इस साल 90 से ज्यादा पत्रकारों की हत्या, 400 जेल में
८ दिसम्बर २०२३
पत्रकारों के एक संगठन ने ताजा रिपोर्ट जारी कर बताया है कि दुनियाभर में इस साल अब तक 90 से ज्यादा पत्रकार काम करते हुए मारे जा चुके हैं.
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हमास और इस्राएल के बीच 30 साल से जारी युद्ध के दौरान इस साल अब तक जितने पत्रकारों की जान गई है, उतनी अब तक किसी साल में नहीं गई. पत्रकारों के एक संगठन इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स (आईएफजे) की ताजा रिपोर्ट में पत्रकारों के लिए गंभीर होती स्थिति पर चिंता जताई गई है.
8 दिसंबर को आईएफजे ने अपनी रिपोर्ट जारी की है, जिसमें बताया गया है कि 2023 में काम करते हुए अब तक 94 पत्रकारों की जान जा चुकी है. अपनी सालाना रिपोर्ट में आईएफजे ने यह भी बताया कि इस साल दुनियाभर में 400 से ज्यादा पत्रकारों को जेल में डाला गया है. संगठन ने पत्रकारों के लिए ज्यादा सुरक्षा और उनपर हमला करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है.
आईएफजे अध्यक्ष डॉमिनिक पराडेली ने कहा, "पत्रकारों की सुरक्षा के लिए नए वैश्विक मानकों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा प्रभावशाली उपायों की इतनी जरूरत कभी नहीं रही, जितनी अब है.”
गजा बना कब्रगाह
आईएफजे के मुताबिक इस साल 68 पत्रकारों की जान इस्राएल हमास युद्ध के दौरान गई है. 7 अक्टूबर को शुरू हुए इस युद्ध में ही अब तक 68 पत्रकारों की जान जा चुकी है. यानी हर रोज एक से ज्यादा पत्रकार की जान जा रही है और यह पूरे साल में हुई मौतों का 72 फीसदी है.
मरने वालों में ज्यादातर पत्रकार फलीस्तीनी थे जो गजा पट्टी में मारे गए, जहां इस्राएली सेना का हमास के खिलाफ ऑपरेशन जारी है.
संगठन ने कहा, "आईएफजे 1990 से काम करते हुए मारे गए पत्रकारों का रिकॉर्ड रख रहा है और कभी किसी युद्ध में इतने पत्रकारों की जान नहीं गई थी, जितने गजा में मारे जा चुके हैं. मीडियाकर्मियों की जान जाने का यह स्तर और गति अभूतपूर्व है.”
प्रेस फ्रीडम : भारत की रैंकिंग और लुढ़की, अब 161वें स्थान पर
अंतरराष्ट्रीय संस्था 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' ने साल 2023 की वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स रिपोर्ट जारी कर दी है. इस रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग और गिर गई है. जानिए, प्रेस फ्रीडम के मामले में कहां खड़ा है भारत.
तस्वीर: Charu Kartikeya/DW
भारत 161वें पायदान पर लुढ़का
वैश्विक मीडिया पर नजर रखने वाली संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) की प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के मुताबिक भारत की रैंकिंग और गिरी है. पिछले साल जहां भारत इस सूचकांक में 150वें स्थान पर था वहीं वह 2023 में 11 पायदान लुढ़कर 161वें स्थान पर जा पहुंचा है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
भारत में प्रेस की स्थिति क्यों हो रही खराब
विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक रिपोर्ट 180 देशों और क्षेत्रों में पत्रकारिता के लिए अनुकूल वातावरण का मूल्यांकन करती है. यह रिपोर्ट विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जारी की जाती है. इस रिपोर्ट में भारत के बारे में लिखा गया, "भारत में प्रधानमंत्री मोदी के करीबी उद्योगपति द्वारा मीडिया संस्थानों के अधिग्रहण ने बहुलवाद को खतरे में डाल दिया है."
