जापान ने छोड़ा रेडियोएक्टिव पानी, चीन ने लगाया आयात पर बैन
२४ अगस्त २०२३
चीन ने जापान से तमाम समुद्री उत्पादों का आयात बंद कर दिया है. जापान ने फुकुशिमा परमाणु संयंत्र के रेडियोएक्टिव पानी समुद्र में छोड़ा है.
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चीन ने जापान के समुद्री उत्पादों पर बैन लगा दिया है. फुकुशिमा दाइची परमाणु संयंत्र से रेडियोएक्टिव पानी समुद्र में छोड़े जाने की शुरुआत होते ही चीन ने यह फैसला किया है. गुरुवार को जापान ने रेडियोएक्टिव पानी की पहली खेप को प्रशांत महासागर में छोड़ा है.
एक लाइव वीडियो में टोक्यो इलेक्ट्रिक पावर कंपनी होल्डिंग्स (टेपको) ने दिखाया कि एक कर्मचारी ने समुद्र में पानी छोड़ने के लिए पंप को खोल दिया. इस तरह इस विवादित कदम की शुरुआत हुई, जो दशकों तक जारी रहने का अनुमान है.
पंप के मुख्य संचालक ने वीडियो में कहा, "सीवॉटर पंप ए एक्टिवेट किया जाता है.” इसके तीन मिनट बाद में टेपको इस बात की पुष्टि की कि सीवॉटर पंप को दोपहर बाद 1.03 बजे चालू किया गया. कंपनी ने कहा कि इसके 20 मिनट बाद अतिरिक्त पानी छोड़ा जाना शुरू हुआ. संयंत्र के अधिकारियों ने कहा कि पानी का समुद्र में छोड़ा जाना सुचारू रूप से जारी है.
सुरक्षा को लेकर चिंताएं
जापान ने कई महीने पहले ऐलान किया था कि वह फुकुशिमा का पानी प्रशांत महासागर में छोड़ेगा. देश के मछुआरों ने इस कदम का विरोध किया था. चीन और दक्षिण कोरिया में भी कई समूहों ने इसका विरोध किया था, जिसके बाद यह एक अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक और राजनीतिक मुद्दा बन गया था.
जापान ने हालांकि विरोध के बावजूद कार्रवाई को नहीं रोका और गुरुवार को इसकी शुरुआत हो गयी. इसलिए कुछ ही देर में चीन के कस्टम अधिकारियों ने जापान से समुद्री उत्पादों के आयात पर रोक का ऐलान कर दिया. अधिकारियों ने कहा कि यह प्रतिबंध तुरंत प्रभाव से लागू हो गया है और इसमें हर तरह की समुद्री खाद्य सामग्री शामिल होगी.
अधिकारियों ने कहा कि "परमाणु-संक्रमित पानी के खतरे के कारण खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए नियमों में लगातार बदलाव किया जाएगा.”
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सुरक्षा का भरोसा
जापान सरकार और टेपको का कहना है कि फुकुशिमा परमाणु संयंत्र को पूरी तरह बंद करने के लिए पानी को छोड़ा जाना जरूरी है ताकि दुर्घटनावश किसी तरह की लीकेज से बचा जा सके. उनका कहना है कि पानी का ट्रीटमेंट किया गया है और उसकी सघनता कम की गयी है, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय मानकों से ज्यादा सुरक्षित हो जाएगा और पर्यावरण पर उसका असर भी बेहद कम होगा.
एडिलेड यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर रेडिएशन रिसर्च, एजुकेशन, इनोवेशन के निदेशक टोनी हुकर ने कहा कि फुकुशिमा से जारी होने वाला पानी पूरी तरह सुरक्षित है. हुकर ने कहा, "यह विश्व स्वास्थ्य संगठन के पीने के पानी को लेकर जारी निर्देशों से काफी नीचे है. यह सुरक्षित है. विकिरण को पानी में छोड़ना एक बहुत बड़ा राजनीतिक मुद्दा है. मैं समझता हूं कि लोगों में चिंताएं हैं और ऐसा इसलिए है क्योंकि वैज्ञानिकों ने इसे बहुत अच्छे तरीके से समझाया नहीं है. हमें और ज्यादा शिक्षित करने की जरूरत है.”
फुकुशिमा के मछुआरे
जापान की ऊर्जा कंपनी तेप्को बंद हो चुके फुकुशिमा परमाणु संयंत्र से 10 लाख टन उपचारित पानी समुद्र में छोड़ना चाहती है. क्या इससे इलाके में मछली पकड़ने का काम बंद हो जाएगा?
