काटालिन कारिको और ड्रू वाइसमैन को चिकित्सा के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. कोविड-19 की mRNA वैक्सीन विकसित करने में इनकी खोज की बड़ी भूमिका रही.
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स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में नोबेल पुरस्कार समिति ने 2023 के नोबेल पुरस्कारों का एलान शुरू कर दिया है. सबसे पहले दिया जाने वाला चिकित्सा क्षेत्र का नोबेल हंगरी की काटालिन कारिको और अमेरिका के ड्रू वाइसमैन को मिला है.
दोनों नामों का एलान करते हुए पुरस्कार समिति ने कहा, "कारिको और वाइसमैन ने आधुनिक काल में इंसानी स्वास्थ्य पर आए एक सबसे बड़े संकट के दौरान वैक्सीन के विकास में अभूतपूर्व रफ्तार से भागीदारी निभाई."
मां के भरोसे को याद करतीं कारिको
68 साल की कारिको ने पुरस्कार जीतने के बाद स्वीडिश रेडियो से बात की. इस दौरान उन्होंने हर साल नोबेल पुरस्कार के एलान सुनने वाली अपनी मां का जिक्र करते हुए कहा, "10 साल पहले जब मैं प्रोफेसर भी नहीं थी, तब वह इसे सुनती थीं. वह हमेशा यह सुनती थीं और कहती थीं, शायद तुम्हारा भी नाम आएगा."
कारिको की मां अब इस दुनिया में नहीं हैं. लेकिन पुराने प्रसंग याद करते हुए कारिको ने स्वीडिश रेडियो से कहा, "मैं उनकी बातें सुनकर हंसती थी, क्योंकि मुझे कभी कोई ग्रांट या टीम नहीं मिली. मैं तो प्रोफेसर भी नहीं थी, क्योंकि मुझे पद से नीचे कर दिया गया था." कारिको ने कहा कि शायद मां ने "ऊपर यह एलान जरूर सुना होगा."
बढ़ाई गई पुरस्कार राशि
इस साल नोबेल पुरस्कारों के तहत मिलने वाली धनराशि को 10 लाख क्रोनर बढ़ाया गया है. क्रोनर स्वीडन की मुद्रा है. क्रोनर के गिरते मूल्य के कारण पुरस्कार समिति ने विजेताओं को एक करोड़ की जगह 1.1 करोड़ क्रोनर की राशि देने का एलान किया है. अमेरिकी डॉलर में यह रकम 10 लाख डॉलर से जरा ज्यादा है.
नोबेल को किसी भी क्षेत्र में मिलने वाले सबसे बड़े पुरस्कार के रूप में देखा जाता है. चिकित्सा के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार पहली बार 1901 में दिए गए. तब से अब तक 113 बार मेडिसिन के नोबेल पुरस्कार दिए जा चुके हैं. इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाले 225 वैज्ञानिकों में सिर्फ 12 महिलाएं ही शामिल हैं. हंगरी की काटलिन कारिको भी अब इन 12 महिलाओं में शरीक हो चुकी हैं.
2022 में चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार स्विस विज्ञानी स्वांते पाबो को मिला था. उनकी खोज ने इंसान की विलुप्त हो चुकी प्रजाति निएंडरथाल के DNA के रहस्य सामने रखे. उनके शोध से इंसान के क्रमिक विकास और मानव शरीर के प्रतिरोधी सिस्टम को समझने में बड़ी मदद मिली.
ओएसजे/वीएस (डीपीए, एएफपी)
चिकित्सा का नोबेल
1901 में पहली बार चिकित्सा के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था. तब से मेडिकल साइंस ने बहुत प्रगति की है. वैज्ञानिकों ने जिन चीजों की खोज की उससे मरीज आज भी फायदा उठा रहे हैं. एक नजर इस क्षेत्र की बड़ी खोजों पर.
तस्वीर: Christian Charisius/dpa/picture alliance
2022ः आदिमानव का जीनोम तैयार करने के लिये नोबेल
इस साल फिजियोलॉजी या मेडिसिन के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार स्वांते पेबो को दिया जायेगा. उन्हें यह पुरस्कार विलुप्त हो चुके निएंडरथाल मानव के जीनोम का सीक्वेंस तैयार करने के लिये मिलेगा.
तस्वीर: Christian Charisius/dpa/picture alliance
2021ः तापमान और स्पर्श के रिसेप्टरों की खोज के लिए नोबेल
मोलिक्यूलर बायोलॉजिस्ट डेविड जूलियस ऑर्डम पैटापूटन को इस साल चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से दिया गया.
