निरंजन कुमार के पिता बिहार में एक छोटे से किसान हैं. निरंजन उन सवा करोड़ लोगों में से हैं जिन्होंने एक साल पहले रेलवे की 35 हजार नौकरियों के लिए आवेदन किया था.
गणित से ग्रैजुएट 28 साल के निरंजन और उनके साथ तैयारी करने वाले उनके दोस्त का नाम शॉर्ट लिस्ट में भी नहीं था. उनकी सालों की मेहनत बर्बाद हो गई थी. यह वही लिस्ट थी जिसके बाद पिछले हफ्ते बिहार और उत्तर प्रदेश में छात्रों ने हिंसक प्रदर्शन किए थे.
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए कब डाले जाएंगे वोट
भारतीय चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में चुनावों की तिथि का ऐलान कर दिया है. जानिए कैसे होंगे उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में चुनाव. पांचों राज्यों के नतीजे 10 मार्च को आएंगे.
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उत्तर प्रदेश
403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में 7 चरणों में मतदान होगा. बीजेपी की सरकार वाले यूपी में 10, 14, 20, 23, 27 फरवरी और 3 व 7 मार्च को वोट डाले जाएंगे. राज्य में मुख्य मुकाबला बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच है.
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सीएपीएफ की 150 कंपनियां
चुनाव आयोग के मुताबिक उत्तर प्रदेश को पहले चरण के चुनावों के लिए केंद्रीय सशस्त्र अर्धसैनिक बल (CAPF) की 150 कंपनियां दी जाएंगी. 10 जनवरी को 11,000 जवान मार्च करेंगे.
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पंजाब
117 सीटों वाली पंजाब विधासभा के लिए 14 फरवरी को वैलेंटाइंस डे के दिन वोट डाले जाएंगे. फिलहाल पंजाब में कांग्रेस की सरकार है. नई सरकार बनाने के लिए अकाली दल, कांग्रेस, बीजेपी और कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस जोर लगाएंगे.
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उत्तराखंड
70 विधानसभा सीटों वाले उत्तराखंड में एक ही दिन में मतदान पूरा हो जाएगा. बीजेपी शासित राज्य में 14 फरवरी को वोट डाले जाएंगे. राज्य में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है. राज्य में 5.37 लाख नए मतदाता हैं.
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गोवा
40 सीटों वाली गोवा विधानसभा के लिए भी मतदान 14 फरवरी को ही होगा. गोवा में अभी बीजेपी की सरकार है. गोवा में मुख्य मुकाबला बीजेपी, कांग्रेस और आप के बीच है.
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मणिपुर
पूर्वोत्तर भारत के राज्य मणिपुर की 60 विधानसभा सीटों के लिए दो चरणों में वोट डाले जाएंगे. मतदान की तिथि 27 फरवरी और तीन मार्च होगी. मणिपुर में फिलहाल बीजेपी, नेशनल पीपल्स पार्टी, एलजेपी और नागा पीपल्स फ्रंट की गठबंधन सरकार है.
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आदर्श आचार संहिता लागू
चुनावों के ऐलान के साथ ही पांच राज्यों में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है. अब नेता चुनाव प्रचार के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे. किसी भी राज्य में सरकारी घोषणाएं या उद्धाटन नहीं होंगे. साथ ही रैली करने से पहले स्थानीय प्रशासन की इजाजत लेनी होगी.
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चुनाव क्यों जरूरी
मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा के मुताबिक भारतीय संविधान का अनुच्छेद 172 (1) किसी की प्रांतीय विधानसभा को अधिकतम पांच साल का समय देता है. चुनाव आयोग के मुताबिक इसी अनुच्छेद के चलते समय पर चुनाव कराने जरूरी हैं.
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चुनाव ड्यूटी के लिए वैक्सीनेशन
चुनाव आयोग का कहना है कि चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को फ्रंटलाइन वर्कर माना जाएगा और एहतियात के तौर पर उन्हें वैक्सीन की एक और डोज दी जाएगी.
