जापान नहीं रहा दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था
१५ फ़रवरी २०२४
जापान अब दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था नहीं रहा है. गुरुवार को जारी हुए आंकड़ों में उसका सालों पुराना यह स्थान छिन गया.
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जापान को पीछे छोड़ जर्मनी दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. गुरुवार को जारी हुए आंकड़ों के मुताबिक जापान अब चौथे नंबर पर आ गया है. विश्लेषक कहते हैं कि ये आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि जापान की अर्थव्यवस्था लगातार अपनी उत्पादकता और प्रतिद्वन्द्विता को खोती जा रही है. वहां की आबादी लगातार कम हो रही है. वहां बच्चे कम पैदा हो रहे हैं और आबादी की औसत उम्र भी बढ़ती जा रही है.
वैसे जापान का चौथे नंबर पर खिसकना पहले से ही अनुमानित था. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) पहले ही इसका अनुमान जाहिर कर चुका था. 2010 तक जापान अमेरिका के बाद दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था. 2010 में वह तीसरे नंबर पर चला गया क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था ने उसे पछाड़ दिया था.
पूरा सच नहीं जीडीपी
विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के बीच तुलना उनके जीडीपी के डॉलर में मूल्यांकन के आधार पर होती है और इसे किसी भी देश की परिस्थितियों की सही तस्वीर नहीं माना जा सकता. जीडीपी यानी ग्रॉस डॉमेस्टिक प्रॉडक्ट सभी घरेलू उत्पादनों का कुल माप करता है. इसमें सरकारी और निजी हर तरह का उत्पादन शामिल होता है.
जापान की विशेष महिला सैनिक
ये महिलाएं जापानी सेना के विशेष बल एंफीबियस रैपिड डिपलॉयमेंट ब्रिगेड (ARDB) की सैनिक हैं. यह बल युद्ध होने पर समुद्र में हमला करने के लिए तैयार हो रहा है. देखिए, कैसी है इन महिला सैनिकों की जिंदगी.
तस्वीर: Issei Kato/REUTERS
पहली महिला मरीन टुकड़ी
जापानी सेना के सबसे मजबूत बलों में से एक है एआरडीबी जिसमें 2,400 सैनिक हैं. इनमें से करीब 40 महिलाएं हैं, इस विशेष बल की पहली महिला मरीन हैं.
तस्वीर: Issei Kato/REUTERS
सिर्फ 40 महिलाएं
ये महिला सैनिक हरदम युद्ध के लिए तैयार हैं और लगातार अभ्यास करती हैं. करीब ढाई हजार सैनिकों की यूनिट में सिर्फ 40 महिलाएं होना इन्हें विशेष बनाता है.
तस्वीर: Issei Kato/REUTERS
लैंगिक असमानता
एआरडीबी को इस बात का अहसास है कि सेना में लैंगिक समानता नहीं है लेकिन कमांडर कहते हैं कि सैनिकों की कमी ना हो, इसके लिए महिलाओं की भर्ती बहुत जरूरी है.
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सिर्फ 8.7 फीसदी महिलाएं
पिछले एक दशक में जापानी सेना में महिला सैनिकों की संख्या दोगुनी हो गई है. जैपनीज सेल्फ-डिफेंस फोर्स (JSDF) में कुल 2,30,000 सैनिक हैं जिनमें सिर्फ 8.7 फीसदी महिलाएं हैं.
तस्वीर: Issei Kato/REUTERS
बदल रही है जापानी सेना
एआरडीबी में तो महिला सैनिकों की संख्या मात्र 1.7 फीसदी है. जापान ने 2018 में अपनी सेना को फिर से बनाना शुरू किया है.
तस्वीर: Issei Kato/REUTERS
यौन शोषण के आरोप
हाल के दिनों में जापानी सेना महिलाओं के यौन शोषण के आरोपों से विवाद में रही है. बीते साल अक्टूबर में जापान के रक्षा मंत्री ने विवादों के लिए माफी मांगी थी. दिसंबर में ही तीन सैनिकों को एक महिला साथी के साथ दुर्व्यवहार का दोषी पाया था.
