अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का पहला विदेश दौरा बिना शर्त किए एक बड़े दान के ऐलान से शुरू हुआ है. लेकिन यह दान क्या काफी है
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आठ दिन, चार देश और तीन शिखर वार्ताएं. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का पहला विदेशी दौरा खासा व्यस्त रहगा. इसकी शुरुआत ब्रिटेन के कार्बिस बे में जी-7 शिखर वार्ता से हो गई है. जहां से वह बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स जाएंगे और नाटो व यूरोपीय संघ के नेताओं से बात करेंगे. दौरा खत्म होगा जिनेवा में, जहां बाइडेन की मुलाकात रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन से होनी है. इस बीच बहुत सी द्विपक्षीय मुलाकातें भी तय हैं जैसे कि जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल और महारानी एलिजाबेथ द्वितीय से.
अपने दौरे के पहले ही दिन, गुरुवार को अमेरिकी राष्ट्रपति ने ऐलान किया कि जी-7 देश दुनिया के सबसे गरीब देशों को फाइजर वैक्सीन की 50 करोड़ खुराक दान करेंगे. बाइडेन ने कहा कि कोविड-19 महामारी से लड़ने में योगदान के लिए ये खुराक बिना किसी शर्त के दी जाएंगी.
फाइजर के प्रमुख एल्बर्ट बोरला के साथ मुलाकात के बाद कारबिस बे में बाइडेन ने कहा, "अमेरिका ये खुराक बिना किसी शर्त के दे रहा है. हम किसी बिना किसी संभावित छूट या फायदे के दबाव के बिना यह दान कर रहे हैं. हम ऐसा जिंदगियां बचाने के लिए कर रहे हैं." उन्होंने कहा कि अमेरिका दुनिया के नागरिकों के प्रति अपनी जिम्मेदारी के तहत ये दवाएं दान कर रहा है.
उन्होंने कहा, "कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका वैक्सीन का बारूद होगा, ठीक उसी तरह जैसे दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका लोकतंत्र का बारूद बना था." किसी एक देश द्वारा वैक्सीन के अब तक के सबसे बड़े इस दान के लिए अमेरिका को साढ़े तीन अरब डॉलर खर्च करने होंगे. इसके साथ ही जी-7 देश मिलकर एक अरब खुराक दान करने का ऐलान कर सकते हैं. ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने उम्मीद जताई है कि जी-7 नेता शिखर वार्ता के दौरान एक अरब वैक्सीन खुराक दान करने का ऐलान करेंगे.
कोरोना वायरस: कितनी दूरी रखना है जरूरी
कोरोना महामारी के इस लंबे दौर में अब लोग सोशल डिस्टेंसिंग यानि दूसरों से शारीरिक रूप से दूरी बना कर रखने की अहमियत समझ चुके हैं. लेकिन किस जगह पर कम से कम कितने दूर रहने से आप सुरक्षित रहेंगे, ये जानिए.
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दो मीटर काफी नहीं
अमेरिकी मेडिकल जर्नल में छपी 1948 की इस स्टडी में बैक्टीरिया का संक्रमण देखा गया, जो करीब 2.9 मीटर तक फैला. अब बात वायरस की है और उसके लिए तो इस तस्वीर में लोगों के बीच जितनी दूरी भी शायद काफी ना हो.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Nietfeld
सबकी अपनी समझ
आइसलैंड के गड़रिया एसोसिएशन ने अपने समझने की आसानी के लिए अपने माहौल के हिसाब से नियम रखा कि संक्रमण से बचने के लिए कम से कम दो भेड़ों के बराबर दूरी रखनी चाहिए. यह करीब दो मीटर की दूरी होगी.
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ब्रिटेन और अमेरिका के रिसर्चरों का साझी सलाह
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपे एक विश्लेषण में ऑक्सफोर्ड, लंदन और केम्ब्रिज के रिसर्चरों ने मिल कर बताया है कि एयरोसॉल के माध्यम से फैलने वाले इस वायरस के लिए अलग अलग जगहों पर कितनी दूरी बरकरार रखनी चाहिए.
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कृपया दूरी बना कर रखें!
दूसरों से 1.5 से 2 मीटर (5 से 6 फुट) की दूरी रखने का नियम सामान्य रूप से प्रचलित है. इसके अलावा साफ सफाई रखने, हाथ धोने और मास्क पहनने से संक्रमण से बचा जा सकता है.
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कहां से आया 2-मीटर वाला नियम
एमआईटी की रिसर्चर लिडिया बोरुइबा बताती हैं कि यह काफी पुराना है. सन 1897 में जर्मन डॉक्टर सी फ्लुगे ने सबसे पहले इसकी सलाह दी थी. इसके बाद 1948 की एक स्टडी में अमेरिका में इसे लेकर एक बड़ी स्टडी हुई थी.
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खुली जगहों पर
बाजार से खरीदी कुत्ते की रस्सियां आमतौर पर इतनी ही लंबी होती हैं, जितनी दूरी रखनी है यानि छह फुट. इसे संयोग ही मानें या रस्सी को इतना लंबा बनाने के पीछे भी ऐसा ही कोई आधार था.