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पूरी भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए दसियों हजार छात्र सड़कों पर उतर आए थे. निरंजन कुमार और उनका दोस्त भी उनमें शामिल थे. छात्रों ने रेलमार्ग रोके, खाली गाड़ियों में आग लगा दी और पुलिस के साथ भी हाथापाई की.
बिहार की राजधानी पटना के काशी लॉज में अपने दोस्त के साथ बैठे कुमार कहते हैं, "सरकार हमारी जिंदगियों के साथ खेल रही है. वे सब चीजों को प्राइवेटाइज करना चाहते हैं. वे लोगों की भर्तियां करना ही नहीं चाहते.”
गहराता जा रहा है संकट
भारत पिछले कई सालों से बेरोजगारी की समस्या जूझ रहा है. जब सरकारी भर्तियां निकलती हैं तो लाखों की संख्या में युवा उनके लिए आवेदन करते हैं. लेकिन हाल में रेलवे भर्तियों को लेकर जो गुस्सा उबला है, वह मौजूदा केंद्र और उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार के लिए चिंता का विषय है क्योंकि राज्य में चुनाव होने हैं.
भारतीय जनता पार्टी सालाना एक करोड़ नौकरियों के वादे के साथ 2014 में सत्ता में आई थी. तब से भारत में बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रही है. कोरोनावायरस महामारी के चलते मार्च 2020 में तो यह 23.5 प्रतिशत पर पहुंच गई थी. मुंबई स्थित सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के आंकड़ों के मुताबिक तब से बेरोजगारी दर 7 प्रतिशत से ऊपर ही बनी हुई है.
आंकड़े दिखाते हैं कि दिसंबर में 5.2 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार थे और नौकरियां खोज रहे थे. इनमें वे लोग शामिल नहीं हैं जो अब नौकरियां खोज ही नहीं रहे हैं. भारत में नौकरी के योग्य यानी 15 से 64 वर्ष आयु के लोगों की संख्या एक अरब मानी जाती है. सीएमआईई के मुताबिक इनमें से सिर्फ 40.3 करोड़ ही नौकरीशुदा हैं.
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‘हमें संकट का पता है'
जाहिर है, विपक्षी नेता बेरोजगारी का मुद्दा चुनावों में भी उठा रहे हैं. इसी महीने कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक ट्वीट कर कहा, "बेरोजगारी का संकट बहुत गहरा गया है. इसे हल करना प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी है. देश जवाब मांग रहा है, बहाने बनाना बंद कीजिए.”
इस बारे में रॉयटर्स ने वित्त और श्रम मंत्रालयों से सवाल पूछे लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल कहते हैं कि सरकार संकट से वाकिफ है और उद्योगों को उत्पादन के लिए लाभ देकर मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने खुद अधिकारियों से कहा है कि रेलवे भर्तियों की समस्याओं को हल करें.
नया साल, नई महंगाई
2022 की शुरुआत भारतीयों के लिए महंगाई के झटके के साथ हो रही है. कार से लेकर एटीएम से पैसे निकालने तक महंगा हो रहा.
मुफ्त निकासी की सीमा खत्म होने के बाद एटीएम से नकद निकालने पर ज्यादा शुल्क देना होगा.
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ऐप से खाना मंगाना महंगा
ऑनलाइन फूड ऑर्डर पर अब रेस्तरां के बजाय डिलीवरी सर्विस प्रोवाइडर से ही टैक्स वसूल होगा. ऐसे में ग्राहकों पर इसका बोझ पड़ सकता है. ऐप से टैक्सी और ऑटो बुक कराने पर भी जीएसटी लगेगा.
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कार महंगी
साल 2021 में ऑटो कंपनियां महंगे कच्चे माल के कारण कारों की कीमत कई बार बढ़ा चुकी हैं. करीब 10 ऑटो कंपनियां अपनी कारों के अलग-अलग मॉडलों के दाम बढ़ा रही हैं.
अग्रवाल कहते हैं, "हम इसे खारिज नहीं कर रहे हैं. हम नहीं कह रहे हैं कि बेरोजगारी कोई समस्या नहीं है. लेकिन हम ऐसे हल खोज रहे हैं जिनका असर लंबे समय तक रहे.”