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बदल रहा है समाज
पारंपरिक जापानी समाज में बहुत से लोग महिलाओं को घर संभालने और बच्चे संभालने की भूमिका में ही देखते हैं लेकिन ये जापानी सैनिक समाज को बदल रही हैं.
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2023 में जापान की जीडीपी 4.2 खरब डॉलर आंकी गई थी. पिछले महीने ही जर्मनी ने ऐलान किया था कि उसकी जीडीपी 4.4 खरब डॉलर है. देश के कैबिनेट ऑफिस के मुताबिक अक्टूबर से दिसंबर के बीच की तिमाही में जापान की अर्थव्यस्था 0.4 फीसदी सिकुड़ गई थी. हालांकि 2022 से तुलना की जाए तो उसकी जीडीपी में 1.9 फीसदी की वृद्धि हुई थी.
जापान और जर्मनी दोनों ने अपनी अर्थव्यवस्था छोटे और मध्यम आकार के उद्योगों पर खड़ी की है, जिनकी उत्पादकता मजबूत रही. लेकिन जर्मनी को यूरो की मजबूती का भी फायदा हुआ, जबकि जापान की मुद्रा येन कमजोर होती गई है.
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कई चुनौतियां
टोक्यो यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर तेशुजी ओकाजाकी कहते हैं कि ताजा आंकड़े जापान की नई वास्तविकताओं की भी एक झलक है जो दिखाता है एक देश के तौर पर जापान कमजोर हुआ है और इसका असर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच उसके कद पर भी पड़ेगा.
प्रोफेसर तेशुजी कहते हैं, "मिसाल के लिए कई साल पहले जापान अपने ताकतवर ऑटो सेक्टर का दंभ भरता था. लेकिन इलेक्ट्रिक व्हीकल के उभरने से उसकी यह ताकत कमजोर हुई है.”
ओकाजाकी कहते हैं कि विकसित और विकासशील देशों के बीच का अंतर भी कम हो रहा है और अगले कुछ साल में भारत का जापान से आगे निकलना तय है.
10 बेशकीमती खजाने, जिन्हें आज तक खोजा नहीं जा सका
नाजी गोल्ड ट्रेन हो या येरूशलेम का खजाना, दुनिया भर में ऐसे कई खजानों की कहानियां हैं, जिन्हें कभी नहीं खोजा जा सका. इन खजानों का रहस्य आज भी बना हुआ है.
तस्वीर: Frank Mächler/dpa/picture-alliance
द एंबर रूम
मशहूर एंबर रूम को प्रुशिया के फ्रेडरिक विलियम प्रथम ने रूस के पीटर दी ग्रेट को 1716 में दिया था. दूसरे विश्व युद्ध के समय इसे नाजियों ने लूट लिया और बहुमूल्य कहरुवे या एंबर को कोनिग्सबर्ग ले गए, जो तब जर्मनी में था. युद्ध के अंत तक पेटियों में बंद ये कहरुवे गायब हो चुके थे. सेंट पीटर्सबर्ग में इनकी नकल रखी हुई है, लेकिन असली सामान आज तक गायब है.
तस्वीर: Arno Burgi/dpa/picture alliance
नाजी गोल्ड ट्रेन
इतिहासकारों का कहना है कि "नाजी गोल्ड ट्रेन" जैसी कोई चीज कभी थी ही नहीं, लेकिन इसके बावजूद खजाने तलाशने वालों ने हार नहीं मानी है. कहा जाता है कि इस ट्रेन में 300 टन सोना, कई बहुमूल्य चित्र और लूट का अन्य सामान था, जिसे नाजियों ने भागने से पहले पश्चिमी पोलैंड की किसी बंद रेलवे सुरंग या खदान में छुपा दिया था.