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वायरस का माध्यम एयरोसॉल
वायरस असल में बैक्टीरिया से कहीं ज्यादा सूक्ष्म होते हैं. यह हवा में कई घंटों तक तैरते रह सकते हैं और इसीलिए हवा के माध्यम से ज्यादा फैलते हैं. इसीलिए केवल दूरी काफी नहीं हैं, मास्क पहनने के अलावा और भी सारी चीजें करनी चाहिए.
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और किन चीजों का ख्याल
आप जिस कमरे में हैं वहां बाकी लोगों ने मास्क पहना है या नहीं. वे ऊंची आवाज में बात कर रहे हैं या गाना गा रहे हैं तो वायरस ज्यादा दूर तक जा सकता है. आसपास कोई खांसे तो भी वायरस दूर तक फैलते हैं.
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कमरे में कितनी देर सुरक्षित
किसी कमरे में अगर कोई संक्रमित व्यक्ति हो तो उसके साथ वहां अगर बहुत सारे लोग हैं, तो आपको कम से कम समय के लिए वहां होना चाहिए. वह भी तब जब कमरे में हवा की आवाजाही की व्यवस्था हो, मास्क पहना हो और आराम से बात हो रही हो.
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इतना काफी है? या और?
ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इस तरह स्कूली बच्चों को आसानी से दिखाने की कोशिश की थी कि उन्हें लगभग कितनी दूरी बना कर रखनी चाहिए. एक औसत वयस्क के केवल दो हाथों की लंबाई ही 1.5 मीटर के आसपास होती है.
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यहां मास्क नहीं चाहिए
ऐसे खुले माहौल में जितनी देर तक चाहें बिना मास्क के रहा जा सकता है. लेकिन वहां भी आपके आसपास कितने लोगों की भीड़ है और वे कितनी बातें कर रहे हैं - इन चीजों से फर्क पड़ता है. (फाबियान श्मिट/आरपी)
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अमीर देशों की क्या है योजना
दुनिया के सबसे धनी देशों का यह समूह चाहता है कि 2022 के आखिर तक पूरी दुनिया का टीकाकरण हो जाए ताकि लगभग 40 लाख लोगों की जानें ले चुकी कोविड महामारी को खत्म किया जा सके. फिलहाल धनी देश टीकाकरण के मामले में बाकी दुनिया से काफी आगे चल रहे हैं. अमेरिका, यूरोप, इस्राएल और बहरीन बाकी देशों के मुकाबले ज्यादा लोगों को टीका लगा चुके हैं. जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के मुताबिक दुनिया की आठ अरब आबादी में से कुल दो अरब 20 करोड़ लोगों को टीका लगा है.
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अमेरिकी दवा कंपनी फाइजर और उसकी जर्मन सहयोगी बायोएनटेक ने अमेरिका को इस साल 20 करोड़ और अगले साल 30 करोड़ वैक्सीन खुराक सप्लाई करने पर सहमति जताई है. फाइजर जो दवाएं अमेरिका में बनाएगा, उन्हें बिना किसी मुनाफे के बेचा जाएगा और सौ देशों को सप्लाई किया जाएगा. फाइजर के प्रमुख बोरला ने कहा कि पूरी दुनिया धनी देशों की ओर देख रही है कि वे किस तरह कोविड महामारी से लड़ते हैं और इसका हल गरीब देशों के साथ कैसे साझा करते हैं.
कहां कहां पहुंची वैक्सीन
कोविड-19 वैक्सीन को लोगों तक पहुंचाने के लिए दुनियाभर के सैकड़ों स्वास्थ्यकर्मी दूभर यात्राएं कर रहे हैं. उनका काम है वैक्सीन को उन जगहों पर ले जाना जहां आना-जाना आसान नहीं है. मिलिए, ऐसे ही लोगों से.
तस्वीर: Anupam Nath/AP Photo/picture alliance
पहाड़ की चढ़ाई
दक्षिणी तुर्की में दूर-दराज पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों तक वैक्सीन पहुंचाने के लिए सिर्फ स्वास्थ्यकर्मी होना काफी नहीं है. उन्हें शारीरिक रूप से तंदुरुस्त और मजबूत भी होना पड़ता है क्योंकि पहाड़ चढ़ने पड़ते हैं. डॉ. जैनब इरेल्प कहती हैं कि लोग अस्पताल जाना पसंद नहीं करते तो हमें उनके पास जाना पड़ता है.
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बर्फीली यात्राएं
पश्चिमी इटली के ऐल्पस पहाड़ी के मारिया घाटी में कई बुजुर्ग रहते हैं जो वैक्सिनेशन सेंटर तक नहीं पहुंच सकते. 80 साल से ऊपर के लोगों को घर-घर जाकर वैक्सीन लगाई जा रही है.
