फलिस्तीनी स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक, 26 मई को गाजा के राफाह शहर में इस्राएल के हवाई हमले में कम-से-कम 45 लोग मारे गए हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही निंदा के बीच सुरक्षा परिषद ने आपातकालीन बैठक बुलाई है.
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26 मई को रफाह पर हुए इस्राएल के हवाई हमले की वैश्विक निंदा और सख्त प्रतिक्रियाओं के बावजूद मंगलवार, 28 मई को भी इस्राएल ने रफाह पर बमबारी की है. इस्राएली सैनिकों ने अल-मावासी इलाके के एक शिविर को निशाना बनाया है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने गाजा में स्वास्थ्य अधिकारियों के हवाले से बताया कि ताजा हमले में कम-से-कम 21 लोग मारे गए हैं. अल-मवासी, रफाह के पश्चिम में एक तटीय इलाका है. इस्राएल ने रफाह में लोगों को सुरक्षा के लिए यहां चले जाने की सलाह दी थी.
पिछले तीन हफ्ते से रफाह में जारी इस्राएली हमले के कारण करीब 10 लाख फलिस्तीनी यहां से भागने पर मजबूर हुए हैं. यह संख्या फलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था "यूनाइटेड नेशन्स रिलीफ एंड वर्क्स एजेंसी फॉर फलिस्तीन रिफ्यूजीस इन द नियर ईस्ट" (यूएनआरडब्ल्यूए) ने दी है.
यूएनआरडब्ल्यूए ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि बमबारी के बीच विस्थापित लोगों के पास कोई सुरक्षित जगह नहीं है. संस्था ने यह भी बताया है कि उनकी मदद कर पाना और सुरक्षा मुहैया कराना तकरीबन नामुमकिन है.
आईसीजे के फैसले के बाद हुआ हमला
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही निंदा और आलोचना के बावजूद रफाह में इस्राएली सेना की गतिविधियां जारी हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने चश्मदीदों के हवाले से बताया कि रफाह में अल-अवदा मस्जिद के नजदीक इस्राएल के टैंक नजर आए हैं. समाचार एजेंसी डीपीए ने इस्राएल की एक वेबसाइट के हवाले से बताया है कि जिस तल अल-सुल्तान इलाके में 26 मई को हमला हुआ, वहां इस्राएली आर्मी ने टैंक तैनात किए हैं. हालांकि, इस्राएली सेना ने इन खबरों की पुष्टि नहीं की है.
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26 मई को तल अल-सुल्तान में इस्राएल के एक हवाई हमले के दौरान विस्थापित फलिस्तीनियों के लिए बनाए गए एक शिविर में आग लगी. फलिस्तीन के स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि इस हमले में कम-से-कम 45 लोग मारे गए और दर्जनों लोग घायल हुए. गाजा में हमास के स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों ने घायलों की संख्या 249 बताई है. बयान के मुताबिक, मृतकों में 23 महिलाओं समेत कई बच्चे और बुजुर्ग शामिल हैं.
बड़े स्तर पर निंदा
यह हमला 24 मई को दिए गए अंतरराष्ट्रीय अदालत (आईसीजे) के फैसले के बाद हुआ. इसमें आईसीजे ने इस्राएल को तत्काल रफाह में अपनी सैन्य कार्यवाही बंद करने का आदेश दिया था. इस्राएल इस आदेश को मानने से इनकार कर रहा है. इस्राएल का दावा है कि रफाह हमले में उसके निशाने पर हमास अधिकारी थे. इस्राएली प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू ने इसे "दुखद घटना" बताया है. नेतन्याहू ने यह भी कहा कि घटना की जांच की जा रही है.
रफाह में हुए हमले पर सख्त प्रतिक्रियाओं के बीच 28 मई को आयरलैंड, नॉर्वे और स्पेन ने आधिकारिक तौर पर फलिस्तीन स्टेट को मान्यता दे दी. स्पेन के प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज ने टीवी पर अपने संबोधन में कहा, "फलिस्तीन स्टेट को मान्यता देना ना केवल ऐतिहासिक न्याय का मुद्दा है, बल्कि अगर हम सब शांति हासिल करना चाहते हैं तो यह एक अहम जरूरत भी है."
हमले पर प्रतिक्रिया देते हुए जर्मन सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि "इस्राएल को अंतरराष्ट्रीय कानूनों की रूपरेखा के भीतर अपनी रक्षा का अधिकार है." यह पूछे जाने पर कि क्या गाजा में इस्राएल की गतिविधियां युद्ध अपराध के दायरे में आती हैं, प्रवक्ता ने जवाब दिया कि जांच पूरी होने तक जर्मनी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचेगा. उधर फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने एक्स पर लिखा कि रफाह में हुए हमले से वह बेहद नाराज हैं. माक्रों ने लिखा, "रफाह में फलिस्तीनी नागरिकों के लिए कोई सुरक्षित हिस्सा नहीं है." दक्षिण अफ्रीका के विदेश मंत्रालय ने भी इस संबंध में बयान जारी कर इसे "निर्दोष नागरिकों पर निंदनीय और क्रूर हमले" बताया.
