ब्रिटेन में कबड्डी की लोकप्रियता इस कदर बढ़ रही है कि कुछ युवाओं ने अपनी नौकरी छोड़कर भारत ठिकाना बना लिया है ताकि ट्रेनिंग ले सकें.
विज्ञापन
चार हजार साल पुराना दक्षिण एशियाई खेल कबड्डी आज भी ब्रिटेन के लोगों के लिए अनजान बना हुआ है. हालांकि ब्रिटेन में दक्षिण एशियाई मूल के प्रवासियों की बहुत बड़ी तादाद है लेकिन इस समुदाय के बाहर कबड्डी एक अनजान विदेशी खेल बना हुआ है. कुछ लोग हैं जो ब्रिटेन के लोगों को कबड्डी के प्रति जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं, और अब उनकी कोशिशें कुछ रंग ला रही हैं.
इंग्लैंड की कबड्डी टीम के खिलाड़ी फेलिक्स ली कहते हैं, "मैं लोगों को कबड्डी कुछ यूं समझाता हूं कि छूकर भागना (टैग) और कुश्ती को मिला दो तो कबड्डी कहलाता है."
भारत में हुआ इन खेलों का जन्म
सैकड़ों और हजारों साल पहले भारत में कई खेलों का जन्म हुआ. मुगल और ब्रिटिश काल के दौरान यह खेल दुनिया भर में फैले. जानिए कौन कौन से हैं ये भारतीय खेल.
तस्वीर: Fotolia/Konstantin Li
1. सांप सीढ़ी
कुछ इतिहासकार कहते हैं कि यह खेल ईसा पूर्व खोजा गया था. कुछ कहते हैं कि इसे 13वीं शताब्दी में संत ज्ञानदेव ने खोजा. प्राचीनकाल में इस खेल को मोक्ष पत्तम, परम पदम और मोक्षपट के नाम से जाना जाता था. ऐसी धारणा थी कि इंसान अच्छे बुरे कर्म करता हुआ आगे बढ़ता है और 100 साल तक जीने की इच्छा रखता है. अंग्रेजों ने इस खेल का नाम बदलकर (स्नैक्स एंड लैडर्स) सांप सीढ़ी किया.
तस्वीर: imago/Ikon Images
2. ताश
प्राचीन भारत में क्रीडा पत्रम नाम का खेल खेला जाता था. पत्तों में महाभारत और रामायण के किरदार बनाए जाते थे. इसे राजसी और उच्च घराने के लोग खेला करते थे. दस्तावेजों के मुताबिक ताश राजपूताना, कश्यप मेरू (कश्मीर), उत्कला (ओडिशा), दक्कन और नेपाल में भी खेला जाता था. अबु फजल की आइन ए अकबरी में भी इसका जिक्र है.
तस्वीर: Rolf Vennenbernd/dpa/picture-alliance
3. शतरंज
इतिसकारों के मुताबिक शतरंज खेल का असली नाम चतुरंगा था. यह खेल 280 से 550 ईसवी के बीच गुप्त साम्राज्य के दौरान खोज गया. अरबी और फारसी दस्तावेजों में भी भारतीय खेल चतुरंगा का जिक्र है. फारसी में इसे शतरंज कहा गया.
तस्वीर: DW/C. Nippard
4. कबड्डी
कबड्डी का खेल 4,000 साल पुराना माना जाता है. इसकी खोज दक्षिण भारत में हुई. भारत में आज भी संजीवनी, गामिनी, अमर और पंजाबी स्टाइल की कबड्डी होती है.
तस्वीर: DW/S. Petersmann
5. मार्शल आर्ट्स
मार्शल आर्ट्स की विधा भारत में जन्मी. अलग अलग इलाकों में इसे भिन्न नामों से पुकारा जाता था. दक्षिण भारत में आज भी इसे कलारिपयट्टू के नाम से जाना जाता है. युद्ध की इस कला को 300 ईसा पूर्व पुराना माना जाता है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/R. Pal Singh
6. लूडो
इस खेल की शुरुआत भी भारत में ही हुई. भारत के कई इलाकों में आज भी इसे चौसर या पव्वा के नाम से जाना जाता है. छठी ईसवी के आस पास सामने आए इस खेल का चित्र अजंता की गुफाओं में भी मिलता है.
तस्वीर: picture-alliance/Arco Images GmbH
7. कुश्ती
भारत का सबसे पहला और पारंपरिक खेल मल्ल युद्ध माना जाता है. इस खेल का विस्तार आदिकाल के भारत में रहा है. प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों में बलराम, भीम, हनुमान के नाम मल्ल युद्ध में प्रसिद्ध है. ऐसा माना जाता है कि मल्ल जाति को द्वंद्व युद्ध में इतनी महारथ हासिल थी कि उसका मुकाबला कोई और नहीं कर सकता था. मल्ल जाति को मनुस्मृति में लिछिबी के नाम से जाना जाता है.