तस्वीर: Marco Bertorello/AFP
हवाओं के उस पार
अमेरिका के अलास्का में यह नर्स युकोन नदी के किनारे बसे कस्बे ईगल जा रही है. उसके बैग में कुछ ही वैक्सीन हैं क्योंकि ईगल सौ लोगों का कस्बा है जहां आदिवासी लोग रहते हैं. उन्हें प्राथमिकता दी जा रही है.
तस्वीर: Nathan Howard/REUTERS
मनाना भी पड़ता है
दक्षिणी-पश्चिमी कोलंबिया के पहाड़ी इलाकों में 49 साल के ऐनसेल्मो टूनूबाला का काम सिर्फ वैक्सीन ले जाना नहीं है. उन्हें वैक्सीन की अहमियत भी समझानी पड़ती है क्योंकि कुछ आदिवासी समूह दवाओं से ज्यादा जड़ी-बूटियों पर भरोसा करते हैं.
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कई-कई घंटे चलना
मध्य मेक्सिको नोवा कोलोन्या इलाके में ये लोग चार घंटे पैदल चलकर टीकाकरण केंद्र पहुंचे. ये हुइशोल आदिवासी समूह के लोग हैं.
तस्वीर: Ulises Ruiz/AFP/Getty Images
नाव में सेंटर
ब्राजील के रियो नेग्रो में नोसा सेन्योरा डो लिवरामेंटो समुदाय के लोगों तक वैक्सीन नाव पर बने एक टीकाकरण केंद्र के जरिए पहुंची है.
तस्वीर: Michael Dantas/AFP
अंधेरे में उजाला
ब्राजील के इस आदिवासी इलाके में बिजली नहीं पहुंची है लेकिन वैक्सीन पहुंच गई है. 70 साल की रैमुंडा नोनाटा को वैक्सीन की पहली खुराक मोमबत्ती की रोशनी में मिली.
तस्वीर: Tarso Sarraf/AFP
झील के उस पार
यूगांडा की सबसे बड़ी झील बनयोन्यनी के ब्वामा द्वीप पर रहने वालों को वैक्सीन लगवाने के लिए नाव से आना पड़ता है.
तस्वीर: Patrick Onen/AP Photo/picture alliance
सब जल-थल
जिम्बाब्वे के जारी गांव में पहुंचने के लिए बनी सड़क टूट गई है. नदी पार करने का यही तरीका है लेकिन वैक्सीन तो पहुंचेगी.
तस्वीर: Tafadzwa Ufumeli/Getty Images
जापान के गांव
जापान में शहर भले चकाचौंध वाले हों, आज भी बहुत से लोग दूर-दराज इलाकों में रहते हैं. जैसे किटाएकी में इस बुजुर्ग के लिए स्वास्थ्यकर्मी घर आए हैं टीका लगाने.
तस्वीर: Kazuhiro Nogi/AFP
बेशकीमती टीके
इंडोनेशिया में टीकाकरण जनवरी में शुरू हो गया था. बांडा आचेह से मेडिकल टीम नाव के रास्ते छोटे छोटे द्वीपों पर पहुंची. टीके इतने कीमती हैं कि सेना मेडिकल टीम के साथ गई.
तस्वीर: Chaideer Mahyuddin/AFP
दूसरी लहर के बीच
भारत में जब कोरोना वायरस चरम पर था, तब वैक्सीनेशन जारी था. लेकिन ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित बहाकजरी गांव में मेडिकल टीम के पास पहुंचे लोग मास्क आदि से बेपरवाह दिखाई दिए. (ऊटा श्टाइनवेयर)
तस्वीर: Anupam Nath/AP Photo/picture alliance
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दुनिया को चाहिए और टीके
अमेरिका के 50 करोड़ दवाएं दान करने के वादे पर उन्होंने कहा, "अमेरिकी सरकार के साथ मिलकर यह घोषणा हमारे दुनियाभर में और ज्यादा जानें बचाने की क्षमता को बढ़ाती है."
आमतौर पर इन घोषणाओं का स्वागत हुआ है लेकिन अमीर देशों द्वारा अपने यहां बना लिए गए वैक्सीन भंडारों को खोलने की मांग भी बढ़ी है. सामाजिक संस्था ऑक्सफैम ने कहा है कि विश्व स्तर पर वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने के लिए और ज्यादा कोशिश किए जाने की जरूरत है. ऑक्सफैम अमेरिका के वैक्सीन प्रमुख नीको लुइजियानी ने कहा, "बेशक, ये 50 करोड़ खुराक स्वागतयोग्य हैं क्योंकि ये दुनिया के 25 करोड़ से ज्यादा लोगों की मदद करेंगी. लेकिन जो दुनिया की इस वक्त जरूरत है, उसके लिहाज से तो यह एक बाल्टी में एक बूंद जितना है."
एक बयान जारी कर लुइजियानी ने कहा, "हमें ज्यादा विकेंद्रित वैक्सीन उत्पादन की ओर बढ़ना होगा ताकि दुनियाभर के योग्य उत्पादक कम खर्च पर अरबों और खुराक बना सकें और उन पर बौद्धिक संपदा जैसी पाबंदियां ना हों."