हिंद-प्रशांत क्षेत्र के चार देशों के नेताओं ने मंगलवार को टोक्यो में हाथ उठाकर कहा कि वे क्षेत्र की सुरक्षा के साथ कोई खिलवाड़ नहीं होने देंगे. यह इशारा चीन को था, जिसे पर ये चारों देश दादागीरी का आरोप लगाते हैं.
जापान के टोक्यो में क्वाड की बैठकतस्वीर: Masanori Genko/The Yomiuri Shimbun/AP/picture alliance
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अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के नेताओं के साथ भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्वाड सम्मेलन में शामिल हुए. टोक्यो में इस सम्मेलन में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और सुरक्षा के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन और अन्य वैश्विक मुद्दों पर भी चर्चा हुई.
साझा बैठक के अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा और ऑस्ट्रेलिया के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी ने एक दूसरे के साथ द्विपक्षीय वार्ताएं भी कीं, जिनमें द्विपक्षी संबंधों के अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक-दूसरे का साथ देने जैसे मुद्दों पर बात हुई.
क्वाड बैठक के एजेंडे में ताइवान आधिकारिक रूप से तो शामिल नहीं था लेकिन एक अमेरिकी अधिकारी ने बताया कि चारों नेताओं की बातचीत में यह सबसे अहम मुद्दा रहने की संभावना है. अमेरिका ने एक दिन पहले ही यह कहा था कि अगर चीन ने ताइवान पर हमला किया तो अमेरिका उसकी रक्षा करेगा. यह बयान अमेरिका के पारंपरिक रुख से अलग है.
भारत पर पूरा ध्यान
इसके अलावा रूस और यूक्रेन में उसकी सैन्य कार्रवाई पर भी बात होने की संभावना है. इसमें भारत को रूस के खिलाफ मनाना भी एक एजेंडा हो सकता है. इन चारों देशों में भारत ही ऐसा है जिसने यूक्रेन पर कार्रवाई के लिए रूस की आलोचना नहीं की है. उसने बातचीत के जरिए मसले सुलझाने की अपील जरूर की है लेकिन रूस से व्यापार भी जारी रखा है, जिससे अमेरिका ज्यादा खुश नहीं है क्योंकि उसके रूस पर प्रतिबंधों का असर कम होता है.
लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चिमी देशों ने भारत के साथ जोर-जबरदस्ती करने के बजाय नरमी के साथ उसे रूस के खिलाफ तैयार करने की रणनीति अपनाई है. अमेरिका और भारत के संबंध पिछले कुछ सालों में काफी बेहतर हुए हैं. इसकी वजह चीन को लेकर दोनों देशों की साझा चिंताएं हैं भी हैं. क्वाड को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते असर के खिलाफ एक कोशिश के रूप में देखा जाता है, और भारत व अमेरिका दोनों के ही निजी हित इससे जुड़े हैं.
भारत और चीन की सैन्यशक्ति की तुलना
पड़ोसी और प्रतिद्वन्द्वी भारत और चीन की सैन्य ताकत को आंकड़ों के आधार पर समझा जा सकता है. यूं तो भारत चीन से सिर्फ एक कदम पीछे, दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है लेकिन शक्ति में अंतर बड़ा है.
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भारत और चीन की तुलना
थिंकटैंक ग्लोबल फायर पावर ने चीन को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति माना है और भारत को चौथी. यह तुलना 46 मानकों पर परखने के बाद की गई है, जिनमें से 38 में चीन भारत से आगे है.
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सैनिकों की संख्या
चीन के पास 20 लाख से ज्यादा बड़ी सेना है जबकि भारत की सेना में 14 लाख 50 हजार जवान हैं. यानी चीन की सेना साढ़े पांच लाख ज्यादा जवानों के साथ मजबूत है.
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अर्धसैनिक बल
भारत में 25 लाख 27 हजार अर्धसैनिक बल हैं जबकि चीन में मात्र छह लाख 24 हजार. यानी भारत 19 लाख तीन हजार अर्धसैनिक बलों के साथ हावी है.
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रक्षा बजट
भारत रक्षा मद में 70 अरब डॉलर यानी लगभग साढ़े पांच लाख करोड़ रुपये खर्चता है. इसके मुकाबले चीन का बजट तीन गुना से भी ज्यादा यानी लगभग 230 अरब डॉलर है.
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लड़ाकू विमान
चीन के पास 1,200 लड़ाकू विमान हैं जबकि भारत के पास 564. चीन के पास कुल विमान भी ज्यादा हैं. भारत के पास कुल 2,182 विमान हैं जबकि चीन के पास 3,285.
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टैंक
भारत के पास 4,614 टैंक हैं जो चीन के 5,250 टैंकों से कम हैं. बख्तरबादं गाड़ियां भी चीन के पास ज्यादा हैं. उसके पास 35,000 बख्तरबंद गाड़ियां हैं जबकि भारत के पास 12,000.
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विमानवाहक युद्धक पोत
भारत के पास सिर्फ एक विमानवाहक पोत है जबकि चीन के पास दो. भारत के पास 10 डिस्ट्रॉयर जहाज हैं और चीन के पास 41.
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पनडुब्बियां
भारत के पास 17 पनडुब्बियां हैं और चीन के पास 79.
