जापान में भूकंप के बाद परमाणु संयंत्रों को लेकर चिंता
१७ मार्च २०२२
जापान में एक तीव्र भूकंप के आने के बाद देश में परमाणु ऊर्जा को लेकर चिंताएं फिर से बढ़ गई हैं. फुकुशिमा हादसे के बाद बंद कर दिए गए संयंत्रों को दोबारा शुरू करने के प्रस्तावों पर फिर से विचार करने की मांग उठ रही है.
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बुधवार 16 मार्च को फुकुशिमा प्रांत एक बार एक तीव्र भूकंप के झटकों से हिल गया. भूकंप की तीव्रता बाद में 7.4 पाई गई और उसके झटकों से प्रांत में काफी नुकसान हुआ. अभी तक कम से कम चार लोगों के मारे जाने और 200 से ज्यादा के घायल होने की पुष्टि हुई है.
भूकंप के तुरंत बाद सुनामी की चेतावनी भी जारी की गई थी, लेकिन गुरुवार सुबह चेतावनी को हटा लिया गया. भूकंप के बाद लाखों घरों में बिजली भी चली गई थी, लेकिन बिजली कंपनियों का कहना है कि सप्लाई फिर से शुरू कर दी गई है.
फुकुशिमा हादसे की वर्षगांठ
2011 में एक सुनामी के बाद फट पड़ने वाला फुकुशिमा दाईची परमाणु ऊर्जा संयंत्र इसी प्रांत में स्थित है. हालांकि, अधिकारियों का कहना है कि ताजा भूकंप का इस संयंत्र पर कोई असर नहीं पड़ा है.
शुरू में अधिकारियों ने कहा था कि संयंत्र की एक टरबाइन बिल्डिंग में आग का एक अलार्म बजने लगा था. लेकिन बाद में उन्होंने कहा कि किसी भी संयंत्र में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई है.
कुछ ही दिनों पहले फुकुशिमा हादसे की 11वीं वर्षगांठ थी और उसी दिन सत्तारूढ़ पार्टी के कुछ सांसदों ने सरकार से कहा था कि सुरक्षा की चिंताओं की वजह से बंद पड़े हुए परमाणु संयंत्रों को फिर से शुरू करने की प्रक्रिया को तेज करना चाहिए.
खुद प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा भी इन संयंत्रों को दोबारा शुरू करना चाहते हैं, हालांकि लोगों का भरोसा अभी पूरी तरह से लौटा नहीं है. असाही अखबार ने फरवरी में एक सालाना सर्वे करवाया था जिसमें 47 प्रतिशत लोगों ने संयंत्रों को दोबारा शुरू करने का विरोध किया और 38 प्रतिशत ने समर्थन.
परमाणु ऊर्जा पर दुविधा
हालांकि, बीते सालों में प्रतिशत का यह फासला कम ही हुआ है. परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष तात्सुजीरो सुजुकी ने बताया कि अमेरिका और फ्रांस की कोशिशों के मुकाबले जनता के साथ कमजोर संवाद जापान के लिए समस्या बना हुआ है.
सुजुकी नागासाकी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं. उन्होंने बताया, "उद्योग, नियामकों और स्थानीय जनता के बीच संवाद के अच्छे चैनल नहीं हैं." उन्होंने संवाद के तरीकों के लिए एक कानूनी योजना की मांग की है.
फुकुशिमा हादसे के बाद परमाणु ऊर्जा के उत्पादन में इतनी कमी आई कि 2014 तक वो लगभग शून्य पर आ गई थी. लेकिन फिर उसका उपयोग बढ़ा और इस समय वो कुल ऊर्जा उत्पादन के तीन प्रतिशत के बराबर है. सरकार इसे 2030 तक 20-22 प्रतिशत तक पहुंचाना चाहती है.
सीके/एए (डीपीए, रॉयटर्स)
जर्मनी में परमाणु विवाद के पांच दशक
जर्मनी में परमाणु ऊर्जा को लेकर पांच दशक से विवाद चल रहा है. इन सालों में जर्मनी ने परमाणु बिजली घरों की हिमायत से लेकर उसे पूरी तरह से बंद करने का फैसला किया है. एक नजर इस विवाद के पड़ावों पर.
