धरती को ठंडा करने के लिए हवा का पानी सुखाने का आइडिया
२९ फ़रवरी २०२४
लगातार और बहुत तेजी से गर्म हो रही धरती को ठंडा करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक नई तरकीब निकाली है. वे ऊपरी वातावरण के साथ छेड़छाड़ कर उसे सुखाना चाहते हैं.
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वैज्ञानिक पृथ्वी को और गर्म होने से रोकने के लिए कई तरह की कोशिशें कर रहे हैं. अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक नई तरकीब खोजी है जिसमें पृथ्वी के ऊपरी वातावरण को सुखाए जाने की योजना है.
विज्ञान कहता है कि पानी के वाष्प यानी गैसीय रूप में पानी एक कुदरती ग्रीनहाउस गैस है जो गर्मी को पार नहीं होने देता. यह ठीक उसी तरह काम करता है जैसे कोयला, तेल या गैस के जलने पर निकलने वाली कार्बन डाईऑक्साइड गैस.
इसलिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और नेशनल ओशियानिक एंड एटमॉसफेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के शोधकर्ताओं ने ऊपरी वातावरण में मौजूद इन वाष्पकणों को सुखाने की योजना बनाई है. ‘साइंस अडवांसेज' पत्रिका में छपे एक शोध में वैज्ञानिकों ने कहा है कि वे वातावरण के उस हिस्से में बर्फ छोड़ना चाहते हैं ताकि वह हिस्सा ठंडा हो जाए. इससे मानवीय गतिविधियों के कारण निकली गर्मी को सोखने में मदद मिलने की उम्मीद है. इसे जियोइंजीनियरिंग कहा जाता है.
दुनिया का सबसे बड़ा क्रूजः आइकन ऑफ द सी
दुनिया के सबसे बड़े क्रूज शिप की पहली यात्रा शुरू हो गई है. अमेरिका के फ्लोरिडा में मायामी शहर से इस जहाज ने यात्रा शुरू की. पर्यावरण-कार्यकर्ता इस जहाज से काफी नाखुश हैं.
यह है आइकन ऑफ द सी, दुनिया का सबसे बड़ा क्रूज शिफ. फ्लोरिडा के मायामी से रॉयल कैरेबियन ग्रुप के इस जहाज की पहली यात्रा शुरू हुई है.
तस्वीर: Pedro Portal/El Nuevo Herald/TNS/picture alliance
20 मंजिला जहाज
इस जहाज की लंबाई है 365 मीटर यानी लगभग 1,200 फुट. इस 20 मंजिला जहाज पर एक वक्त में 7,600 यात्री सफर कर सकते हैं.
तस्वीर: Rebecca Blackwell/AP/picture alliance
फिनलैंड में बना
अपनी पहली यात्रा में यह जहाज लोगों को सात दिन तक कैरेबियाई द्वीपों की सैर कराएगा. फिनलैंड में बने इस जहाज में सात स्विमिंग पूल और छह स्लाइड हैं.
तस्वीर: Rebecca Blackwell/AP/picture alliance
40 रेस्तरां
जहाज में 40 रेस्तरां, बार और लाउंज हैं. जहाज को बनाने में 2 अरब डॉलर का खर्च आया है. इसे अन्य जहाजों के मुकाबले 24 फीसदी ऊर्जा सक्षम बताया जा रहा है क्योंकि यह एलएनजी से चलता है.
तस्वीर: Miguel J. Rodriguez Carrillo/AP/picture alliance
पर्यावरण प्रेमी नाखुश
बेहतर ऊर्जा क्षमता के बावजूद बहुत से पर्यावरण-प्रेमी इस जहाज से नाखुश हैं क्योंकि उनका कहना है कि यह जहाज मीथेन उत्सर्जन करेगा और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएगा.
तस्वीर: Miguel J. Rodriguez Carrillo/AP/picture alliance
मीथेन का डर
क्रूज जहाजों के पारंपरिक ईंधन के मुकाबले एलएनजी को ज्यादा साफ माना जाता है लेकिन पर्यावरणविदों का कहना है कि इससे मीथेन के उत्सर्जन का खतरा है. मीथेन को कार्बन डाई ऑक्साडइड से भी ज्यादा खतरनाक माना जाता है.
