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समाज

हेरोइन के दलदल में धंसते कश्मीरी युवा

१६ जुलाई २०२१

कश्मीर में पिछले कुछ सालों में संघर्ष और लॉकडाउन की वजह से युवाओं के बीच हेरोइन का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. अधिकारियों का कहना है कि पाकिस्तान से हेरोइन की तस्करी की वजह से नशे की प्रवृत्ति बढ़ रही है.

तस्वीर: Rifat Fareed/DW

भारत प्रशासित कश्मीर में रहने वाले 17 वर्षीय जिब्रान अहमद (बदला हुआ नाम) दो साल पहले तक सामान्य जीवन जी रहे थे. एक दिन उनके दोस्त ने उन्हें हेरोइन का स्वाद चखाया और तब से वे लगातार इसका सेवन करने लगे. अब वे पूरी तरह इसकी गिरफ्त में आ गए हैं. हेरोइन की लत लगने से पहले अहमद एक होनहार छात्र थे. इस लत की वजह से, अब उनकी और उनके परिवार दोनों की जिंदगी तबाह हो गई है. 

अहमद का परिवार दक्षिणी कश्मीर के कुलगाम जिले के दमहालंजीपोरा गांव का रहने वाला है. नौवीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान अहमद ने पहली बार यह ड्रग लेने की कोशिश की थी. उन्होंने डॉयचे वेले को बताया, "मैं 14 साल की उम्र से हेरोइन ले रहा हूं. मेरे दोस्त ने मुझे इसकी लत लगाई. उसने कहा कि इसे लेने पर बहुत अच्छा लगेगा." फिलहाल, श्रीनगर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस (आईएमएचएएनएस) के ड्रग रिहैबिलिटेशन वॉर्ड में अहमद का इलाज चल रहा है.

कश्मीर में अहमद जैसे हजारों युवा हैं जिन्हें पिछले कुछ सालों में हेरोइन की लत लग गई है. कई साल से चले आ रहे संघर्ष और कोरोना महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन के कारण आर्थिक तनाव और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के मामले बढ़े हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इन समस्याओं की वजह से युवाओं के बीच हेरोइन की लत तेजी से बढ़ी है.

श्रीनगर में कई युवाओं का इलाज चल रहा हैतस्वीर: Rifat Fareed/DW

नाम न छापने की शर्त पर, कश्मीर के एक वरिष्ठ मनोचिकित्सक ने कहा कि संघर्ष की वजह से ‘मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा हुईं'. वह कहते हैं, "संघर्ष की वजह से मादक पदार्थों की लत बढ़ती है, और अब यह कश्मीर में एक गंभीर समस्या बन गई है. मैं हर दिन करीब 60 से 70 ऐसे रोगियों का इलाज करता हूं जो नशे की लत से पीड़ित हैं. रिहैबिलिटेशन सेंटर हमेशा भरे रहते हैं."

परिवार हो रहे तबाह

अहमद के पिता सरकारी कर्मचारी हैं और उनके भाई-बहन अभी पढ़ाई करते हैं. उनकी बाहों और गर्दन पर इंजेक्शन के निशान दिखाई दे रहे हैं. उनकी मां अकसर वॉर्ड में उनके बगल में बैठी रहती हैं क्योंकि वह शरीर में दर्द, नींद न आना, और थकान की शिकायत करते हैं. वह कहते हैं, "मैंने दूसरे दिन हेरोइन की तीन लाइन ली और मेरे दोस्त ने फिर से मुझे मुफ्त में हेरोइन दी. तीसरे दिन मैंने एक हजार रुपये में इसे खरीदा." अहमद ने बाद में स्कूल छोड़ दिया.

अहमद की लत की वजह से उनके परिवार को आर्थिक, भावनात्मक, और सामाजिक तौर पर नुकसान उठाना पड़ा. सामाजिक तौर पर शर्मिंदगी झेलनी पड़ी. अहमद ने बताया, "मैं एटीएम की मदद से चुपके से पिता जी का पैसा निकाल लेता था. धीरे-धीरे हमारा पारिवारिक जीवन तबाह हो गया." अपनी लत को पूरा करने के लिए अहमद जुआ भी खेलने लगे और दूसरों को ड्रग भी बेचने लगे. ड्रग की इस लत ने उन्हें चिड़चिड़ा और झगड़ालू बना दिया था. वह अकसर अपने परिवार के सदस्यों से झगड़ने लगते थे. चचेरे भाई-बहनों की पिटाई कर देते और और घर के सामान तोड़ देते थे.

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उन्होंने कहा, "मैं घर पर सब कुछ तोड़ देता था. कप, पंखे, खिड़कियां सभी कुछ. मेरी दादी के पास 5,500 रुपये बैंक में जमा थे. मैंने उसे भी निकाल लिया. मैंने अपनी मां के जेवर चुराए हैं. घर से बर्तन चुराए हैं."

अहमद की 47 वर्षीय मां हजीरा बानो (बदला हुआ नाम) उन दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि नशे की लत लगने से पहले उनका बेटा काफी आज्ञाकारी और विनम्र था. वह कहती हैं, "वह खुद अपने बर्तन और कपड़े धोता था. वह खाना भी बनाता था और फर्श की भी सफाई कर देता था. लेकिन अब ये सब बातें सिर्फ यादें बनकर रह गई हैं."

