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धरती को ठंडा करने के लिए हवा का पानी सुखाने का आइडिया

२९ फ़रवरी २०२४

लगातार और बहुत तेजी से गर्म हो रही धरती को ठंडा करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक नई तरकीब निकाली है. वे ऊपरी वातावरण के साथ छेड़छाड़ कर उसे सुखाना चाहते हैं.

स्ट्रैटोस्फीयर
पर्यावरण परिवर्तन को हल करने के लिए अलग-अलग तरीके खोजे जा रहे हैंतस्वीर: Paul Fleet/PantherMedia/IMAGO

वैज्ञानिक पृथ्वी को और गर्म होने से रोकने के लिए कई तरह की कोशिशें कर रहे हैं. अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक नई तरकीब खोजी है जिसमें पृथ्वी के ऊपरी वातावरण को सुखाए जाने की योजना है.

विज्ञान कहता है कि पानी के वाष्प यानी गैसीय रूप में पानी एक कुदरती ग्रीनहाउस गैस है जो गर्मी को पार नहीं होने देता. यह ठीक उसी तरह काम करता है जैसे कोयला, तेल या गैस के जलने पर निकलने वाली कार्बन डाईऑक्साइड गैस.

इसलिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और नेशनल ओशियानिक एंड एटमॉसफेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के शोधकर्ताओं ने ऊपरी वातावरण में मौजूद इन वाष्पकणों को सुखाने की योजना बनाई है. ‘साइंस अडवांसेज' पत्रिका में छपे एक शोध में वैज्ञानिकों ने कहा है कि वे वातावरण के उस हिस्से में बर्फ छोड़ना चाहते हैं ताकि वह हिस्सा ठंडा हो जाए. इससे मानवीय गतिविधियों के कारण निकली गर्मी को सोखने में मदद मिलने की उम्मीद है. इसे जियोइंजीनियरिंग कहा जाता है.

वैज्ञानिक कहते हैं कि पृथ्वी का तापमान इतना बढ़ चुका है कि उसे कम कर पाना अब असंभव के स्तर पर पहुंचने के बहुत करीब है. आखिरी कोशिश के तौर पर वैज्ञानिक कुछ नया और अलग भी आजमाना चाहते हैं. ऊपरी वातावरण को सुखाने का विचार उन्हीं कोशिशों के सिलसिले की एक कड़ी है.

हालांकि जियोइंजीनियरिंग के अन्य तरीके पहले भी पेश किए गए हैं लेकिन उनसे जुड़े खतरों के कारण उन्हें खारिज किया जाता रहा है. बहुत से वैज्ञानिक कहते हैं कि जियोइंजीनियरिंग कार्बन प्रदूषण को कम करने का विकल्प नहीं हो सकता.

कैसे काम करेगा आइडिया?

ताजा अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता जोशुआ श्वार्त्स कहते हैं, "यह ऐसा आइडिया नहीं है, जिसे हम अभी लागू कर सकते हैं. यह सिर्फ भविष्य की संभावनाओं की आजमाइश है और शोध की दिशाएं दिखा सकता है.”

आइडिया कुछ यूं काम कर सकता है कि अत्याधुनिक विमान धरती से करीब 17 किलोमीटर की ऊंचाई पर यानी स्ट्रैटोस्फीयर के ठीक नीचे बर्फ के कणों को हवा में छोड़े. इस ऊंचाई पर हवा धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठती है. श्वार्त्स कहते हैं कि वहां से बर्फ और ठंडी हवा ऊपर उठकर वहां तक जाएगी जहां वाष्पकण हैं. वहां वाष्पकणों को बर्फ में बदल देगा और स्ट्रैटोस्फीयर का तापमान कम हो जाएगा.

शोध का निष्कर्ष है कि हर हफ्ते दो टन बर्फ हवा में छोड़ी जाए. श्वार्त्स कहते हैं कि ऐसा करने से पांच फीसदी तक तापमान कम हो सकता है. वह कहते हैं कि तापमान में बहुत ज्यादा कमी नहीं होगी लेकिन प्रदूषण में कुछ कमी आएगी.

खतरों का क्या होगा!

हालांकि श्वार्त्स इस तरीके से जुड़े खतरों को लेकर बहुत सुनिश्चित नहीं हैं. और अन्य वैज्ञानिक कहते हैं कि यही एक समस्या है. विक्टोरिया यूनिवर्सिटी में जलवायु वैज्ञानिक एंड्रयू वीवर कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन की समस्या को हल करने के लिए वातावरण से छेड़छाड़ करना नई समस्याओं को न्योता देना है. वीवर इस शोध में शामिल नहीं थे.

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वह कहते हैं कि इस आइडिया में इंजीनियरिंग वाला हिस्सा तो समझ में आता है लेकिन यह पूरा मामला बच्चों की कहानी जैसा है जिसमें एक राजा होता है जिसे चीज पसंद है. लेकिन वह चूहों से परेशान है, जो उसका चीज खा जाते हैं. उनसे निपटने के लिए वह बिल्लियां पालता है. फिर बिल्लियां समस्या बन जाती हैं तो वह कुत्ते पाल लेता है. कुत्तों से निपटने के लिए शेर और शेरों को भगाने के लिए हाथी पालता है. आखिर में हाथियों से निपटने के लिए उसे वापस चूहे की शरण में जाना पड़ता है.

वीवर कहते हैं कि पहली समस्या को ही हल किया जाना ज्यादा समझदारी भरा है. यानी कार्बन उत्सर्जन से निपटा जाए.

वीके/एए (एपी)

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