिया. दरअसल सरकार बनाने की समय सीमा समाप्त हो गई और कोई भी दल सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाया. सरकार बनाने की समय सीमा बुधवार मध्यरात्रि तक थी लेकिन इससे पहले ही सांसदों ने संसद भंग करने की प्रक्रिया शुरू कर दी. सांसदों ने 2 मार्च 2020 को मतदान के लिए प्रस्ताव पास किया है. राजनीतिक दलों के नेता एक दूसरे पर सरकार का गठन ना हो पाने के लिए आरोप लगाते लगाया है. पिछले एक साल से इस्राएल में राजनीतिक स्थिरता के साथ मतदाताओं में अविश्वास का भाव पैदा होता दिख रहा है.
ब्लू एंड वाइट पार्टी के नेता बेनी गांज.तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Tibbon
इस्राएल में इसी साल अप्रैल और सितंबर में आम चुनाव हुए थे. दोनों बार किसी पार्टी या गठबंधन को बहुमत नहीं मिला और अब यह तीसरा मौका होगा जब पार्टियां बहुमत के लिए जोर लगाएंगी. दोनों चुनाव में बेन्यामिन नेतन्याहू की दक्षिणपंथी लिकुड पार्टी और विरोधी पार्टी ब्लू एंड व्हाइट के नेता बेनी गांस में से कोई भी बहुमत नहीं पा सका था.
नेतन्याहू और गांस ने एक बार गठबंधन सरकार बनाने के बारे में चर्चा भी की थी, लेकिन दोनों साथ आने में सफल नहीं हो पाए. बुधवार को नेतन्याहू ने गांस की पार्टी की ओर इशारा करते हुए अपने बयान में कहा, "उन्होंने हमारे ऊपर चुनाव थोपा है."
गांज ने नेतन्याहू को जवाब में कहा कि नेतन्याहू की कानूनी मुश्किलें और भ्रष्टाचार के मामले के कारण ही इस्राएल में तीसरी बार चुनाव होने जा रहा है. गांस ने कहा, "हम तीसरी बार चुनाव में जा रहे हैं इसका कारण नेतन्याहू हैं क्योंकि वह कानूनी मामलों से खुद को बचाना चाहते हैं. हमें इसके खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराना चाहिए."
नेतन्याहू पर तीन अलग-अलग आपराधिक मामले हैं, जिनमें जालसाजी, रिश्वतखोरी और विश्वासघात के आरोप हैं. 70 वर्षीय नेतन्याहू इस्राएल के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री पद पर रहने वाले नेता भी हैं. नेतन्याहू चाहते थे कि संसद ऐसा प्रस्ताव पास करे जिससे उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों में सजा ना दी जा सके.
एए/एनआर (एएफपी, एपी)
क्या है इस्राएल
मुस्लिम देश इस्राएल को मध्यपूर्व में विवादों का केंद्र कहते हैं. एक तरफ उसके आलोचक हैं तो दूसरी तरफ उसके मित्र. लेकिन इस रस्साकसी से इतर बहुत कम लोग जानते हैं कि इस्राएल आखिर कैसा है.
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राष्ट्र भाषा
आधुनिक हिब्रू के अलावा अरबी इस्राएल की मुख्य भाषा है. ये दोनों 1948 में बने इस्राएल की आधिकारिक भाषाएं हैं. आधुनिक हिब्रू 19वीं सदी के अंत में बनी. पुरातन हिब्रू से निकली आधुनिक हिब्रू भाषा अंग्रेजी, स्लाविक, अरबी और जर्मन से भी प्रभावित है.
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छोटा सा देश
1949 के आर्मिस्टिक समझौते के मुताबिक संप्रभु इस्राएल का क्षेत्रफल सिर्फ 20,770 वर्ग किलोमीटर है. इस समझौते पर मिस्र, लेबनान, जॉर्डन और सीरिया ने दस्तखत किए थे. लेकिन फिलहाल पूर्वी येरुशलम से लेकर पश्चिमी तट तक इस्राएल के नियंत्रण में 27,799 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है. इस्राएल के उत्तर से दक्षिण की दूरी 470 किमी है. देश का सबसे चौड़ा भूभाग 135 किलोमीटर का है.
अनिवार्य सैन्य सेवा
इस्राएल दुनिया का अकेला ऐसा देश है जहां नागरिकों और स्थायी रूप से रहने वाली महिला व पुरुषों के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य है. 18 साल की उम्र के हर इस्राएली को योग्य होने पर तीन साल सैन्य सेवा करनी पड़ती है. महिलाओं को दो साल सेना में रहना पड़ता है.
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फलीस्तीन के समर्थक
नेतुरेई कार्टा का मतलब है कि "सिटी गार्ड्स." यह 1939 में बना एक यहूदी संगठन है. यह इस्राएल की स्थापना का विरोध करता है. इस संगठन का कहना है कि एक "यहूदी मसीहा" के धरती पर आने तक यहूदियों को अपना देश नहीं बनाना चाहिए. इस संगठन को फलीस्तीनियों का समर्थक माना जाता है.
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राष्ट्रपति पद ठुकराया
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइनस्टाइन भले ही पूजा नहीं करते थे, लेकिन जर्मनी में यहूदियों के जनसंहार के दौरान उनका यहूदी धर्म की तरफ झुकाव हो गया. उन्होंने यहूदी आंदोलन के लिए धन जुटाने के लिए ही अमेरिका की पहली यात्रा की. बुढ़ापे में उन्हें इस्राएल का राष्ट्रपति बनने का न्योता दिया गया, आइनस्टाइन ने इसे ठुकरा दिया.
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ईश्वर को चिट्ठियां
हर साल येरुशलम के डाक घर को 1,000 से ज्यादा ऐसे खत मिलते हैं, जो भगवान को लिखे जाते हैं. ये चिट्ठियां कई भाषाओं में लिखी होती हैं और विदेशों से भी आती हैं. ज्यादातर खत रूसी और जर्मन में होते हैं.
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येरुशलम की पीड़ा
इतिहास के मुताबिक येरुशलम शहर दो बार पूरी तरह खाक हुआ, 23 बार उस पर कब्जा हुआ, 52 बार हमले हुए और 44 बार शहर पर किसी और का शासन हुआ. गिहोन झरने के पास शहर का सबसे पुराना इलाका है, कहा जाता है कि इसे 4500-3500 ईसा पूर्व बनाया गया. इसे मुसलमानों, ईसाइयों और यहूदियों का पवित्र शहर कहा जाता है.
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पैसेंजर फ्लाइट का रिकॉर्ड
24 मई 1991 को इस्राएली एयरलाइन कंपनी एल अल का बोइंग 747 विमान 1,088 यात्रियों को लेकर इस्राएल पहुंचा. किसी जहाज में यह यात्रियों की रिकॉर्ड संख्या है. इथियोपिया के ऑपरेशन सोलोमन के तहत यहूदियों को अदिस अबाबा से सुरक्षित निकालकर इस्राएल लाया गया.
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खास है मुद्रा
इस्राएली मुद्रा शेकेल दुनिया की उन चुनिंदा मुद्राओं में से है जिनमें दृष्टिहीनों के लिए खास अक्षर हैं. दृष्टिहीनों की मदद करने वाली मुद्राएं कनाडा, मेक्सिको, भारत और रूस में भी हैं.