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
पत्रकारों के लिए "स्थिति बेहद गंभीर"
रैंकिंग पांच व्यापक श्रेणियों में देश के प्रदर्शन पर आधारित है; जिनमें राजनीतिक संदर्भ, कानूनी ढांचा, आर्थिक संदर्भ, सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ और पत्रकारों की सुरक्षा शामिल हैं. इन पांचों श्रेणियों में भारत में पत्रकारों की सुरक्षा श्रेणी (172) में सबसे कम अंक मिले है. आरएसएफ को लगता है कि भारत उन 31 देशों में शामिल हैं जहां पत्रकारों के लिए स्थिति "बहुत गंभीर" है.
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भारत से बेहतर पाकिस्तान और अफगानिस्तान
इस रैंकिंग में भारत से बेहतर स्थिति में पाकिस्तान (150वें) और अफगानिस्तान (152वें) स्थान पर है. हालांकि इन दोनों देशों में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर गंभीर संकेत दिखाये गये हैं.
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लगातार गिर रही है भारत की रैंकिंग
भारत पिछले कुछ सालों में प्रेस फ्रीडम के मामले में नीचे जाता रहा है, इस साल उसकी रैंकिंग और गिरी है और वह 161वें स्थान पर जा पहुंचा है. पिछले साल फरवरी में केंद्र सरकार ने कहा था कि वह विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक के विचारों और देश की रैंकिंग से सहमत नहीं है क्योंकि यह एक "विदेशी" एनजीओ द्वारा प्रकाशित किया गया है.
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सबसे नीचे उत्तर कोरिया
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत से नीचे बांग्लादेश (163), तुर्की (165), सऊदी अरब (170), ईरान (177), चीन (179) और उत्तर कोरिया 180वें स्थान पर है.
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शीर्ष के तीन देश
प्रेस फ्रीडम के मामले में नॉर्वे, आयरलैंड और डेनमार्क इस साल शीर्ष पर हैं. लगातार सातवें साल नॉर्वे पहले स्थान पर कायम है.
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अमेरिका में प्रेस फ्रीडम का क्या हाल
अमेरिका प्रेस फ्रीडम सूचकांक में तीन पायदान नीचे खिसकर 45वें सथान पर जा पहुंचा है. अमेरिका में 2022 और 2023 में हुई दो पत्रकारों की हत्या का असर रैंकिंग पर पड़ा है. इंडेक्स के लिए प्रश्नावली का उत्तर देने वालों ने अमेरिका में पत्रकारों के लिए माहौल के बारे में नकारात्मक जवाब दिये थे.
आरएसएफ की 2023 की रिपोर्ट डिजिटल इकोसिस्टम पर फेक सामग्री उद्योग के प्रेस की स्वतंत्रता पर पड़ने वाले प्रभावों पर रोशनी डालती है. इंडेक्स के लिए जिन देशों का मूल्यांकन किया गया उनमें से दो-तिहाई यानी 118 देशों में लोगों ने फेक न्यूज के बारे में कहा कि नेता अक्सर या बड़े पैमाने पर गलत सूचना या प्रोपगैंडा अभियानों में व्यवस्थित रूप से शामिल थे.
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रूस का प्रोपगैंडा युद्ध
आरएसएफ ने रूस के बारे में लिखा है कि वह बढ़ चढ़ कर प्रोपगैंडा फैला रहा है. 2023 में रूस की रैंकिंग 9 स्थान गिरकर 164 पर पहुंच गई. आरएसएफ ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, "मॉस्को ने दक्षिणी यूक्रेन में कब्जे वाले क्षेत्रों में क्रेमलिन के संदेश को फैलाने के लिए समर्पित एक नया मीडिया शस्त्रागार खड़ा कर दिया है.
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रिपोर्ट में यूक्रेन युद्ध का भी जिक्र किया गया है. इसके मुताबिक करीब दो साल से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण "यूक्रेन भी पत्रकारों के लिए एक खतरनाक देश बना हुआ है.” 2023 में अब तक वहां तीन पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की जानें जा चुकी हैं.
संगठन ने अफगानिस्तान, फिलीपींस, भारत, चीन और बांग्लादेश में भी पत्रकारों की मौतों की निंदा की है और कहा है कि पत्रकारों के खिलाफ अपराध करने वालों को सजा तक नहीं मिल रही है. उसने सरकारों से अनुरोध किया है कि पत्रकारों की हत्या के मामलों पर ध्यान दें और उनकी सुरक्षा के लिए समुचित उपाय करें.
