इस्राएल तीन साल में पांचवें आम चुनाव की ओर बढ़ रहा है. इस्राएली सरकार ने संसद भंग करने का फैसला किया है. प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट कहा है कि यह आसान फैसला नहीं था, लेकिन 'इस्राएल के अच्छा फैसला है.'
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इस्राएल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट और विदेश मंत्री याइर लापिड देश में समय से पहले चुनाव कराने पर सहमत हो गए हैं. अगले आम चुनाव इस साल अक्टूबर या नवंबर में हो सकते हैं. बेनेट ने प्रधानमंत्री पद छोड़ने का भी एलान किया है. इस तरह अगले चुनावों तक लापिड प्रधानमंत्री पद संभालेंगे. इस्राएली संसद क्नेसेट में अगले हफ्ते मतदान होगा, जिसमें नए चुनाव कराने पर मुहर लग जाएगी.
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में लापिड ने बेनेट की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने देश को अपने निजी हितों से आगे रखा. उन्होंने कहा, "भले ही हम कुछ महीनों में चुनावों की तरफ जा रहे हों, लेकिन देश के तौर पर हमारे सामने जो चुनौतियां हैं, वे इंतजार नहीं कर सकतीं".
उन्होंने कहा, "हमें बढ़ती महंगाई से निपटना है. ईरान, हमास और हिज्बोल्लाह के खिलाफ अभियान चलाना है और उन ताकतों के खिलाफ खड़े होना है, जो इस्राएल को एक अलोकतांत्रिक देश में बदलना चाहती हैं." यह बीते तीन साल में पांचवां मौका है, जब इस्राएल में आम चुनाव होने जा रहे हैं.
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क्या है इस्राएल
मुस्लिम देश इस्राएल को मध्यपूर्व में विवादों का केंद्र कहते हैं. एक तरफ उसके आलोचक हैं तो दूसरी तरफ उसके मित्र. लेकिन इस रस्साकसी से इतर बहुत कम लोग जानते हैं कि इस्राएल आखिर कैसा है.
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राष्ट्र भाषा
आधुनिक हिब्रू के अलावा अरबी इस्राएल की मुख्य भाषा है. ये दोनों 1948 में बने इस्राएल की आधिकारिक भाषाएं हैं. आधुनिक हिब्रू 19वीं सदी के अंत में बनी. पुरातन हिब्रू से निकली आधुनिक हिब्रू भाषा अंग्रेजी, स्लाविक, अरबी और जर्मन से भी प्रभावित है.
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छोटा सा देश
1949 के आर्मिस्टिक समझौते के मुताबिक संप्रभु इस्राएल का क्षेत्रफल सिर्फ 20,770 वर्ग किलोमीटर है. इस समझौते पर मिस्र, लेबनान, जॉर्डन और सीरिया ने दस्तखत किए थे. लेकिन फिलहाल पूर्वी येरुशलम से लेकर पश्चिमी तट तक इस्राएल के नियंत्रण में 27,799 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है. इस्राएल के उत्तर से दक्षिण की दूरी 470 किमी है. देश का सबसे चौड़ा भूभाग 135 किलोमीटर का है.
अनिवार्य सैन्य सेवा
इस्राएल दुनिया का अकेला ऐसा देश है जहां नागरिकों और स्थायी रूप से रहने वाली महिला व पुरुषों के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य है. 18 साल की उम्र के हर इस्राएली को योग्य होने पर तीन साल सैन्य सेवा करनी पड़ती है. महिलाओं को दो साल सेना में रहना पड़ता है.
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फलीस्तीन के समर्थक
नेतुरेई कार्टा का मतलब है कि "सिटी गार्ड्स." यह 1939 में बना एक यहूदी संगठन है. यह इस्राएल की स्थापना का विरोध करता है. इस संगठन का कहना है कि एक "यहूदी मसीहा" के धरती पर आने तक यहूदियों को अपना देश नहीं बनाना चाहिए. इस संगठन को फलीस्तीनियों का समर्थक माना जाता है.