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1977
लोअर सेक्सनी प्रांत के मुख्यमंत्री एर्न्स्ट अलब्रेष्ट ने गोरलेबेन में परमाणु कचरे के भंडारण के लिए सेंट्रल स्टोरेज बनाने की घोषणा की. कुछ ही हफ्तों के भीतर इसका विरोध शुरू हो गया. इसी विरोध से शुरू हुए आंदोलन से बाद में ग्रीन पार्टी का जन्म हुआ.
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1979
गोरलेबेन में परमाणु कचरे के लिए सेंट्रल स्टोरेज बनाने का इतना विरोध हुआ कि सरकार ने ये फैसला तो वापस ले लिया लेकिन वहां अंतिम भंडार बनाने की जांच करने पर सरकार अड़ी रही. उसी साल इस पर आरंभिक काम शुरू हो गया.
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1980
परमाणु ऊर्जा के हजारों विरोधियों ने गोलवेबेन के निकट फ्री रिपब्लिक ऑफ वेंडलंड बनाने की घोषणा की और वहां झोपड़ियों वाला एक गांव बनाया. ये गांव पर्यावरण सुरक्षा आंदोलन का आदर्श बन गया. एक महीने बाद ही पुलिस ने लोगों को हटा दिया और गांव को गिरा दिया.
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1983
अक्टूबर 1983 में जर्मन सरकार ने गोरलेबेन में नमक वाले खान में भूमिगत हिस्से की जांच को सहमति दे दी. 1984 में पहली बार स्टाडे के परमाणु बिजलीघर से परमाणु कचरे को गोरलेबेन के स्टोर में ले जाया गया. उसी के साथ परमाणु विरोधियों का उसे रोकने का आंदोलन भी.
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1995
अप्रैल 1995 में अत्यंत रेडियोधर्मी परमाणु कचरे का परमाणु बिजलीघर फिलिप्सबुर्ग से पहली बार कास्टर ट्रांसपोर्ट शुरू हुआ. हजारों लोगों ने इसका विरोध किया, रेल लाइन पर हमले हुए, सड़कों को जाम किया गया. कास्टर ट्रांसपोर्ट की सुरक्षा के लिए हुई पुलिस कार्रवाई जर्मनी में तब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई थी.
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2000
1998 के चुनाव के बाद पहली बार जर्मनी में ऐसी सरकार बनी जिसमें ग्रीन पार्टी शामिल थी. पर्यावरण मंत्रालय उसी के पास था. 2000 में सरकार और परमाणु बिजलीघरों के बीच में उन्हें बंद करने का समझौता हुआ. साथ ही गोरलेबेन में स्टोर बनाने के लिए भूमिगत जांच को दस साल तक बंद रखने का फैसला हुआ.
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2009
सीडीयू और एफडीपी की तत्कालीन जर्मन सरकार ने गोरलेबेन में जांच के दस साल से रुके काम को फिर से शुरू करने का फैसला किया. 2010 में ये काम शुरू हुआ लेकिन बीच बीच में रुका रहा. पिछली सरकार के फैसले को बदलने के कारण देश में तीखी बहस भी चलती रही.
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2011
इस साल जापान में अचानक फुकुशिमा परमाणु बिजलीघर में दुर्घटना हुई. जर्मनी में दुर्घटना की स्थिति में कोई सुरक्षा ना होने की बहस और बढ़ गई. अंगेला मैर्केल की सरकार ने फौरन परमाणु बिजलीघरों को बंद करने का फैसला लिया. केंद्र और राज्य सरकारों ने देश भर में परमाणु कचरे का अंतिम भंडार खोजने का फैसला किया.
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2017
सालों के विवाद के बाद जर्मन संसद ने परमाणु कचरे के लिए अंतिम भंडार कानून पास कर दिया. इसके तहत एक ठिकाने की तलाश के लिए एक संस्था बनाई गई. उसने जो अंतरिम रिपोर्ट दी है उसमें 90 ठिकानों के नाम हैं. गोरलेबेन को इस सूची से बाहर रखा गया है. इसके साथ पांच दशक पुराने विवाद का अंत हो गया है.