तस्वीर: Getty Images/S.Kanojia
7 तस्वीरें1 | 7
पिछले कुछ सालों में कबड्डी का दायरा दक्षिण एशिया से बाहर फैला है. अब इंग्लैंड के कुछ उत्साही युवा अगले साल होने वाले वर्ल्ड कप के लिए अपनी टीम तैयार कर रहे हैं. इनमें सिर्फ दक्षिण एशियाई ही नहीं बल्कि अन्य पृष्ठभूमियों के खिलाड़ी भी हैं.
हालांकि इंग्लैंड में होने वाला यह वर्ल्ड कप कितना आधिकारिक होगा, इस बात को लेकर संदेह है क्योंकि इसकी आयोजक कबड्डी की अंतरराष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल कबड्डी फेडरेशन (आईकेएफ) के दो फाड़ हो जाने के बाद बनी वर्ल्ड कबड्डी फेडरेशन (डब्ल्यूकेएफ) है. इसलिए इस वर्ल्ड कप में वे टीमें हिस्सा नहीं लेंगी जो आईकेएफ के साथ हैं.
नौकरी तक छोड़ दी
फिर भी, इंग्लैंड के कई दर्जन खिलाड़ी इसे एक बड़े मौके के रूप में देख रहे हैं. इस खेल में फिलहाल ना तो ज्यादा पैसा है और ना ही नाम है. इसके बावजूद ये खिलाड़ी अपनी नौकरियों और अन्य जिम्मेदारियों के बीच से समय निकाल कर तैयारी कर रहे हैं.
जैसे कि फेलिक्स ली एक स्टार्ट अप कंपनी में मैनेजर हैं. जबकि एक अन्य खिलाड़ी युवराज पंड्या ने तो अपनी नौकरी ही छोड़ दी और भारत चले गए ताकि कबड्डी पर पूरा ध्यान दे सकें. उनका यह कदम फायदेमंद साबित हुआ जब उन्हें भारत की प्रो कबड्डी लीग (पीकेएल) में दबंग दिल्ली टीम के लिए चुन लिया गया.
पाकिस्तान में बैलों की रोमांचक और खतरनाक दौड़
पाकिस्तान में हर साल कई इलाकों में बैलों की दौड़ के मुकाबले कराए जाते हैं. रफ्तार और रोमांच से भरे ये मुकाबले दुनिया के सामने पाकिस्तान की अलग ही तस्वीर बयान करते हैं.
तस्वीर: Reuters/C. Firouz
लोकप्रिय खेल
पाकिस्तानी पंजाब के इलाके कोट फतह खान, रहीम यार खान और कलर सेदा के अलावा कई जगहों पर बैलों की सालाना दौड़ होती हैं. इन मुकाबलों को देखने के लिए दूर दूर के गांवों से लोग पहुंचते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AA/M. Aktas
संतुलन
यह तस्वीर पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से 80 किलोमीटर दूर पिंड सुल्तान में होने वाले एक मुकाबले की है. दो बैलों को एक साथ दौड़ते हुए संतुलन कायम रखना होता है जो इतना आसान नहीं होता है.
तस्वीर: Reuters/C. Firouz
चले चलो
मुकाबले में बैलों को दौड़ाने वाला व्यक्ति उनके पीछे लगे एक तख्ते पर खड़ा होता है. रेसर को तख्ते पर खड़े खड़े ही अंतिम लकीर तक पहुंचना होता है.
तस्वीर: picture-alliance/AA/M. Aktas
खतरा
बैल तेज दौड़ते हैं और कई बार जमीन भी समतल नहीं होती. इसलिए हर रेसर अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाता. बहुत से खिलाड़ी रास्ते में ही गिर जाते हैं. कई लोग जख्मी हो जाते हैं. इसलिए यह मुकाबले दिलचस्प ही नहीं, खतरनाक भी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AA/M. Aktas
पारंपरिक खेल
ऐसे मुकाबलों में शामिल होने वाले बैलों के एक मालिक दानिश अकरम का कहना है कि देहाती इलाकों में बैलों की दौड़ एक सदियों पुराना पारंपरिक खेल है. कबड्डी और दूसरे खेलों की तरह यह लोगों के मनोरंजन का जरिया है.
तस्वीर: Reuters/C. Firouz
चिंताओं से दूर
दानिश अकरम का कहना है कि पाकिस्तान में हाल के सालों में होने वाले धमाकों और हिंसक गतिविधियों की वजह से ऐसे खेल पृष्ठभूमि में चले गए थे. लेकिन इस तरह के मेले और मुकाबले लोगों को रोजमर्रा की परेशानियों से दूर ले जाते हैं.
