कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर के बीच होगा. सवाल उठ रहे हैं कि अध्यक्ष अगर गांधी परिवार का प्रतिनिधि ही रहेगा तो फिर आखिर बदलाव क्या हुआ.
मल्लिकार्जुन खड़गेतस्वीर: Hindustan Times/IMAGO
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कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष के पद के लिए चुनाव के लिए दो नामों की घोषणा हो गई है. राज्य सभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, लोक सभा सदस्य शशि थरूर और झारखंड सरकार में पूर्व मंत्री के एन त्रिपाठी ने अपना अपना नामांकन पत्र भर दिया है. करीब दो दशक बाद पहली बार गांधी परिवार से बाहर का कोई व्यक्ति पार्टी का अध्यक्ष बनेगा.
मतदान 17 अक्टूबर को होगा और मतों की गिनती 19 अक्टूबर को होगी. गांधी परिवार के किसी सदस्य ने आधिकारिक रूप से खड़गे को समर्थन देने की घोषणा नहीं की है.
शशि थरूर भी चुनावों में अपनी किस्मत आजमा रहे हैंतस्वीर: Vishal Bhatnagar/NurPhoto/IMAGO
लेकिन राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत के रेस से बाहर होने के बाद जिस तरह राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने खड़गे को चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया उसके बाद खड़गे की जीत तयमानी जा रही है.
अगर ऐसा होता है तो दशकों बाद कांग्रेस को एक दलित अध्यक्ष मिलेगा. मीडिया रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि खड़गे के नामांकन पत्र के प्रस्तावकों में पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी, दिग्विजय सिंह, अजय माकन, भूपिंदर हुड्डा, पृथ्वीराज चव्हाण, अभिषेक मनु सिंघवी जैसे पार्टी के कई बड़े नेता शामिल हैं. इसे भी उनकी जीत का एक संकेत माना जा रहा है.
80 साल के खड़गे पार्टी के पर्चे बांटने वाले कार्यकर्ता, छात्र नेता, विधायक, सांसद और केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. उन्हें लंबे समय से गांधी परिवार बड़ी जिम्मेदारियों के लिए चुनता आया है. वो 2014 से 2019 तक लोक सभा में कांग्रेस के नेता थे और 2021 से राज्य सभा में विपक्ष के नेता हैं.
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अगर वो कांग्रेस अध्यक्ष बनते हैं तो यह देखना होगा कि वो कांग्रेस के "एक व्यक्ति, एक पद" सिद्धांत के तहत विपक्ष के नेता बने रहते हैं या नहीं. पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम से संकेत यही मिल रहे थे कि भले ही गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव ना लड़ रहा हो, गांधी परिवार किसी ना किसी उम्मीदवार के पीछे खड़ा जरूर होगा.
राजस्थान की कथित बगावत से पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इसी श्रेणी के उम्मीदवार थे, लेकिन 29 सितंबर को उन्होंने राजस्थान के घटनाक्रम पर अफसोस जताते हुए उसकी नैतिक जिम्मेदारी ली. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से माफी मांगी और अध्यक्ष पद की दौड़ से खुद को बाहर कर लिया.
बल्कि अब उनके मुख्यमंत्री बने रहने पर भी संदेह है. उन्होंने खुद संकेत दिया कि उन्होंने सोनिया गांधी के सामने अपने इस्तीफे की पेशकश भी की. संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल के मुताबिक राजस्थान के मुख्यमंत्री के विषय पर सोनिया गांधी दो दिनों में फैसला देंगी.
परिवारवाद के रास्ते लोकतंत्र में गद्दी पाने वाले नेता
सभी पार्टी सबको साथ लेकर चलने की बात करते हैं लेकिन पार्टी या सत्ता के शीर्ष पद पर परिवार को तरजीह दी जाती है. एक नजर ऐसे नेताओं पर जिन्हें संघर्ष की बदौलत नहीं, सुप्रीमों की संतान या साथी होने की वजह से गद्दी मिली.
तस्वीर: DW/S. Mishra
राहुल गांधी
कुछ समय पहले तक राहुल गांधी भारतीय राजनीति में सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष थे. 2019 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और एक बार फिर से उनकी मां सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया. राहुल गांधी को राजनीति विरासत में मिली है. उनके पिता राजीव गांधी और दादी इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री रह चुके हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Panthaky
उद्धव ठाकरे
उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र और देश की राजनीति में दबदबा रखने वाली पार्टी शिव सेना के प्रमुख हैं. फिलहाल यह पार्टी केंद्र और महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ सरकार में है. उद्धव ठाकरे को भी विरासत में राजनीति मिली है. इनके पिता बाल ठाकरे ने शिव सेना का गठन किया था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
अखिलेश यादव
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के पिता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह सपा के पहले अध्यक्ष थे. पार्टी का अध्यक्ष बनने को लेकर पिता और पुत्र के बीच 2017 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव से पहले इस कदर संघर्ष हुआ था कि मामला चुनाव आयोग तक पहुंच गया था.
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari
एम के स्टालिन
एम के स्टालिन दक्षिण भारत की प्रमुख पार्टी डीएमके की कमान संभाल रहे हैं. उनसे पहले पार्टी का नेतृत्व उनके पिता और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि कर रहे थे. करुणानिधि के निधन के बाद पार्टी को स्टालिन संभाल रहे हैं.
तस्वीर: UNI
राबड़ी देवी
बिहार की पहली महिला और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की पत्नी हैं. राबड़ी देवी अचानक उस समय सक्रिय राजनीति में आईं जब बहुचर्चित चारा घोटाला मामलें में तत्कालिन मुख्यमंत्री लालू यादव को जेल जाना पड़ा. 25 जुलाई 1997 राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री बनीं. इसके बाद वे राजनीति में आगे बढ़ती गईं और तीन बार सीएम बनीं.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times/AP Dube
उमर अब्दुल्ला
नेशनल कांफ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को भी विरासत में राजनीति मिली है. उनके पिता और नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूख अब्दुल्ला भी जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times/A. Sharma
महबूबा मुफ्ती
पीडीपी अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर की पहली महिला मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को विरासत में राजनीति मिली है. उनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे. पिता की मौत के बाद महबूबा मुख्यमंत्री बनीं थीं.
तस्वीर: Getty Images/S. Hussain
नवीन पटनायक
नवीन पटनायक पांचवीं बार से ओडिशा के मुख्यमंत्री है. बीजेपी की लहर हो या कांग्रेस की, नवीन पटनायक अपने राज्य में बने रहे. पहले नवीन पटनायक की राजनीति में दिलचस्पी नहीं थी लेकिन 17 अप्रैल 1997 को पिता बीजू पटनायक के निधन के बाद वे उनकी विरासत को संभालने राजनीति में उतरे.
तस्वीर: AP
चिराग पासवान
चिराग पासवान मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे हैं. बिहार के जमुई से सांसद चिराग पासवान को रामविलास ने अपनी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है. फिल्मी दुनिया में फ्लॉप हो चुके चिराग विरासत में मिली राजनीति में आगे बढ़ रहे हैं.
तस्वीर: UNI
तेजस्वी यादव
राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव बिहार के उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं. पिता के जेल में जाने के बाद तेजस्वी ही पार्टी की कमान संभाल रहे हैं. आने वाले दिनों में इन्हें आरजेडी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा है.