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भारत के खिलाफ हथियार तो डाले पर मिला क्या?

१७ मार्च २०१७

सैयद बशीर बुखारी कभी भारत के खिलाफ लड़ते थे. लेकिन फिर उन्होंने हथियार डाल दिए. लेकिन इसके बदले में उन्हें और उनके परिवार को क्या मिला? पाकिस्तान से कश्मीर लौटने वाले ऐसे और बहुत से परिवार हैं.

Indien Kaschmir Opferfest Eid al-Adha 2015 Ausschreitungen in Srinagar
तस्वीर: Reuters/D. Ismail

पाकिस्तानी कश्मीर से भारतीय कश्मीर में लौटने वाले बुखारी के परिवार को भारतीय नागरिकता नहीं दी गई. उनके बेटे को स्कूल में दाखिला नहीं मिला. उनकी पाकिस्तानी-कश्मीरी पत्नी, बेटा और पांच बेटियां खुद को छला हुआ महसूस करते हैं. दो साल पहले बुखारी ने तंग आकर खुद को सरेआम आग लगा ली थी.

उनकी पत्नी सफीना बशीर के मुताबिक अगले दिन अस्पताल में उनकी मौत हो गई थी. वह कहती हैं, "हमारे साथ धोखा हुआ." भारतीय शासन के खिलाफ संघर्ष छोड़ने के बदले उनके परिवार को भारतीय नागरिकता और समाज में उचित जगह दिलाने का वादा किया गया था. इस पर विश्वास कर लेने को सफीना अब गलती मानती हैं.

उनका बेटा अब 21 साल का हो गया है और बर्तन बेचकर परिवार का गुजारा चलाने में मदद करता है. सफीना की बेटियां स्कूल जाने लगी हैं. लेकिन वह पाकिस्तानी कश्मीर में जाना चाहती हैं. वह कहती हैं, "यहां कोई जिंदगी नहीं है."

सफीना का परिवार भी उन बहुत से परिवारों में शामिल है जो कश्मीर घाटी में 1947 से जारी हिंसा और अशांति की कीमत चुका रहे हैं. हजारों कश्मीर युवाओं की तरह बुखारी भी 1989 में भारतीय शासन के खिलाफ उठ खड़े हुए थे. इनमें से बहुत से पाकिस्तानी कश्मीर में चले गए और वहां हथियार चलाने और हमले करने की ट्रेनिंग लेने लगे.

2010 में जब कश्मीर में उग्रवाद को लगभग कुचल दिया गया तो भारत सरकार ने पाकिस्तानी कश्मीर में रहने वाले लोगों की वतन वापसी के लिए एक योजना शुरू की. समझौते के तहत हथियार छोड़ने के बदले 377 पूर्व लड़ाके और उनके परिवार के कुल 864 सदस्य वापस आए.

लेकिन इन लोगों से जो वादे किए गए थे, उन्हें पूरा नहीं किया गया. इन परिवारों को भारतीय नागरिकता भी नहीं दी गई. उन्हें न तो यात्रा दस्तावेज दिया गया और न ही वे सरकारी नौकरियां कर सकते हैं. स्कूल में बच्चों के दाखिले का भी कोई ठिकाना नहीं है क्योंकि इसके लिए पूरे दस्तावेज दिखाने पड़ते हैं. ये लोग न तो बैंक में खाता खोल सकते हैं और न ही रसोई गैस कनेक्शन ले सकते हैं. ऐसे में, प्रॉपर्टी खरीद पाने का तो सवाल ही नहीं उठता.

उन्हें सिर्फ एक पहचान पत्र आसानी से मिल जाता है जिसके जरिए वे वोट दे सकते हैं. कभी हथियारबंद चरमपंथी रहे शब्बीर अहमद डार कहते हैं, "हमारे के लिए सब कुछ चीजें जुगाड़ से ही होती है." हार्डवेयर की एक दुकान पर काम करने वाले डार कहते हैं कि जब उन्होंने भारत की तरफ आने का फैसला किया तो उनकी बेटी कराची के मेडिकल कॉलेज में फर्स्ट ईयर की छात्र थी, लेकिन यहां आने पर उसे पढ़ने नहीं दिया गया.

भारत सरकार का कहना है कि पूर्व लड़ाकों को इसलिए उनके अधिकार नहीं दिए गए हैं क्योंकि वे बांग्लादेश या नेपाल के रास्ते लौटे जबकि उन्हें भारत-पाकिस्तान सीमा पर बनाए तीन रास्तों या दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के जरिए ही लौटना था. अधिकारी यह नहीं बताते हैं कि क्यों इन चारों रास्तों से ही लौटना जरूरी था.

कुछ पूर्व चरमपंथियों का कहना है कि उन्हें भारतीय सैनिकों ने निर्धारित रास्तों से आने नहीं दिया था. वहीं कुछ लोग कहते हैं कि चूंकि वापसी के इस समझौते में पाकिस्तान शामिल नहीं था इसलिए पाकिस्तानी सैनिकों ने लोगों को उन रास्तों से नहीं आने दिया.

अब ये लोग भारत पर अपना वादा पूरा न करने का आरोप लगाते हैं. अहमद डार कहते हैं, "यह सरासर धोखेबाजी है. अगर हम निर्धारित रास्तों से नहीं आ रहे थे तो उन्होंने हमें रोका क्यों नहीं, वापस क्यों नहीं भेजा."

अधिकारियों का कहना है कि वे इन लोगों की परेशानियों को समझते हैं लेकिन उनके हाथ बंधे हुए हैं. जम्मू कश्मीर के पुलिस महानिदेशक एसपी वैद्य कहते हैं, "कुछ मुद्दे हैं लेकिन हम सिर्फ सरकार के आदेशों पर अमल कर सकते हैं."

वहीं राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती कहती हैं कि पूर्व लड़ाकों का पूरी तरह पुनर्वास नहीं हो सकता क्योंकि वह गलत रास्तों से आए हैं. उन्होंने भारत के गृह मंत्री राजनाथ सिंह से कहा कि नेपाल के रास्ते को भी वह मान्य रास्तों में शामिल करें जहां से ज्यादातर लोग आए थे.

समाचार एजेंसी एपी के साथ बातचीत में कम से कम 10 पूर्व लड़ाकों ने कहा कि पुलिस उन पर बराबर नजर रखती है. कश्मीरी समाज में भी कई लोग इन्हें गद्दार समझते हैं क्योंकि उन्होंने भारतीय शासन के खिलाफ हथियार डाल दिए. इस तरह न तो अधिकारी उनकी बात सुनते हैं और न ही स्थानीय लोगों को उनकी कोई फिक्र है.

कुछ लोगों ने वापस पाकिस्तान वाले कश्मीर में जाने की कोशिश भी की. सैयद मुनीर उल हसन कादरी अपनी पत्नी और तीन बच्चों को भारतीय कश्मीर में लाए. लेकिन इसके एक साल बाद ही 2013 में उन्होंने अपने परिवार समेत कुल पांच परिवारों को लेकर नियंत्रण रेखा को पार करने की कोशिश की. लेकिन कामयाब नहीं हो सके और भारतीय सुरक्षा बलों ने उन्हें हिरासत में ले लिया.

एके/एमजे (एपी)

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