वैज्ञानिक कहते हैं कि पृथ्वी का तापमान इतना बढ़ चुका है कि उसे कम कर पाना अब असंभव के स्तर पर पहुंचने के बहुत करीब है. आखिरी कोशिश के तौर पर वैज्ञानिक कुछ नया और अलग भी आजमाना चाहते हैं. ऊपरी वातावरण को सुखाने का विचार उन्हीं कोशिशों के सिलसिले की एक कड़ी है.
हालांकि जियोइंजीनियरिंग के अन्य तरीके पहले भी पेश किए गए हैं लेकिन उनसे जुड़े खतरों के कारण उन्हें खारिज किया जाता रहा है. बहुत से वैज्ञानिक कहते हैं कि जियोइंजीनियरिंग कार्बन प्रदूषण को कम करने का विकल्प नहीं हो सकता.
कैसे काम करेगा आइडिया?
ताजा अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता जोशुआ श्वार्त्स कहते हैं, "यह ऐसा आइडिया नहीं है, जिसे हम अभी लागू कर सकते हैं. यह सिर्फ भविष्य की संभावनाओं की आजमाइश है और शोध की दिशाएं दिखा सकता है.”
इतने होशियार तोते, कुटाई-पिसाई से लेकर औजार भी बना लेते हैं
कभी कोई सर्वे हो तो पता चलेगा कि भारत में ज्यादातर पालतू तोते "मिट्ठू" पुकारे जाते हैं. शायद इंसानी बोली दोहराने की उनकी अदा लोगों को मीठी लगती होगी. लेकिन रटने की ये कला तोते की इकलौती खासियत नहीं है.
तस्वीर: Pixabay via Pexels
कितने ही तरह के तोते
इस प्रजाति को तोता नहीं, तोते कहिए. ये 300 से ज्यादा पक्षियों का एक विशाल परिवार है. पैरट्स फैमिली में बहुत विविधता है. खूबसूरत और चटख रंगों वाले मकॉ. सफेद रंगत और सिर पर पंखों के निराले मुकुट वाला कॉकटू. नारंगी और बैंगनी रंग वाला सुंदर लॉरिकीट. रंग और आवाज समेत तोतों में कई किस्म की विविधताएं हैं.
तस्वीर: Cavan Images/imago images
कई समानताएं भी हैं
इनमें कई बातें एक जैसी भी हैं. मसलन, इनकी थोड़ी मुड़ी हुई सी चोंच. ये फल, फूल, बीज खाते हैं. छोटे कीड़ों को भी खा लेते हैं. मध्य और दक्षिणी अमेरिका में इनकी बहुत विविधता पाई जाती है. तोते अपनी आवाज की मदद से झुंड के बाकी साथियों से संवाद करते हैं, एक-दूसरे को पहचान भी लेते हैं. ऐसा नहीं कि सभी तोते इंसानी बोली की नकल करते हों.
तस्वीर: Wang Xin/dpa/picture alliance
एलेक्स एंड मी
अमेरिका की वैज्ञानिक आइरीन पैपरबर्ग ने जानवरों, खासतौर पर तोतों की मानसिक क्षमताओं पर काफी काम किया है. उनकी एक किताब है, एलेक्स एंड मी. इसमें उन्होंने एलेक्स नाम के एक अफ्रीकन ग्रे पैरट के साथ अपने अनुभव बताए हैं. एलेक्स उनकी रिसर्च का विषय भी था और सहकर्मी भी. तस्वीर: अफ्रीकन ग्रे पैरट.
तस्वीर: Shotshop/IMAGO
गजब का काबिल तोता था एलेक्स
एलेक्स कई रंग, आकार, संख्याएं और अक्षर पहचान सकता था. वो गिनती गिन सकता था. जोड़-घटाव कर सकता था. वो अपने मन की बात स्पष्ट तरीके से अंग्रेजी में बता सकता था. एलेक्स की लाजवाब अक्लमंदी के कारण उसके कई फैन थे. उसकी गिनती सबसे मशहूर रिसर्च जीवों में होती थी. 2007 में एलेक्स की मौत हो गई. "लाइफ विद एलेक्स" नाम की शॉर्ट फिल्म में आप उसकी अक्लमंदी देख सकते हैं.
