सोलोमन आईलैंड्सः एक और देश में चीन की पसंद का प्रधानमंत्री
२ मई २०२४
जेरमाया मानेले सोलोमन आईलैंड्स के नए प्रधानमंत्री होंगे. चीन के समर्थक माने जाने वाले मानेले के रूप में प्रशांत महासागरीय देशों में शी जिनपिंग को बड़ा सहयोगी मिल सकता है.
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सोलोमन आईलैंड्स के सांसदों ने पूर्व विदेश मंत्री जेरमाया मानेले को देश का नया प्रधानमंत्री चुना है. मानेले का प्रधानमंत्री चुना जाना इस बात का संकेत है कि इस प्रशांत महासागरीय देश का पश्चिमी देशों से दूर खिसकना और चीन से करीबी बढ़ना जारी रहेगा.
नए नेता के रूप में अपने पहले भाषण में मानेले ने कहा कि वह देश के हितों को सबसे पहले रखते हुए सरकार चलाएंगे. उन्होंने कहा, "मैं पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ अपने कर्तव्य निभाऊंगा. किसी भी वक्त में देश के लोगों के हितों को अन्य किसी के भी हित से आगे रखूंगा.”
नया प्रधानमंत्री
17 अप्रैल को सोलोमन आईलैंड्स में संसदीय चुनाव हुए थे, जिसमें 49 सांसद चुने गए. गुरुवार को इन सांसदों ने गोपनीय मतदान के जरिए 18 के मुकाबले 31 मतों से मानेले को देश का प्रधानमंत्री चुना. देश के गवर्नर डेविड वुनागी ने मानेले की जीत का ऐलान करते हुए कहा कि उनके प्रतिद्वन्द्वी मैथ्यू वेल को 18 मत मिले.
पिछले प्रधानमंत्री और चीन के बड़े समर्थक मनासे सोगावारे ने खुद को मुकाबले से बाहर कर लिया था. उन्होंने उम्मीद जताई है कि देश के नए प्रधानमंत्री चार साल तक कुर्सी पर बने रहेंगे. सोगावारे के कार्यकाल में ऐसे कई फैसले लिए गए जिनसे इलाके में चीन की ताकत बढ़ी और पश्चिम देश परेशान हुए. विशेषज्ञों के मुताबिक सोगावारे ने खुद को मुकाबले से इसलिए बाहर किया क्योंकि उनकी पार्टी के कई सदस्य चुनाव हार गए थे, जो इस बात का संकेत था कि मतदाता बदलाव चाहते हैं.
सोगवारे ने ताइवान के साथ कूटनीतिक रिश्ते तोड़ लिए थे और उसे चीन का हिस्सा मान लिया था. उन्होंने बीजिंग के साथ एक गोपनीय सुरक्षा समझौता भी किया था जिसके बाद पश्चिमी देशों ने चिंता जताई थी कि वहां चीन का नौसैनिक अड्डा बनाया जा सकता है. यह अड्डा बनने का अर्थ प्रशांत महासागर में चीन की पैठ बेहद मजबूत होना होगा.
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हिंसा का इतिहास
संसद के बाहर दिए अपने भाषण में मानेले ने लोगों से आग्रह किया वे चुनाव उपरांत किसी भी तरह की हिंसा या उपद्रव से बचें. उन्होंने कहा, "पहले जब प्रधानमंत्री चुनाव हुए हैं तो उसके बाद हिंसा और तोड़-फोड़ देखने को मिला. इस हिंसा के कारण हमारी अर्थव्यवस्था और आजीविका प्रभावित हुई है. लेकिन आज हम दुनिया को दिखाएंगे कि हम इससे बेहतर हैं. हमें प्रधानमंत्री चुनने की लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान करना चाहिए और अपने बच्चों व उनके बच्चों के लिए एक मिसाल स्थापित करनी चाहिए.”
