डब्ल्यूटीओ की प्रासंगिकता खतरे में है. सदस्य देश मनमाने तरीके से काम कर रहे हैं. अमेरिका और भारत जैसे देशों का रवैया चिंताजनक है.
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विश्व व्यापार संगठन में एक संकट विकराल होता जा रहा है. सदस्य देशों के बीच विवादों के मामलों का अंबार बढ़ता जा रहा है, और चिंताएं भी. 2019 के बाद से अमेरिका ने संगठन के अपील बोर्ड में नये जजों की नियुक्ति नहीं होने दी है. इस कारण 29 मामले लंबित पड़े हैं और विवाद सुलझाने की संगठन की पूरी व्यवस्था ठप्प हो गयी है.
जिन देशों के विवाद लंबित हैं, उनमें चीन, डॉमिनिकन रिपब्लिक, भारत, इंडोनेशिया. मोरक्को, पाकिस्तान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका शामिल हैं.
कौन से देश हैं सबसे बड़े एक्सपोर्टर और इंपोर्टर
दुनिया में कुछ ही देश हैं जिनका एक्सपोर्ट कीमत के लिहाज से कुल इंपोर्ट से ज्यादा है. यूक्रेन युद्ध के बाद सूची में काफी उथल पुथल हुई है.
तस्वीर: Wang Chun/CFOTO/picture alliance
चीन सबसे बड़ा निर्यातक
चीन दुनिया का सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है. उसका नेट ट्रेड 401 अरब डॉलर से ज्यादा का है. नेट ट्रेड कुल एक्सपोर्ट और इंपोर्ट का अंतर होता है.
तस्वीर: Wang Chun/CFOTO/picture alliance
रूस दूसरे नंबर पर
दूसरा नंबर रूस का है, जिसका कुल नेट ट्रेड 233 अरब डॉलर का है. यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस पर लगीं पाबंदियों के बावजूद उसके कुल निर्यात में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है.
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नॉर्वे सबसे बड़ा यूरोपीय देश
2022 में नेट ट्रेड सरप्लस के मामले में नॉर्वे तीसरे नंबर पर रहा. उसने अपने कुल आयात से ज्यादा 175.4 अरब डॉलर ज्यादा का निर्यात किया.
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जर्मनी ने भी कमाये अरबों
जर्मनी इस मामले में चौथा सबसे बड़ा देश है. 2022 में उसका नेट ट्रेड 172.7 अरब डॉलर का रहा. मशीनरी और कारों के निर्यात में जर्मनी सबसे ऊपर बना हुआ है.
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निवेश ना करने पर आलोचना
जापान 91 अरब डॉलर के नेट ट्रेड के साथ सूची में पांचवें नंबर पर है. इतने अधिक नेट सरप्लस के कारण इन देशों की आलोचना भी होती है. उन पर निवेश करने के बजाय धन जमा करने का आरोप लगता है.
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अमेरिका सबसे बड़ा आयातक
अमेरिका आज भी दुनिया का सबसे बड़ा आयातक है. 2022 में उसने जितना निर्यात किया उससे 943.8 अरब डॉलर ज्यादा का आयात किया. वह चीन से बहुत आयात करता है, इस कारण उस पर चीन का बड़ा कर्ज भी हो गया है.
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भारत तीसरे नंबर पर
2022 में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा आयातक देश रहा. अमेरिका और उसके बीच में सिर्फ युनाइटेड किंग्डम है. भारत का नेट ट्रेड माइनस 80.4 अरब डॉलर का रहा, जबकि यूके का माइनस 121.4 अरब डॉलर का.
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पिछले महीने पूर्व उप महासचिव ऐलन वॉल्फ ने एक सम्मेलन में सदस्य देशों से अपील की कि 2024 से नये विवाद दायर करने से परहेज करें. संगठन ने कहा है कि कोविड महामारी, यूक्रेन में युद्ध और महंगाई जैसे एकाधिक कारणों से वैश्वीकरण में भरोसे को भारी नुकसान हुआ है. नतीजतन डब्ल्यूटीओ के नियमों के प्रति सम्मान लगातार घट रहा है.
