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राजनीतिजापान

जापान को मिलेंगी पहली महिला पीएम, फेमिनिस्टों को क्या उम्मीद

स्वाति मिश्रा एएफपी
५ अक्टूबर २०२५

सनाए ताकाइची जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने जा रही हैं. जापान की फेमिनिस्टों के लिए ये कैसी खबर है? क्या एक महिला पीएम के कार्यकाल में महिला अधिकारों को मजबूती मिलेगी?

सानाए ताकाइची जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री बन सकती हैं
सानाए ताकाइची की राजनीतिक विचारधारा सामाजिक रुढ़िवाद की ओर झुकी हुई हैतस्वीर: Yuichi Yamazaki/POOL/AFP/Getty Images

उम्मीद है कि सनाए ताकाइची इसी महीने के अंत तक प्रधानमत्री पद संभाल सकती हैं. राजनीतिक विचारधारा में बेहद रूढ़िवादी ताकाइची, सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रैटिक पार्टी (एलडीपी) की नेता हैं.

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नवंबर 1955 में गठन के बाद से अब तक, एक संक्षिप्त अवधि को छोड़कर ज्यादातर यही पार्टी जापान की सत्ता में रही है. इस लंबी लोकतांत्रिक शृंखला में पहली दफा एक महिला को पार्टी का नेतृत्व सौंपा गया है.

सनाए ताकाइची ने उम्मीद जताई है कि वह महिलाओं की सेहत से जुड़े संघर्षों पर जागरूकता बढ़ाएंगीतस्वीर: HIRO KOMAE/POOL/AFP via Getty Images

सनाए ताकाइची का राजनीतिक झुकाव किस ओर?

आमतौर पर प्रधानमंत्री पद पर किसी महिला की नियुक्ति, वो भी पहले-पहल, नारीवादी विचारधारा के समर्थकों के लिए बड़ी खुशी का मौका होता है. सनाए ताकाइची भी अपवाद नहीं हैं, लेकिन कुछ आलोचनाएं भी हैं. उनकी राजनीतिक विचारधारा सामाजिक रुढ़िवाद की ओर झुकी हुई है.

मसलन, जापान में 1898 का एक कानून है जिसके तहत पति और पत्नी दोनों का उपनाम (सरनेम) एक होना चाहिए. कमोबेश हमेशा, शादी के बाद महिलाओं को ही अपना सरनेम बदलकर, पति का उपनाम अपनाना पड़ता है. ज्यादातर रूढ़िवादी और पितृसत्तात्मक समाजों में यही सामान्य समझा जाता है.

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जापान में इस कानून को बदलने की मुहिम अदालत पहुंची और साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने कानून बरकरार रखने का फैसला सुनाया. इस निर्णय के बाद भी यह बहस खत्म नहीं हुई. अब देश को एक महिला प्रधानमंत्री मिलने जा रही है, जो इस कानून की समीक्षा के खिलाफ हैं.

ताकाइची समलैंगिक शादियों का भी "सैद्धांतिक विरोध" करती हैं. इसके अलावा वह जापान के शाही परिवार में केवल पुरुषों को उत्तराधिकारी चुने जाने की परंपरा का भी समर्थन करती हैं. वह चाहती हैं कि शाही परिवार यह परंपरा जारी रखे. तो फिर नारीवादियों को लैंगिक बराबरी के मामले में ताकाइची से कोई खास उम्मीद रखनी चाहिए या नहीं?

राजनीतिक विचारधारा में बेहद रूढ़िवादी ताकाइची, सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रैटिक पार्टी (एलडीपी) की नेता हैंतस्वीर: Eugene Hoshiko/AP/picture alliance

फेमिनिस्ट मुद्दों पर क्या उम्मीद लगानी चाहिए?