इस प्रजाति के तोते बड़े हुनरमंद होते हैं. वो अपने हिसाब का औजार बना लेते हैं. विएना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक प्रयोग में दिखाया कि कॉकटू तार को मोड़कर हुक बना लेते हैं. फिर मुड़े हुए हुक को सीधा भी कर लेते हैं. इतना ही नहीं, उनके बनाए औजारों में वक्त के साथ और बेहतरी आती है. प्रॉब्लम सॉल्विंग में सक्षम होते हैं.
तस्वीर: Westend61/imago images
सीप के खोल की 'चटनी'
इंसान ने अपनी विकास यात्रा में पत्थरों को औजारों की तरह बखूबी इस्तेमाल किया. ग्रेटर वस्पा पैरट्स में भी ये हुनर है. यूनिवर्सिटी ऑफ यॉर्क के शोधकर्ताओं ने अपने एक प्रयोग में पाया कि ग्रेटर वस्पा ने खजूर की गुठली और कंकड़ से सीप के खोल को पीस लिया. इसे खुद भी खाया और मादा को खिलाया. इस बुरादे से उन्हें कैल्शियम की खुराक मिलती है.
तस्वीर: Steffen & Alexandra Sailer/Mary Evans Picture Library/picture alliance
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आइडिया कुछ यूं काम कर सकता है कि अत्याधुनिक विमान धरती से करीब 17 किलोमीटर की ऊंचाई पर यानी स्ट्रैटोस्फीयर के ठीक नीचे बर्फ के कणों को हवा में छोड़े. इस ऊंचाई पर हवा धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठती है. श्वार्त्स कहते हैं कि वहां से बर्फ और ठंडी हवा ऊपर उठकर वहां तक जाएगी जहां वाष्पकण हैं. वहां वाष्पकणों को बर्फ में बदल देगा और स्ट्रैटोस्फीयर का तापमान कम हो जाएगा.
शोध का निष्कर्ष है कि हर हफ्ते दो टन बर्फ हवा में छोड़ी जाए. श्वार्त्स कहते हैं कि ऐसा करने से पांच फीसदी तक तापमान कम हो सकता है. वह कहते हैं कि तापमान में बहुत ज्यादा कमी नहीं होगी लेकिन प्रदूषण में कुछ कमी आएगी.
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खतरों का क्या होगा!
हालांकि श्वार्त्स इस तरीके से जुड़े खतरों को लेकर बहुत सुनिश्चित नहीं हैं. और अन्य वैज्ञानिक कहते हैं कि यही एक समस्या है. विक्टोरिया यूनिवर्सिटी में जलवायु वैज्ञानिक एंड्रयू वीवर कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन की समस्या को हल करने के लिए वातावरण से छेड़छाड़ करना नई समस्याओं को न्योता देना है. वीवर इस शोध में शामिल नहीं थे.
क्या क्लीनटेक से बचेगी धरती?
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वह कहते हैं कि इस आइडिया में इंजीनियरिंग वाला हिस्सा तो समझ में आता है लेकिन यह पूरा मामला बच्चों की कहानी जैसा है जिसमें एक राजा होता है जिसे चीज पसंद है. लेकिन वह चूहों से परेशान है, जो उसका चीज खा जाते हैं. उनसे निपटने के लिए वह बिल्लियां पालता है. फिर बिल्लियां समस्या बन जाती हैं तो वह कुत्ते पाल लेता है. कुत्तों से निपटने के लिए शेर और शेरों को भगाने के लिए हाथी पालता है. आखिर में हाथियों से निपटने के लिए उसे वापस चूहे की शरण में जाना पड़ता है.
वीवर कहते हैं कि पहली समस्या को ही हल किया जाना ज्यादा समझदारी भरा है. यानी कार्बन उत्सर्जन से निपटा जाए.