सबसे लंबा जीने वाले भी नहीं बचे जिससे
१६ जून २०२२कई पीढ़ियों से जापान के ओकिनावा की ख्याति विश्व में सबसे लंबा जीने वाले इंसानों के कारण रही है. सन 1980 में ओकिनावा के पुरुषों और महिलाओं की औसत उम्र सबसे ज्यादा थी. पुरुष आमतौर पर 84, तो महिलाएं 90 की उम्र तक जीती थीं. उनकी लंबी उम्र के रहस्य को जानने के लिए बाहरी देशों के मेडिकल एक्सपर्ट्स का इन दक्षिणी जापान के द्वीपों में आना-जाना लगा रहा. ज्यादातर इसी नतीजे पर पहुंचे कि इसका राज वहां के लोगों के पोषक खान-पान, नियमित व्यायाम और परिवार, समाज का सहयोग रहा है. हालांकि, आज वही सब बदलने लगा है.
मोटे तौर पर देखा जाए तो जापान की कुल आबादी अब पहले के मुकाबले औसतन लंबी उम्र जीने लगी है. लेकिन ओकिनावा के लोग पहले की अपेक्षा जल्दी मरने लगे हैं. इसका दोष युवा पीढ़ी पर मढ़ा जा रहा है, जो पहले के तौर-तरीके मानने में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं दिखा रही.
क्यों गिरी उम्र
धीरे-धीरे जापान के अंदर ही ओकिनावा के पुरुषों की रैंकिंग नीचे गिरने लगी. जापान की 47 परफेक्चर (प्रशासनिक इकाइयों) में यहां के पुरुषों की रैंकिंग पांचवी हो गई और सन 2020 तक 36वीं हो गई. ओकिनावा की महिलाएं 2005 तक टॉप पर बनी रहीं, लेकिन 2020 तक वे भी सातवें स्थान पर आ गईं. 2020 की जनगणना से पता चला कि ओकिनावा के पुरुषों की औसत उम्र 80.27 और महिलाओं की 87.44 हो चुकी है.
खुद 89 साल के हो चुके माकोतो सुजुकी को इस विषय में गहरी दिलचस्पी है. इसी द्वीप पर अपने आसपास रहने वालों को उन्होंने जीवन भर देखा है. ओकिनावा रिसर्च सेंटर के संस्थापकों में से एक सुजुकी कहते हैं, "ओकिनावा के लोगों की औसत उम्र तेजी से नीचे आ रही है और हमारा मानना है कि इस समस्या का कारण यही है कि युवा लोग अपने से पहले वाली पीढ़ियों के पगचिन्हों पर चलने में असफल रही है." अब भी क्लिनिकल कार्डियोलॉजिस्ट के तौर पर पार्ट टाइम काम करने वाले सुजुकी बताते हैं, "ओकिनावा के लोगों पर दूसरे समाजों के खानपान और लाइफस्टाइल का असर पड़ गया है, खासकर अमेरिका के."
1945 में दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद भी बड़ी संख्या में अमेरिकी मिलिट्री बेस और हजारों सैनिक वहीं बने रहे. इसके कारण ओकिनावा में अमेरिकी फास्ट फूड और टीवी देखने का चलन स्थानीय लोगों में भी पहुंचा. सुजुकी बताते हैं, "आमतौर पर ओकिनावा में लोगों के खान-पान में खूब सारी सब्जियां, स्थानीय फल, टोफू और मांस, मछली, जैसी चीजें थोड़ी-थोड़ी मात्रा में हुआ करती थीं." अपने बचपन को याद करते हुए वह कहते हैं, "जब मैं छोटा बच्चा था, हम हफ्ते में एक ही दिन मीट खाया करते थे और वह आदत आज भी बरकरार है." खाने के अलावा टीवी देखने की आदत लगने के कारण लोगों की बाहर खेलने और एक्सरसाइज करने की आदत भी कम होती चली गई.