2019 में जब सोगावारे प्रधानमंत्री चुने गए थे तो उनकी योग्यता पर सवाल खड़े किए गए थे. उसके बाद राजधानी होनीआरा में दंगे भड़क गए थे. उसके बाद 2021 के नवंबर में जब विपक्ष के नेता मैथ्यू वेल ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया, तब भी देश में कई जगह बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी.
फिजी: डूबते हुए द्वीपों को छोड़ कर जा रहे लोग
फिजी में समुद्र के स्तर के निरंतर बढ़ने के कारण कई द्वीप डूब रहे हैं. सैकड़ों गांवों को दूसरे द्वीपों पर पुनर्स्थापित किया जा रहा है.
तस्वीर: LOREN ELLIOTT/REUTERS
गांव में समुद्र
सेरुआ नाम के इस द्वीप पर ज्वार भाटा के समय बांध पानी को नहीं रोक पाता है और टापू के ही नाम के सेरुआ गांव के अंदर घुस जाता है. घरों के बीच चलने के लिए लकड़ी के फट्टे लगाए गए हैं. खारा पानी खेतों में भी घुस चुका है जिसकी वजह से फसलों को उगाना असंभव हो गया है.
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अगली पीढ़ी का भविष्य
सेमिसि मदानावा के तीन बच्चे हैं. इस तस्वीर में उनकी तीन साल की बेटी अलीती उनकी गोद में आराम कर रही है. सेमिसि कहते हैं कि बाढ़, कटाव और चर्म मौसमी हालात की वजह से पूरे के पूरे सेरुआ गांव को फिजी के मुख्य द्वीप पर चले जाना होगा, ताकि अगली पीढ़ी के भविष्य को सुरक्षित किया जा सके.
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खत्म होते विकल्प
आठ साल का रतुकली मदानावा समुद्र में गोताखोरी कर के तट पर बैठा है. गांव के बड़ों का सोचना है कि शायद कृत्रिम रूप से समुद्र में से जमीन बनाने से समुद्र को और ज्यादा गांवों को निगलने से रोका जा सके. लेकिन इस बार ऐसा लग रहा है कि विकल्प खत्म होते जा रहे हैं.
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कोई रास्ता नहीं
रोमोनी तुबिवुना और उनका 10 वर्षीय पोता विति लेवु द्वीप के वेवातुलोआ गांव में मछलियां पकड़ने के लिए जाने की तैयारी कर रहे हैं. गांव में कुल 80 लोग रहते हैं. गांव के बड़ों का हमेशा से मानना रहा है कि वो सारी जिंदगी यहीं बिताएंगे जहां उनके पूर्वज दफन हैं. लेकिन जब उनके पास समुद्र के बढ़ते स्तर का मुकाबला करने के तरीके खत्म हो जाएंगे तब उन्हें इस जगह को छोड़ देने का दर्द भरा फैसला लेना ही होगा.
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बेकार बांध
वेवातुलोआ नगरपालिका में समुद्र के पानी ने बांध को भी डुबो दिया है. फिजी के आर्थिक मामलों के मंत्रालय के लिए काम करने वाले जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ शिवनल कुमार कहते हैं कि बांध बनाना, मैन्ग्रोव लगाना और जल निकासी के इंतजाम अब गांवों को बचाने के लिए काफी नहीं हैं.
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प्रदूषक देशों की जवाबदेही
औद्योगीकृत देशों ने यूएन के जलवायु सम्मेलनों में जिस धनराशि को देने का संकल्प किया है उसके तहत पुनर्वास नहीं आता है. जलवायु परिवर्तन की चोट झेल रहे फिजी जैसे देशों का कहना है कि जिन देशों की वजह से ग्लोबल वॉर्मिंग हो रही है उन्हें हर्जाने में और ज्यादा धन देना चाहिए.