तस्वीर: Reuters/C. Firouz
कब होती हैं रेस
पिंड सुल्तान की तरह बहुत से गांवों में वहां रहने वाले लोग ही तय करते हैं कि ये मुकाबले कब कराए जाएं. आम तौर पर सर्दियों में फसल की कटाई के बाद ऐसी रेस होती हैं, ताकि पड़ोसी गावों के किसानों भी बुलाया जाए और तब खेत भी खाली होते हैं.
तस्वीर: Reuters/C. Firouz
बैलों की खातिरदारी
पिंड सुल्तान के सरदार आसिफ अली कहते हैं कि इन मुकाबलों के लिए बैलों को पूरे साल बेहतरीन खुराक दी जाती है और उनकी मालिश भी होती है, ताकि वे सिर्फ ताकतवर ही नहीं बल्कि दिखने में भी अच्छे लगें.
तस्वीर: picture-alliance/AA/M. Aktas
महंगा शौक
आसिफ अली के मुताबिक यह एक ऐसा शौक है जिस पर अच्छी खासी रकम खर्च होती है. अच्छी खुराक के साथ साथ भैंस का खालिस दूध भी बैलों को दिया जाता है. एक खास आदमी बैलों की देखभाल में लगाया जाता है.
तस्वीर: Reuters/C. Firouz
जब बैल बिगड़ जाए
कई बार ऐसा भी होता है कि रेस में शामिल बैल दर्शकों की तरफ भागने लगते हैं. ऐसे में हर कोई अपनी जान बचाने के लिए भागता है, वहीं बैल के मालिक की कोशिश होती है कि जानवर पर जल्द से जल्द काबू किया जाए.
तस्वीर: picture-alliance/AA/M. Aktas
इनाम
इन मुकाबलों में जीतने वालों को कई तरह इनाम दिए जाते हैं. पहले जीतने वाले को कई बार जमीन दी जाती थी तो कई बार भैंस. अब वॉशिंग मशीन, मोटरसाइकल या फिर टीवी जैसे इनाम दिए जाने लगे हैं.
तस्वीर: Reuters/C. Firouz
बढ़ता चलन
पाकिस्तान के देहाती इलाकों में मनोरंजन के लिए होने वाले ऐसे मुकाबलों में इजाफा होता जा रहा है. रोमांच और खतरे से भरी इन दौड़ों को देखने वाले बहुत लोग मौजूद हैं.
तस्वीर: Reuters/C. Firouz
12 तस्वीरें1 | 12
पीकेएल को 2014 में मार्शल स्पोर्ट्स कंपनी ने शुरू किया था. 2023-24 के सीजन में उसके 90 मैचों के 22.6 करोड़ दर्शक मिले.
पंड्या बताते हैं, "फेलिक्स ने एक व्लॉग (वीडियो) शुरू किया है जिसके जरिए वह ब्रिटेन के लोगों को वे गुण सिखा रहे हैं, जो हमने भारत में सीखे.”
ली और पंड्या ने नवंबर 2022 में भारत में ट्रेनिंग लेनी शुरू की थी. तब बांग्लादेश में हुए बंगबंधू कप में इंग्लैंड की टीम पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेली थी और अपने सारे मैच हार गई थी. 2023 में उसने दो मैच जीते. पोलैंड और अर्जेन्टीना को हराकर वह बांग्लादेश, इराक और नेपाल के बाद चौथे नंबर पर रही.
इंग्लैंड के खिलाड़ी टॉम डॉट्री कहते हैं, "ब्रिटेन में कबड्डी के साथ समस्या यह है कि हमारे पास अच्छे कोच नहीं हैं. हम वीडियो या प्रो कबड्डी के मैच देखकर खुद को ही ट्रेनिंग दे रहे हैं.”
विज्ञापन
रग्बी से संबंध
फेलिक्स ली का मूल देश हांग कांग है. लेकिन कबड्डी से वह इंपीरियल कॉलेज लंदन में जुड़े. वह बताते हैं, "मैंने स्कूल में रग्बी खेली है. शायद इसीलिए अपने पहले ट्रेनिंग सेशन में मैं कुछ पकड़ बना पाया था.”
रग्बी इंग्लैंड में एक लोकप्रिय खेल है. डॉट्री कहते हैं कि रग्बी में कई ऐसे दांव-पेच हैं जो कबड्डी में काम आते हैं. वह कहते हैं, "कुछ दांव एक जैसे हैं. इसके अलावा दम और ताकत भी दोनों खेलों में साझा है.”
पेशेवरों का मानना है कि कबड्डी में दर्शकों को आकर्षित करने की ताकत है. प्रो कबड्डी के प्रमोटर स्पोर्ट्ज इंटरेक्टिव के सीईओ सिद्धार्थ रमन कहते हैं, "यह एक तेज खेल है. हर पल कुछ हो रहा है. 40 मिनट में मैच पूरा हो जाता है.”