'इकिगाई' का महत्व
इकिगाई वह पारंपरिक सोच है, जिसे किसी इंसान के जीवन की वजह माना जाता है. सुजुकी जैसे बुजुर्गों के जीवन में आज भी उसका महत्व है. इसे समझाते हुए वह बताते हैं, "अस्पताल के अपने काम में मैं बहुत व्यस्त रहता हूं और वह मेरा इकिगाई है." वह बताते हैं कि मरीजों को वह अपने दोस्त की तरह देखते हैं जिनकी उन्हें मदद करनी है. दो साल पहले अपनी पत्नी को खो चुके सुजुकी कहते हैं कि इससे वह खुद को कभी अकेला महसूस नहीं करते.
इसी जापानी परफेक्चर के एक मेडिकल कॉलेज में पढ़ाने वाली तोमोको ओवान मानती हैं कि यहां के रहने वालों की जीवनशैली पर बाहर का काफी बुरा असर पड़ा है. यह बदलाव केवल खानपान तक सीमित नहीं है. तोमोको बताती हैं, "इस द्वीप पर बसे लोगों के लिए परिवार और समुदाय बहुत अहम हुआ करता था. पहले शांति थी और लोगों को इतना तनाव भी नहीं था." उन्होंने देखा है कि यहां के लोग भी अब हमेशा "जल्दी, जल्दी" मचाते रहते हैं, जबकि पहले यह सोच जापान की मुख्यभूमि तक सीमित थी. वह कहती हैं कि काम के लंबे घंटे का मतलब है रिलैक्स होने, दोस्तों और परिवार के साथ समय बिताने या अपने किसी शौक के लिए कम-से-कम वक्त होगा.
छूट गया कराटे का हाथ
कराटे ओकिनावा की संस्कृति का हिस्सा हुआ करता था. आज भी कई बुजुर्ग इस मार्शल आर्ट का अभ्यास करते दिख जाएंगे. ओवान खुद यूनिवर्सिटी में कराटे सिखाती हैं और इसे अपने दैनिक एक्सरसाइज का अभिन्न हिस्सा मानती हैं.
ओकिनावा में रहने वाली आज की युवा पीढ़ी अपनी लाइफस्टाइल से संतुष्ट दिखती है. हालांकि वे जानते हैं कि शायद वे अपने माता-पिता और उनके माता-पिता जैसा लंबा जीवन नहीं जी पाएंगे. टूरिज्म सेक्टर में काम करने वाले 39 साल के शुहेई कोहागुरा कहते हैं, "यही मॉडर्न जापानी लाइफस्टाइल है." वह काम में कई घंटे ओवरटाइम करने, दोपहर को कुछ भी खरीद कर खा लेने और काम के बाद अपने सहर्मियों के साथ ड्रिंक करने जाने के रूटीन को सामान्य बताते हैं. वह कहते हैं, "मैं ऐसे ही बड़ा हुआ हूं, तो मेरे लिए यही आरामदायक है. हां ये सच है कि मैं कभी-कभी शिकायत करता हूं कि व्यस्तता बहुत ज्यादा है." उनका मानना है कि पारंपरिक तरीका सुनने में भले ही अच्छा लगता है, लेकिन उनके जैसे लोगों के लिए अब उसमें ढलना बहुत कठिन है.
सुजुकी की मां 105 की उम्र तक जीवित रहीं. वह खुद भी मरते दम तक एक डॉक्टर के रूप में काम करते रहना चाहते हैं. वह कहते हैं, "मुझे लगता है कि ओकिनावा के युवा लोगों ने अपने बड़ों से कुछ नहीं सीखा." वह इसे दुर्भाग्यपूर्ण मानते हैं कि ये युवा उतना लंबा नहीं जी पाएंगे क्योंकि छोटी सी अवधि में उनके समाज में बहुत गहरे बदलाव आ गए हैं.