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अफ्रीका सबसे सुरक्षित
रिपोर्ट कहती है कि उत्तरी और दक्षिण अमेरिका में 2023 में पत्रकारों की हत्या में कमी आई है. पिछले साल वहां 29 मीडियाकर्मियों की जान गई थी, लेकिन इस साल यह संख्या अब तक सात है.
अमेरिका में एक, मेक्सिको में तीन और पराग्वे, ग्वाटेमाला और कोलंबिया में एक-एक पत्रकार की जान गई है. ये पत्रकार हथियारबंद संगठनों या सरकारी धन में फर्जीवाड़े जैसे मामलों की तफ्तीश कर रहे थे.
ये हैं टिक टॉक वाले पत्रकार
ऐसे समय में जब दुनिया भर में मुख्यधारा का मीडिया संकट में है, टिक टॉक युवा पीढ़ी पत्रकारों के एक वर्ग के लिए आगे बढ़ने का एक नया रास्ता बनकर उभरा है.
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टिक टॉक पर खबर देते पत्रकार
पारंपरिक पत्रकारिता से अलग हटकर कुछ युवा टिक टॉक पर खबरें परोस रहे हैं. वे दुनिया भर में हो रही घटनाओं पर चर्चा करते हैं और अपने विचारों को साझा करते हैं. कई लोग खुद को क्रिएटर्स या इंफ्लुएंसर्स बताते हैं. वे पारंपरिक पत्रकार बनने की आकांक्षा नहीं रखते.
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अमेरिका में मुख्यधारा मीडिया के लिए मुश्किल समय
कोरोना महामारी और यूक्रेन में युद्ध के कारण दुनिया के ज्यादातर देशों की अर्थव्यवस्था इस समय संकट में है. इसका असर मीडिया पर भी पड़ा है. अमेरिकी मीडिया के एक बड़े हिस्से में छंटनी चल रही है. इस साल अमेरिका में 1,900 मीडिया कर्मियों ने अपनी नौकरियां खो दीं.
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बढ़ती जा रही टिक टॉक की लोकप्रियता
मुख्यधारा मीडिया की परेशानियों के बीच टिक टॉक की लोकप्रियता बढ़ रही है. रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब बहुत से लोग खबरों के लिए टिक टॉक देखते हैं.
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खबरों के लिए टिक टॉक सबसे तेजी से बढ़ने वाला सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म
रॉयटर्स के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि अमेरिका में 18 से 24 वर्ष के 20 प्रतिशत युवा ताजा घटनाओं के बारे में जानने के लिए टिक टॉक का इस्तेमाल करते हैं, जो पिछले साल के मुकाबले पांच प्रतिशत अधिक है.
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लाखों में हैं फॉलोअर्स
जोश हेल्फगोट के चैनल का नाम 'गे न्यूज' है. उनके इस टिक टॉक चैनल के 55 लाख फॉलोअर्स हैं. जोश खुद समलैंगिक हैं, इसलिए छोटी उम्र से ही उन्होंने देखा कि ऐसा कोई एक मंच नहीं था जहां उन्हें समलैंगिक समाचार एक साथ या नियमित रूप से मिल सकें. वे अपने चैनल के जरिए एलजीबीटीक्यू से जुड़े मुद्दे उठाते हैं.
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अफ्रीका पत्रकारों के लिए सबसे सुरक्षित महाद्वीप साबित हुआ है, लेकिन आईएफजे ने कैमरून और लिसोथो में हुई तीन पत्रकारों की हत्याओं का विशेष जिक्र करते हुए कहा है कि अब तक इन मामलों की जांच नहीं हुई है.
फिलहाल 393 पत्रकार जेलों में बंद हैं, जिन्हें इस साल गिरफ्तार किया गया. इनमें सबसे ज्यादा चीन और हांगकांग में हैं, जहां 80 पत्रकारों की गिरफ्तारियां हुईं. म्यांमार में 54, तुर्की में 41 रूस व क्रीमिया में 40, बेलारूस में 35 और मिस्र में 23 पत्रकार गिरफ्तार किए गए.