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राष्ट्रपति पद ठुकराया
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइनस्टाइन भले ही पूजा नहीं करते थे, लेकिन जर्मनी में यहूदियों के जनसंहार के दौरान उनका यहूदी धर्म की तरफ झुकाव हो गया. उन्होंने यहूदी आंदोलन के लिए धन जुटाने के लिए ही अमेरिका की पहली यात्रा की. बुढ़ापे में उन्हें इस्राएल का राष्ट्रपति बनने का न्योता दिया गया, आइनस्टाइन ने इसे ठुकरा दिया.
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ईश्वर को चिट्ठियां
हर साल येरुशलम के डाक घर को 1,000 से ज्यादा ऐसे खत मिलते हैं, जो भगवान को लिखे जाते हैं. ये चिट्ठियां कई भाषाओं में लिखी होती हैं और विदेशों से भी आती हैं. ज्यादातर खत रूसी और जर्मन में होते हैं.
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येरुशलम की पीड़ा
इतिहास के मुताबिक येरुशलम शहर दो बार पूरी तरह खाक हुआ, 23 बार उस पर कब्जा हुआ, 52 बार हमले हुए और 44 बार शहर पर किसी और का शासन हुआ. गिहोन झरने के पास शहर का सबसे पुराना इलाका है, कहा जाता है कि इसे 4500-3500 ईसा पूर्व बनाया गया. इसे मुसलमानों, ईसाइयों और यहूदियों का पवित्र शहर कहा जाता है.
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पैसेंजर फ्लाइट का रिकॉर्ड
24 मई 1991 को इस्राएली एयरलाइन कंपनी एल अल का बोइंग 747 विमान 1,088 यात्रियों को लेकर इस्राएल पहुंचा. किसी जहाज में यह यात्रियों की रिकॉर्ड संख्या है. इथियोपिया के ऑपरेशन सोलोमन के तहत यहूदियों को अदिस अबाबा से सुरक्षित निकालकर इस्राएल लाया गया.
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खास है मुद्रा
इस्राएली मुद्रा शेकेल दुनिया की उन चुनिंदा मुद्राओं में से है जिनमें दृष्टिहीनों के लिए खास अक्षर हैं. दृष्टिहीनों की मदद करने वाली मुद्राएं कनाडा, मेक्सिको, भारत और रूस में भी हैं.
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यहां तक बात कैसे पहुंची?
लापिड और बेनेट ने जून 2021 में कई और पार्टियों के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाई थी. इस तरह से दो साल से चला आ रहा राजनीतिक गतिरोध टूटा, क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री नेतान्याहू बार-बार सरकार बनाने में नाकाम साबित हो रहे थे.
इस गठबंधन में दक्षिणपंथी, उदारवादी और मुस्लिम अरब पार्टियां हैं और इनके बीच अहम मुद्दों पर तीखे मतभेद पाए जाते हैं. बेनेट ने गठबंधन बनाए रखने के लिए बहुत संघर्ष किया, लेकिन गठबंधन में आई दरारों को रोका नहीं जा सका. इसी का नतीजा है कि सरकार बीते दो महीनों से संसद में अपना बहुमत खो चुकी है.
मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन की दो बड़ी पार्टियों की तरफ से जारी बयान में कहा गया, "गठबंधन को स्थिर करने की तमाम कोशिशें नाकाम होने के बाद प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट और याइर लापिड ने अगले हफ्ते संसद भंग करने का विधेयक पेश करने का फैसला किया है."
इस गठबंधन का गठन बुनियादी रूप से पूर्व प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतान्याहू को सत्ता से हटाने के लिए किया गया था, जो अभी विपक्ष के नेता हैं. नेतान्याहू का गठबंधन बार-बार होने वाले चुनावों में सबसे बड़े धड़े के रूप में उभरा, लेकिन उसे बहुमत नहीं मिला. हर चुनाव के बाद सरकार बनाने की उनकी कोशिशें नाकाम होती गईं. लेकिन, उनकी जगह लेने वाला गठबंधन भी अपने अंतर्विरोधों के कारण ज्यादा नहीं टिक पाया और देश अब फिर आम चुनाव के मुहाने पर खड़ा है.