नए तरह की लत

1990 के दशक की शुरुआत में जब अलगाववादी विद्रोह अपने चरम पर था, तब कश्मीर में नशीली दवाओं के तौर पर ज्यादातर मॉर्फिन, कोडीन या बेंजोडायजेपाइन ही मिलते थे. अब हालात बदल गए हैं. हाल के वर्षों में हेरोइन जैसे ड्रग्स का प्रचलन युवाओं के बीच तेजी से बढ़ा है. श्रीनगर स्थित आईएमएचएएनएस के रिहैबिलिटेशन वॉर्ड में फिलहाल 10 मरीज भर्ती हैं. इनकी उम्र 16 से 25 साल के बीच है. इनमें से ज्यादातर हेरोइन के आदी हैं.

आईएमएचएएनएस की तरफ से उपलब्ध कराए गए आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 2016 से 2019 के बीच युवाओं में नशे की लत तेजी से बढ़ी है. 2016 में जहां 489 लोगों को नशे से छुटकारा दिलाने के लिए इलाज किया गया था, वहीं 2017 में यह संख्या बढ़कर 3622 और 2019 में 7420 तक पहुंच गई. 2021 में अब तक ऐसे करीब 4000 रोगियों का इलाज किया जा चुका है.

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पुलिस भी कई रिहैबिलिटेशन सेंटर चला रही है. वहां दर्ज होने वाली रिपोर्ट बताती है कि किस तरह से युवा नशे की चपेट में आ रहे हैं. हालात ऐसे होते जा रहे हैं कि ये युवा रिहैबिलिटेशन सेंटर भी नहीं जाना चाहते. अहमद की मां हजीरा बानो ने जब अपनी जान देने की चेतावनी दी, तब जाकर अहमद इलाज कराने को तैयार हुआ. बानो कहती हैं, "उसकी लत के कारण, मैं डिप्रेशन में चली गई हूं. गांव में मेरे बेटे जैसे कई युवक नशे के आदी हो गए हैं. कई लोग ड्रग बेचते हैं. इनमें महिलाएं भी शामिल हैं. ये सभी हमारे बच्चों का जीवन बर्बाद कर रहे हैं. हम चाहते हैं कि ये सब बंद हो."

‘मादक आतंक' का प्रभाव

कुपवाड़ा के अधिकारियों ने डीडब्ल्यू को बताया कि पाकिस्तान से ‘बड़ी मात्रा में हेरोइन' लाए जाने के कारण नशे की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया, "यह मुख्य रूप से यहां के युवाओं को नशे की गिरफ्त में लाने के लिए किया जा रहा है. यह पैसे कमाने के लिए ‘मादक आतंकवाद' योजना का एक हिस्सा भी है. इस पैसे का इस्तेमाल आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है."

भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा के पास हंदवाड़ा के मराट गांव के एक युवक ने कहा कि इलाके में हेरोइन जैसी ड्रग बहुत आसानी से मिल जाते हैं. 20 वर्षीय हुसैन ने तीन साल पहले स्कूल छोड़ दिया और निर्माण के क्षेत्र में काम करने लगा, क्योंकि उसके परिवार के पास पैसे नहीं थे.

एक दिन काम से लौटने के बाद, हुसैन फर्श पर गिर पड़ा. हुसैन की मां शाहजादा (बदला हुआ नाम) ने डॉयचे वेले को बताया, "हमने उसमें अजीब आदतें देखीं. वह कमजोर हो गया था. खाना खाने के बाद उल्टी कर देता था. हमें लगा कि वह बीमार है, लेकिन एक दिन हमारे पड़ोसियों ने बताया कि उसे नशे की लत लग गई है."

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हुसैन ने कहा, "मैं पहले भांग का इस्तेमाल करता था. फिर मेरे दोस्तों ने मुझे हेरोइन लेने की सलाह दी. यह हमारे जिले में आसानी से उपलब्ध है. आप जब चाहें, पैसे देकर खरीद सकते हैं. एक बार लत लगने के बाद, मैं हर दिन कम से कम 2,000 रुपये हेरोइन पर खर्च करता था, भले ही मेरे पास पैसे न हों." हुसैन की इस लत से उसका पूरा परिवार परेशान हो गया.

शाहजादा ने बताया, "मेरे पति मजदूर हैं. वह हर दिन 400 से 500 रुपये कमाते हैं. मेरा बेटा हमारी पिटाई करता है और पूरे पैसे ले लेता है. उसने घर के जानवर को भी बेच दिया. फोन भी चुरा लिया. उसने वे सारी चीजें चोरी कर लीं जो वह कर सकता था. उसने गांव के लोगों से भी उधार लिया. गांव वाले घर पर आकर हमें परेशान करने लगे. इस वजह से मेरी बेटी ने अपनी जान देने की कोशिश की."

मानसिक समस्याओं में वृद्धि

विशेषज्ञों का कहना है कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में वृद्धि कश्मीर में मादक पदार्थों के सेवन के बढ़ते संकट के लिए जिम्मेदार है. पिछले एक साल में लागू किए गए लॉकडाउन के दौरान मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की रिपोर्ट में तेजी से वृद्धि देखी गई है, क्योंकि अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है और लोग आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं.

आईएमएचएएनएस में काम करने वाली डॉ. फरिश्ता खुर्शीद ने डॉयचे वेले को बताया कि ‘दोस्तों के दबाव में' युवा ड्रग्स का सेवन कर रहे हैं. वह कहती हैं, "लेकिन फिर हम यह भी पूछते हैं कि वे ऐसे लोगों से कैसे मिले? कुछ को घरेलू परेशानी है, किसी को आर्थिक नुकसान हुआ है, कोई अपने रिश्ते से नाखुश है या कोई आत्महत्या करना चाहता है. ज़्यादातर मामलों में देखने को मिलता है कि ये लोग हेरोइन के आदी हो चुके हैं.

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