बढ़ रहा है नुकसान
पिछले महीने डब्ल्यूटीओ के सदस्य देश एकपक्षीय निर्णय ले रहे हैं, जो जारी रहता है तो वैश्विक अर्थव्यवस्था में दरारें पड़ जाएंगी और पांच फीसदी वैश्विक आय का नुकसान होगा.
2018 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप एक के बीद एक चीन और अन्य देशों पर व्यापारिक प्रतिबंध लगा रहे थे. हालांकि तब से प्रतिबंधों में तो कमी आयी है लेकिन विभिन्न देशों द्वारा अपने यहां निर्यात पर लगाये गये प्रतिबंधों के कारण नुकसान बढ़ा है.
2016 से 2019 के बीच ऐसे व्यापारिक प्रतिबंधों का औसत सालाना 21 का था. लेकिन पिछले साल इनकी संख्या बढ़कर 139 पर पहुंच गयी थी. मसलन, भारत ने अपने यहां चावल और गेहूं के निर्यात पर कई तरह के प्रतिबंध लगाये हैं. इसी तरह अमेरिका ने इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट लागू कर क्लीन-टेक पर सब्सिडी कम कर दी है, ताकि अमेरिका में उत्पादन बढ़ाया जा सके और चीन से आ रहे इलेक्ट्रिक वाहन महंगे हो गये हैं. यूरोप भी चीन की ईवी तकनीक की जांच कर रहा है. इन प्रतिबंधों ने डब्ल्यूटीओ में चिंताएं बढ़ा दी हैं.
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प्रासंगिकता का संकट
अमेरिका ने बाई अमेरिकन एक्ट के तहत किसी भी उत्पाद में स्थानीय सामग्री के इस्तेमाल की मात्रा बढ़ा दी है. इसी तरह यूरोपीय संघ ने कम कार्बन उत्सर्जन और महत्वपूर्ण खनिजों की घरेलू सप्लाई बढ़ाने के नाम पर कई तरह की सब्सिडी दी हैं.
गरीब देशों पर कितना कर्ज
वर्ल्ड बैंक की अंतरराष्ट्रीय कर्ज रिपोर्ट 2021 के मुताबिक इन देशों पर जीडीपी से कई गुना ज्यादा कर्ज है.
अफ्रीकी देश सूडान पर जीडीपी का 181.9 फीसदी लोन है. सरकारी राजस्व का बड़ा हिस्सा कर्ज की अदायगी में खर्च हो रहा है.
तस्वीर: AP/dpa/picture alliance
03. इरीट्रिया
कर्ज अदायगी पर बजट का 20 फीसदी खर्च करने वालों में अफ्रीकी देश इरीट्रिया भी शामिल है. लंबे वक्त से हिंसा का सामना कर रहे इरीट्रिया पर जीडीपी का 176.25 फीसदी ऋण है.
तस्वीर: Mey Dudin/dpa/picture alliance
04. लेबनान
50 लाख की आबादी वाला लेबनान मध्यपूर्व के सबसे छोटे देशों में शामिल है. 10,452 वर्ग किलोमीटर भूभाग में फैले लेबनान पर 150.6 प्रतिशत कर्ज है.
तस्वीर: Hassan Ammar/AP/picture alliance
05. केप वेर्डे
मध्य अटलांटिक महासागर में 10 द्वीप समूहों से बने देश केप वेर्डे पर 142.3 फीसदी लोन है. 1975 में पुर्तगाल से आजाद होने वाला यह देश जलवायु परिवर्तन से भी परेशान है.
तस्वीर: Seyllou/AFP/Getty Images
06. सूरीनाम
दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप के एकदम उत्तरी सिरे पर बसे सूरीनाम पर जीडीपी का 125.7 फीसदी लोन है. देश एल्युमीनियम के अयस्क बॉक्साइट और कृषि उत्पादों के निर्यात पर काफी हद तक निर्भर है.
तस्वीर: Ranu Abhelakh/AFP
07. मालदीव
भारत का पड़ोसी मालदीव, सफेद रेत वाले तटों और टूरिज्म के लिए मशहूर हैं. लेकिन टूरिज्म की इस चमक के पीछे छुपी अर्थव्यवस्था पर 124.8 प्रतिशत कर्जा है.