तस्वीर: Arno Burgi/dpa/picture alliance
द राइन गोल्ड
सन 1200 में लिखे गए जर्मन महाकाव्य "द सॉन्ग ऑफ द निबेलुंग्स" में इस खजाने का सबसे पुराना जिक्र मिलता है. यह जीगफ्रीड नाम के एक राजकुमार की कहानी है, जो सैकड़ों योद्धाओं, 12 दैत्यों और एक बौने को हरा कर एक खजाना हासिल करता है. बाद में जीगफ्रीड को हागेन फॉन ट्रानिये नाम का एक योद्धा मार देता और उसका खजाना राइन नदी में फेंक देता है. लेकिन आज तक यह कोई जान नहीं पाया कि खजाना आखिर कहां है.
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येरूशलेम के मंदिर का खजाना
70 ईसवी में रोमनों ने येरूशलेम के दूसरे मंदिर से खजाना चुराया था, जिसमें एक सुनहरा दीपवृक्ष और रत्नों से जड़ा सुनहरा "टेबल ऑफ द डिवाइन प्रेजेंस" भी शामिल था. लेकिन रोमन साम्राज्य के अंत के साथ यह खजाना भी गायब हो गया. अब यह कहां हो सकता है, इसे लेकर कई मान्यताएं हैं. कुछ लोग मानते हैं कि खजाना वैटिकन में रखा है. कुछ यह भी मानते हैं सोना मक्का की काबा में लगा दिया गया था.
तस्वीर: CPA Media Co. Ltd/picture alliance
रूस के बादशाह का सोना
माना जाता है कि रूस के आखिरी बादशाह जार निकोलस द्वितीय अपने पीछे एक खजाना छोड़ गए थे. मान्यता है कि जार की हत्या के दो साल बाद 1920 की सर्दियों में नई कम्युनिस्ट सत्ता के विरोधी उसी खजाने का सोना कई गाड़ियों में भर कर बर्फ से जमी हुई बैकल झील के ऊपर से गुजर रहे थे, तभी बर्फ टूट गई और वो खजाने के साथ झील में गिर गए. तब से इस खजाने की तलाश चल ही रही है.
सन 1307 में कैथोलिक चर्च की सेना 'नाइट्स टेम्पलर' के बहुत शक्तिशाली हो जाने पर फ्रांस के राजा फिलिप चतुर्थ ने उसके नेताओं को गिरफ्तार करवा कर मरवा दिया. लेकिन उनका मशहूर खजाना किसी को नहीं मिला. तब से एक मिथक बन गया कि नाइट्स टेम्पलर ने खजाने को कहीं छिपा दिया था. खजाना खोजने वालों का मानना है कि वह इस्राएल, स्कॉटलैंड या कनाडा के ओक आइलैंड में से किसी भी जगह हो सकता है.
जापान के सबसे अच्छे तलवार बनाने वाले के रूप में मशहूर लोहार ओकाजाकी मासामुने ने होंजो-मासामूने तलवार बनाई थी, जो सामुराई होंजो शिगेनागा के पास रहती थी. यह तलवार तोकुगावा राजवंश की प्रतिष्ठा का प्रतीक थी और इसे कई दशकों तक पीढ़ी-दर-पीढ़ी संभाल कर रखा गया. लेकिन 1945 में दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिकियों ने इसे चुरा लिया और इसे तब से देखा नहीं गया है.
तस्वीर: piemags/IMAGO
फान गॉग की सैल्फ पोर्ट्रेट
डच चित्रकार फान गॉग की एक पेंटिंग 'द पेंटर ऑन द रोड टू तरस्कों' को दूसरे विश्व युद्ध के समय जर्मनी में माग्डेबुर्ग के पास श्टासफुर्ट में एक नमक की खदान में सैकड़ों दूसरी तस्वीरों के साथ रखा गया था. कहा जाता है कि अप्रैल 1945 में आग लगने की दो घटनाओं में सभी तस्वीरें नष्ट हो गईं. क्या ऐसा हो सकता है कि अमेरिकी सिपाहियों या नाजियों ने उन्हें चुरा लिया? आज की तारीख में इन चित्रों की कोई खबर नहीं है.