यूरोपीय संघ (ईयू) के सदस्य देशों के विदेश मंत्री ईयू-इस्राएल एसोसिएशन काउंसिल की बैठक बुलाने पर सहमत हो गए हैं. इसमें समीक्षा की जाएगी कि इस्राएल, ईयू के मानवाधिकार दायित्वों का पालन कर रहा है कि नहीं. चीन ने भी रफाह में इस्राएली सेना की कार्यवाही पर गंभीर चिंता जताई है.
कोलंबिया यूनिवर्सिटी: कैंपस में घुसी पुलिस, क्या है पूरा मामला
अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में चल रहे फलीस्तीन-समर्थक प्रदर्शनों के बीच 30 अप्रैल की रात न्यूयॉर्क पुलिस विश्वविद्यालय परिसर में दाखिल हुई. कई गिरफ्तारियां भी हुई हैं. जानिए क्या है पूरा मामला.
तस्वीर: Caitlin Ochs/REUTERS
दुनियाभर में हो रहे हैं प्रदर्शन
7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इस्राएल पर हमला किया. इसके बाद से ही इस्राएल और हमास में सैन्य संघर्ष जारी है. कहीं इस्राएल, तो कहीं फलीस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं. फलीस्तीन-समर्थक प्रदर्शनों पर कई बार यहूदी-विरोधी होने के आरोप लगे. नवंबर 2023 में जो बाइडन प्रशासन ने अमेरिकी स्कूलों और कॉलेजों को चेतावनी दी कि वे यहूदी-विरोध और इस्लामोफोबिया, दोनों को रोकने के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाएं.
तस्वीर: Ekaterina Venkina/DW
प्रदर्शनों में यहूदी-विरोध पर चिंता
इसी क्रम में रिपब्लिकन पार्टी ने अमेरिका के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में यहूदी-विरोध माहौल और मामलों की जांच का अभियान शुरू किया. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की प्रेसिडेंट क्लॉडिन गे, पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी की प्रेसिडेंट लिज मैगिल और एमआईटी की प्रेसिडेंट सैली कोर्नब्लूठ को दिसंबर 2023 में कांग्रेस के आगे पेश होना पड़ा.
तस्वीर: Ekaterina Venkina/DW
कॉलेज परिसर में एंटीसेमिटिज्म!
इन सभी से कैंपस में यहूदी-विरोध के मुद्दे पर सवाल-जवाब हुए. पूछा गया कि उनके संस्थान ने विश्वविद्यालय परिसर में यहूदी-विरोध की घटनाओं पर क्या कदम उठाए हैं. कई लोगों को उनके जवाब बेहद नपे-तुले और एहतियाती लगे. रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रैटिक पार्टी के कुछ नेताओं समेत व्हाइट हाउस ने भी इन जवाबों से असंतुष्टि दिखाई.
तस्वीर: Ekaterina Venkina/DW
यूनिवर्सिटी प्रेसिडेंट्स की आलोचना
9 दिसंबर को पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी की प्रेसिडेंट लिज मैगिल ने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद जनवरी 2024 में हार्वर्ड की प्रेसिडेंट क्लॉडिन गे ने भी इस्तीफा दे दिया. आरोप था कि कांग्रेस के आगे पूछताछ में वह स्पष्ट तौर पर नहीं कह पाईं कि विश्वविद्यालय परिसर में यहूदियों के खिलाफ नरसंहार की अपील कॉलेज के कायदों का उल्लंघन होगा.
तस्वीर: Ekaterina Venkina/DW
कोलंबिया यूनिवर्सिटी की प्रेसिडेंट पर भी सवाल उठे
इन बड़े विश्वविद्यालयों के साथ ही कोलंबिया परिसर पर भी सवाल उठे. यहां इस्राएल के खिलाफ हुए प्रदर्शनों पर यहूदी-विरोधी होने के आरोप लगे. यूनिवर्सिटी की प्रेसिडेंट नेमत शाफिक की आलोचना हुई कि वह परिसर में यहूदी-विरोध से निपटने के लिए पर्याप्त कोशिश नहीं कर रही हैं. रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं ने आरोप लगाया कि शाफिक ने विश्वविद्यालय को एंटीसेमिटिज्म का गढ़ बनने दिया.