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कौन करेगा मदद
तीन अगस्त को सीओपी26 के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने फिजी की राजधानी सुवा में कहा कि वो जलवायु परिवर्तन से सीधा प्रभावित होने वाले गांववालों की निराशा समझते हैं. उन्होंने कहा, "आप ग्रीनहाउस गैस का सबसे ज्यादा उत्सर्जन करने वाले देशों के उत्सर्जन का परिणाम भुगतने पर मजबूर हैं. वो देश यहां से बहुत दूर हैं. यह संकट आपने पैदा नहीं किया है."
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मुश्किल फैसला
वुनिदोगोलोआ गांव के बच्चे अपने घरों के सामने घुटनों तक पानी की जगह सूखी जमीन पर मजबूती से पैर रख कर बैठे हैं. यह एक नया गांव है जो वनुआ लेवु द्वीप पर करीब 1.5 किलोमीटर आगे अंदर की तरफ स्थित है. 63 साल के रमातु कहते हैं कि बड़ों को गांव छोड़ कर चलने के लिए मनाने में थोड़ा समय लगा, लेकिन अंत में सबने विशेषज्ञों की बात मान ली. नए गांव का नाम केनानी रखा गया है. (क्लॉडिया डेन)
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सोलोमन आईलैंड्स में राजनीतिक हिंसा का लंबा इतिहास रहा है. 2006 में चुनाव के बाद देश में चीन के हस्तक्षेप का आरोप लगा और चीनी व्यापारियों के खिलाफ हिंसा भड़क गई. तब सिर्फ एक हफ्ता प्रधानमंत्री रहने के बाद स्नाइडर रीनी ने इस्तीफा दे दिया और सोगावारे प्रधानमंत्री बन गए. वह चार बार इस पद पर रह चुके हैं.
चीन का बढ़ता प्रभाव
सिडनी स्थित थिंक टैंक लॉवी इंस्टिट्यूट के पैसिफिक आईलैंड्स प्रोग्राम की निदेशक मेग कीन कहती हैं कि मानेले से संवाद पश्चिमी देशों के लिए उतना मुश्किल तो नहीं होगा लेकिन वह भी चीन के साथ करीबी बनाए रखेंगे.
कीन ने कहा, "पूर्व में विदेश मंत्री के तौर पर उन्होंने ही चीन के साथ उस सुरक्षा समझौते को करवाने में मदद की थी, जिससे पश्चिमी देश परेशान हो गए थे. लेकिन वह एक अनुभवी कूटनीतिज्ञ भी हैं और उन्हें संयुक्त राष्ट्र व पश्चिमी देशों में काम करने का अनुभव है. वह पश्चिम के लिए अनजान नहीं हैं.”
वह समझौता2022 में हुआ था जब मानेले और सोगावारे बीजिंग दौरे पर गए थे. तब उन्होंने कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए जिनमें इस द्वीपीय देश में 2025 तक चीन की पुलिस की तैनाती का समझौता भी शामिल था.
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के अलावा सोलोमन आईलैंड्स में विपक्षी दलों ने भी इस पुलिस समझौते पर चिंता जताई थी.
27 सालों में डूब जाएगा इस द्वीप का बड़ा हिस्सा
प्रशांत महासागर में स्थित द्वीप तुवालु जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे संवेदनशील देशों में से है. तुवालु ने जलवायु परिवर्तन और प्रशांत महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए एक संधि पर हस्ताक्षर किए हैं.
तस्वीर: Mario Tama/Getty Images
दक्षिणी प्रशांत का छोटा सा देश
तुवालु ऑस्ट्रेलिया और हवाई के ठीक बीच में स्थित है. यह मात्र 26 वर्ग किलोमीटर में फैला है और यहां करीब 11,200 लोग रहते हैं. समुद्र में जब ज्वार भाटाएं आती हैं तो इस द्वीप के मुख्य भूभाग का करीब 40 प्रतिशत इलाका समुद्र के नीचे डूब जाता है.