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हाइनरिष फाउंडेशन में सीनियर फेलो कीथ रॉकवेल कहते हैं कि डब्ल्यूटीओ अप्रासंगिक हो जाने के कगार पर पहुंच गया है.
वह कहते हैं, "लोग डब्ल्यूटीओ के प्रति जवाबदेही को लेकर किसी तरह का बंधन ही महसूस नहीं कर रहे हैं. एक दशक पहले ऐसा नहीं था.”
रॉकवेल कहते हैं कि दुनिया में नियम-आधारित व्यापारिक व्यवस्था बनाने का सबसे बड़ा प्रचारक रहा अमेरिका भी अब डब्ल्यूटीओ को लेकर लापरवाह हो गया है.
कई देशों ने डब्ल्यूटीओ के नियमों में दिये गये अपवादों का फायदा उठाया है. मसलन, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए नियमों में कुछ छूट मिलती है. इसे आधार बनाकर अमेरिका ने धातुओं का आयात कम कर दिया है. इसी तरह कई खाड़ी देशों ने कतर के साथ व्यापार पर कई तरह की रोक लगा दी हैं.
उधर चीन ने अहम खनिजों का निर्यात रोक दिया है तो अमेरिका ने ऐसे नियम बना दिये हैं कि चीन उसकी तकनीक इस्तेमाल ना कर सके. विशेषज्ञ कहते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा ने वैश्विक व्यापार नियमों के दायरे को तोड़ दिया है.
सुधारों की जरूरत
डब्ल्यूटीओ में 164 सदस्य देश हैं. उसके 620 कर्मचारी जेनेवा झील के किनारे बनी एक कलात्मक इमारत से काम करते हैं. लेकिन इस इमारत की प्रतीकात्मक अहमियत लगातार कम हो रही है और सुधारों की सख्त दरकार है. पर समस्या ये है कि किसी भी तरह के बदलाव के लिए पूर्ण सहमति की जरूरत होती है, जो मौजूदा हालात में लगभग असंभव दिखायी दे रही है.
अब सबसे ज्यादा व्हिस्की गटकता है भारत
दुनिया के सारे व्हिस्की बनाने वालों की निगाहें भारत पर लगी हैं. पिछले दस साल में व्हिस्की की बिक्री 200 फीसदी बढ़ गई है. देखिए, यूके स्थित स्कॉच व्हिस्की एसोसिएशन के मुताबिक दुनिया के सबसे ज्यादा व्हिस्की पीने वाले देश.
तस्वीर: Sertan Sanderson/DW
सबसे ज्यादा व्हिस्की गटकता है भारत
स्कॉच व्हिस्की की बिक्री के मामले में भारत पहले नंबर पर आ गया है. उसने फ्रांस से यह स्थान हासिल किया है. 2022 में भारत में स्कॉच की 21.9 करोड़ बोतलें बिकीं.
तस्वीर: Ian Stewart/AFP
फ्रांस
फ्रांस में व्हिस्की अब भी पसंदीदा ड्रिंक है. वहां पिछले साल 20.5 करोड़ बोतलें बिकीं जो 2021 के मुकाबले 17 फीसदी ज्यादा था.
तस्वीर: picture alliance / Zoonar
अमेरिका
कीमत के लिहाज से देखा जाए तो अमेरिका दुनिया में व्हिस्की का सबसे बड़ा बाजार है. 2022 में वहां 10,585 करोड़ रुपये की व्हिस्की बिकी. हालांकि बोतलों की संख्या के हिसाब से 13.7 करोड़ डॉलर बनता है.
तस्वीर: Andrew Kelly/REUTERS
ब्राजील
2022 में ब्राजील में 14 फीसदी ज्यादा बोतलें यानी 9.3 करोड़ बिकीं. हालांकि कीमत के लिहाज से देखा जाए तो ब्राजील सबसे बड़े दस बाजारों में शामिल नहीं है.
