कश्मीर में पत्रकार गौहर गिलानी की गिरफ्तारी का वारंट 12 फरवरी को ही जारी हो गया था लेकिन गिलानी अब गायब बताए जा रहे हैं. इस मामले से एक बार फिर कश्मीर में पत्रकारों की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो गए हैं.
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कई मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि गौहर के खिलाफ मूल मुकदमा उनके एक ट्वीट से संबंधित है, जो उन्होंने एक फरवरी को किया था. उसी दिन शोपियां जिले के आम्शिपुरा में कथित आतंकियों ने शबीर अहमद वागे नाम के एक पुलिसकर्मी पर गोलियां चला दी थीं.
वागे जख्मी हो गए थे और उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया गया. इस घटना के बाद शोपियां के मजिस्ट्रेट कोर्ट में गिलानी के खिलाफ एक शिकायत दर्ज की गई कि उन्होंने वागे का इलाज कहां चल रहा रहा था इस विषय में संवेदनशील जानकारी ट्विटर पर जाहिर की और और जनहित के खिलाफ काम किया.
कहां हैं गौहर
इसके बाद उसी मजिस्ट्रेट कोर्ट ने एक नोटिस जारी कर गिलानी को इस मामले में सफाई देने के लिए सात फरवरी को हाजिर होने का आदेश दिया. गिलानी जब पेश नहीं हुए तो मजिस्ट्रेट कोर्ट ने 12 फरवरी को पुलिस को उन्हें गिरफ्तार करने का और 19 फरवरी तक पेश करने का आदेश दिया.
लेकिन गौहर अब गायब हैं और उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है. पुलिस ने मजिस्ट्रेट कोर्ट को बताया है कि उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सका है और वो "फरार" हैं.
गिलानी जाने माने पत्रकार हैं और लेखक हैं. उनके लेख और वीडियो कई मीडिया संगठनों में छपते रहे हैं, जिनमें डीडब्ल्यू भी शामिल है.
कई सालों से निशाने पर
2019 में गिलानी को डीडब्ल्यू द्वारा आयोजित एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए जर्मनी जाने से रोक दिया था. उन्हें हवाई अड्डे से ही यह कह कर लौटा दिया गया था कि उन्हें भारत छोड़ कर ना जाने दिए जाने के आदेश है.
गिलानी सोशल मीडिया पर बेबाकी से कई मुद्दों पर अपनी राय रखते हैं. उनके ट्विटर पेज पर उनका जो ट्वीट पिन किया हुआ है वो अगस्त 2019 में कश्मीर का दर्जा बदल दिए जाने की कुछ ही दिनों बाद का है. ट्वीट में कश्मीर में सब कुछ बंद होने, सैकड़ों लोगों को जेल में डाल दिए जाने और मीडिया का मुंह बंद कर दिए जाने पर टिप्पणी है.
गिलानी की गिरफ्तारी के आदेश दिए जाने से कुछ ही दिनों पहले एक और कश्मीरी पत्रकार फहद शाह को कश्मीर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. शाह की गिरफ्तारी का एडिटर्स गिल्ड और दूसरे कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों और मानवाधिकार संगठनों ने विरोध किया था.
कहानी पुलित्जर जीतने वाले भारतीय फोटो पत्रकारों की
समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस के तीन भारतीय फोटोग्राफरों ने प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार जीता है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद पाबंदियों के बीच उन्होंने आखिर कैसे खींची और भेजीं तस्वीरें?
