बांग्लादेश में भारी उथल-पुथल के बीच पत्रकारों पर भी हमले हो रहे हैं. चटगांव प्रेस क्लब पर हुए एक हमले में 20 पत्रकारों के घायल होने की खबर है. कई पत्रकारों को नौकरी से भी निकाला जा रहा है.
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बांग्लादेश की समाचार वेबसाइट 'डेली स्टार' के मुताबिक, 14 अगस्त को कुछ लोगों ने चटगांव प्रेस क्लब पर हमला कर दिया. हमलावर क्लब के मुख्य दरवाजे का ताला तोड़कर अंदर घुस गए, तोड़-फोड़ की और कई पत्रकारों के साथ मारपीट की. कम-से-कम 20 पत्रकार घायल हो गए.
क्लब के अध्यक्ष सलाहुद्दीन रेजा ने 'डेली स्टार' को बताया कि हमलावरों की संख्या 30 से 40 थी. उनके मुताबिक, हमलावरों का नेतृत्व बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) से जुड़े लोग कर रहे थे. बाद में सेना की एक टीम ने पत्रकारों को बचाया.
देश में कई हफ्तों से चल रहे हिंसा के दौर में इससे पहले भी कई पत्रकारों को निशाना बनाया गया है. अंतरराष्ट्रीय संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) ने 9 अगस्त को ही एक बयान जारी कर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से पत्रकारों की सुरक्षा करने की अपील की थी.
आरएसएफ के मुताबिक उस समय तक हुए हमलों में पांच पत्रकारों की जान जा चुकी थी, 250 घायल हो गए थे और नौ टीवी चैनलों पर हमला हो चुका था. हालांकि उस समय आरएसएफ ने इन हमलों के लिए पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की पुलिस और समर्थकों को जिम्मेदार ठहराया था.
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51 पत्रकारों की सूची
आरएसएफ का कहना था कि इन हमलों के साथ-साथ कोई भी ऐसा जवाबी हमला भी नहीं होना चाहिए, जिसमें हसीना से जुड़े होने के आरोपों का सामना कर रहे पत्रकारों को निशाना बनाना जाए.
देश में आंदोलन करने वाले छात्रों ने 'भेदभाव-विरोधी छात्र आंदोलन' के बैनर तले 51 पत्रकारों की एक सूची जारी की और मांग की कि इन्हें राष्ट्रीय प्रेस क्लब से बैन कर दिया जाए. उन्होंने मांग की कि इन पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए, क्योंकि इन लोगों ने छात्रों और जनता के खिलाफ हिंसा को भड़काया था.
बांग्लादेश में पत्रकारों पर हमले के विरोध में त्रिपुरा के अगरतला में भी प्रदर्शन हो रहे हैं. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, बीते दिन 10 मीडिया कंपनियों के पत्रकारों ने अगरतला प्रेस क्लब के सामने काल पट्टे पहन कर अपना विरोध प्रकट किया.
11 अगस्त को अगरतला प्रेस क्लब के अध्यक्ष जयंता भट्टाचार्य ने कहा था कि बांग्लादेश में कई पत्रकारों के नाम अरेस्ट वारंट भी जारी कर दिए गए हैं. बांग्लादेशी वेबसाइट बीडीन्यूज24 के मुताबिक, एकत्तोर टीवी नाम की मीडिया कंपनी ने दो वरिष्ठ पत्रकारों को नौकरी से निकाल दिया.
बांग्लादेश: शेख हसीना के हाथ से कैसे फिसल गई सत्ता
बांग्लादेश के इतिहास में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना को भीषण हिंसा और छात्रों के आंदोलन के कारण इस्तीफा देकर देश छोड़ना पड़ना. आखिर कैसे सत्ता उनके हाथों से फिसल गई. उनके राजनीतिक सफर पर एक नजर.
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शेख हसीना ने कैसे गंवाई सत्ता
5 अगस्त, 2024 को शेख हसीना ने बांग्लादेश के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और सेना के विमान में सवार होकर भारत पहुंच गईं. जुलाई की शुरूआत से ही बांग्लादेश में हजारों छात्र देश के अलग-अलग हिस्सों में मौजूदा कोटा सिस्टम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे.
तस्वीर: Mohammad Ponir Hossain/REUTERS
कोटा सिस्टम का विरोध
साल 2018 तक बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में 56 फीसदी सीटों में कोटा लागू था. इसमें 30 प्रतिशत स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों और उनके बच्चों के लिए, 10 प्रतिशत महिलाओं, 10 फीसदी पिछड़े जिलों के लोगों, पांच फीसदी अल्पसंख्यकों और एक प्रतिशत कोटा विकलांगों के लिए था. इस तरह सभी भर्तियों में केवल 44 फीसदी सीटें ही बाकियों के लिए खाली थीं.