कोरियन ब्यूटी क्वीन का पहला प्यार कबड्डी
दक्षिण कोरिया की वू ही-जुन ने कई ब्यूटी पैजंट जीते हैं. वह सेना में फर्स्ट लेफ्टिनेंट हैं. लेकिन उनका पहला प्यार भारत में जन्मा प्राचीन खेल कबड्डी है.
तस्वीर: Wang Zhao/AFP/Getty Images
खिलाड़ी ब्यूटी क्वीन
वू जाने कितनी वजहों से चर्चा में रही हैं लेकिन उनका नया मंच है चीन में जारी एशियन गेम्स. और उनका नया मकसद है दक्षिण कोरिया को कबड्डी के नक्शे पर बड़ी जगह दिलाना.
तस्वीर: Wang Zhao/AFP/Getty Images
भारत में हुआ प्यार
29 साल की वू को कबड्डी से प्यार तब हुआ जब वह भारत की यात्रा पर थीं. वहां उन्होंने बच्चों को कबड्डी खेलते देखा. पूर्व मिस कोरिया फाइनलिस्ट वू कहती हैं कि अब कबड्डी उनकी प्राथमिकता बन चुकी है.
तस्वीर: Wang Zhao/AFP/Getty Images
कबड्डी है मंजिल का रास्ता
वू कहती हैं, “मुझे ऐसा लगता है जैसे कबड्डी मेरे लिए किसी बड़ी मंजिल का रास्ता हो. मैं सेना में भर्ती हुई और 2019 में मैंने मिस कोरिया मुकाबले में हिस्सा लिया. लेकिन मैं कबड्डी की ओर लौटी क्योंकि अन्य चुनौतियों से तुलना करें तो कबड्डी कहीं बड़ी चुनौती है.”
तस्वीर: Wang Zhao/AFP/Getty Images
लोकप्रिय हो रहा है खेल
अब तक कबड्डी पर भारत और पाकिस्तान का कब्जा रहा है. ईरान में भी यह खूब लोकप्रिय है. लेकिन दूसरे देशों में इसकी जगह बन रही है. 2018 एशियन गेम्स में दक्षिण कोरिया पांचवें नंबर पर रहा था.
तस्वीर: Wang Zhao/AFP/Getty Images
वू का योगदान
वू कहती हैं कि उनके देश में यह खेल फुटबॉल या बेसबॉल जितना लोकप्रिय तो नहीं है लेकिन पहले से इसकी लोकप्रियता काफी बढ़ी है. अब वू जैसे खिलाड़ियों की बदौलत ज्यादा लोग कबड्डी देख रहे हैं.
तस्वीर: Aamir Qureshi/AFP/Getty Images
5 तस्वीरें1 | 5
इंग्लैंड में कबड्डी को लोगों तक पहुंचाने में विश्वविद्यालयों में आयोजित टूर्नामेंट ने अहम भूमिका निभाई है. पंड्या कहते हैं, "हम लोगों ने कबड्डी को शौक के तौर पर शुरू किया था. वहां आज भी यह शौकिया तौर पर ही ज्यादा खेला जाता है.”
2022 में ब्रिटिश कबड्डी लीग (बीकेएल) शुरू हुई तो इसके बारे में जागरूकता काफी बढ़ी. डॉट्री कहते हैं, "बीकेएल में हमें खुद को आंकने का मौका मिला. लेकिन यह पता नहीं चल पाता था कि हमारी ट्रेनिंग सफल हो रही है या नहीं.”
जूनून के लिए
अब मई 2024 में बीकेएल का अगला सीजन कॉवेंट्री में होना है. उससे पहले डॉट्री अपनी नौकरी छोड़कर भारत में ट्रेनिंग लेने के बारे में सोच रहे हैं. वह उत्तर प्रदेश की योद्धा अकैडमी में ट्रेनिंग लेना चाहते हैं, प्रो कबड्डी से जुड़ी हुई है.
डॉट्री कहते हैं, "कभी-कभी आप अपने जुनून को नकार नहीं सकते. बंगबंधू कप में खेलना, अपने देश का प्रतिनिधित्व करना, प्रशंसकों के साथ तस्वीरें खिंचाना, उनका उत्साह, यह सब एक खिलाड़ी के लिए बहुत बड़ी बात है.”
ली को उम्मीद है कि कुछ अनुभव के बाद आने वाले टूर्नामेंटों में उनके देश के प्रदर्शन में सुधार होगा. वह कहते हैं कि उन्होंने युवराज के साथ मिलकर दूसरों को सिखाने में कड़ी मेहनत की है और उम्मीद है कि इसके नतीजे नजर आएंगे.