पिछले साल डॉ. कफील खान पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिए बयान के बाद एनएसए लगा दिया गया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट का कहना है कि खान का बयान हिंसा और नफरत को बढ़ावा देने वाला नहीं है.
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डॉ. कफील खान पिछले छह महीने से राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत उत्तर प्रदेश की मथुरा जेल में बंद हैं. उन्होंने पिछले साल नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भाषण दिया था. इसी साल 29 जनवरी को उत्तर प्रदेश पुलिस की एसटीएफ ने कफील खान को मुंबई हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया था. 16 अगस्त को उनकी एनएसए के तहत हिरासत अवधि तीन महीने के लिए बढ़ा दी गई थी. हाईकोर्ट में कफील खान की मां नुजहत परवीन ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की थी.
मंगलवार 1 सितंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि कफील खान के खिलाफ लगाए गए आरोप अनुचित थे और उनके कथित "भड़काऊ" बयान से नफरत नहीं फैली है. हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा, "प्रथमदृष्टया में भाषण पढ़ने पर यह घृणा या हिंसा को बढ़ावा देने के किसी भी प्रयास को जाहिर नहीं करता है. यह कहीं भी अलीगढ़ शहर की शांति और स्थिरता को खतरे में नहीं डालता है."
हाईकोर्ट के फैसले के बाद कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कफील खान की पत्नी शबिस्ता खान के हवाले से कहा गया है कि "उनकी जिंदगी से सात महीने छीन लिए गए, जिसे अब कोई वापस नहीं लौटा सकता है." कफील खान की पत्नी ने एक वीडियो संदेश में कहा, "एक निर्दोष व्यक्ति, जिसने कुछ नहीं किया है, उसपर एनएसए लगाकर उसे जेल में बंद कर दिया गया और सात महीनों तक उसे प्रताड़ित किया गया. वो सात महीने कोई वापस नहीं ला सकता है." उन्होंने एनएसए का गलत इस्तेमाल ना करने की सरकार से अपील की है.
दूसरी ओर हाईकोर्ट के फैसले का कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी ट्वीट कर स्वागत किया है और कहा है कि सरकार कफील खान की जल्द रिहाई करें.
इससे पहले कफील खान की मां सुप्रीम कोर्ट गई थी और अपने बेटे की रिहाई की मांग की थी. तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट इस मामले से निपटने के लिए उपयुक्त मंच है. इसके बाद एक जून को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले को सुना था. सुप्रीम कोर्ट ने कफील खान की रिहाई के संबंध में 11 अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट के लिए 15 दिन की समयसीमा निर्धारित की थी. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से कहा था कि 15 दिन में तय करें कि कफील खान को रिहा कर सकते हैं या नहीं.
13 दिसंबर 2019 को उनके खिलाफ अलीगढ़ में धर्म, नस्ल और भाषा के आधार पर नफरत फैलाने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था.
मामला कितना भी अजीब क्यों न हो, अदालत को उस पर गंभीरता से विचार करके फैसला देना है. जर्मन जजों के सामने ऐसे कई मामले आ चुके हैं.
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कॉपी करने के चक्कर में
एक साहब दफ्तर में फोटो कॉपी मशीन के पास खड़े थे. सोचा कॉपी करते करते अल्कोहल-फ्री बियर गटक ली जाए. लेकिन बियर की बोतल खुली तो झाग निकली और हड़बड़ा गए. कई दांत तुड़ा बैठे. इंश्योरेंस से पैसे मांगे. ड्रेसडेन की कोर्ट ने कहा, नहीं. खाना-पीना तो इंश्योरेंस के तहत नहीं आता. और फोटोकॉपी करने से आप थकते भी नहीं हैं कि पानी की प्यास लगी. लिहाजा, कुछ नहीं मिलेगा.
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फिसल गए
एक महिला ने घर में ही दफ्तर बना रखा था. वह पानी लेने के लिए उठीं तो फिसल गईं. मामला जर्मनी की नेशनल सोशल कोर्ट तक पहुंचा. कोर्ट ने कहा कि ऑफिस में खाने पीने के लिए जाते वक्त कुछ होने पर मुआवजा मिलना चाहिए. लेकिन ऑफिस तो घर में ही था. इसलिए महिला को खुद ही जिम्मेदार ठहराया गया.
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आइस क्रीम से हार्ट अटैक
एक साहब काम से घर लौट रहे थे, आइस क्रीम खाते हुए. ट्राम में घुसने लगे तो जल्दबाजी में एक पूरा बड़ा सा हिस्सा निगल गए. यह हिस्सा यूं का यूं चला गया नली में. और जो दर्द उठा. बाद में पता चला कि यह हार्ट अटैक था. मुआवजा नहीं दिया. कोर्ट पहुंचे. कोर्ट ने कहा, यह हादसा काम से नहीं जुड़ा था. आइस क्रीम मजे के लिए खाई जाती है.
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सेक्स में गड़बड़
एक सरकारी अफसर बिजनेस ट्रिप पर थीं. उस दौरान होटल में सेक्स करते हुए एक गड़बड़ हो गई. दीवार पर लगा बल्ब उखड़ा और उनके ऊपर आ गिरा. चोट भी लगी. महिला ने मुआवजा मांगा तो कोर्ट ने साफ इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि अफसर को उस वक्त सेक्स नहीं करना चाहिए था क्योंकि वह काम पर थीं.
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कूदने से पहले सोचें
एक ऑफिस में ट्रेनिंग चल रही थी. ब्रेक हुआ तो कॉलीग्स मस्ती करने लगे. एक 27 साल के युवक पर लोग पिचकारी से पानी फेंकने लगे. वह खिड़की से कूद गया. धड़ाम से गिरा. चोट लगी. लेकिन मुआवजा नहीं मिला. कोर्ट ने कहा, कूदना ही नहीं चाहिए था.
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काम पर सो गए
बार में काम करते हुए एक बंदी सो गई और नींद में कुर्सी से गिर गई. चोट लग गई. मुआवजा नहीं मिला. कोर्ट ने कहा कि वह काम की वजह से नहीं गिरी है इसलिए उसे मुआवजा नहीं मिल सकता.
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सोच समझ के लड़ो
एक साहब काम से इबित्सा गए थे. बीच पर क्लाइंट्स के साथ थोड़ी ज्यादा ही पी ली. बाउंसर्स से झगड़ा हो गया. दो-चार पड़ भी गए. अब उन्होंने कहा कि मैं तो काम से वहां गया था, मुआवजा दो. कोर्ट ने झाड़ा. कहा कि काम से गए थे तो दारू क्यों पी.
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गाय सोच-समझकर बचाएं
एक गाय अपनी ही जंजीर में फंस गई. उसका दम घुटने लगा. गाय के मालिक का भाई उसे बचाने आया तो उस पर एक और गाय ने पांव रख दिया. उसकी टांग टूट गई. कोर्ट ने मुआवजा खारिज कर दिया. कहा कि तुम उस वक्त किसी का काम नहीं कर रहे थे, इसलिए कुछ नहीं मिलेगा.