टोकाई यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और जेंडर व पॉलिटिक्स के विशेषज्ञ यूकी तुजी की मानें, तो जवाब है नहीं. उन्होंने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि ताकाइची की "महिला अधिकार या लैंगिक बराबरी की नीतियों में कोई दिलचस्पी नहीं है. इसीलिए इस बात की संभावना नहीं दिखती कि इन नीतियों में, अतीत की एलडीपी सरकारों के मुकाबले अब कोई बदलाव आएगा." तुजी ने यह भी जोड़ा कि एक महिला का प्रधानमंत्री बनना प्रतीकात्मक रूप से काफी अहमियत रखता है.

इन प्रत्यक्ष असहमतियों और अलग स्टैंड के बावजूद ताकाइची ने उम्मीद जताई है कि वह महिलाओं की सेहत से जुड़े संघर्षों पर जागरूकता बढ़ाएंगी. उन्होंने मेनापॉज के अपने अनुभवों पर भी खुलकर बात की. अपेक्षाओं और आलोचनाओं से इतर एक बड़ी चुनौती जज किए जाने की भी है.

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महिलाओं को जब ताकतवर भूमिका सौंपी जाती है, तब एक बड़ा जोखिम यह होता है कि बहुत से लोग उनकी असफलताओं या कमियों को उनके लिंग से जोड़कर देखते हैं. जैसा कि तुजी कहते हैं, "उनपर नतीजे हासिल करने का बहुत दबाव होगा, और अगर वह नाकाम रहती हैं तो यह महिला प्रधानमंत्रियों के खिलाफ नकारात्मक धारणाओं को सींच सकता है."

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जापान की कई महिलाएं ताकाइची की जीत से खुश हैं. इनमें से एक, टोक्यो की रहने वालीं यूका ने बताया, "हम बड़े गर्व के साथ दुनिया को बता सकते हैं कि जापान को संभावित तौर पर महिला लीडर मिलने वाली है." हालांकि, बतौर प्रधानमंत्री ताकाइची लैंगिक मसलों पर कितनी प्रगति हासिल कर पाएंगी इसपर यूका को भी संदेह है.

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जापानी समाज अब भी काफी पितृसत्तात्मक है. महिलाएं बड़े पदों पर नियुक्त हो तो रही हैं, लेकिन यह अब भी संतोषजनक स्तर पर नहीं है. साल 2021 में यहां मैनेजमेंट पदों पर महिलाओं की हिस्सेदारी बस 13.2 प्रतिशत ही थी.

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'वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम' की साल 2025 में आई ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में कुल 148 देशों की तालिका में जापान 118वें स्थान पर था. जैसा कि यूका कहती हैं, "बहुत सारी सक्षम महिलाएं हैं, लेकिन जापान में नेतृत्व की भूमिकाएं पुरुषों को मिलती हैं. बहुत सी महिलाओं को करियर के अपने शिखर पर नौकरी छोड़नी पड़ती है, क्योंकि या तो उन्हें बच्चों की या बुजुर्ग मां-बाप की देखभाल करनी पड़ती है."

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राजनीति में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है. जापानी संसद के निचले सदन में महिलाओं की मौजूदगी केवल 15 प्रतिशत है. कई महिला सांसद घर और राजनीति, दोनों की जिम्मेदारियों के बीच बंटने और पिसने के संघर्ष को भी रेखांकित करती हैं. वहीं, उनके पुरुष सहकर्मियों को इसकी चिंता नहीं करनी पड़ती है.

इसके अलावा महिला नेताओं को सेक्सिस्ट टिप्पणियों और फब्तियों का भी सामना करना पड़ता है. जैसा कि साल 2024 में पूर्व उप प्रधानमंत्री तारो आसो ने तत्कालीन विदेश मंत्री योको कामिकावा को "आंटी" और "उतनी सुंदर नहीं हैं" बताया.

कई महिलाओं को उम्मीद है कि ताकाइची के कार्यकाल में शायद कुछ बेहतरी आए. कुछ ऐसी ही उम्मीद जताते हुए रुकी तातसूमी कहती हैं, "अतीत में महिला शासक (राजशाही) हुई हैं, लेकिन कोई महिला प्रधानमंत्री नहीं हुई. तो मैं सोचती हूं ये जापान के लिए थोड़ा आगे बढ़ने का मौका बन सकता है."

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