जापान ने भारत को डब्ल्यूटीओ में ले जाने की धमकी दी है. विवाद स्टील व्यापार को लेकर है. आमतौर पर बातचीत से विवाद हल करने वाले जापान की ओर से ऐसा कदम सबको हैरान कर रहा है.
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जापान का आरोप है कि पिछले एक साल में उसका भारत को स्टील निर्यात आधा हो गया है क्योंकि भारत ने कुछ प्रतिबंध लगा रखे हैं. इस पूरे विवाद को दुनियाभर में व्यापार विवादों की शुरुआत का संकेत माना जा रहा है.
जापान को आमतौर पर आक्रामक प्रतिक्रियाएं करते नहीं देखा जाता. स्टील का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश जापान विवादों को बातचीत से हल करने का पक्षधर रहा है. लेकिन स्टील जापान के वैश्विक उद्योग का अहम हिस्सा है. जापान जितनी चीजें विदेशों को बेचता है, उसका करीब आधा स्टील ही होता है. इसलिए अपने इस क्षेत्र के बचाव में जापान ने आक्रामक रुख दिखाया है.
भारत के अपने स्टील उद्योग की सुरक्षा के अलावा जापान की चिंता अमेरिका के नये राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के आने के बाद वैश्विक व्यापार में होने वाली उथल पुथल भी है. ऐसे में जापान को लगता है कि उसे अपने हितों की रक्षा के लिए मजबूती से खड़ा होना होगा. इसी के तहत उसने 20 दिसंबर को डब्ल्यूटीओ में भारत के खिलाफ शिकायत की थी. इस बारे में उद्योग मंत्रालय के एक अफसर ने बताया, "हमें अनुचित व्यापारिक व्यवहार को फैलने से रोकना होगा."
जानिए, भारत ने किस देश से क्या खरीदा
भारत ने किस देश से क्या खरीदा
भारत ने 2015 में कुल 390.7 अरब अमेरिकी डॉलर्स का सामान आयात किया. 2014 के मुकाबले यह 15 फीसदी कम है. वर्ल्ड रिचेस्ट कंट्रीज डॉट काम ने बताया कि किस देश से सबसे ज्यादा कौन सी चीज मंगाई भारत ने, जानें...
तस्वीर: Noah Seelam/AFP/Getty Images
चीन
भारत ने चीन से 19.3 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक आइटम खरीदे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Durand
सऊदी अरब
यहां से 16.4 अरब डॉलर का तेल आया.
तस्वीर: AP
स्विट्जरलैंड
19.3 अरब डॉलर के कीमती पत्थर और धातुएं आईँ.
तस्वीर: Getty Images/D. Bowers/Sotheby's
अमेरिका
3.4 अरब डॉलर की कीमती पत्थर और धातुएं आईँ.
तस्वीर: Ethan Miller/Getty Images
यूएई
8.5 अरब डॉलर का तेल यूएई से आया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Haider
इंडोनेशिया
इस एशियाई देश से भी तेल खरीदा गया 5.6 अरब डॉलर का.
तस्वीर: A. Berry/AFP/Getty Images
दक्षिण कोरिया
2.7 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट्स खरीदे गए.
तस्वीर: Reuters/K. Hong-Ji
जर्मनी
3.5 अरब डॉलर की मशीनें जर्मनी ने भारत को बेचीं.
तस्वीर: Imago
इराक
इराक ने भारत को 11.3 अरब डॉलर का तेल बेचा.
तस्वीर: Getty Images/M. Fala'ah
नाइजीरिया
अफ्रीकी देश नाइजीरिया ने 10 अरब डॉलर का तेल बेचा.
तस्वीर: Getty Images/C. Hondros
कतर
8.6 अरब डॉलर का तेल खाड़ी देश कतर से आया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
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भारत ने सितंबर 2015 में कुछ स्टील उत्पादों पर 20 प्रतिशत की ड्यूटी लगा दी थी. फरवरी 2016 में उसने आयात के लिए एक न्यूनतम मूल्य निश्चित कर दिया ताकि जापान, चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देश स्थानीय स्टील उद्योग में सेंध ना लगा पाएं.
जापान के उद्योग मंत्रालय के अफसर ने कहा, "अगर बातचीत से विवाद हल नहीं हो पाया तो हम विश्व व्यापार संगठन से फैसला सुनाने का आग्रह कर सकते हैं." जापान ने डब्ल्यूटीओ से 20 दिसंबर को सलाह मांगी थी. नियम है कि 60 दिन के भीतर विवाद हल ना हो तो कार्रवाई की जा सकती है. जापान का कहना है कि भारत का कदम विश्व व्यापार संगठन के नियमों के विपरीत हैं और इस कारण से भारत में उसका निर्यात गिरा है. 2015 में जापान भारत को स्टील निर्यात करने वाला छठा सबसे बड़ा देश था और नवंबर में यह 10वें स्थान पर आ गया.
यह भी देखिए, क्यूबा में खुला नई कारों का रास्ता
क्यूबा में खुला नई कारों का रास्ता
क्यूबा की सड़कें पुराने समय की याद दिलाती हैं क्योंकि वहां विंटेज अमेरिकी सीडान कारों की भरमार दिखती है. मगर अब इस कम्यूनिस्ट देश में नई विदेशी कारों के आयात का रास्ता साफ हो गया है.