तस्वीर: Nobel Prize Outreach/Ill. Niklas Elmehed
2020: हेपेटाइटिस सी वायरस की खोज को नोबेल
2020 के लिए चिकित्सा का नोबेल हेपेटाइटिस वायरस की खोज करने वाले तीन वैज्ञानिकों हार्वे जे आल्टर, माइकल ह्यूफ्टन और चार्ल्स एम राइस को दिया जाएगा.
तस्वीर: Niklas Elmehed/Nobel Media
2019: कोशिकाओं के ऑक्सीजन इस्तेमाल को नोबेल
2019 में चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार विलियम केलिन जूनियर, पीटर रैट क्लिफ और ग्रेग सेमेन्सा को संयुक्त रूप से दिया गया. स्वीडन की कैरोलिंस्का एकेडमी ने कोशिकाओं के ऑक्सीजन के इस्तेमाल पर की गई इनकी खोज के लिए इन्हें नोबेल पुरस्कार देने का फैसला किया.
तस्वीर: AFP/J. Nackstrand
2018: कैंसर के इलाज को नोबेल
साल 2018 में चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार जेम्स एलिसन और तासुको होन्जो को कैंसर के इलाज की खोज में उनके योगदान के लिए दिया गया.
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2017: शरीर की टिकटिक पर नोबेल
साल 2017 का चिकित्सा का नोबेल अमेरिका के तीन जीवविज्ञानियों जेफ्रे सी हॉल, माइकल रोसबाश और माइकल डब्ल्यू यंग को दिया जाएगा. उन्हें यह पुरस्कार जीवित प्राणियों के सोने और जगने को नियंत्रित करने वाली जैविक घड़ी पर शोध के लिए मिला.
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2016: ऑटोफैगी यानि कोशिकाओं की रिसाइक्लिंग का विज्ञान
ऑटोफैगी का शाब्दिक अर्थ होता है “खुद को खाना.” इसका तात्पर्य शरीर की कोशिकाओं में होने वाली उस प्रक्रिया से है जिसके होने के बारे में 1960 के दशक में ही पता चल गया था. जापानी जीवविज्ञानी योशीनोरी ओहसुमी ने उन जीन्स का पता लगाया है जो कोशिका के स्तर पर इसे नियंत्रित करती हैं. पहले बेकर यीस्ट और पिर इंसान की कोशिका में उन्होंने इस सफाई और मरम्मत के काम को प्रदर्शित किया.
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2015: ट्रॉपिकल बीमारियां
इस साल का नोबेल पुरस्कार चीन के तू यूयू, जापान के सातोशी ओमुरा और आयरिश मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक विलियम कैंपबेल के बीच बंटेगा. मलेरिया की दवा बनाने के लिए तू यूयू ने प्राचीन ग्रंथों की मदद ली. वे चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार पाने वाली पहली चीनी वैज्ञानिक हैं. ओमुरा और कैंपबेल की खोजों ने दूसरी ट्रॉपिकल बीमारियों को खत्म रखने की राह दिखाई.
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2014: हमारा दिमागी नेवीगेशन
हमारा दिमाग कैसे हमारा रास्ता चुनता है, सदियों से रहस्य बने इस सवाल को सुलझाने वाले न्यूरो साइंस के वैज्ञानिक जॉन ओकीफ, माय-ब्रिट मोसर और एडवर्ड मोसर को 2014 में मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार देने का एलान किया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Jonathan Nackstrand
2013: कोशिका परिवहन तंत्र
जेम्स रॉथमैन, रैंडी शेकमैन और थॉमस सुडॉफ को 2013 चिकित्सा के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया. कोशिका अपना परिवहन तंत्र कैसे व्यवस्थित करती है, इस बारे में रिसर्च ने इन्हें नोबेल पुरस्कार दिलाया है. तस्वीर में थॉमस सुडॉफ.
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1902: मच्छर का दोष
ब्रिटेन के रोनाल्ड रॉस ने पता किया कि मच्छर मलेरिया फैलाते हैं. उन्होंने दिखाया कि एनोफिलिस मच्छर में एक सेल वाले पैरासाइट का वाहक होता है. यही पैरेसाइट मलेरिया का कारण है. अभी भी हर साल 30 करोड़ लोग मलेरिया से संक्रमित होते हैं और 30 लाख की जान जाती है.
