जापान: पीएम ने पूर्व सहयोगी के होमोफोबिक बयान पर माफी मांगी
१७ फ़रवरी २०२३जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने 17 फरवरी को एलजीबीटीक्यू संगठनों के प्रतिनिधियों से मुलाकात की. उन्होंने अपने पूर्व सहयोगी मासायोशी अराई के पक्षपाती बयान पर एलजीबीटीक्यू एक्टिविस्ट्स से माफी मांगी है. मासायोशी अराई वरिष्ठ नौकरशाह और पीएम किशिदा के एक्जिक्यूटिव सेक्रेटरी थे. फरवरी की शुरुआत में उन्होंने बयान दिया कि वह किसी एलजीबीटीक्यू जोड़े के पड़ोस में नहीं रहना चाहेंगे. अराई ने कहा कि उन्हें ऐसे जोड़े को "देखने से भी नफरत" है. अराई का यह भी कहना था कि अगर समलैंगिकशादियों को अनुमति मिल जाती है, तो लोग जापान छोड़कर भागने लगेंगे.
यह होमोफोबिक बयान मीडिया में आने के बाद अराई की काफी आलोचना हुई. विवाद के बीच 4 फरवरी को पीएम किशिदा ने अराई को पद से हटा दिया. उन्होंने पत्रकारों से कहा, "मैंने इस मामले को बहुत गंभीरता से लिया है. ये टिप्पणियां अपमानजनक थीं और विविधता का सम्मान करते हुए एक समावेशी समाज बनाने के कैबिनेट के रुख के विरुद्ध थे." अब पीएम किशिदा ने एलजीबीटीक्यू प्रतिनिधियों से मुलाकात में अराई के बयान पर खेद जताते हुए इस अन्यायपूर्ण भेदभाव और बेहद अनुचित बताया. उन्होंने कहा, "मैं आप सबों को और कई और लोगों को महसूस हुई असहजता के लिए तहेदिल से माफी मांगता हूं."
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भेदभाव खत्म करने के लिए कानून बनाने की मांग
इस प्रकरण ने समलैंगिकों के साथ भेदभाव पर एक राष्ट्रीय बहस छेड़ दी. किशिदा के भी कुछ पुराने बयान रोशनी में आए. इनमें वह बयान भी शामिल है, जिसमें किशिदा ने कहा था कि समलैंगिक शादियों को मंजूरी देने से समाज और पारिवारिक मूल्य बदल जाएंगे और इसपर सावधानी से विचार किए जाने की जरूरत है. लोगों ने कहा कि भले किशिदा एक समावेशी और विविध समाज बनाने का संकल्प जताते हों, लेकिन उनके बयान एलजीबीटीक्यू लोगों को समान अधिकार दिए जाने के प्रति उनकी हिचक दिखाते हैं.
मई 2023 में जापान जी-7 देशों के सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है. जी-7 देशों में अकेला जापान ही है, जिसने अभी तक समलैंगिक शादियों को मंजूरी नहीं दी है. ना ही यहां एलजीबीटीक्यू लोगों के प्रति भेदभाव के खिलाफ कोई कानून है. ऐसे में एक्टिविस्ट मांग कर रहे हैं कि सरकार सम्मेलन के पहले भेदभाव के विरुद्ध कानून लाए.
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अक्सर भेदभाव झेलते हैं समलैंगिक जोड़े
हालिया सर्वे बताते हैं कि जापान में समलैंगिक शादियों के लिए जन समर्थन बढ़ रहा है, लेकिन यौन विविधता के समर्थन में सरकार की कोशिशें धीमी हैं. यौन अल्पसंख्यकों के लिए कानूनी सुरक्षा की कमी है. लेस्बियन, गे, बायसेक्शुअल और ट्रांसजेंडर अक्सर स्कूलों, कॉलेजों, घरों और दफ्तरों में भेदभाव का शिकार होते हैं. ऐसे में बहुत से लोग अपनी यौन पहचान को छिपाते हैं.
जापान में टोक्यो समेत 200 से ज्यादा नगरपालिकाओं ने समलैंगिक जोड़ों के लिए पार्टनरशिप सर्टिफिकेट की व्यवस्था लागू की है. इनकी वजह से अब ऐसे जोड़े किराये पर घर ले सकते हैं और मेडिकल इमरजेंसी में कागजातों पर दस्तखत कर सकते हैं. लेकिन इन प्रमाणपत्रों की कानूनी अनिवार्यता नहीं है. इसकी वजह से अक्सर समलैंगिक जोड़ों को अस्पताल जाने या विवाहित जोड़ों के लिए उपलब्ध सेवाओं का इस्तेमाल करने से रोक दिया जाता है.
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बस जागरूकता फैलाना काफी नहीं
एलजीबीटीक्यू लोगों के लिए समान अधिकारों से जुड़े अभियानों को अड़चनों का सामना करना पड़ता है, खासतौर पर किशिदा की सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रैटिक पार्टी के रूढ़िवादियों की ओर से. टोक्यो ओलंपिक से पहले समानता को बढ़ावा देने और जागरूकता फैलाने से जुड़े एक प्रस्तावित कानून को पार्टी ने लागू नहीं होने दिया था.
अब अराई के भेदभावपूर्ण और अपमानजनक बयानों के बाद हो रही आलोचनाओं के बीच किशिदा ने अपनी पार्टी को निर्देश दिया है कि वो यौन अल्पसंख्यकों के प्रति समझ बढ़ाने से जुड़ा कानून तैयार करें. मगर पार्टी का घोर-रुढ़िवादी धड़ा इससे सहमत नहीं है. एक्टिविस्ट्स का कहना है कि बस जागरूकता फैलाना पर्याप्त नहीं है. सरकार को समानता देने और भेदभाव रोकने के लिए कानून बनाकर ठोस कदम उठाने चाहिए.
एसएम/एमजे (एपी)