13 लाख टन रेडियोएक्टिव पानी समंदर में छोड़ेगा जापान
२२ अगस्त २०२३
जापान, 24 अगस्त से रेडियोधर्मी पानी समंदर में छोड़ना शुरू करेगा. फुकुशिमा दाइची परमाणु संयंत्र का ये पानी करीब 10 साल तक समंदर में छोड़ा जाता रहेगा. सरकार और विशेषज्ञ इसे सुरक्षित बताते हैं, लेकिन कई लोग आशंकित भी हैं.
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2011 के ताकतवर भूकंप और उसके बाद आई सुनामी लहरों ने जापान के फुकुशिमा दाइची परमाणु बिजलीघर को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया. मशीनों को ठंडा रखने में इस्तेमाल होने वाला पानी, रेडियोएक्टिव रिएक्टरों और छड़ों के संपर्क में आया. जापान का कहना है कि अब इसी पानी को साफ कर समंदर में छोड़ा जाएगा. यह प्रक्रिया 24 अगस्त से शुरू होगी. छोड़े जाने वाले पानी की फिल्टरिंग और डायल्यूशन प्रोसेस करीब 10 साल तक चलेगी.
रेडियोधर्मी पानी
फिलहाल यह पानी टंकियों में जमा है. पानी इतना ज्यादा है कि इससे ओलंपिक खेलों में इस्तेमाल होने वाले 500 स्विमिंग पूल भरे जा सकते हैं. फुकुशिमा दाइची परमाणु बिजलीघर चलाने वाली "टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी" (टेप्को) के मुताबिक, फिल्टरिंग के दौरान पानी से आइसोटोप्स निकाले जा रहे हैं. अब पानी में सिर्फ हाइड्रोजन का आइसोटोप ट्रिटियम बचा है. ट्रिटियम भी रेडियोधर्मी है. टेप्को का कहना है कि ट्रिटियम को पूरी तरह पानी से अलग करना काफी मुश्किल है. कंपनी के मुताबिक इसकी सघनता को बहुत कम किया जाएगा, ताकि पानी सुरक्षा मानकों पर खरा उतरे.
ट्रिटियम को तुलनात्मक रूप से कम नुकसानदेह माना जाता है. इंसानी त्वचा प्राकृतिक रूप से इसे नहीं सोख पाती है. हालांकि 2014 में आए एक अमेरिकी साइंस आर्टिकल के मुताबिक, बहुत ज्यादा ट्रिटियम वाले पानी को पीने से कैंसर का खतरा हो सकता है.
सुरक्षा से जुड़े सवाल
यूएन की परमाणु निगरानी संस्था, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने जुलाई में इस पानी को छोड़ने की अनुमति दी. आईएईए के मुताबिक, साफ किया गया पानी अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरता है. आईएईए ने यह भी कहा कि पर्यावरण पर इस पानी का नकारात्मक असर, ना के बराबर होगा.
पर्यावरण कार्यकर्ता इस तर्क से सहमत नहीं हैं. उनका कहना है कि रेडियोधर्मी पानी छोड़ने के बाद किस तरह के नतीजे आएंगे, इसका पर्याप्त अध्ययन नहीं किया गया है. पर्यावरण संगठन ग्रीनपीस के मुताबिक, ट्रिटियम, कार्बन-14, स्ट्रॉनटियम-90 और आयोडीन-129 के बायोलॉजिकल जोखिम का अध्ययन नाकाफी है.
जापान सरकार और टेप्को के दस्तावेजों के मुताबिक, फिल्टरिंग के दौरान स्ट्रॉनटियम-90 और आयोडीन-129 को पूरी तरह साफ कर दिया जाएगा. कार्बन-14 बहुत कम मात्रा में रहेगा. यह मात्रा सुरक्षा मानकों में दर्ज संख्या से बहुत कम होगी. जापान का दावा है कि ट्रिटियम का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा पेयजल के लिए तय किए गए मानकों से भी कम होगा.