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क्यों सड़कों पर आए छात्र
2018 में सरकार ने एक सर्कुलर जारी कर कोटा सिस्टम को खत्म करने की घोषणा की. इसके अंतर्गत स्वतंत्रता सेनानियों और उनके परिवारजनों के लिए आरक्षित 30 फीसदी कोटा को भी खत्म करने की बात कही गई. इसके खिलाफ 2021 में हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई. 5 जून, 2024 को हाई कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि वह संबंधित सर्कुलर को रद्द करे और स्वतंत्रता सेनानियों के लिए चले आ रहे 30 फीसदी कोटा को कायम रखे.
इसके बाद देश के कई हिस्सों में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा. 21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 93 फीसदी नौकरियों में भर्तियां योग्यता के आधार पर की जाएं. कोर्ट ने कहा 1971 के आंदोलन में शामिल रहे सेनानियों के परिजनों को सिर्फ पांच फीसदी आरक्षण मिले.
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हिंसा और इस्तीफे की मांग
जुलाई से चल रहा छात्रों का आंदोलन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से शांत नहीं हुआ और यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में छात्रों का विरोध प्रदर्शन जारी रहा. छात्र संगठनों ने चार अगस्त को पूर्ण असहयोग आंदोलन शुरू करने की घोषणा की थी.
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हसीना के इस्तीफे के पहले क्या हुआ
4 अगस्त को हुई हिंसा में 94 लोग मारे गए. जिनमें 13 के करीब पुलिस वाले थे. सरकार ने प्रदर्शनों को रोकने के लिए सड़कों पर सेना को उतार दिया लेकिन छात्र पीछे नहीं हटे और हसीना के इस्तीफे की मांग की. 5 अगस्त को छात्र संगठनों ने ढाका में लॉन्ग मार्च का एलान किया. जब प्रदर्शनकारी पीएम आवास की ओर बढ़ने लगे तो हसीना ने सेना के विमान में सवार होकर देश छोड़ दिया.
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बांग्लादेश पर मजबूत पकड़
दक्षिण एशियाई देश बांग्लादेश में 76 साल की शेख हसीना दुनिया की सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वालीं सरकार प्रमुख थीं. शेख हसीना पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बनी और 2008 में वापस लौटीं और 5 अगस्त, 2024 तक पद पर बनी रहीं.
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हसीना पर आरोप
शेख हसीना पर सत्ता में 15 साल रहने के दौरान विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी, अभिव्यक्ति की आजादी पर दमन और असहमति पर दमन के आरोप लगे. उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे. लेकिन हसीना सरकार इन आरोपों को खारिज करती रही.
तस्वीर: Mohammad Ponir Hossain/REUTERS
विरासत में मिली राजनीति
शेख हसीना को राजनीति विरासत में मिली. उनके पिता शेख मुजीबुर्रहमान ने 1971 में पाकिस्तान से आजादी के लिए बांग्लादेश की लड़ाई का नेतृत्व किया था. 1975 में सैन्य तख्तापलट में उनके परिवार के अधिकांश लोगों के साथ उनकी हत्या कर दी गई थी. हसीना भाग्यशाली थीं कि उस समय वह यूरोप की यात्रा पर थीं. 1947 में दक्षिण-पश्चिमी बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) में जन्मी हसीना पांच बच्चों में सबसे बड़ी हैं.
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भारत में निर्वासित जीवन
शेख हसीना वर्षों तक भारत में निर्वासन में रहीं. फिर बांग्लादेश वापस चली गईं और अवामी लीग की प्रमुख चुनी गईं. उन्होंने 1973 में ढाका विश्वविद्यालय से बंगाली साहित्य में ग्रैजुएशन की और अपने पिता और उनके छात्र समर्थकों के बीच मध्यस्थ के रूप में राजनीतिक अनुभव हासिल किया.
तस्वीर: Saiful Islam Kallal/AP Photo/picture alliance
हसीना और आम चुनाव
शेख हसीना जनवरी, 2024 में लगातार चौथी बार चुनाव जीतीं. इस चुनाव का मुख्य विपक्षी दल और उनकी प्रतिद्वंद्वी बेगम खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने बहिष्कार किया था. इस चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली के आरोप लगे.