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जलवायु परिवर्तन का खतरा
अनुमान है कि 2050 तक इसकी राजधानी फुनाफुटी का आधा हिस्सा डूब जाएगा. इन हालात की तैयारी करने के लिए तुवालु ने ऑस्ट्रेलिया के साथ "फलेपी यूनियन" संधि पर हस्ताक्षर किए हैं. इसके तहत समुद्र से जमीन लेकर फुनाफुटी के क्षेत्रफल को करीब छह प्रतिशत बढ़ाने के लिए 1.69 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर मिलेंगे. इस जमीन पर नए घर बनेंगे.
तस्वीर: Mario Tama/Getty Images
मिलेगी सुरक्षा
तुवालु उन 42 देशों के समूह का सदस्य है जिन पर समुद्र के बढ़ते जलस्तर का सबसे ज्यादा खतरा है. इस संधि के तहत ऑस्ट्रेलिया तुवालु की बड़ी प्राकृतिक आपदाओं, महामारी और सैन्य आक्रमणों के दौरान भी सहायता करेगा.
तस्वीर: Mario Tama/Getty Images
दुनिया को संदेश
तुवालु के जोखिम भरे हालात ने उसे जलवायु परिवर्तन की राजनीति के केंद्र में ला दिया है. 2021 में उस समय के विदेश मंत्री साइमन कोफे ने संयुक्त राष्ट्र के कोप26 सम्मेलन को ऐसी जगह पर घुटनों तक गहरे पानी में खड़े रह कर संबोधित किया था जो पहले पानी के ऊपर थी.
तस्वीर: Tuvalu Foreign Ministry/REUTERS
कैसे बचेगी पहचान
2021 में तुवालु ने कहा था कि बढ़ता समुद्र अगर पूरे देश को ही निगल गया तो वो एक राष्ट्र के तौर पर अपनी मान्यता और अपने आर्थिक समुद्री इलाके को बरकरार रखने के तरीके तलाश रहा है. अब इस संधि के तहत ऑस्ट्रेलिया एक विशेष वीजा कार्यक्रम के तहत हर साल इस द्वीप राष्ट्र के 280 लोगों को ऑस्ट्रेलिया प्रवास करने की इजाजत देगा.
तस्वीर: Mick Tsikas/AAP/AP/picture alliance
चीन से चिंता
2019 में तुवालु ने कृत्रिम द्वीप बनाने के चीनी कंपनियों के प्रस्तावों को ठुकरा दिया था. यह उन 13 देशों में से थे जिनके ताइवान के साथ आधिकारिक रूप से कूटनीतिक रिश्ते हैं, जिस वजह से चीन से उसके रिश्ते अच्छे नहीं हैं. प्रधानमंत्री कौसेया नतानो पिछले साथ ताइवान गए थे और वहां "मजबूती से" चीन के साथ खड़े होने का वादा किया था. (रॉयटर्स)
तस्वीर: Susan Walsh/AP/picture alliance
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इससे पहले 2022 में प्रशांत महासागर में नियमित गश्त के दौरान अमेरिकी कोस्ट गार्ड के एक जहाज को रिफ्यूलिंग की जरूरत पड़ी तो सोलोमन आईलैंड्स ने मदद के अनुरोध का जवाब ही नहीं दिया. पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक अमेरिकी कोस्ट गार्ड के जहाज ऑलिवर हैनरी को रूटीन के तहत सोलोमन आइलैंड्स जाना था. सोलोमन आईलैंड्स में प्रवेश ना मिलने पर जहाज को पापुआ न्यू गिनी जाना पड़ा. इस कदम को सोगावारे की अमेरिका से नाराजगी और चीन से करीबी का संकेत माना गया.
जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका ने प्रशांत महासागर में अपनी सक्रियता तेज की है ताकि वहां चीन के बढ़ते प्रभाव को रोका जा सके. इलाके के तमाम छोटे-छोटे द्वीपीय देशों को अमेरिका ने भारी-भरकम आर्थिक मदद दी है. 2022 में अमेरिका ने सोलोमन में अपना दूतावास दोबारा खोलने की योजना का ऐलान किया था.