मंगलवार को पत्रकार राणा अय्यूब को मुंबई एयरपोर्ट पर लंदन जाने वाली उनकी फ्लाइट में चढ़ने से रोक लिया गया. प्रवर्तन निदेशालय अय्यूब के खिलाफ मनी लॉन्डरिंग के मामले में जांच कर रहा है.
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मनी लॉन्डरिंग के मामले में आरोपी पत्रकार राणा अय्यूब को मंगलवार को अधिकारियों ने विमान में नहीं चढ़ने दिया. वह लंदन जा रही थीं लेकिन हवाई अड्डे पर ही उन्हें रोक दिया गया. अय्यूब का कहना है कि उन्हें निदेशालय का नोटिस तब मिला जब उन्हें रोका जा चुका था.
ट्विटर पर अय्यूब ने लिखा, "मुझे आज मुंबई इमिग्रेशन ने यात्रा करने से रोक दिया. मैंने हफ्तों पहले ही इस बारे में ऐलान कर दिया था. तब भी, उत्सुकता की बात यह है कि ईडी का समन रोक दिए जाने के बाद मेरे इनबॉक्स में पहुंचा.”
पत्रकारों के लिए बेहद खराब रहा 2021
न्यूयॉर्क स्थित मीडिया वॉचडॉग 'कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स' की नई रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में साल की शुरुआत से 1 दिसंबर 2021 तक 293 रिपोर्टरों को जेल में डाला गया. यह अब तक का सबसे ऊंचा आंकड़ा है.
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जोखिम में रिपोर्टर
कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ) की रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर में सलाखों के पीछे पत्रकारों की संख्या 2021 में बढ़कर सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई. रिपोर्ट में बताया गया है कि इस साल 1 दिसंबर तक 293 पत्रकारों को जेल में डाला जा चुका है.
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कवरेज के दौरान 24 पत्रकार मारे गए
सीपीजे ने 9 दिसंबर को प्रेस की स्वतंत्रता और मीडिया पर हमलों पर अपने वार्षिक सर्वेक्षण में कहा कि कम से कम 24 पत्रकार न्यूज कवरेज के दौरान मारे गए और 18 अन्य की मौत ऐसी परिस्थितियों में हुई, जिससे यह साफ तौर पर तय नहीं किया जा सका कि क्या उन्हें उनके काम के कारण निशाना बनाया गया था.
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क्यों जेल में डाले जा रहे है पत्रकार
अमेरिका के न्यूयॉर्क में स्थित संस्था का कहना है कि पत्रकारों को जेल में डालने का कारण अलग-अलग देशों में भिन्न है. संस्था के मुताबिक यह रिकॉर्ड संख्या दुनिया भर में राजनीतिक उथल-पुथल और स्वतंत्र रिपोर्टिंग को लेकर बढ़ती असहिष्णुता को दर्शाती है.
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सरकारों का कैसा दखल
सीपीजे के कार्यकारी निदेशक जोएल साइमन ने एक बयान में कहा, "यह लगातार छठा साल है जब सीपीजे ने दुनिया भर में कैद पत्रकारों की संख्या का लेखाजोखा तैयार किया है." उनके मुताबिक, "संख्या दो जटिल चुनौतियों को दर्शाती है - सरकारें सूचना को नियंत्रित और प्रबंधित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और वे ऐसा करने की कोशिश बहुत बेशर्मी से कर रही हैं."
दानिश सिद्दीकी भी 2021 में मारे गए
भारतीय फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी अफगान सुरक्षाबलों के साथ पाकिस्तान से सटी अहम सीमा चौकी के पास तालिबान लड़ाकों के साथ संघर्ष को कवर रहे थे. 16 जुलाई 2021 को तालिबान ने उनकी हत्या की थी. 2021 में ही मेक्सिको के पत्रकार गुस्तावो सांचेज कैबरेरा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
सीपीजे की रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने 50 पत्रकारों को कैद किया, जो किसी भी देश में सबसे अधिक है. इसके बाद म्यांमार (26) का स्थान आता है. म्यांमार में 1 फरवरी को सेना ने तख्तापलट किया था और इसकी रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों पर कार्रवाई की गई. फिर मिस्र (25), वियतनाम (23) और बेलारूस (19) का नंबर आता है.