तस्वीर: The Print Collector/Heritage Images/picture alliance
चार्ल्स डार्विन की दो कॉपियां
चार्ल्स डार्विन की दो कॉपियां साल 2000 में एक फोटो शूट के बाद गायब हो गईं. ये कोई साधारण कॉपियां नहीं थीं. इनकी कीमत थी कई लाख पाउंड! क्या कैंब्रिज विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी ने उन्हें गलत तरीके से फाइल कर दिया? दो दशक तक गायब रहने के बाद एक दिन अचानक दोनों कॉपियां लाइब्रेरी के एक सार्वजनिक इलाके में एक गुलाबी गिफ्ट बैग में पाई गईं. साथ में लाइब्रेरियन के लिए ईस्टर की शुभकामनाएं भी थीं.
तस्वीर: Nicolas Economou/NurPhoto/picture alliance
'बिग मेपल लीफ' सोने का सिक्का
'बिग मेपल लीफ' एक 100 किलो वजनी सोने का सिक्का था. इसे रॉयल कैनेडियन मिंट ने 2007 में बनवाया था. 27 मार्च, 2017 को यह सिक्का बर्लिन के बोड संग्रहालय से चुरा लिया गया. तब इसकी कीमत 37 लाख यूरो से भी ज्यादा थी. माना जाता है कि चोरी अद्भुत तरीके से हुई थी. 2021 में इस चोरी के लिए कई गिरोहों के सदस्यों को दोषी पाया गया था. (क्रिस्टीना रेयमान-श्नाइडर)
तस्वीर: Marcel Mettelsiefen/dpa/picture alliance
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जापान की एक बड़ी समस्या बूढ़ी होती आबादी है जिसके कारण कामगारों की कमी हो गई है. इसे हल करने का एक तरीका आप्रवासियों को बुलाना है लेकिन विदेशी कामगारों को लेकर जापान का रवैया सख्त रहा है. हालांकि इस वजह से उसकी आलोचना भी होती रही है कि वहां विविधता नहीं है और आमतौर पर रवैया भेदभावपूर्ण है.
दूसरा विकल्प रोबोट्स का इस्तेमाल है जो इंसानों की जगह ले सकते हैं लेकिन यह विकास इतनी तेजी से नहीं हो पाया है कि लेबर की किल्लत को जल्द दूर कर पाए.
अर्श से गिरना
ऐतिहासिक रूप से जापान को ‘आर्थिक चमत्कार' कहा जाता है. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पूरी तरह बर्बाद होने के बाद जापान ने जिस तरह अपने आपको खड़ा किया और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने तक पहुंचा, वह किसी चमत्कार से कम नहीं था. 1970 और 1980 के दशक जापान का समय था जब टीवी से लेकर कारों तक उसके सामान का दुनिया के सभी बाजारों पर राज था. लेकिन पिछले कुछ सालों में उसकी बड़ी-बड़ी कंपनियां कमजोर होती चली गई हैं. तोशिबा जैसी कंपनी का फर्श से अर्श पर पहुंच जाना जापान की बड़ी तस्वीर की एक झलक है.
इसके पीछे सोईचिरो होंडा और कोनोसुके मात्सुशिता जैसे उद्यमियों की भी मेहनत रही जिन्होंने होंडा और पैनासोनिक जैसे मशहूर और लोकप्रिय ब्रांड स्थापित किए. गरीबी से उठे ऐसे उद्यमियों की बदौलत एक वक्त ऐसा था जब मेड इन जापान को गुणवत्ता की गारंटी कहा जाता था.
ओकाजाकी कहते हैं कि अब वे दिन बीती बात हो चुके हैं. वह कहते हैं, "अगले दो दशकों की ओर देखें तो जापान के लिए रोशनी की किरणें ज्यादा नजर नहीं आ रही हैं.”