रोबर्ट कॉख ने क्षयरोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया का पता किया. आज भी टीबी दुनिया भर में फैला हुआ संक्रामक रोग है, जिसके इलाज में सही एंटीबायटिकों की मदद से भी काफी समय लगता है. इस बीच टीबी से बच्चों की रक्षा के लिए टीका बन गया है.
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1912: अंग प्रत्यारोपण
फ्रांसीसी सर्जन अलेक्सिस कारेल ने रक्त वाहिकाओं और अंगों के प्रत्यारोपण को संभव बनाया. उन्होंने ऐसी सिलाई तकनीक का विकास किया जिससे रक्त कोशिकाओं को जोड़ा जा सकता है. उन्होंने मानव अंगों को शरीर के बाहर सुरक्षित रखने की विधि भी बनाई.
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1924: दिल की धड़कन
नीदरलैंड्स के विलेम एंइटहोवे ने इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम ईसीजी को इस तरह विकसित किया कि उसका इस्तेमाल क्लीनिकों में हो सकता था. इससे दिल की मांशपेशियों की इलेक्ट्रिक गतिविधि का पता चलता है. इसकी मदद से डॉक्टर को दिल की बीमारी का पता चल जाता है.
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1930: खून के चार प्रकार
ऑस्ट्रिया के कार्ल लांडश्टाइनर ने पाया कि जब भी दो लोगों का खून मिलाया जाता है, तो अक्सर थक्का बन जाता है. अक्सर लेकिन हमेशा नहीं. जल्द ही उन्होंने पाया कि खून चार प्रकार के होते हैं, ए, बी और ओ ग्रुप, जिसे उन्होंने सी कहा था. बाद में उनके साथियों ने एबी ग्रुप का पता लगाया.
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1939, 1945, 1952: बैक्टीरिया विरोधी दवाएं
एंटीबायोटिक की खोज और उसका विकास करने वाले वैज्ञानिकों को तीन तीन नोबेल पुरस्कार मिले. उनमें अलेक्सांडर फ्लेमिंग भी थे जिन्होंने पेंसिलिन की खोज की. आज भी एंटीबायोटिक सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली दवा है, और अक्सर लोगों की जान बचाने के काम आती है.
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1948: कीड़े मारने का जहर
रासायनिक तत्व डीडीटी कीड़ों को मारता है, लेकिन स्तनपायी प्राणियों के लिए जहरीला नहीं है. पॉल हरमन मुलर ने इसका पता किया. उसके बाद डीडीटी दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाला कीटनाशक बन गया. आजकल उसका इस्तेमाल सिर्फ मलेरिया के मच्छरों को मारने के लिए होता है.
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1956: दिल के लिए
जर्मनी के वैर्नर फॉर्समन को हार्ट कैथेटर के विकास के लिए नोबेल पुरस्कार मिला. उन्होंने पहला परीक्षण खुद अपने शरीर पर किया. इस विधि में प्लास्टिक का एक पतला पाइप हाथ या जांघों में नस में घुसाकर दिल तक ले जाया जाता है. आजकल इस तरह ऑपरेशन या दिल की जांच की जाती है.
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1979, 2003: शरीर के अंदर
पहले शरीर के अंदर झांकने की एक ही विधि थी, एक्सरे. इस बीच डॉक्टरों के पास इससे कहीं बेहतर संभावनाएं है. उनमें से एक कंप्यूटर टोमोग्राफी है, जो एक्सरे किरणों का इस्तेमाल कर परतों में शरीर की सटीक जानकारी देता है. यही काम एमआरआई चुम्बकीय क्षेत्र के जरिए करता है.
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2008: वायरस से कैंसर
जर्मन कैंसर रिसर्च सेंटर के हाराल्ड सुअ हाउजेन की वजह से हम जानते हैं कि ह्यूमन पैपिलोम वायरस सरवाइकल कैंसर पैदा कर सकता है. इस जानकारी के बाद वायरस के खिलाफ टीका विकसित किया गया. इस बीच लड़कियां और महिलाएं इस कैंसर से बचने के लिए टीका ले सकती है.
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2010: टेस्ट ट्यूब बेबी
रॉबर्ट एडवर्ड्स ने इन-विट्रो-फर्टिलाइजेशन यानि टेस्ट ट्यूब में गर्भाधान की विधि विकसित की. इस विधि से पहला बच्चा 1978 में इंगलैंड में पैदा हुआ. इस बीच दुनिया में कृत्रिम गर्भाधान से 50 लाख बच्चे पैदा हुए हैं.