जापान सरकार के दस्तावेज में यह भी कहा गया है कि अगर रेडियोधर्मी पदार्थ की सघनता सामने आई, तो "जरूरी कदम उठाए जाएंगे, इनमें तुरंत पानी छोड़े जाने पर रोक" भी शामिल है.
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पड़ोसियों और मछुआरों का रुख
फुकुशिमा का पानी महासागर में छोड़ने की योजना पर जापान के पड़ोसी देश चीन, दक्षिण कोरिया और रूस भी चिंता जताते रहे हैं. अब दक्षिण कोरिया की सरकार जापान की योजना से सहमत दिखती है. दक्षिण कोरिया के मुताबिक, उसके अपने शोध में यह पता चला है कि पानी अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतर रहा है. सियोल ने आईएईए के शोध का सम्मान करने की बात भी कही.
चीन और रूस चाहते हैं कि जापान पानी को समंदर में छोड़ने के बजाए उसे भाप बनाकर उड़ा दे. जुलाई में दोनों देशों ने टोक्यो को इस बारे में एक कागजात भी भेजा. जापान सरकार ने इस प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा कि वायुमंडल में छोड़े गए रेडियोधर्मी पदार्थ का असर आंकना बहुत मुश्किल है. चीन, जापान के सी-फूड का सबसे बड़ा खरीदार है.
फुकुशिमा के मछुआरे भी लंबे समय से रिएक्टरों का पानी समंदर में छोड़ने का विरोध करते रहे हैं. हालांकि अब वे सरकार की योजना से सहमत होते दिख रहे हैं. जापान की "नेशनल फेडरेशन ऑफ फिशरीज कोऑपरेटिव एसोसिएशन" के प्रमुख मासानोबू साकामोटो के मुताबिक, वह जानते हैं कि छोड़ा जाने वाला पानी वैज्ञानिक मानकों पर खरा उतरता है. हालांकि आम लोगों की आशंका को यह कैसे दूर करेगा, इसका जवाब उनके पास भी नहीं है.
ओएसजे/एसएम (रॉयटर्स)
फुकुशिमा के मछुआरे
जापान की ऊर्जा कंपनी तेप्को बंद हो चुके फुकुशिमा परमाणु संयंत्र से 10 लाख टन उपचारित पानी समुद्र में छोड़ना चाहती है. क्या इससे इलाके में मछली पकड़ने का काम बंद हो जाएगा?
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
मछुआरों का पीढ़ियों पुराना काम
71 साल के मछुआरे हरुओ ओनो शिनचिमाची नाम के छोट से बंदरगाह पर खुद पकड़ी हुई मछलियां उतार रहे हैं. शिनचिमाची फुकुशिमा दाईची परमाणु संयंत्र से सिर्फ 55 किलोमीटर दूर स्थित है, जहां 2011 में दुनिया को दहला देने वाला परमाणु हादसा हुआ था. ओनो का परिवार तीन पीढ़ियों से मछली पकड़ने का काम करता है. वो खुद करीब 50 सालों से यह काम कर रहे हैं.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
मछली पालन से जीवन यापन
नूडल मछली साफ करते करते ओनो हादसे को याद करते हैं. 11 मार्च, 2011 को रिक्टर स्केल पर नौ की तीव्रता वाले एक भूकंप की वजह से जापान के पूर्वी तट पर सुनामी आ गई थी. ओनो तो समुद्र में अपनी नाव पर बच गए लेकिन जमीन पर उनका घर नष्ट हो गया. उनके एक छोटे भाई की मृत्यु हो गई. वही सुनामी फुकुशिमा संयंत्र से भी टकराई थी, जिसके बाद धमाके हुए थे और संयंत्र में परमाणु दुर्घटना हो गई थी.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
दूषित पानी से उद्योग ठप्प