तस्वीर: Mariam Zuhaib/AP/picture alliance
"यहूदी-विरोध की कैंपस में कोई जगह नहीं"
इन्हीं आरोपों के मद्देनजर 17 अप्रैल को नेमत शाफिक सवाल-जवाब के लिए कांग्रेस के आगे पेश हुईं. उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार किया. स्पष्ट कहा कि यहूदी-विरोध की कैंपस में कोई जगह नहीं. पेशी की इसी तारीख से कोलंबिया यूनिवर्सिटी में फलीस्तीन-समर्थक छात्रों ने प्रदर्शन के लिए एक शिविर बना लिया.
तस्वीर: Ekaterina Venkina/DW
प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी शुरू हुई
18 अप्रैल को इन्हें हटाने के लिए न्यू यॉर्क शहर की पुलिस को बुलाया गया. पुलिस ने प्रदर्शन शिविर हटाया और 100 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया. प्रदर्शन में शामिल कई छात्रों ने कहा कि उन्हें कोलंबिया और बर्नार्ड कॉलेज से निलंबित कर दिया गया है. इनमें मिनेसोटा से डेमोक्रैटिक पार्टी की सांसद इलहान ओमर की बेटी इसरा हिरसी भी शामिल हैं.
तस्वीर: Ekaterina Venkina/DW
कई कॉलेज कैंपसों में प्रदर्शन
कैंपस में पुलिस के पहुंचने के बाद से कोलंबिया यूनिवर्सिटी में तनाव बढ़ने लगा. कई जगहों पर, खासकर कॉलेजों में प्रदर्शन बढ़ गए. हार्वर्ड की तर्ज पर मिशिगन यूनिवर्सिटी, एमआईटी, न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना में भी फलीस्तीन-समर्थक प्रदर्शन शिविर बन गए.
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प्रदर्शनकारियों की मांग
हार्वर्ड में फलीस्तीन-समर्थक प्रदर्शनकारियों ने मांग रखी कि विश्वविद्यालय उन कंपनियों से ताल्लुक खत्म करें, जिनका इस्राएल से संबंध है. प्रदर्शनकारियों और कॉलेज प्रशासन के बीच जारी गतिरोध के बीच 22 अप्रैल से यूनिवर्सिटी में इन-पर्सन क्लासें रद्द कर दी गईं. न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में भी पुलिस बुलाई गई, दर्जनों प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया.
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राष्ट्रपति बाइडेन का बयान
कॉलेजों में बढ़ते तनाव को देखते हुए राष्ट्रपति बाइडेन ने बीच का रास्ता निकालने की अपील की. उन्होंने यहूदी-विरोध की निंदा की. साथ ही, यह भी जोड़ा कि जो नहीं जानते कि फलीस्तीनियों के साथ क्या हो रहा है, वह उनकी भी निंदा करते हैं.
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कोलंबिया में गतिरोध जारी रहा
इधर 24 अप्रैल को कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों को शिविर खत्म करने का अल्टीमेटम दिया. कई प्रदर्शनकारी समयसीमा खत्म होने के बाद भी वहीं रहे. उनकी मांग थी कि जब तक कॉलेज इस्राएल या गाजा में जारी युद्ध का समर्थन करने वाली कंपनियों से संबंध तोड़ने को राजी नहीं होता, तब तक प्रदर्शन जारी रहेगा.
तस्वीर: Ekaterina Venkina/DW
देशभर के कई कॉलेज कैंपसों में तनाव
इस दौरान और भी जगहों पर विश्वविद्यालय परिसरों में तनाव बना रहा. यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस में पुलिस और प्रदर्शनकारी भिड़े. प्रदर्शनकारियों को कैंपस से बाहर कर दिया गया. यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया में भी पुलिस ने कई प्रदर्शनकारी छात्रों को गिरफ्तार किया.
तस्वीर: Ekaterina Venkina/DW
कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रशासन ने दिया अल्टीमेटम
समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक, 29 अप्रैल तक देशभर के कॉलेज कैंपसों से गिरफ्तार किए गए प्रदर्शनकारियों की संख्या 1,000 तक पहुंच गई. कोलंबिया में भी प्रदर्शनकारी छात्रों द्वारा लगाए गए तंबुओं की संख्या 100 से ज्यादा हो गई. प्रशासन ने कहा कि दोपहर दो बजे की समयसीमा तक शिविर खाली ना करने वाले छात्रों को निलंबित किया जाएगा.