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एक अमेरिकी अधिकारी ने बताया, "राष्ट्रपति इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि हर देश का अपना इतिहास, अपने हित होते हैं. उनका अपना नजरिया है और कोशिश है कि साझा हितों पर संबंध बनाए जाएं.” अमेरिका भारत को चार अरब डॉलर के अतिरिक्त निवेश के रूप में मदद देने पर विचार कर रहा है. दोनों देशों ने इसी हफ्ते कोविड-वैक्सीन के उत्पादन, स्वास्थ्य और नवीकरणीय ऊर्जा को लेकर समझौतों पर दस्तखत किए हैं. भारत अमेरिका के उस व्यापार समझौते में भी शामिल हुआ है, जिसमें एशिया के 11 देश हैं.
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समसामयिक चुनौतियों पर बात
क्वाड के देश आमतौर पर इस पर बात सहमत हैं कि यूक्रेन में हालात गंभीर हैं और यह अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए भी खतरनाक है. लेकिन एक अमेरिकी अधिकारी ने बताया कि इस बात पर अभी स्पष्टता नहीं बन पाई है कि ये चारों देश इस खतरे से कैसे सीधे तौर पर निपटेंगे. इस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि दक्षिण कोरिया जैसे देशों को यूक्रेन मुद्दे पर साथ लेने पर विचार किया जा सकता है.
बतौर प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी का यह पहला विदेश दौरा है जिन्होंने सोमवार को ही ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. उनका स्वागत करते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि अल्बानीजी का क्वाड में होना बेहद अहम है. अल्बानीजी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान जलवायु परिवर्तन को लेकर गंभीर कदम उठाने का वादा किया था.
यूं बनते हैं ताइवान के सबसे शक्तिशाली योद्धा
ये ताइवान के सबसे शक्तिशाली सैनिकों में से हैं. देश के सबसे विशेष दल एंफीबियस रीकॉनेसाँ ऐंड पट्रोल (एआरपी) यूनिट में भर्ती होना अमेरिका के सबसे विशिष्ट सैन्य दल नेवी सील जैसा ही मुश्किल है. देखिए...
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लोहे से सख्त सैनिक
ताइवान की सबसे विशेष सैन्य यूनिट एआरपी में भर्ती होने के लिए ट्रेनिंग दस हफ्ते चलती है. इस साल 31 प्रतिभागियों ने इस ट्रेनिंग में हिस्सा लिया लेकिन कामयाब सिर्फ 15 हो पाएंगे. इस ट्रेनिंग में सैनिकों की शरीर और आत्मा दोनों को कठिनतम हालात से गुजरना होता है.
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शीत स्नान
दिनभर समुद्र में ट्रेनिंग करने के बाद सैनिकों को इस तरह बर्फीले पानी से नहलाया जाता है. कांपते हुए भी इन्हें खंभों की तरह खड़े रहना होता है.
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सामान्य नहीं अभ्यास
इन सैनिकों का अभ्यास देखने में जितना सामान्य लगता है, उतना है नहीं. प्रशिक्षक बेहद कठोर होते हैं और जरा भी समझौता नहीं करते. सैनिक घंटों तक पानी और जमीन पर अभ्यास करते हैं. छुट्टी के नाम पर कुछ मिनट ही मिलते हैं.
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युद्ध के लिए तैयारी
इन जवानों को हर तरह के हालात के लिए तैयार रहने की ट्रेनिंग दी जाती है. अफसर उम्मीद करते हैं कि इस अभ्यास से जवानों में इच्छाशक्ति पैदा होगी और वे एक दूसरे के लिए व देश के लिए हर हालात में खड़े रहेंगे.
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पानी में जीवन
इन जवानों को अधिकतर समय समुद्र या स्विमिंग पूल में गुजारना होता है. वे पूरी वर्दी में तैरने से लेकर लंबे समय तक पानी के अंदर सांस रोकने जैसे कौशल सीखते हैं. कई बार उन्हें हाथ-पांव बांधकर पानी में फेंक दिया जाता है.
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टूटने की हद तक
जवानों के शरीर को टूट जाने की हद तक तोड़-मरोड़ा जाता है. इस दौरान उनकी चीखें निकलती हैं. और अगर कोई जवान प्रशिक्षक का विरोध कर दे, तो फौरन उसे बाहर कर दिया जाता है.
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पथरीला रास्ता
आखरी ट्रेनिंग को स्वर्ग का रास्ता कहा जाता है. इस अभ्यास में जवानों को एक बेहद मुश्किल बाधा दौड़ से गुजरना होता है. उन्हें बिना कपड़े पहने ही, कुहनियों पर चलने से लेकर, पत्थरों पर घिसटने तक कई ऐसी बाधाएं पार करनी होती हैं जो आम इंसान के लिए असंभव हैं.
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जीत की घंटी
पास होने वाले जवानों को यह घंटी बजाने का मौका मिलता है. प्रोग्राम में शामिल सभी जवानों की किस्मत में यह घंटी नहीं होती. लेकिन इस बेहद कठिन ट्रेनिंग के लिए जवान अपनी इच्छा से आते हैं.
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टोक्यो में भी अल्बानीजी ने स्पष्ट किया कि जलवायु परिवर्तन उनकी प्राथमिकताओं में है. अपने उद्घाटन संबोधन में अल्बानीजी ने कहा कि उनकी सरकार की प्राथमिकताएं क्वाड की नीतियों से मेल खाती हैं जिनमें एक मजबूत हिंद प्रशांत और जलवायु परिवर्तन पर ठोस कार्रवाई शामिल है.
अल्बानीजी ने कहा, "आज जब हम यहां जमा हुए हैं तो मैं क्वाड की उपलब्धियों को सराहना चाहता हूं. हम यहां एक स्वतंत्र, खुले और मजबूत हिंद प्रशांत क्षेत्र, अपने समय की सबसे बड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए साथ काम करने के लिए साथ खड़े हैं.”