‘अभी नहीं तो कभी नहीं'
इस बीच रेलवे जैसी नौकरियों की तैयारी में सालों बिता देने वाले युवा हताश हो रहे हैं. निरंजन कुमार कहते हैं, "मैंने एक साल से किराया नहीं दिया है. मेरे पिता ने कह दिया है कि इस साल के बाद वह मुझे मदद नहीं दे पाएंगे. मेरा परिवार हमेशा से मुश्किल झेलता रहा है. एक सरकारी नौकरी ही इन सारी मुश्किलों का हल है.”
काशी लॉज में ऐसे दर्जनों युवा हैं जो बिहार के ग्रामीण इलाकों से आकर यहां रह रहे हैं और विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं. कई तो पांच-पांच साल से यहां रह हे हैं. ऐसे ही अजय कुमार मिश्रा कहते हैं कि वह नरेंद्र मोदी के बड़े प्रशंसक थे और 2014 में जब रैली के लिए मोदी पटना आए थे तो उन्होंने समर्थन में नारे भी लगाए थे.
मिश्रा कहते हैं, "हमने उनके लिए अपना कलेजा निकाल कर रख दिया था. अब उन्हें हमारी बात सुननी ही होगी. युवा दर्द में हैं. क्या वह चाहते हैं कि हम भी चाय-पकौड़ा बेचें? शायद हमें यही करना पड़ेगा. हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है. जल्दी ही सरकारी नौकरियों के लिए हमारी उम्र निकल जाएगी.”
मिश्रा कहते हैं कि अगले साल उनके पिता रिटायर हो रहे हैं और उससे पहले उन्हें नौकरी खोजनी है क्योंकि परिवार की जिम्मेदारी उन पर आ जाएगी. वह कहते हैं, "बस अभी नहीं तो कभी नहीं. हमने एक क्रांति की शुरुआत की है जिसमें कोई नेता नहीं है और हर कोई नेता है क्योंकि हर कोई प्रभावित है.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
2021 में घरेलू हिंसा के मामले बढ़े
कोविड महामारी के बीच भारत में घरेलू हिंसा की शिकायत करने वाली महिलाओं की संख्या में महत्वपूर्ण इजाफा हुआ है. 2020 के मुकाबले 26 फीसदी अधिक महिलाओं ने शिकायत की.
तस्वीर: Yavuz Sariyildiz/Zoonar/picture alliance
घर में बढ़े अपराध
कोरोना के दूसरे साल में भी भारतीय महिलाओं को घरेलू हिंसा से छुटकारा नहीं मिला. राष्ट्रीय महिला आयोग से घरेलू हिंसा की शिकायत करने वाली महिलाओं की संख्या साल 2020 के मुकाबले 2021 में बढ़ी है.
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साल 2021 में 30,865 शिकायतें
2021 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा करीब 30 फीसदी बढ़ी. साल 2020 में महिला आयोग को 23,722 शिकायतें मिली थीं जबकि 2021 में 30,864 मामले दर्ज किए गए.
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महिलाओं के खिलाफ अपराध में यूपी आगे
महिलाओं के खिलाफ हिंसा के सबसे अधिक मामले देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से सामने आए. यह करीब 51 फीसदी है. इसके बाद दिल्ली 10.8 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर है.
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मदद के लिए रोज 400 कॉल्स
राष्ट्रीय महिला आयोग का कहना है कि महामारी सभी के लिए चुनौती बनकर आई है, खासकर महिलाओं के लिए. आयोग का कहना है कि अधिक से अधिक महिलाएं मदद मांग रही हैं और करीब 400 फोन कॉल्स आयोग की हेल्पलाइन पर आती हैं.
तस्वीर: Tanika Godbole/DW
गरिमा के साथ रहने के अधिकार का हनन
महिला आयोग का कहना है कि साल 2021 में 11,084 शिकायतें गरिमा के साथ रहने के हक के हनन की दर्ज की गईं. इसके बाद घरेलू हिंसा के 6,682 मामले दर्ज किए गए.