तस्वीर: Caitlin Ochs/REUTERS
कॉलेज के एक हॉल पर प्रदर्शनकारियों का नियंत्रण
30 अप्रैल को तनाव तब और गहरा गया, जब प्रदर्शनकारियों ने कोलंबिया परिसर स्थित हैमिल्टन हॉल पर कब्जा कर लिया. उन्होंने प्रवेश की जगहों पर बैरिकेड्स लगा दिए. खिड़की पर "फ्री पैलेस्टाइन" का बैनर टांग दिया. प्रदर्शनकारियों ने तीन मांगें रखीं: इस्राएल और गाजा में युद्ध का समर्थन करने वाली कंपनियों में निवेश ना हो, वित्तीय पारदर्शिता और प्रदर्शनकारी छात्रों पर लगाए गए आरोपों पर माफी.
तस्वीर: Ekaterina Venkina/DW
पुलिस कैसे पहुंची कैंपस?
30 अप्रैल की रात यूनिवर्सिटी की प्रेसिडेंट नेमत शाफिक ने न्यूयॉर्क पुलिस को एक चिट्ठी भेजी. इसमें उन्होंने पुलिस से दखल देने और कार्रवाई करने की मांग की. शाफिक ने लिखा, "प्रदर्शनकारियों की गतिविधियां हमारे दरवाजे के बाहर भी प्रोटेस्टर्स के लिए चुंबक का काम कर रही हैं, जिससे हमारे कैंपस के लिए जोखिम बढ़ गया है."
तस्वीर: Jose Luis Magana/AP/picture alliance
दर्जनों प्रदर्शनकारी गिरफ्तार किए गए
इसके बाद बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी परिसर पहुंचे. उन्होंने कॉलेज के एक प्रवेश द्वार के पास जमा हुए प्रदर्शनकारियों को हटने का आदेश दिया. इसके बाद दर्जनों पुलिसकर्मी परिसर में दाखिल हुए. उन्होंने हैमिल्टन हॉल से प्रदर्शनकारियों को हटाया. कइयों को गिरफ्तार किया गया. यूनिवर्सिटी की प्रेसिडेंट नेमत शाफिक ने पुलिस से कहा है कि वो कम-से-कम 17 मई तक परिसर में मौजूदगी बनाए रखे.
तस्वीर: Julius Motal/AP Photo/picture alliance
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"भयंकर स्थिति है"
30 साल की फातेन जाउदा तल अल-सुल्तान में रहती हैं. उन्होंने एएफपी को बताया, "बहुत खतरनाक स्थिति है. हम पूरी रात नहीं सोए. हर दिशा से बमबारी हो रही है. हमने देखा कि लोग फिर से भाग रहे हैं. हम भी अब निकल जाएंगे और अल-मवासी की ओर बढ़ेंगे क्योंकि हमें अपनी जान का खतरा है."
स्कूल टीचर मुहम्मद अबू रदवान भी रफाह में रहते थे. 6 मई को रफाह पर इस्राएल की बमबारी शुरू होने के बाद उन्हें भागना पड़ा. उनके साथ दो और परिवारों ने करीब 1,000 डॉलर के बराबर रकम देकर गधागाड़ी किराये पर ली और छह किलोमीटर दूर खान युनूस के बाहरी हिस्से में पहुंचे. अब वह यहां एक टेंट में अपनी पत्नी, छह बच्चों और परिवार के बाकी सदस्यों के साथ रह रहे हैं.
उन्होंने अपने तंबू के पास एक गड्ढा खोदा और ओट के लिए चारों तरफ से कंबल और कपड़े टांग दिए. यही गड्ढा अभी उनके परिवार का शौचालय है. मुहम्मद ने एपी को बताया, "भयंकर स्थिति है. तंबू में 20 लोग हैं, साफ पानी नहीं है, ना ही बिजली है. हमारे पास कुछ भी नहीं है." वह कहते हैं, "मैं नहीं बता सकता कि लगातार विस्थापित होते रहने, अपनों को खोने से कैसा महसूस होता है."
मानवाधिकार समूह मर्सी कोर ने समाचार एजेंसी एपी को बताया कि टेंट बनाने के लिए लकड़ी और तारपोलिन का खर्च 500 डॉलर तक पहुंच गया है. रस्सी, कील और माल ढुलाई का खर्च अलग है. गाजा में पहले ही खाद्य आपूर्ति, ईंधन और बाकी जरूरी सामानों की कमी के कारण हालत काफी खराब है. सहायता सामग्री की कमी के कारण संयुक्त राष्ट्र और बाकी मानवाधिकार संगठनों के लिए राहत और बचाव कर पाना बेहद मुश्किल हो रहा है. बेघर हो चुके ज्यादातर फलिस्तीनयों के लिए भी बुनियादी चीजों का खर्च उठा पाना मुश्किल है. गाजा में कई लोगों को महीनों से वेतन नहीं मिला है और उनकी बचत खत्म होती जा रहा है. जिनके बैंक खातों में पैसे हैं भी, वो भी नकदी की किल्लत के कारण पैसे निकाल नहीं पा रहे हैं.