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Khan
"चूहा-बिल्ली" का खेल
"ये हमेशा चूहा-बिल्ली का खेल था" - एसोसिएटेड प्रेस के फोटोग्राफर डार यासीन ने अगस्त 2019 में कश्मीर में लागू हुई तालाबंदी की कहानियों को तस्वीरों में कैद करने के तजुर्बे को कुछ यूं बयान किया है. यासीन और उनके दो और सहयोगियों मुख्तार खान और चन्नी आनंद को इस दौरान जम्मू और कश्मीर में खींची गई तस्वीरों के लिए 2020 के फीचर फोटोग्राफी के पुलित्जर पुरस्कार से नवाजा गया है. देखिये इनमें से कुछ तस्वीरें.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Dar Yasin
घोषणा
अगस्त में जम्मू में एक इलेक्ट्रॉनिक्स सामान की दुकान पर टीवी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुनते लोग. 5 अगस्त को केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म कर उसे दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था. कश्मीर तब से एक तरह के लॉकडाउन में है जिसके तहत वहां के नागरिकों पर कई कड़े प्रतिबंध लागू हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP/C. Anand
विरोध
अगस्त में श्रीनगर में कर्फ्यू के बीच अर्धसैनिक बल के जवानों पर दूर से पत्थर फेंकता एक प्रदर्शनकारी. श्रीनगर में एपी के फोटोग्राफर मुख्तार खान और यासीन डार को प्रदर्शनकारियों और सेना के जवानों दोनों का ही अविश्वास झेलना पड़ता था.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. Yasin
पहरा
अगस्त में श्रीनगर में कंटीली तारों से बंद एक सुनसान सड़क पर पहरा देता एक सुरक्षाकर्मी. श्रीनगर में खान और यासीन कई बार कई दिनों तक घर नहीं लौट पाते थे और अपने परिवारों तक अपनी खबर भी नहीं पहुंचा पाते थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. Yasin
बंदूकें और बूट
पिछले साल अगस्त में श्रीनगर में तालाबंदी के दौरान ड्यूटी पर तैनात दो सुरक्षाकर्मी. खान और यासीन अपनी खींची हुई तस्वीरें दिल्ली ऑफिस तक पहुंचाने के लिए एयरपोर्ट पर अनजान यात्रियों से अपील करते थे. कुछ यात्री डर कर अपील ठुकरा देते थे तो कुछ मान लेते थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Dar Yasin
नमाज
अगस्त 2019 में जम्मू में मस्जिद में ईद पर नमाज अदा करते हुए लोग. आनंद जम्मू में काम करते हैं और कहते हैं कि पुरस्कार से वो अवाक रह गए. वे बीस साल से एपी के लिए काम कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Anand
ये कैसी ईद
अगस्त 2019 में ईद पर जम्मू में सुरक्षाबलों की भारी तैनाती के बीच अपने रास्ते पर जाता एक मुस्लिम व्यक्ति. एपी के अध्यक्ष गैरी प्रुइट ने कहा कि इस टीम की बदौलत ही दुनिया कश्मीर में आजादी की लंबी लड़ाई में हुई एक नाटकीय तेजी देख पाई.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Anand
वापसी
अगस्त में प्रवासी श्रमिक जम्मू और कश्मीर को छोड़ अपने अपने घर जाने के लिए जम्मू रेलवे स्टेशन पर एक ट्रेन में बैठे हुए. कर्फ्यू और फोन और इंटरनेट के बंद होने के बावजूद ये तस्वीरें एपी के इन फोटोग्राफरों ने खींचीं और किसी तरह भेजीं.
तस्वीर: picture-alliance/AP/C. Anand
पुलिस
सितंबर 2019 में श्रीनगर में शिया प्रदर्शनकारियों पर डंडे चलाता एक पुलिसकर्मी. एपी के फोटोग्राफरों ने कभी अंजान लोगों के घर में छिप कर तो कभी कैमरों को सब्जियों के थैलों में छिपा कर तस्वीरें खींची.
तस्वीर: picture-alliance/AP/M. Khan
बंदूकों के साए में
नवंबर में श्रीनगर में एक बाजार में हुए एक विस्फोट के स्थल की जांच करता हुआ एक सुरक्षाकर्मी. यासीन कहते हैं कि उनके काम का उनके लिए पेशे-संबंधी और व्यक्तिगत दोनों मतलब है. वे कहते हैं इन तस्वीरों में सिर्फ दूसरों की नहीं बल्कि उनकी खुद की भी कहानी है.