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क्वाड सम्मेलन में भारत को रिझाने की कोशिश

२४ मई २०२२

हिंद-प्रशांत क्षेत्र के चार देशों के नेताओं ने मंगलवार को टोक्यो में हाथ उठाकर कहा कि वे क्षेत्र की सुरक्षा के साथ कोई खिलवाड़ नहीं होने देंगे. यह इशारा चीन को था, जिसे पर ये चारों देश दादागीरी का आरोप लगाते हैं.

जापान के टोक्यो में क्वाड की बैठक
जापान के टोक्यो में क्वाड की बैठकतस्वीर: Masanori Genko/The Yomiuri Shimbun/AP/picture alliance

अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के नेताओं के साथ भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्वाड सम्मेलन में शामिल हुए. टोक्यो में इस सम्मेलन में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और सुरक्षा के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन और अन्य वैश्विक मुद्दों पर भी चर्चा हुई.

साझा बैठक के अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा और ऑस्ट्रेलिया के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी ने एक दूसरे के साथ द्विपक्षीय वार्ताएं भी कीं, जिनमें द्विपक्षी संबंधों के अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक-दूसरे का साथ देने जैसे मुद्दों पर बात हुई.

क्वाड बैठक के एजेंडे में ताइवान आधिकारिक रूप से तो शामिल नहीं था लेकिन एक अमेरिकी अधिकारी ने बताया कि चारों नेताओं की बातचीत में यह सबसे अहम मुद्दा रहने की संभावना है. अमेरिका ने एक दिन पहले ही यह कहा था कि अगर चीन ने ताइवान पर हमला किया तो अमेरिका उसकी रक्षा करेगा. यह बयान अमेरिका के पारंपरिक रुख से अलग है.

भारत पर पूरा ध्यान

इसके अलावा रूस और यूक्रेन में उसकी सैन्य कार्रवाई पर भी बात होने की संभावना है. इसमें भारत को रूस के खिलाफ मनाना भी एक एजेंडा हो सकता है. इन चारों देशों में भारत ही ऐसा है जिसने यूक्रेन पर कार्रवाई के लिए रूस की आलोचना नहीं की है. उसने बातचीत के जरिए मसले सुलझाने की अपील जरूर की है लेकिन रूस से व्यापार भी जारी रखा है, जिससे अमेरिका ज्यादा खुश नहीं है क्योंकि उसके रूस पर प्रतिबंधों का असर कम होता है.

पढ़ेंः यूक्रेन जैसा हाल हिंद-प्रशांत में नहीं होने देंगेः क्वॉड

लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चिमी देशों ने भारत के साथ जोर-जबरदस्ती करने के बजाय नरमी के साथ उसे रूस के खिलाफ तैयार करने की रणनीति अपनाई है. अमेरिका और भारत के संबंध पिछले कुछ सालों में काफी बेहतर हुए हैं. इसकी वजह चीन को लेकर दोनों देशों की साझा चिंताएं हैं भी हैं. क्वाड को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते असर के खिलाफ एक कोशिश के रूप में देखा जाता है, और भारत व अमेरिका दोनों के ही निजी हित इससे जुड़े हैं.

एक अमेरिकी अधिकारी ने बताया, "राष्ट्रपति इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि हर देश का अपना इतिहास, अपने हित होते हैं. उनका अपना नजरिया है और कोशिश है कि साझा हितों पर संबंध बनाए जाएं.” अमेरिका भारत को चार अरब डॉलर के अतिरिक्त निवेश के रूप में मदद देने पर विचार कर रहा है. दोनों देशों ने इसी हफ्ते कोविड-वैक्सीन के उत्पादन, स्वास्थ्य और नवीकरणीय ऊर्जा को लेकर समझौतों पर दस्तखत किए हैं. भारत अमेरिका के उस व्यापार समझौते में भी शामिल हुआ है, जिसमें एशिया के 11 देश हैं.

समसामयिक चुनौतियों पर बात

क्वाड के देश आमतौर पर इस पर बात सहमत हैं कि यूक्रेन में हालात गंभीर हैं और यह अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए भी खतरनाक है. लेकिन एक अमेरिकी अधिकारी ने बताया कि इस बात पर अभी स्पष्टता नहीं बन पाई है कि ये चारों देश इस खतरे से कैसे सीधे तौर पर निपटेंगे. इस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि दक्षिण कोरिया जैसे देशों को यूक्रेन मुद्दे पर साथ लेने पर विचार किया जा सकता है.

यह भी पढ़ेंः क्वॉडः एक चीन विरोधी संगठन या भू-राजनीति को बदलने का केंद्र

बतौर प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी का यह पहला विदेश दौरा है जिन्होंने सोमवार को ही ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. उनका स्वागत करते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि अल्बानीजी का क्वाड में होना बेहद अहम है. अल्बानीजी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान जलवायु परिवर्तन को लेकर गंभीर कदम उठाने का वादा किया था.

टोक्यो में भी अल्बानीजी ने स्पष्ट किया कि जलवायु परिवर्तन उनकी प्राथमिकताओं में है. अपने उद्घाटन संबोधन में अल्बानीजी ने कहा कि उनकी सरकार की प्राथमिकताएं क्वाड की नीतियों से मेल खाती हैं जिनमें एक मजबूत हिंद प्रशांत और जलवायु परिवर्तन पर ठोस कार्रवाई शामिल है.

अल्बानीजी ने कहा, "आज जब हम यहां जमा हुए हैं तो मैं क्वाड की उपलब्धियों को सराहना चाहता हूं. हम यहां एक स्वतंत्र, खुले और मजबूत हिंद प्रशांत क्षेत्र, अपने समय की सबसे बड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए साथ काम करने के लिए साथ खड़े हैं.”

वीके/एए (रॉयटर्स, एपी)

 

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