उस हादसे में जो रेडिएशन निकली उसने इस इलाके में मछलीपालन उद्योग को पूरी तरह से ठप्प कर दिया. 12 सालों बाद थोड़ी से बहाली के संकेत नजर आए हैं और मछलियों के दाम धीरे धीरे फिर से बढ़ने लगे हैं. ओनो ऊर्जा कंपनी तेप्को की दूषित पानी को समुद्र में छोड़ने की योजना को "असहनीय" मानते हैं. उन्हें डर है कि वो फिर से उसी स्थिति में पहुंच जाएंगे जहां वो सालों पहले थे.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
पानी पर विवाद
संयंत्र पर मौजूद अनगिनत पानी के टैंकों पर काफी विवाद छिड़ा हुआ है. इनमें मौजूद पानी का मुख्य रूप से हादसे के बाद रिएक्टरों को ठंडा करने के लिए इस्तेमाल किया गया था. अधिकारियों के मुताबिक संयंत्र के पुनर्निर्माण से पहले इन टैंकों को हटाना जरूरी है.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
मछुआरों का डर
ऊर्जा कंपनी का एक कर्मचारी उपचारित पानी का एक सैंपल दिखा रहा है. पानी का उपचार किया जा चुका है, उसे फिल्टर और पतला भी किया जा चुका है. कंपनी और सरकार का दावा है की यह पानी अब सुरक्षित है. हालांकि उसमें रेडियोएक्टिव पदार्थ ट्राइटियम के अवशेष मौजूद हैं. वैसे तो इसे तुलनात्मक रूप से नुकसान न देने वाला माना जाता है, लेकिन मछुआरों को डर है कि इसके पानी में घुलने के बाद उनका धंधा फिर से बर्बाद हो जाएगा.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
सब काबू में है?
ऊर्जा कंपनी और टोक्यो की सरकार का कहना है कि दूसरे देश भी उपचारित पानी को समुद्र में छोड़ते हैं लेकिन जापान में रेडिएशन की जांच के मानक उन देशों से ज्यादा कड़े हैं. और पानी छोड़े जाने का अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी भी अनुमोदन कर चुकी है. कंपनी के प्रवक्ता तोमोहिको मायुजुम ने बताया, "हमारे पास पानी को सुरक्षित बनाने के लिए उपकरण हैं."
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
संयंत्र के अंदर मछली पालन
उपचारित पानी कितना सुरक्षित है यह दिखाने के लिए कंपनी बंद हो चुके संयंत्र के अंदर पानी के टैंकों में फ्लाउंडर मछली पाल रही है. फुकुशिमा विश्वविद्यालय के तोशिशिरो वाडा मछुआरों की चिंताओं को समझते हैं. उनका कहना है कि इलाके के बस अभी ही उबरना शुरू हुए मछलीपालन उद्योग के लिए ऊर्जा कंपनी द्वारा दूषित पानी को समुद्र में छोड़ने की घोषणा "दुर्भाग्यपूर्ण" है.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
जिंदा रहने का सवाल
मछलियों को बेचने से पहले हारुओ ओनो उन्हें पानी के एक टैंक में डालते हैं. वो ऊर्जा कंपनी तेप्को से नाराज हैं. वो कहते हैं, "समुद्र कोई कूड़ेदान नहीं है...पानी को फुकुशिमा समुद्र में ही क्यों छोड़ना है, टोक्यो या ओसाका में क्यों नहीं?" उनका कहना है कि इस इलाके के लोग पहले ही बहुत भुगत चुके हैं और अब उन्हें और भुगतने पर मजबूर किया जा रहा है.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
रचनात्मक पुनर्निर्माण
71 साल के ओनो उस जगह पर खड़े हैं जहां कभी उनका घर हुआ करता था. सुनामी के बाद इस जगह को एक पार्क में बदल दिया गया. उनका नया घर तट से काफी दूर है, फिर भी उनका कहना है वो मरते दम तक समुद्र में ही काम करते रहेंगे. उनके हिसाब से मछली पालन का भविष्य उज्ज्वल नहीं है. "प्राथमिक और निचली कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों का क्या होगा? उनके लिए इससे आजीविका चलाना बेहद अस्थिर काम है."