तस्वीर: AFP
निरंकुश शासन के आरोप
बीएनपी और मानवाधिकार समूहों का कहना है कि हसीना की सरकार ने जनवरी, 2024 में हुए चुनाव से पहले 10,000 विपक्षी पार्टी कार्यकर्ताओं को झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया था. इस चुनाव का विपक्ष ने बहिष्कार किया था. जैसे-जैसे समय बीतता गया, वह निरंकुश होती गईं और उनके शासन में राजनीतिक विरोधियों और कार्यकर्ताओं की सामूहिक गिरफ्तारी, जबरन गायब होना और न्यायेतर हत्याओं के आरोप लगे.
तस्वीर: Mohammad Ponir Hossain/REUTERS
शेख हसीना और खालिदा जिया के बीच संघर्ष
हसीना ने अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बीएनपी की प्रमुख खालिदा जिया के साथ हाथ मिला लिया और लोकतंत्र के लिए एक विद्रोह का नेतृत्व किया, जिसने 1990 में सैन्य शासक हुसैन मोहम्मद इरशाद को सत्ता से उखाड़ फेंका. लेकिन जिया के साथ गठबंधन लंबे समय तक नहीं चला और दोनों महिलाओं के बीच तीखी प्रतिद्वंद्विता जारी रही.
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कमजोर हो चुकीं खालिदा जिया
शेख हसीना और खालिदा जिया के बीच कई सालों से राजनीतिक संघर्ष चला आ रहा है. 78 साल की जिया दो बार प्रधानमंत्री रह चुकी हैं और फरवरी 2018 में भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद से जेल में हैं. उनकी तबीयत बिगड़ती जा रही है और 2019 में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने 5 अगस्त, 2024 को जिया को रिहा करने का आदेश दिया.
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हसीना के भारत के साथ संबंध
भारत और बांग्लादेश के बीच बेहद मजबूत संबंध हैं. जब कभी भी बांग्लादेश को जरूरत पड़ी तो भारत उसके साथ खड़ा नजर आया. दोनों देशों के बीच पिछले 53 सालों से द्विपक्षीय संबंध हैं. 2023 में भारत में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में भारत ने बांग्लादेश को विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था. हसीना के पीएम रहते हुए दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ा है.
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वेबसाइट के मुताबिक, इन दोनों पत्रकारों का नाम छात्र आंदोलन के संयोजक अब्दुल कादिर अब्दुल हनन मसूद द्वारा प्रेस क्लब को भेजी गई पत्रकारों की सूची में था. छात्र नेताओं ने इन पत्रकारों पर बैन लगाने की मांग की है.
राष्ट्रीय शोक दिवस रद्द
इस बीच देश में राष्ट्रीय शोक दिवस को लेकर भी काफी उथल-पुथल चल रही है. 15 अगस्त 1975 को ढाका में देश के पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान और उनके परिवार के कई सदस्यों की एक सैन्य तख्तापलट में हत्या कर दी गई थी.
बांग्लादेश में इस दिन को राष्ट्रीय शोक दिवस के रूप में मनाया जाता है. ढाका के धानमंडी इलाके में मुजीबुर रहमान का पूर्व आवास है, जहां यह हत्याकांड हुआ था. बाद में शेख हसीना की सरकार ने इस आवास को बंगबंधु स्मारक संग्रहालय में बदल दिया और हर साल लोग यहां इकठ्ठा होकर श्रद्धांजलि देते हैं.
इस बार अंतरिम सरकार ने शोक दिवस ना मनाने का आदेश दिया है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, स्मारक के बाहर छात्र तैनात हैं जो आने-जाने वालों की जांच कर रहे हैं और यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि कहीं कोई वहां आकर श्रद्धांजलि ना दे दे.
इसी दिन ढाका के बनानी इलाके में रहमान के अलावा मारे गए बाकी 18 लोगों की कब्र पर भी बड़ी संख्या में लोग श्रद्धांजलि देने आते हैं, लेकिन मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इस बार वहां भी कोई कार्यक्रम नहीं हो रहा है.
शेख हसीना के खिलाफ आपराधिक मामले
इस बीच शेख हसीना के खिलाफ हत्या के आरोपों में जांच शुरू कर दी गई है. जुलाई में देश में हुई हिंसा में मारे गए लोगों में से दो मृतकों के परिवारों ने पूर्व प्रधानमंत्री के खिलाफ हत्या के आरोप लगाए हैं. इनमें हसीना सरकार के कई मंत्रियों और अधिकारियों को भी आरोपी बनाया गया है.
इसके अलावा बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण में हसीना और आठ अन्य लोगों के खिलाफ मानवता के खिलाफ अपराध और नरसंहार का मामला दर्ज कराया गया है.