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बाजार पर कब्जा, बिना किसी नकल
1950 के दशक में दुनिया भर के कम्युनिस्टों का सपना था पूंजीवाद जैसा होने के बदले उनसे बेहतर होना. क्यूबा में यह प्रयास बहुत सफल नहीं रहा. वहां ज्यादातर कारें क्रांति से पहले की हैं, 60 साल पुरानी हैं.
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क्रांति और प्रतिबंध
क्यूबा में इन पुरानी कारों की वजह 1958-59 की क्रांति है. क्रांति में जीत के बाद फिदेल कास्त्रो और उनके कॉमरेडों ने देशवासियों को कार रखने की अनुमति तो दी, लेकिन नई कारें खरीदने की नहीं. देश में केवल वही कारें रहीं जो उस समय द्वीपीय राष्ट्र में मौजूद थीं.
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पुरानी सीडान कारें
उस समय क्यूबा में 1940 और 50 के दशक में अमेरिका में प्रचलित बड़ी रोड क्रूजर कारें जैसे ओल्ड्समोबाइल, शेवर्ले या प्लेमाउथ (तस्वीर में बाएं से दाएं) ही मौजूद थीं. इसके बाद कुछ सोवियत, फ्रेंच और एशियाई कारें आईं, लेकिन इन्हें खरीदने के लिए परमिट की जरूरत होती थी.
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हर कोई बना मेकैनिक
इन पुरानी कारों का रखरखाव कार मालिकों के लिए सिरदर्द था. कारों के स्पेयर पार्ट मिलने में दिक्कत आती थी और 100 किलोमीटर चलने में ही करीब 20 लीटर ईंधन लग जाता था. इतने सालों तक क्यूबा में लोग किसी तरह इन कारों की मरम्मत कर इस्तेमाल में लाते रहे.
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घोड़ागाड़ी की सवारी
जब कारों का हॉर्सपावर जवाब दे देता है तब क्यूबावासी असली घोड़े की सवारी से भी गुरेज नहीं करते. घोड़ागाड़ियों की सवारी करते लोग देश में काफी जगहों पर दिख जाते हैं.
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स्टाइल की सवारी
क्यूबा पहुंचने वाले पर्यटक इन पुरानी क्लासिक कारों की सवारी कर काफी खुश होते हैं. कई लोगों ने अपनी कारें टैक्सी सर्विस में लगा दी हैं. कनाडा और दूसरे देशों से हर साल यहां करीब 30 लाख पर्यटक पहुंचते हैं.
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खुल रहा है बाजार
क्यूबा की सड़कें जल्दी ही नए अवतार में दिखने लगेंगी. देश के राष्ट्रपति राउल कास्त्रो ने दुनिया से अलग थलग पड़ गई क्यूबा की अर्थव्यवस्था को सुधारने की ओर कदम बढ़ाए हैं. नई कारों पर से प्रतिबंध हटाना उसी कोशिश का एक हिस्सा है.
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नई कारें - क्या सबके लिए?
नई कारों को बाजार मूल्य पर खुलेआम बेचा जाएगा. लेकिन अभी यह नहीं कहा जा सकता कि क्यूबा के एक करोड़ से ज्यादा निवासियों में से कितने इन्हें खरीदने की सामर्थ्य रखते हैं. यहां के सरकारी अधिकारियों की मासिक आय करीब 20 अमेरिकी डॉलर के बराबर ही है.
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शायद कुछ सालों में...
क्यूबा शायद अपने पड़ोसी कैरेबियाई देश जमैका जैसा दिखने लगे, जहां सड़कें पुरानी लेकिन मजबूत दिखने वाली एशियाई कारों से अटी पड़ी हैं. क्यूबा को अपने परिवेश और जरूरत के हिसाब से कुछ खास कारों को अहमियत देनी होगी.
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ड्राइविंग सीट पर सवार
कुछ समय पहले जर्मन कार कंपनी मर्सिडीज के एक कैंपेन पर काफी बवाल हुआ. इसमें क्यूबा के क्रांतिकारी चे गेवारा की टोपी पर बने लाल तारे की जगह मर्सिडीज का लोगो दिखाया गया था. क्यूबा के लिए आदर्श कार जापान की माजदा हो सकती है, जिसका नारा है- "ड्राइव द रिवॉल्यूशन."
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स्टील को लेकर दुनियाभर में व्यापारिक विवाद बढ़ रहे हैं. दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक चीन ने बेहद सस्ती कीमतों पर निर्यात किया है. इस कारण वियतनाम, मलेशिया और दक्षिण कोरिया उस पर पाबंदियां लगाने पर विचार कर रहे हैं. नतीजतन चीन का निर्यात 2016 में 3.5 प्रतिशत तक गिरा है. और अब ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद माहौल तनावग्रस्त है क्योंकि नये अमेरिकी राष्ट्रपति ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार संधियों को तोड़ने और भारी भरकम आयात कर लगाने की बातें कही हैं. कैनन इंस्टिट्यूट फॉर ग्लोबल स्टडीज के रिसर्च निदेशक काजुहितो यामाशिता कहते हैं कि ट्रंप के आने के बाद व्यापारिक विवादों का सैलाब नजर आ सकता है.