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मेक्सिको में बड़े जोखिम
सीपीजे के मुताबिक मेक्सिको में पत्रकारों को अक्सर निशाना बनाया जाता है. ऐसा तब होता है जब उनके काम से आपराधिक गिरोह या भ्रष्ट अधिकारी परेशान होते हैं. मेक्सिको पत्रकारों के लिए पश्चिमी गोलार्ध का सबसे घातक देश बना हुआ है.
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यूरोप में भी हमले के शिकार पत्रकार
छह जुलाई 2021 को नीदरलैंड्स की राजधानी एम्सटर्डम के बीचो बीच एक जाने माने क्राइम रिपोर्टर पेटर आर दे विरीज को एक टेलीविजन स्टूडियो के बाहर अज्ञात हमलावरों ने गोली मार दी. अंदेशा है कि हमले के पीछे संगठित अपराध की दुनिया का एक गिरोह शामिल है. गोली लगने के नौ दिन बाद उनकी मौत हो गई.
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अय्यूब को शुक्रवार को ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर जर्नलिस्ट्स' में एक कार्यक्रम में हिस्सा लेना था. वहां वह ‘महिला पत्रकारों के खिलाफ' हिंसा विषय पर बोलने वाली थीं. ईडी ने अय्यूब को 11 अप्रैल को पूछताछ के लिए बुलाया है.
अय्यूब का समर्थन
यात्रा करने से रोके जाने के बाद कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने राणा अय्यूब के समर्थन में आवाज उठाई है. ‘कोएलिशन अगेंस्ट ऑनलाइन वायलेंस' ट्वीट कर कहा कि मुंबई एयरपोर्ट पर अय्यूब की हिरासत चिंता का विषय है.
मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं में मोदी शामिल
अंतरराष्ट्रीय संस्था 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' ने मीडिया पर हमला करने वाले 37 नेताओं की सूची जारी की है. इनमें चीन के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जैसे नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम है.
'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' (आरएसएफ) ने इन सभी नेताओं को 'प्रेडेटर्स ऑफ प्रेस फ्रीडम' यानी मीडिया की स्वतंत्रता को कुचलने वालों का नाम दिया है. आरएसएफ के मुताबिक ये सभी नेता एक सेंसर व्यवस्था बनाने के जिम्मेदार हैं, जिसके तहत या तो पत्रकारों को मनमाने ढंग से जेल में डाल दिया जाता है या उनके खिलाफ हिंसा के लिए भड़काया जाता है.
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पत्रकारिता के लिए 'बहुत खराब'
इनमें से 16 प्रेडेटर ऐसे देशों पर शासन करते हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "बहुत खराब" हैं. 19 नेता ऐसे देशों के हैं जहां पत्रकारिता के लिए हालात "खराब" हैं. इन नेताओं की औसत उम्र है 66 साल. इनमें से एक-तिहाई से ज्यादा एशिया-प्रशांत इलाके से आते हैं.
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कई पुराने प्रेडेटर
इनमें से कुछ नेता दो दशक से भी ज्यादा से इस सूची में शामिल हैं. इनमें सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद, ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और बेलारूस के राष्ट्रपति एलेग्जेंडर लुकाशेंको शामिल हैं.
मोदी का नाम इस सूची में पहली बार आया है. संस्था ने कहा है कि मोदी मीडिया पर हमले के लिए मीडिया साम्राज्यों के मालिकों को दोस्त बना कर मुख्यधारा की मीडिया को अपने प्रचार से भर देते हैं. उसके बाद जो पत्रकार उनसे सवाल करते हैं उन्हें राजद्रोह जैसे कानूनों में फंसा दिया जाता है.
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पत्रकारों के खिलाफ हिंसा
आरएसएफ के मुताबिक सवाल उठाने वाले इन पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर ट्रोलों की एक सेना के जरिए नफरत भी फैलाई जाती है. यहां तक कि अक्सर ऐसे पत्रकारों को मार डालने की बात की जाती है. संस्था ने पत्रकार गौरी लंकेश का उदाहरण दिया है, जिन्हें 2017 में गोली मार दी गई थी.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
अफ्रीकी नेता
ऐतिहासिक प्रेडेटरों में तीन अफ्रीका से भी हैं. इनमें हैं 1979 से एक्विटोरिअल गिनी के राष्ट्रपति तेओडोरो ओबियंग गुएमा बासोगो, 1993 से इरीट्रिया के राष्ट्रपति इसाईअास अफवेरकी और 2000 से रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे.
