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इस्राएल के प्रधानमंत्री का भारत दौरा

२१ मार्च २०२२

भारत-इस्राएल कूटनीतिक रिश्तों के 30 साल होने के मौके पर इस्राएल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट भारत आएंगे. बेनेट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 2021 में ग्लासगो में मिले थे, लेकिन यह उनकी पहली आधिकारिक भारत यात्रा होगी.

इस्राएली प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट
इस्राएली प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेटतस्वीर: Tsafrir Abayov/Pool/picture alliance

बेनेट के कार्यालय द्वारा जारी किए गए एक बयान में बताया गया है कि वो मोदी द्वारा दिए गए निमंत्रण पर दो अप्रैल को भारत आएंगे. बयान में कहा गया, "यह यात्रा दोनों देशों और उनके नेताओं के बीच महत्वपूर्ण संबंध की पुनः पुष्टि करेगी और दोनों देशों के बीच संबंधों की स्थापना की 30वीं वर्षगांठ को चिह्नित करेगी." 

बयान में यह भी बताया गया कि बेनेट की यात्रा का उद्देश्य "दोनों देशों के सामरिक मैत्रीपूर्ण संबंधों को और आगे बढ़ाना और मजबूत करना और आपसी रिश्तों का विस्तार करना है. इसके अलावा, दोनों नेता कई क्षेत्रों में सहयोग को और मजबूत करने पर भी चर्चा करेंगे, जिनमें इनोवेशन, अर्थव्यवस्था, शोध और विकास, कृषि और अन्य क्षेत्र शामिल हैं."

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यूक्रेन युद्ध पर इस्राएल का रुख

मीडिया रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि बेनेट की यात्रा चार दिनों की होगी और वो पांच अप्रैल को वापस इस्राएल लौटेंगे. यह यात्रा ऐसे समय पर होगी जब यूक्रेन युद्ध के बीच अंतरराष्ट्रीय जगत में युद्ध को लेकर भारत के रुख पर काफी चर्चा हो रही है. भारत ने युद्ध की तुरंत समाप्ति की मांग की है लेकिन पश्चिमी देशों के खेमे की तरह रूस की आलोचना नहीं की है.

जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के साथ इस्राएली प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेटतस्वीर: Bundespresseamt/dpa/picture alliance

बल्कि संयुक्त राष्ट्र में भारत ने रूस के खिलाफ प्रस्तावों पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया, और रूस ने इस बात की तारीफ की थी. अमेरिका और कई यूरोपीय देश भारत को अपने रुख का फिर से मूल्यांकन करने की सलाह दे रहे है. ब्रिटेन ने तो साफ साफ कह दिया है कि वो भारत से निराश है. हालांकि जापान और ऑस्ट्रेलिया ने ऐसी निराशा जाहिर नहीं की है.

ऑस्ट्रेलिया ने तो यहां तक कहा है कि भारत के अलग रुख से कोई नाराज नहीं है और प्रधानमंत्री मोदी युद्ध को खत्म करने के लिए अपनी तरफ से कोशिशें कर रहे हैं. युद्ध पर इस्राएल का रुख काफी दिलचस्प रहा है. इस्राएल दोनों पक्षों के बीच एक मुश्किल संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है.

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उसने संयुक्त राष्ट्र में तो रूस के हमले की आलोचना पर पश्चिमी खेमे के साथ ही मतदान किया लेकिन उसके कुछ ही दिनों बाद बेनेट रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिलने मॉस्को गए. बेनेट ने अपने सभी सार्वजनिक बयानों में रूस की आलोचना से परहेज किया है, जबकि उनके विदेश मंत्री याइर लैपिड ने रूस की कड़ी आलोचना की है.

मध्यस्थ की भूमिका

बेनेट पुतिन से मिलने के बाद यूरोप गए थे और कई यूरोपीय नेताओं से मिले थे. ऐसा कर उन्होंने युद्ध के बीच रूस और पश्चिमी खेमे के बीच एक मध्यस्थ की छवि दिखाने की कोशिश की है. रूस और यूक्रेन दोनों देशों में यहूदियों की बड़ी आबादी रहती है और इस लिहाज से भी यहूदी देश होने के नाते इस्राएल की भूमिका और दिलचस्प हो जाती है.

इस्राएली जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस को लेकर भारत में काफी बड़ा विवाद हैतस्वीर: Jean-François Frey//L'ALSACE/PHOTOPQR/MAXPPP7/picture alliance

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेंस्की भी यहूदी हैं और उन्होंने इस्राएल से यूक्रेन के यहूदियों की रक्षा का हवाला देते हुए यूक्रेन की मदद करने का अनुरोध किया है. विशेष रूप से उन्होंने इस्राएल से उसके मिसाइल डिफेंस सिस्टम को साझा करने का अनुरोध किया है.

संभव है भारत में भी बेनेट और मोदी के बीच बातचीत में यूक्रेन पर चर्चा हो. हालांकि उनके यात्रा के केंद्र में भारत-इस्राएल संबंध ही रहेंगे. भारत ने 1992 में तेल अवीव में अपने दूतावास की स्थापना की थी. कई सालों तक दोनों देशों के संबंध रक्षा और कृषि क्षेत्रों में केंद्रित रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में और भी क्षेत्रों में साझेदारी बढ़ी है.

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दोनों नेताओं के बीच नवंबर 2021 में ग्लासगो में सीओपी26 जलवायु शिखर सम्मेलन के मौके पर मुलाकात हुई थी. महामारी के दौरान भी दोनों देशों के बीच काफी सहयोग रहा. अप्रैल 2020 में ही भारत ने बड़ी मात्रा में मास्क और दवाएं इस्राएल भेजी थीं.

उसके बाद इस्राएल ने भी एक इस्राएली कंपनी से वेंटीलेटर और अन्य मेडिकल उपकरण खरीदने में भारत की मदद की थी. भारत में महामारी की दूसरी लहर के दौरान इस्राएल ने कई वेंटीलेटर, ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर और ऑक्सीजन बनाने वाले संयंत्र भी भारत को दिए थे. हालांकि पेगासस मामले में  भारत-इस्राएल संबंधों को लेकर विवाद भी रहा.

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