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
मछुआरों का पीढ़ियों पुराना काम
71 साल के मछुआरे हरुओ ओनो शिनचिमाची नाम के छोट से बंदरगाह पर खुद पकड़ी हुई मछलियां उतार रहे हैं. शिनचिमाची फुकुशिमा दाईची परमाणु संयंत्र से सिर्फ 55 किलोमीटर दूर स्थित है, जहां 2011 में दुनिया को दहला देने वाला परमाणु हादसा हुआ था. ओनो का परिवार तीन पीढ़ियों से मछली पकड़ने का काम करता है. वो खुद करीब 50 सालों से यह काम कर रहे हैं.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
मछली पालन से जीवन यापन
नूडल मछली साफ करते करते ओनो हादसे को याद करते हैं. 11 मार्च, 2011 को रिक्टर स्केल पर नौ की तीव्रता वाले एक भूकंप की वजह से जापान के पूर्वी तट पर सुनामी आ गई थी. ओनो तो समुद्र में अपनी नाव पर बच गए लेकिन जमीन पर उनका घर नष्ट हो गया. उनके एक छोटे भाई की मृत्यु हो गई. वही सुनामी फुकुशिमा संयंत्र से भी टकराई थी, जिसके बाद धमाके हुए थे और संयंत्र में परमाणु दुर्घटना हो गई थी.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
दूषित पानी से उद्योग ठप्प
उस हादसे में जो रेडिएशन निकली उसने इस इलाके में मछलीपालन उद्योग को पूरी तरह से ठप्प कर दिया. 12 सालों बाद थोड़ी से बहाली के संकेत नजर आए हैं और मछलियों के दाम धीरे धीरे फिर से बढ़ने लगे हैं. ओनो ऊर्जा कंपनी तेप्को की दूषित पानी को समुद्र में छोड़ने की योजना को "असहनीय" मानते हैं. उन्हें डर है कि वो फिर से उसी स्थिति में पहुंच जाएंगे जहां वो सालों पहले थे.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
पानी पर विवाद
संयंत्र पर मौजूद अनगिनत पानी के टैंकों पर काफी विवाद छिड़ा हुआ है. इनमें मौजूद पानी का मुख्य रूप से हादसे के बाद रिएक्टरों को ठंडा करने के लिए इस्तेमाल किया गया था. अधिकारियों के मुताबिक संयंत्र के पुनर्निर्माण से पहले इन टैंकों को हटाना जरूरी है.
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मछुआरों का डर
ऊर्जा कंपनी का एक कर्मचारी उपचारित पानी का एक सैंपल दिखा रहा है. पानी का उपचार किया जा चुका है, उसे फिल्टर और पतला भी किया जा चुका है. कंपनी और सरकार का दावा है की यह पानी अब सुरक्षित है. हालांकि उसमें रेडियोएक्टिव पदार्थ ट्राइटियम के अवशेष मौजूद हैं. वैसे तो इसे तुलनात्मक रूप से नुकसान न देने वाला माना जाता है, लेकिन मछुआरों को डर है कि इसके पानी में घुलने के बाद उनका धंधा फिर से बर्बाद हो जाएगा.
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सब काबू में है?
ऊर्जा कंपनी और टोक्यो की सरकार का कहना है कि दूसरे देश भी उपचारित पानी को समुद्र में छोड़ते हैं लेकिन जापान में रेडिएशन की जांच के मानक उन देशों से ज्यादा कड़े हैं. और पानी छोड़े जाने का अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी भी अनुमोदन कर चुकी है. कंपनी के प्रवक्ता तोमोहिको मायुजुम ने बताया, "हमारे पास पानी को सुरक्षित बनाने के लिए उपकरण हैं."
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संयंत्र के अंदर मछली पालन
उपचारित पानी कितना सुरक्षित है यह दिखाने के लिए कंपनी बंद हो चुके संयंत्र के अंदर पानी के टैंकों में फ्लाउंडर मछली पाल रही है. फुकुशिमा विश्वविद्यालय के तोशिशिरो वाडा मछुआरों की चिंताओं को समझते हैं. उनका कहना है कि इलाके के बस अभी ही उबरना शुरू हुए मछलीपालन उद्योग के लिए ऊर्जा कंपनी द्वारा दूषित पानी को समुद्र में छोड़ने की घोषणा "दुर्भाग्यपूर्ण" है.
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जिंदा रहने का सवाल
मछलियों को बेचने से पहले हारुओ ओनो उन्हें पानी के एक टैंक में डालते हैं. वो ऊर्जा कंपनी तेप्को से नाराज हैं. वो कहते हैं, "समुद्र कोई कूड़ेदान नहीं है...पानी को फुकुशिमा समुद्र में ही क्यों छोड़ना है, टोक्यो या ओसाका में क्यों नहीं?" उनका कहना है कि इस इलाके के लोग पहले ही बहुत भुगत चुके हैं और अब उन्हें और भुगतने पर मजबूर किया जा रहा है.
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रचनात्मक पुनर्निर्माण
71 साल के ओनो उस जगह पर खड़े हैं जहां कभी उनका घर हुआ करता था. सुनामी के बाद इस जगह को एक पार्क में बदल दिया गया. उनका नया घर तट से काफी दूर है, फिर भी उनका कहना है वो मरते दम तक समुद्र में ही काम करते रहेंगे. उनके हिसाब से मछली पालन का भविष्य उज्ज्वल नहीं है. "प्राथमिक और निचली कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों का क्या होगा? उनके लिए इससे आजीविका चलाना बेहद अस्थिर काम है."
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फिर भी, कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि कम मात्रा में भी विकिरण का असर लंबे समय में हो सकता है और इस पर ध्यान दिये जाने की जरूरत है. गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के निदेशक राफाएल मारियानो ग्रोसी ने कहा, "एजेंसी के विशेषज्ञ वहां मौजूद हैं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की तरफ से निगरानी कर रहे हैं और सुनिश्चित कर रहे हैं कि आईएईए के मानकों के मुताबिक योजनाबद्ध तरीके से पानी को समुद्र में छोड़ा जाए.” एजेंसी ने कहा है कि वह एक वेबपेज भी शुरू करेगी जहां छोड़े जा रहे पानी के आंकड़े उपलब्ध कराये जाएंगे.
फुकुशिमा हादसेके 12 साल बाद पानी का यह निकास शुरू हुआ है. मार्च 2011 में सुनामी और भारी भूकंप के कारण संयंत्र में हादसा हुआ था. तब से संयंत्र में रेडियोएक्टिव पदार्थ जमा हैं और टेपको व जापान सरकार का कहना है कि इस कारण वहां से रेडियोएक्टिव मलबे को निकालने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.