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नए प्रेडेटर
नए प्रेडेटरों में ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो को शामिल किया गया है और बताया गया है कि मीडिया के खिलाफ उनकी आक्रामक और असभ्य भाषा ने महामारी के दौरान नई ऊंचाई हासिल की है. सूची में हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान का भी नाम आया है और कहा गया है कि उन्होंने 2010 से लगातार मीडिया की बहुलता और आजादी दोनों को खोखला कर दिया है.
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नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान को नए प्रेडेटरों में सबसे खतरनाक बताया गया है. आरएसएफ के मुताबिक, सलमान मीडिया की आजादी को बिलकुल बर्दाश्त नहीं करते हैं और पत्रकारों के खिलाफ जासूसी और धमकी जैसे हथकंडों का इस्तेमाल भी करते हैं जिनके कभी कभी अपहरण, यातनाएं और दूसरे अकल्पनीय परिणाम होते हैं. पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या का उदाहरण दिया गया है.
तस्वीर: Saudi Royal Court/REUTERS
महिला प्रेडेटर भी हैं
इस सूची में पहली बार दो महिला प्रेडेटर शामिल हुई हैं और दोनों एशिया से हैं. हांग कांग की चीफ एग्जेक्टिवे कैरी लैम को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कठपुतली बताया गया है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी प्रेडेटर बताया गया है और कहा गया है कि वो 2018 में एक नया कानून लाई थीं जिसके तहत 70 से भी ज्यादा पत्रकारों और ब्लॉगरों को सजा हो चुकी है.
इंटरनेशनल प्रेस इंस्टिट्यूट ने भी राणा अय्यूब के प्रति समर्थन जताया है. उन्होंने अपने ट्विटर पर लिखा, "जानीमानी पत्रकार और मोदी सरकार की आलोचक को तब हिरासत में ले लिया गया जब वह लंदन के लिए विमान में चढ़ने वाली थीं. हम भारत से आग्रह करते हैं कि उन्हें यूरोप की यात्रा करने दें जहां उन्हें कई कार्यक्रमों में ऑनलाइन प्रताड़ना पर बोलना है.”
पिछले महीने ही एक बयान जारी कर संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयुक्त ने कहा कि राणा अय्यूब के खिलाफ न्यायिक उत्पीड़न को फौरन रोका जाना चाहिए. बयान में कहा गया, "विशेषज्ञों का कहना है कि स्वतंत्र खोजी पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता राणा अय्यूब दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों द्वारा लगातार तेज होते ऑनलाइन हमलों और धमकियों का शिकार बन रही हैं."
अपने विशेषज्ञों के हवाले से आयोग ने कहा, "अय्यूब की जनहित के मुद्दे उठाने और अपनी रिपोर्टिंग के जरिए ताकतवर लोगों से सवाल पूछने की कोशिशों के चलते संगठित ऑनलाइन समूहों ने उन्हें जान से मारने और हत्या तक की धमकियां दी हैं.”
दलित महिला पत्रकारों की कहानी पहुंची ऑस्कर
10:22
यूएन के ट्वीट के जवाब में एक ट्वीट करते हुए भारतीय अधिकारियों ने सरकार पर लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया है. एक ट्वीट में जेनेवा स्थित यूएन के भारतीय प्रतिनिधियों ने कहा, "कथित न्यायिक उत्पीड़न के आरोप निराधार और गलत हैं. भारत कानून के राज का सम्मान करता है और इस बात का भी कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है.”
रिपोर्ट लिखने वाले संयुक्त राष्ट्र के प्रतिवेदकों पर पक्षपाती होने का आरोप लगाते हुए भारतीय प्रतिनिधियों ने कहा, "हम विशेष प्रतिवेदकों से निष्पक्ष और सही रूप से सूचित होने की उम्मीद करते हैं. गुमराह करने वाली बात को बढ़ाना संयुक्त राष्ट्र की छवि को ही नुकसान पहुंचाता है.”