तस्वीर: Roberto Pera/dpa/picture-alliance
जापान
जापान में 2022 में 7.5 करोड़ बोतल बिकीं और संख्या के मामले में यह पांचवें नंबर पर रहा. 2021 से यह 33 फीसदी ज्यादा था.
तस्वीर: YoshikazuTsuno/AFP/Getty Images
जर्मनी
बियर के प्यार के लिए मशहूर जर्मनी के लोगों ने 2022 में 2,000 करोड़ रुपये की व्हिसकी पी, जो बोतलों की संख्या में 4.3 करोड़ है.
तस्वीर: Christof Stache/AFP/Getty Images
स्पेन
सातवें नंबर पर सबसे ज्यादा 6.7 करोड़ व्हिस्की बोतलें स्पेन में बिकीं, जिनकी कीमत 1,186 करोड़ रुपये थी.
तस्वीर: Nacho Doce/REUTERS
पोलैंड
4.9 करोड़ बोतलों की बिक्री के साथ पोलैंड आठवें नंबर पर रहा, जो 2021 से कुछ ही ज्यादा है. उस साल 4.5 करोड़ बोतल व्हिस्की बिकी थी.
नौवें नंबर पर है मेक्सिको जहां 2022 में 4.8 करोड़ बोतल बिकीं. यह 2021 से मात्र दो फीसदी ज्यादा है.
तस्वीर: RONALDO SCHEMIDT/AFP via Getty Images
दक्षिण अफ्रीका
टॉप 10 देशों में आखरी है दक्षिण अफ्रीका जहां 2022 में 3.9 करोड़ बोतल बिकीं. यह 2021 के 3.4 करोड़ बोतलों से यह आगे बढ़ गया है.
तस्वीर: Sertan Sanderson/DW
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सबसे बड़ा सुधार तो अपील बॉडी को दोबारा सक्रिय करने से जुड़ा है, जो अमेरिका को स्वीकार नहीं है. अमेरिका मानता है कि डब्ल्यूटीओके सुधारों के केंद्र में विभिन्न देशों की सरकारी कंपनियों की भेदभावपूर्ण गतिविधियां होनी चाहिए, क्योंकि उनके कारण प्रतिद्वन्द्विता प्रभावित होती है. उसका इशारा चीन की ओर है.
डब्ल्यूटीओ के सुधारों में वे मुद्दे भी हैं जो इसके गठन के वक्त ध्यान में नहीं रखे गये थे. जैसे कि जलवायु परिवर्तन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा स्थानांतरण की प्रक्रिया. फरवरी में जब डब्ल्यूटीओ का 13वां मंत्री-स्तरीय सम्मेलन होगा तो सुधारों का मुद्दा चर्चा के केंद्र में होगा.
अव्यवस्था का खतरा
एक सदस्य देश के अधिकारी ने जेनेवा में बताया कि ऐसा लगता है कि अब अमेरिका वैश्विक नियमों को उदार बनाने को अपने हित में नहीं मानता. 2024 में यह विचार और ज्यादा मजबूत हो सकता है, जब वहां राष्ट्रपति चुनाव होने हैं.
इस अधिकारी ने बताया, "अगर वे ऐसा नहीं मानते तो इससे डब्ल्यूटीओ की धार कुंद हो जाती है. जिन वजहों से 12वें सम्मेलन में मुश्किलें आयी थीं, वही 13वें सम्मेलन को भी मुश्किल बनाएंगी. यानी भारत का विरोध और अमेरिका की उदासीनता.”
डब्ल्यूटीओ का तर्क है कि दुनिया के एकीकरण के लिए पुनर्वैश्विकरण की नयी मुहिम की जरूरत है ताकि जलवायु परिवर्तन से लेकर गरीबी उन्मूलन तक विभिन्न चुनौतियों से पार पाया जा सके. अभी भी 75 फीसदी वैश्विक व्यापार नियमों के तहत होता है. संगठन के महासचिव न्गोजी ओकोंजो-इविएला कहती हैं, "यह खत्म हो जाएगा तो सिर्फ अव्यवस्था रह जाएगी, जो नियम-आधारित नहीं बल्कि शक्ति-आधारित होगी.”